11.5.22

दर्जी समाज का प्रथम सामूहिक विवाह 1981 ,रामपुरा :First Group Marriage Rampura




श्री गणेशायनम:  
                                             ॐ जय गुरु दामोदराय नम:

                  अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ द्वारा आयोजित
                                                   


    
दामोदर वंशीय दर्जी समाज का प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन 
               
दामोदर दर्जी समाज के इतिवृत्त का एक यादगार दिन है 11 मई | यही वो दिन है जब दामोदर दर्जी महासंघ के बेनर तले रामपुरा नगर मे सन 1981 मे प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन किया गया था| इस सम्मेलन को मंदसौर और नीमच जिले का पहिला सम्मेलन होने का गौरव हासिल हुआ | मेरी बड़ी बेटी श्रीमति छाया संग सुरेश कुमार जी पँवार डग और बेटे डॉ.अनिल दामोदर संग श्रीमति शीला देवी आत्मज जगदीश जी चौहान नीमच का विवाह इसी दिन इसी सम्मेलन मे हुआ था|यह आयोजन समाजोत्थान की दिशा मे मील का पत्थर साबित हुआ और इस आयोजन की अप्रत्याशित सफलता से प्रेरित होकर अन्य समाज मे भी सम्मेलन आयोजित होने लगे|

                रामपुरा नगर मे तीन दिवसीय सम्मेलन 
                 दिनांक 9 मई से 11 मई 1981

                          
 आय-व्यय और आभार प्रदर्शन पत्रिका

सम्मेलन की आय के प्रमुख मद निम्न हैं-

विवाह शुल्क 6 जोड़े 750 रुपए प्रति पक्ष से    9012/-
सम्मेलन समिति को दर्जी बंधुओं का आर्थिक सहयोग 545/-
धोरी कलश बोली के 528/-
जल कलश बोली के 440/-
कन्यादान की राशि 846/-
सम्मेलन की बचत सामग्री बेचने से आय 469/-
इस प्रकार सभी मदों का महायोग रुपए 11840/- समिति को प्राप्त हुए|

आय का ब्योरा निम्नवत है-

डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ (रामपुरा) १७९६/-


जगदीशजी चौहान नीमच १५६४/-



कन्हैयालालजी पँवार रामपूरा ८३१/-

लक्ष्मणजी चौहान मनासा ८२९/-


लक्ष्मण जी के पुत्र बाबूलाल जी 

कन्हैयालाल जी पँवार टेलर डग ८१७/-

कन्हैयालाल जी के पुत्र सुरेशजी 


मोहनलालजी सोलंकी रामपुरा ८०२/-

कन्हैयालाल जी मकवाना रामपुरा ८०२/-





मदनलालजी काशीरामजी बाबुल्दा ७७९

देवीलालजी चौहान टकरावद ७७९/-


देवीलालजी के पुत्र भरतजी 

अमृतरामजी कड़ोडिया ७६२/-


 अमृतरामजी के पौत्र अजय जी 

रामचंदरजी मकवाना रामपुरा ३२२/-



भँवरलाल जी मकवाना रामपुरा ११७/-



गोरधन लाल जी सोलंकी मनासा १०२/-


रामचन्द्र जी चौहान मनासा ६८/-




दामोदर दर्जी महासंघ  ६६/-

कंवरलाल जी मकवाना रामपुरा ६३/-


रोडीलालजी पिता कँवर लालजी 

मोहनलाल जी मकवाना उज्जैन ५८/-

भेरुलाल जी चौहान सुवासरा ४१/-

भेरूजी चौहान के पुत्र रामनारायणजी

मदनलाल जी  मकवाना पिपल्या स्टेशन ३३/-

कमल किशोर जी पिता मदन लाल जी 

मकवाना क्लब रामपुरा ३०/-

रामगोपालजी पँवार नीमच २३/-






सोहनलालजी सीसोदिया मेलखेड़ा २२/-



सीताराम जी संतोषी शामगढ़ २२/-
छगनलालजी भवानी मंडी २२/-
रामचंदरजी चौहान नारायणगढ़ १९/-

नरेन्द्रजी पिता रामचंद्र जी 


रतनलाल जी पँवार खजूरी जोरावर १७/-

घनशामजी पंवार 
नागुलाल जी चौहान झारडा १७/-


नागुलालजी के पुत्र गोपाल जी 
नंदराम जी सोलंकी ढाकनी १७/-



मोहनलाल जी मकवाना चुनाकोठी १७/-

मोहनलाल जी पँवार फुलवारी रामपुरा १७/-



रामनिवासजी मकवाना रामपुरा १७/-


बदरीलालजी मकवाना कुंडला १७/-

रूपचद जी पिता बदरी लालजी

समिति को सहयोग देने वाले दर्जी बंधुओं के अन्य नाम इस प्रकार हैं-

१२/- कन्या दान देने वालों के नाम -

अमृतरामजी कड़ोदिया
सालगरामजी पँवार कनवाड़ा
मोहनलाल पिता सालगरामजी
अर्जुनलालजी मकवाना रामपुरा
गुजराती दर्जी युवक संघ शामगढ़
गंगाराम जी चौहान सुसनेर

