26.1.24

सनातन धर्म में कितने तरह के होते हैं गोत्र? कैसे ढूंढे अपनी गोत्र




किसी भी सनातनी के शादी-ब्याह, कर्मकांड या पूजा पाठ के समय आप सुनते होंगे कि उनसे उनके गोत्र के बारे में पूछा जाता है. सनातन धर्म में एक गोत्र में शादी पूर्णतः वर्जित है. इसका वैज्ञानिक कारण भी है कि अगर एक ही गोत्र में शादी की जाए तो कई तरह की जेनेटिक परेशानी उनके अगले वंश में आ जाती है. ऐसे में गोत्र का यहां विशेष महत्व है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि गोत्र क्या है और इसे कैसे पता लगाएं कि आपका गोत्र कौन सा है. गोत्र की सही व्याख्या की मानें तो इंद्रिय आघात से रक्षा करनेवाला ही गोत्र है. इस ऋृषि परंपरा से जोड़ा जाता है. मतलब साफ है जो विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि अगर इंद्रिय आघात से रक्षा करना है तो दूसरे गोत्र में शादी-ब्याह जैसे बंधन को स्वीकार करना चाहिए.
ऐसे में ब्राह्मणों के लिए गोत्र का विशेष महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि उनको ऋृषियों की संतान माना गया है. यानी हर ब्राह्मण के गोत्र से पता लग जाएगा कि वह किस ऋृषिकुल से आते हैं. यानी गोत्र सीधे तौर पर आपके पूर्वजों की पहचान को दर्शाता है. पहले चार गोत्र थे अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु फिर बाद में इसमें जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य को भी जोड़ा गया. मतलब ये 8 गोत्र मूल रूप से आपको देखने सुनने को मिलेंगे.
अब जिसको अपने गोत्र का पता नहीं होता उसके लिए कश्यप गोत्र का उच्चारण कराया जाता है. इसके पीछे की मान्यता यह है कि कश्यप ऋृषि की एक से अधिक शादियां हुई थीं. जिससे उनके अनेक पुत्र थे. ऐसे में जिनको अपना गोत्र नहीं पता उन्हें कश्यप गोत्री मान लिया जाता है. साथ ही भगवान श्री हरि नारायण विष्णु का भी गोत्र यही बताया गया है. वैसे समयांतराल के साथ मूल रूप से 7 गोत्र ही रह गए हैं जिसे लोग जानते हैं. इनमें अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र मूल हैं.
वर्तमान में अभी कुल 115 गोत्र प्रचलित हैं. जो आपको यह बताते हैं कि आप इनमें से किस ऋृषि के वंशज हैं. ऐसे में हम आपको 7 शाखाओं सहित कुल 115 गोत्रों के बारे में बताएंगे. जो इस प्रकार हैं. अत्रि गोत्र, भृगुगोत्