गनपतजी सोलंकी भवानी मंडी

राधेशामजी मकवाना रामपुरा


देवबक्षजी रामपुरा 

माणकलालजी खजूरिया सारंग


सोहन लाल जी  रामपुरा
प्रेस क्लब डग
रामचंदरजी रामपुरा



मथुरालालजी मकवाना रामपुरा


रामनारायन जी चौहान शामगढ़
बालमुकंदजी मकवाना रामपुरा
भँवरलाल जी सीसोदिया मेलखेड़ा


रतनलाल जी सोलंकी नीमच

११/- का सहयोग देने वाले दर्जी बंधुओं के नाम

देवीलाल जी चौहान भवानी मंडी


उदेराम जी राठौर सुवासरा
राधेश्याम पिता उदेरामजी 
राधूजी राठौर भमेसर
वरदीचंद्जी पँवार आवर
सागरमलजी पँवार नागदा

६/- कन्यादान देने वालों की सूची
बापुलालजी माकवाना रामपुरा
शिवजी सोनी रामपुरा
गोकुलजी मकवाना रामपुरा

मोहनलालजी राठौर रींछा देवड़ा
गंगारामजी परमार बाबुल्दा

शिवनारायंजी रामपुरा
हुकमचंदजी बैरागी रामपुरा
पाँच रुपए समिति को सहयोग देने वालों के नाम -
शिवशंकरजी मंदसौर
राधेशाम जी मकवाना रामपुरा
शांतिलालजी चौहान नारायणगढ़
मोहनलाल जी अध्यापक मनासा
राधाकिशनजि चौहान गुडभेली
देवीलालजी परमार खार खेड़ा
रामनारायनजी परमार पाटन
नानालालजी मकवाना बरड़िया अमरा
गोरधनलालजी गुड्भेली
कन्हैयालालजी गुराडीया नरसिंग
मोहनलाल जी सोलंकी ढाकनी
मदनलालजी सोलंकी ढाकनी
किशनलाल जी ढाकनी
शंकर लाल जी अरनोद
रामलाल जी हतुनिया
भेरुलाल जी राठौर खजूरिया सारंग
रामचंदरजी सीसोदिया शामगढ़
मांगीलाल जी भवानी मंडी
पाँच रुपए जल कलश के देने वालों की सूची-
बापुलाल जी रामपुरा
शिवशंकरजी मंदसौर
राधेशांमजी मकवाना रामपुरा
शांतिलाल जी नारायणगढ़
काशीराम जी बाबूल्दा
बंशीलाल जी रामपूरा
मांगीलाल जी सोलंकी खडावदा
गोविंदजी मकवाना रामपुरा
शंकर लाल जी सोलंकी उमरिया
भवनीराम जी पँवार कनवाड़ा
दो रुपये समिति को सहयोगकर्ताओं की सूची
काशीरामजी बाबूल्दा
फकीरचंदजी नारायण गढ़
गिरधारीलाल जी सुसनेर
शांतिलाल जी चौहान नीमच
कन्हैया लाल जी परमार नारायणगढ़
शंभलाल जी सोलंकी अंतरालिया
सम्मेलन के बचे हुए सामान को बेचने से आय ४६९/-
सम्मेलन की कुल आय का महायोग ११८४०/-


सम्मेलन हेतु खर्च का विवरण नीचे दिया गया है-
भोजन एवं लकड़ी बिल क्रमांक 1 से 11 =3695/-

बिल मूल रूप मे प्रस्तुत है -



















मिर्ची  4 किलो का बिल 



गरम मसाला का बिल 





मसाला बिल 


शकर एक क्विंटल का बिल 815/-











टेंट जनरेटर सजावट बिल क्रमांक 12 से 22 =536/-






















सम्मेलन मे जनरेटर का बिल 

















डायचा व आभूषण बिल 23 से 25 =2537/-








रकम गहनों का बिल 


डायचा बिल 

डायचा बिल 

डायचा बिल 







































सम्मेलन मे बैंड  का बिल 





छपाई व स्टेशनरी बिल नंबर 27 से 31 = 351/-



















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प्रकाश व्यवस्था बिल नंबर 32 से 37 =328/-
























जन संपर्क बिल (किराया खर्च)

ओसवाल नेहरा किराया मय बिजली बिल 38क = 242/-


जन सम्पर्क किराया खर्च बिल नंबर 38 ख =135/-




 

लाऊडस्पीकर बिल क्रमांक 39क = 65/-



धोरी कलश जलकलश मटके बिल क्रमांक 39ख=120/-





फुटकर खर्च बिल 40 से 71 =1180.25
























Bill 46 




























































































































कन्यादान प्रत्येक जोड़े को 141/- दिये बिल 78 =846/-



फोटोग्राफी बिल: क्रमांक 79 = 258/-




सम्मेलन की कथा व भोजन बिल क्रमांक 80 =232/-





खर्च का महा योग 11005/-
सम्मेलन की आय = 11840/-
सम्मेलन खर्च = 11005/-
सम्मेलन की बचत =834/-

नोट-सम्मेलन के खर्चे के उक्त बिल कोशाध्यक्ष श्री रामचन्द्र जी मकवाना रामपुरा द्वारा प्रधान सचिव डॉ॰आलोक को प्रस्तुत किए गए  और श्री आलोक ने यह हिसाब तैयार कर वेब साईट पर डाला||इतना पारदशिता पूर्ण और साफ सुथरा हिसाब  समाज के सामने प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ,आभार!
यह बचत राशि सम्मेलन के अध्यक्ष व कोशाध्यक्ष के नाम से स्टेट बेंक आफ इंदौर रामपुरा मे जमा कर दी गई है|
उपरोक्त आय और व्यय का हिसाब कोशाध्यक्ष द्वारा प्रस्तुत आय की रसीदें और खर्च के बिल के आधार पर प्रधान सचिव डॉ॰दयाराम आलोक द्वारा तैयार किया गया |
प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन मे जिन जोड़ों के विवाह सम्पन्न हुए हैं समिति उनके प्रति विशेष आभार मानते हुए उनके मंगल भविष्य की कामना करती है|


 

प्रस्तुत है सामूहिक विवाह मे सम्मिलित जोड़ों की सूची-

1 ऊषा कुमारी पिता कन्हैया लाल जी पँवार रामपुरा 

संग
 बाबूलाल पिता लक्ष्मणजी चौहान मनासा
2॰शीला कुमारी पिता जगदीश चंदर जी चौहान नीमच

 संग 
अनिलकुमार पिता दयाराम जी आलोक शामगढ़-रामपुरा
3॰छाया कुमारी पिता दयाराम जी आलोक शामगढ़-रामपुरा 

संग
 सुरेश कुमार पिता कन्हैयालाल जी पँवार डग
4॰लीला कुमारी पिता जगदीश जी चौहान नीमच 

 संग 
भरत कुमार पिता देवीलाल जी चौहान टकरावद
5॰पुष्पा कुमारी पिता अमृतराम जी कड़ोदिया 

संग 
जगदीश चंद्र पिता कन्हैयालाल जी मकवाना रामपुरा
6॰संतोष कुमारी पिता मोहन लाल जी सोलंकी रामपुरा 

संग 
सत्यनारायण पिता मदन लाल जी परमार बाबूल्दा
दामोदर दर्जी महासंघ के तत्वावधान मे डॉ॰दयाराम जी आलोक के नेतृत्व मे सम्पन्न प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन की अपार सफलता से प्रेरणा लेकर दर्जी समाज मे आगे भी ऐसे ही सम्मेलन आयोजित करने की चर्चें चलना स्वाभाविक है|हमने पूरे मध्य प्रदेश मे सबसे पहिले सम्मेलन आयोजित करने का आगाज कर दिया है| इसके पहिले मध्य प्रदेश मे किसी भी समाज मे कोई सामूहिक विवाह सम्मेलन नहीं हुआ है|


                                                    * विनीत*
    अध्यक्ष                              कोषाध्यक्ष                    आयोजन प्रभारी 
राम गोपाल मकवाना                       
रामचंद्र मकवाना                डॉ॰दयाराम आलोक       

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27.4.22

पाटीदार जाति की उत्पत्ति और इतिहास :history of patidar caste






पाटीदार समाज की उत्पत्ति का इतिहास का विडिओ 




पाटीदार जाति का इतिहास, किसान वर्ग से जुड़ा है. पाटीदार, गुजरात की प्रमुख जातियों में से एक हैं. पाटीदारों को पहले कानबी के नाम से जाना जाता था. पाटीदार शब्द का अर्थ है, भूमि का धारक. पाटीदारों के बारे में कुछ खास बातेंः

पाटीदारों की उत्पत्ति कुणबी से मानी जाती है.

पाटीदारों ने ज़मीन का स्वामित्व लेना शुरू किया और पटेल की उपाधि अपनाई.

पाटीदारों के बारे में कहा जाता है कि वे परिश्रम, पुरुषार्थ और परमार्थ करने वाले होते हैं.

पाटीदारों को दुनिया का रखवाला भी कहा जाता है.

पाटीदारों के इतिहास से जुड़ी कुछ और खास बातेंः

पाटीदारों को मराठा राज के दौरान राजस्व संग्रह का काम सौंपा गया था.

पाटीदारों को देसाई और पटेल पदवी भी दी गई थी.

पाटीदार कौन है?

पाटीदार 'पटेल और चौधरी' की तरह पदवी का नाम है यह कोई जाति विशेष का प्रतिक नहीं है। पाटीदार उत्तरी गुजरात व दक्षिणी राजस्थान के क्षेत्रों में निवास करनेे वाले लोगों को मिली उपाधि का प्रमाण हैं।


पाटीदार का अर्थ:-

☞ पाटी = पटी या भु-भाग
☞ दार = दातव्य या धारक
अर्थात् पाटीदार का अर्थ उनके द्वारा पटी या भुमी के दातव्य या रखने के कारण इनको पाटीदार कहा जाता है ।

पाटीदार समाज की उत्पत्ति : -

Patidar की उत्पत्ति = कणबी (कलबी) शब्द से हुई है ।
इनको प्राचीन काल में "कृषक क्षत्रिय " भी कहा जाता था जो कृषी के साथ - साथ जरूरत पड़ने पर युद्ध भी किया करते थे।
लगभग 14 वीं 15 वीं शताब्दी के आसपास कुलबी आँजणा के अलावा अन्य किसी जाति अथवा धर्म के व्यक्तियों को पाटीदार बनाया जाने का रिवाज था ।
जिसमें अन्य कुल या धर्म के लोगों को सम्मिलित कर एक सामूहिक सम्मानजनक समुह बन गया।
इससे यह स्पष्ट होता है कि पाटीदार कोई जाति विशेष नहीं है। बल्कि एक सामूहिक लोगों का संगठन है।
इनका निवास स्थान प्राचिन काल में काईरा जिले के चरोत्तर क्षेत्र के आसपास था जो वर्तमान में खेड़ा जिले में स्थित है।
वहां के पाटीदारों ने अधिक महत्व प्राप्त कर इनके दो प्रमुख समूह उपजे जो इस प्रकार है : -


1. लेवा या लेउवा

 
2. कडवा या कड़वा

इनका नाम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र :- लव - लेउवा और कुश - कड़वा के नाम पर रखा माना जाता है। इन दोनों समूहों के धार्मिक स्थल और कुलदेवी अलग - अलग है।
'पाटीदारों में चार उप - शाखायें जो लेवा, कडवा, आँजणा, और उदा है। '

Patidar को जाति समझना : -

उक्त उदाहरण के अनुसार पाटीदार एक जाति समझकर उल्लेख किया है। कुछ लोग 'पाटीदार' नाम को जाति समझ लेते हैं लेकिन यह भ्रमयुक्त है। वास्तव में यह कोई जाति नहीं है बल्कि भुमी की पट्टी के मालिक का ही नाम ' Patidar ' है।

देसाई और पाटीदार दोनों पदवियों के लोग उत्तरी गुजरात के काइत्तरा जिले के चरोत्तर क्षेत्र जो वर्तमान में खेड़ा जिले में और राजस्थान के क्षेत्रों में मिली होने का प्रमाण है।

लेवा पाटीदार कौन है?

लेवा पाटीदार समाज के लोग कच्छ इलाके (गुजरात के पश्चिम क्षेत्र तटीय इलाका है ) के राजकोट, जूनागढ, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर जामनगर और भावनगर में निवास करते हैं।
इनकी कुलदेवी खोडियार माता है।
इनका धार्मिक स्थल सौराष्ट्र के कागवड गॉव में माँ खेडलधाम से प्रचलित है।

कड़वा पाटीदार कौन है?

कड़वा पाटीदार समुदाय के लोग उत्तर गुजरात के मेहसाणा अहमदाबाद विसनगर और कड़ी - कलोल के आसपास कि जगह पर निवास करते है।
इनकी कुलदेवी उमिया माता है।
इनका प्रमुख तीर्थस्थान उत्तर गुजरात के ऊँझा गाँव मे माँ उमिया संस्थान के नाम से प्रचलित है।

गुर्जर पाटीदार कौन है? : -

गुर्जर पाटीदार एक सम्माननीय समाज है इनका निवास स्थान गुजरात, राजस्थान, पंजाब आदि राज्यों में निवास करते हैं। यह वीर गुर्जर होने के कारण इनके नाम पर गुजरात राज्य और गुजरॉवाला रखा गया।
यें वीर गुर्जर होने के कारण वर्तमान में Indain Armi में गुर्जर पाटीदारो की संख्या अधिक है।
गुर्जर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द गुर्जर अर्थात् दुश्मनो का विनाश करने वाला ।
भारत में आया चीनी यात्री के ह्वेन्सान्ग के अनुसार इनका इतिहास भी बड़ा रोचक है। वर्तमान के जालोर में स्थित भीनमाल गुर्जर साम्राज्य की राजधानी थी ।

पाटीदार का निवास :-

वर्तमान में पाटीदार गुजरात राज्य में बड़ी संख्या मे निवास करते है। 19 वीं शताब्दी में पाटीदार गुजरात के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका मे भारी संख्या में Patidar निवास करते है।

पाटीदार समाज की वर्तमान में जनसंख्या :-

अधिकतर गुजरात, मध्यप्रदेश, और राजस्थान में निवास करने वाली जाती है। वर्तमान में पाटीदार समाज की जनसंख्या तकरीबन 27 करोड़ के आसपास है।
यह भी पढ़ें - 
पाटीदार की उत्पत्ति कुणबी से हुई है जो कि किसान जाति है। 17वीं-18वीं शताब्दी में जब मराठों का राज उत्तर की तरफ फैलने लगा तब कुणबी को उनकी सैन्य सेवा के लिये या नई जीते गए क्षेत्र के कृषक के रूप में जमीन दी गई। उन्होंने वहाँ बसे कोइरी के आगे वर्चस्व स्थापित कर लिया और कणबी के रूप में मुख्य कृषक जाति बन गई। मराठा राज के अंतिम दिनों में कणबी को उनके मराठी और गुजराती भाषा दोनों भाषा के ज्ञान के कारण राजस्व संग्रह का कार्य दिया जाता था। इसी समय उन्हें देसाई और पटेल पदवी दी गई।राजस्व संग्रह का कार्य करके कई ने विस्तृत भूमि प्राप्त कर ली। ऐसे व्यक्तियों को सामूहिक रूप से "पाटीदार" कहा जाने लगा। पाटी का अर्थ "भूमि" और दार का "धारक" होता है।यह वर्ग सामान्य लोगों का सम्मानजनक समूह बन गया और कई निम्न स्तर के समुदाय इसमें मिल गए और उनको इसमें सम्मिलित कर लिया गया। काइरा जिले के चरोतर क्षेत्र (वर्तमान खेड़ा जिले में) के पाटीदारों ने अधिक महत्व ग्रहण कर लिया। वहाँ दो समूह उपजे:- कड़वा और लेउवा। जिनका नाम कथित तौर पर राम के पुत्रों लव-कुश से लिया गया है। दोनों की कुलदेवी और धार्मिक संस्थान अलग है।
 जाति इतिहासकार डॉ.दयाराम आलोक  के मतानुसार-
 भगवान् श्री राम के पुत्रों लव एवं कुश की संतान के रूप में लेवा एवं कड़वा पाटीदारों की उत्पत्ति का विवरण जनश्रुतियों में समस्त पाटीदार परिवारों में कहा सुना जाता है, जिसमें लव की राजधानी वर्तमान लाहौर (पाकिस्तान) में थी, जहां हमारी जाति का प्रसार हुआ कहा जाता है। जबकि कुश की राजधानी कुशावर्त्त (वर्तमान पाटलीपुत्र या पटना) थी, कड़वा पाटीदार इस प्रदेश में फैले।
दूसरी जनश्रुति के अनुसार पाटीदारों की उत्पत्ति कथा गुजरात को ही मूल भूमि बतलाती है। एक समय गुजरात में नौ लाख दानव एवं राक्षस भगवान् महादेव के द्वारा तपस्या से प्राप्त वरदान से उन्मत्त और आततायी हो गए थे। लेकिन भगवान् महादेव ने उन्हे कहा था कि तुमने भूल कर भी किसी अकेली स्त्री से मत लड़ना। किंतु दानवों ने गलती की, जब शक्ति मां आरासुर पहाड़ी पर एक षोडसी बाला के रूप में प्रकट हुई। दानवों ने आसौ सुदी दूज के दिन आरासुरी अंबाजी से युद्ध किया, युद्ध में माता ने महिषासुर का संहार किया और रक्तबीज दानव का शीश काटकर अपने जलते हुए खप्पर में पूरा रक्त जलाकर रक्तबीज का वध किया। इन राक्षसों का विदा करने के दौरान माताजी इतने क्रोध में थी की गुस्सा शांत न होने पर स्वयं अपना हाथ चबाने लगी। उन्होंने श्री ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को बंदी बना लिया। युद्ध निरत होकर प्यास बुझाने हेतु माता वंश सरोवर के पास अपने घोड़े से उतरी, पानी पिया। तब कौतुहल वश तालाब की मिट्टी से उन्होंने बावन मिट्टी के पुतलों का निर्माण किया उन सुंदर पुतलों के निर्माण के बाद माताजी में वात्सल्य का ज्वार उमड़ा और संजीवनी मंत्र से उन पुतलों में प्राण डालकर जीवित कर दिया। बाद में महादेव जी को वैशाख सुदी दूज के दिन अपने बंधन से मुक्त किया। महादेवजी ने जब उन बच्चों के बारे में, उनकी उत्पति के बारे में जानना चाहा और पूछा कि – “किम् बीज?” कहा जाता है उसी के अपभ्रंश रूप में कुलम्बी नाम पड़ा है। उन बावन बच्चों को तीनो देवता डराने लगे। तब सभी ने माताजी से शिकायत कर दी। माता ने उन सभी को चार वरदान दिये!
1. तुम हलपति कहलाओगे, दुनिया का पेट भरोगे।
2. हल से ही तुम्हारा यश संसार में फैलेगा।
3. संसार तुमसे सदैव अन्न की आशा करेगा।
4. तुम सबका वंश कलियुग में खूब फलेगा फूलेगा।
इन सभी लड़कों के विवाह के लिये माताजी ने पाताल लोक से बावन नाग कन्याओं को लाकर विवाह रचाया, जिनमें त्रुटि वश बड़े पुत्र को छोटी नागकन्या और छोटे पुत्र को बड़ी नागकन्या से विवाह कर दिया। इन सब पुत्रों में बड़ा पुत्र लवसंग सबसे पहले अलग होकर अपनी पत्नि के साथ मध्य गुजरात की तरफ चला गया। जबकि शेष 51 पुत्रों को जो कड़वा पाटीदारों के 51 कुलनाम से जुड़े हैं माता ने उन्हे उनका यथोचित हक देकर (जिसे गुजराती में पाँती पाड़ी कहा जाता है) अपना वंश विस्तार का आदेश दिया। तब से संपूर्ण गुजरात और अन्य राज्यों में पाटीदार अपनी संपत्तियों के माध्यम से अपने कृषिकर्म के आधार पर फैलते गए। यह जनश्रुति गुजरात की लोकमानस में व्याप्त कथा है।

इतिहास


ब्रिटिश राज में पाटीदारों को भूमि सुधार से फायदा हुआ और उन्होंने बड़ी संपदा और सामाजिक प्रतिष्ठा हासिल कर ली। कुछ पाटीदार क्षत्रिय दर्जा हासिल करने के लिए ऊँची जातियों के तौर-तरीके अपनाने लगे। जैसे कि शाकाहार और विधवा का पुनर्विवाह निषेध किया जाना। पाटीदार में अनुलोम विवाह का भी चलन हुआ, पाटीदार लड़कियाँ अपने से ऊँचे स्तर के लड़के साथ विवाह करती। लेकिन लड़के सिर्फ नीचे स्तर की पाटीदार लड़कियों से ही विवाह कर सकते। लड़कियों की कमी के कारण पाटीदार पिता को दहेज के साथ अपने लड़के की शादी के लिये वधू शुल्क भी देना पड़ता। कई गाँव में उन्हें गैर-पाटीदार लड़की से विवाह करना पड़ता है, जिसे पाटीदार ही माना जाता।

वर्तमान

इस समय में पाटीदार व्यवसाय संबंधी कार्य में लिप्त होने लगे है और अब वो वैश्य के रूप में पहचानना पसंद करते हैं। 19वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका में कई पाटीदार बसे। उनके अपने राज्य गुजरात में भी पाटीदार प्रधान जाति है और हर क्षेत्र में उसका काफी प्रभुत्व है।

पाटीदार समाज के प्रमुख व्यक्ति

सरदार वल्लभभाई पटेल: भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री.
चिमन भाई पटेल: गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री
बाबू भाई पटेल: गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री
केशुभाई पटेल: गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री.
आनंदीबेन पटेल: गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री
करसनभाई पटेल: बिजनेसमैन, उद्योगपति, निरमा ग्रुप के संस्थापक.
पंकज रमनभाई पटेल: अरबपति बिजनेसमैन, कैडिया हेल्थ केयर के संस्थापक
शिवजी ढोलकिया: प्रसिद्ध हीरा व्यवसायी 
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14.4.22

साहित्यमनीषी,समाज सेवी डॉ. दयारामजी आलोक से साक्षात्कार: Interview with literary scholar, social worker Dr. Dayaram ji Alok


दामोदर दर्जी महासंघ द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह सम्मेलन के अवसर पर 

समाज सेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक
का

समाज सेवी रमेश चंद्र जी आशुतोष 
द्वारा 
साक्षात्कार


आशुतोष -

दामोदर दर्जी समाज (darji samaj)के परिवारों की जानकारी की इस किताब के लिये आपसे साक्षात्कार लेना मेरा सौभाग्य है। आप अपना सक्षिप्त जीवन परिचय दें।
डॉ.दयाराम आलोक :-- शामगढ कस्बे में पुरालालजी राठौर के कुल में जन्म 11 अगस्त सन 1940 ईस्वी। रेडीमेड वस्त्र बनाकर बेचना पारिवारिक व्यवसाय था। अत्यंत साधारण आर्थिक हालात।हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद सन 1961 में शासकीय सेवा में अध्यापक के पद पर नियुक्त।सन १९६९ में राजनीति विषय से एम.ए. किया। चिकित्सा विषयक उपाधियां आयुर्वेद रत्न और होम्योपैथिक उपाधि  DIHom( London) अर्जित कीं।

आशुतोष  :-आपने दामोदर दर्जी महासंघ कब और किस उद्धेश्य से संगठित किया?

डॉ. दयाराम आलोक :- दर्जी समाज के महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यों को संगठित ढंग से संपादित करने तथा सामाजिक फ़िजुल खर्ची रोकने के उद्देश्य से मैने अपने कुछ घनिष्ठ साथियों के सहयोग से सन 1965 में "दामोदर दर्जी युवक संघ" का गठन किया और एक कार्यकारिणी समिति बनाई। कालांतर मे विस्तृत होकर यह दर्जी युवक संघ "अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ" के टाईटल  से अस्तित्व में है।
 दामोदर दर्जी महासंघ की स्थापना में मुझे शामगढ के 


डॉ.लक्ष्मी नारायण जी अलौकिक ,


रामचन्द्र जी सिसौदिया , शंकरलालजी राठौर, कंवरलाल जी सिसौदिया,गंगारामजी चौहान शामगढ़ एवं रामचंद्रजी चौहान मनासा ,


प्रभुलालजी मकवाना मोडक,देवीलालजी सोलंकी बोलिया वाले और


कन्हैयालाजी पंवार गुराडिया नरसिंह का सक्रिय सहयोग प्राप्त हुआ। मैने संघ का संविधान सन 1965 में लिपिबद्ध किया और 
डॉ.लक्ष्मीनारायण जी अलौकिक के माध्यम से रसायन प्रेस दिल्ली से छपवाकर प्रचारित-प्रसारित किया |

दामोदर युवक संघ का प्रथम अधिवेशन 14 जुन 1965 को शामगढ में पूरालालजी राठौर के निवास पर हुआ ।अधिवेशन में 134 दर्जी बंधु उपस्थित हुए। इस अधिवेशन मे श्री रामचन्द्रजी सिसोदिया को अध्यक्ष, डॉ.दयारामजी आलोक को संचालक,और श्री सीतारामज्री संतोषी को कोषाध्यक्ष बनाया गया। सदस्यता अभियान चलाकर ५० नये पैसे वाले करीब ७२५ सदस्य बनाये गये।

आशुतोष- दामोदर दर्जी समाज के डग स्थित श्री सत्यनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार और उद्ध्यापन का काम आपने किस तरह संचालित किया? संक्षेप में बताएं।
डॉ.दयाराम आलोक :--डग मंदिर मे भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवाने के उद्देश्य से मैं 15 मई 1966 के दिन डग गया था। डग के स्थानीय दर्जी बंधुओं की मिटिंग मन्दिर में बुलाइ गई। लंबे विचार विमर्श के बाद डग के सभी दर्जी बंधुओं(सर्वश्री 
गोरधनलालजी सोलंकी,बालमुकंदजी पंवार,नाथूलालजी सोलंकी ,रामकिशनजी चौहान ,गगारामजी पँवार ,सालगरामजी सोलंकी , भगवानजी सोलंकी ,रतनलालजी पँवार ,नाथूलालजी,भंवरलालजी सोलंकी ,कन्हैयालालजी पंवार चेनाजी राठौर आदि) ने एक लिखित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर मंदिर उद्ध्यापन का कार्य मेरे नेतृत्व में दामोदर दर्जी युवक संघ के सुपर्द कर दिया। उस समय मेरी उम्र यही कोई २५ साल की थी। इतनी कम उम्र में डग के बुजुर्ग दर्जी बंधुओं का मंदिर के उद्ध्यापन जैसे बडे और महत्वपूर्ण कार्य के लिये विश्वास और आशीर्वाद  हासिल कर लेना मेरी सामाजिक जिंदगी की सबसे बडी सफ़लताओं  की एक महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा सकती है| 
अर्द्ध शताब्दी  से भी ज्यादा  पुराना यह दस्तावेज दर्जी बंधुओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।



यह डाक्यूमेंट दामोदर दर्जी महासंघ के कार्यालय में मौजूद है।

दामोदर दर्जी समाज के डग स्थित भगवान सत्यनारायण मंदिर मे


मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान

  बंधुओं,दामोदर दर्जी समाज के डग मंदिर में भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने की कठिन जिम्मेदारी मैने परमात्मा के आशीर्वाद ,समाज के बुजुर्ग,प्रतिष्ठित दर्जी बंधुओं तथा दामोदर दर्जी महासंघ के उत्साही सदस्यों के माध्यम से निभाई और समाज के लोगों के आर्थिक सहयोग से 23 जून 1966 के दिन डग में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा उत्सव आयोजित किया गया।उल्लेखनीय है कि इसी दिन दामोदर दर्जी युवक संघ का दूसरा जनरल अधिवेशन भी संपन्न हुआ था।उध्यापन के लिए चंदा राशि संगृह करने के लिए दामोदर युवक संघ की रसीद बुक्स  उपयोग मे लाई गई थी|

आशुतोष -


सामुहिक विवाह सम्मेलन की नींव डालते हुए आपने रामपुरा में सन 1981 में प्रथम सामुहिक विवाह सम्मेलन आयोजित कर समाज को एक नई दिशा दी है। इसके बारे में कुछ बताएंगे।

दामोदर दर्जी समाज की आर्थिक बुनियाद 

डॉ.दयाराम आलोक -

 हमारे दर्जी समाज की आर्थिक बुनियाद सनातन काल से कमजोर रही है। सामूहिक विवाह से धन की बचत होती है । राजस्थान में सामूहिक विवाह होने लगे थे लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसे आयोजन शुरू नहीं हुए थे। अत: मन में विचार आया कि रामपुरा नगर में दर्जी समाज का प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन किया जावे। बस, रामपुरा के उत्साही युवकों को अपने विचार बताए और उनके सक्रिय सहयोग से 1981 में प्रथम समूहिक विवाह सम्मेलन आयोजित किया जिसकी आशातीत सफलता से भविष्य मे समाज हित मे ऐसे ही आयोजन करने की अवधारणा मजबूत हुई|

सामूहिक विवाह सम्मेलन के बारे मे लोगों की सोच क्या थी? 


 बंधुओं,वह ऐसा समय था जब लोग सम्मेलन के नाम से नाक-भोंह सिकोडते थे और सामूहिक विवाह सम्मेलन को अच्छी निगाह से नहीं देखते थे। बाद में धीरे- धीरे सम्मेलन के प्रति लोगों की रूचि बढने लगी और अन्य स्थानों पर भी दर्जी समाज के सामूहिक विवाह के आयोजन होने लगे। अब आप देख ही रहे हैं कि प्रति वर्ष या हर दूसरे साल सम्मेलन होने लगे हैं। दामोदर दर्जी महासंघ के बेनर तले 9 सामूहिक विवाह सम्मेलन हो चुके हैं। सातवां सामूहिक विवाह सम्मेलन 27 फ़रवरी 2012 को शामगढ में आयोजित किया गया।

आशुतोष - 

मैंने आपकी कई कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में पढी हैं । अपनी साहित्यिक गतिविधियों पर प्रकाश डालें।

डॉ.दयाराम आलोक:--मेरे अग्रज डॉ.लक्ष्मीनारायण जी अलौकिक की साहित्यिक गतिविधियों का मुझ पर असीम प्रभाव पडा। 60 के दशक में अलौकिक जी दिल्ली,बिकानेर,मथुरा से प्रकाशित मासिक पत्रिकाओं के सह संपादक रहे। उनके लेख नियमित छपते थे।उन्ही दिनों मैने कविता लिखना प्रारंभ किया। मेरी प्रथम रचना"तुमने मेरी चिर साधों को झंकृत और साकार किया है" बिकानेर से निकलने वाली पत्रिका "स्वास्थ्यसरिता" में सन 1963 में प्रकाशित हुई थी।स्वर्गीय श्री ज्ञानप्रकाशजी जैन इस मासिक पत्रिका के संपादक थे। कविता लिखने का सिलसिला जारी रहा और मेरी रचनाएं कादंबिनी ,दैनिक नव ज्योति ,दैनिक जागरण,इन्दौर समाचार ,प्रजादूत,प्रभात किरण, मालव समाचार ,ध्वज मंदसौर ,नई विधा, डिम्पल आदि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित अंतराल से प्रकाशित होते रहे। अब तक करीब 150 रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।

आशुतोष- 

आप संपूर्ण दर्जी परिवारों की जानकारी एकत्र कर रहे हैं ,इसके पीछे आपका क्या प्रयोजन है।

डॉ.दयाराम आलोक :--

जिस समाज के हम अंग हैं उसके बारे में जानकारी एकत्र करना हमारा कर्तव्य है|  सन 1965 से ही मैने दर्जी परिवारों की जानकारी


बकायदा निर्धारित छपे हुए फ़ार्म में लिखनी शुरू कर दी थी। आज महासंघ के दफ़्तर में समाज के सभी परिवारों की जानकारी उपलब्ध है।

 मेरे अनुज



श्री रमेशचंद्र राठोर आशुतोष ने दर्जी समाज के परिवारों की जानकारी की दो स्मारिकाओं का सफ़ल संपादन किया और 1993 तथा 2000  में प्रकाशित ये पुस्तकें  दर्जी समाज की जानकारी प्राप्त करने के संदर्भ ग्रंथ के रूप में प्रचलित हैं।

 सन 2000 में प्रकाशित ’समाज ज्ञान गंगा” का वित्त पोषण भवानीशंकर जी चौहान सुवासरा ने किया और गांव-गांव जाकर दर्जी बंधुओं की जानकारी भी उन्होने एकत्र की थी। समाज के लोगों की जानकारी इकट्ठा करना बेहद कठिन काम है। इसके लिए आपने मोटर साइकल के माध्यम से समाज की बसाहट वाले सभी गाँव की यात्रा की ।अब जो जानकारी आपने एकत्र की उसके आधार पर भविष्य में भी समाज की नई पुस्तक छापने में मदद मिलेगी। सामूहिक विवाह सम्मेलन मे शादी करना  समाज की प्राथमिकता हो

मेरा परामर्श है कि अगर अपने समा्ज में कहीं सामूहिक विवाह सम्मेलन हो रहा हो तो अपने घर पर शादी करने  की मूर्खता नहीं करनी चाहिये।सामूहिक विवाह में शादी करके धन की बचत करना चाहिये। जिन दर्जी बंधुओं के घर के मकान नहीं हैं उनके लडकों के संबंध करने में अब थौडी दिक्कत आने लगी है। अपनी पुत्री के लिये योग्य वर की तलाश हर पिता का फ़र्ज है। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये कुछ लोग दाहोद,झाबुआ राणापुर की तरफ़ संबंध करते हैं। इधर समाज में यह चर्चा जोरों पर है कि जो लोग अपनी लडकियां बाहर वाले दर्जियों को देंगे उन पर प्रतिबंध लगाया जावे। मेरा अपना मत है कि प्रतिबंध लगाना लडकियों के लिये योग्य वर की तलाश करने में बाधक और गैर कानूनी कदम होगा ।हमारे पूर्वजों ने भी रामपुरा के कुछ दर्जी बंधुओं के खिलाफ़ जाति से निष्कासन के निर्णय लिये थे लेकिन कालान्तर में वे निर्णय सफ़ल नहीं हुए।
 इसके बजाए अपने लडकों को अच्छा पढाओ, अपनी आर्थिक व्यवस्था सुधारो, रहने के खुद के मकान और दूकान की व्यवस्था करो, अपने आचरण सुधारो ताकि लडकों के कुंवारे रह जाने की नौबत न आवे।
 इधर कुछ अर्से से लडकियों के पैसे लेकर शादी करने का चलन बढता हुआ नजर आ रहा है। पुराने जमाने में भी कुछ लोग लडकियों के पैसे लेते थे। मेरे विचार में लडकी का गरीब पिता शादी में लगने वाला खर्चा लडके वाले से प्राप्त करता है तो इसे सामाजिक बुराई के रूप में देखना ठीक नहीं है।"कैसा कन्या दान ,पिता ही कन्या का धन खाएगा।" गरीब पिता पर यह बात लागू करना अनुचित है।
कुल मिलाकर अब अच्छे पढे लिखे ,सर्विस करने वाले तथा स्वयं के मकान वाले लडकों की मांग रफ्तार पकड़ रही है|  घर का मकान और पढाई दोनों बातों पर ध्यान देना जरूरी है।

मकवाना: अपनी धार्मिक विचारधारा के बारे में कुछ बतायेंगे?

डॉ.दयाराम आलोक की धार्मिक सोच 


डॉ.दयाराम आलोक: 

हिन्दु,मुस्लिम सिख, इसाई ,जैन बौद्ध सभी का ईश्वर एक है। किसी भी धर्म ग्रंथ मे उल्लेखित विषय पर अपनी विज्ञान सम्मत तर्क शक्ति का समुचित उपयोग करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। धार्मिक पाखंड से स्वयं को दूर रखना चाहिये। हिन्दु धर्म में ईश्वर के निराकार और साकार दोनों रूपों के समर्थक और भक्त हुए हैं। जहां तक मेरा सवाल है मैं निराकार ईश्वर की अवधारणा को सर्वाधिक प्रचलित साकार (मूर्ति रूप ) पर अधिमान्यता देता हूं। । कण-कण में भगवान होने का सिद्धांत ज्यादा उचित लगता है। स्वामी दयानंद सरस्वती और संत कबीर के कई सिद्धांत मानव का कल्याण करने वाले हैं।धर्म का मर्म निम्न दोहों में पूरी तरह समाविष्ट है-

चार वेद छ: शास्त्र में बात लिखी है दोय,
दुख दीन्हे दुख होत है सुख दीन्हे सुख होत॥

निर्बल को न सताईये जा की मोटी हाय,
मुए भेड की खाल से लोह भस्म हुई जाय ॥

कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय,
ता चढि मुल्ला बांग दे बहरा हुआ खुदाय?

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं जा पूजूं पहाड
या ते तो चाकी भली पीस खाय संसार॥

कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वन मांहि
तैसे घट-घट राम है दुनिया देखे नाहीं॥

बकरी पाती खात है ताकी खोली खाल
जो नर बकरी खात है उनको कौन हवाल?

नोट-यह आलेख 2012 मे geni.com वेब साईट पर प्रकाशित हुआ था |कुछ संशोधन भी शामिल किए गये हैं|

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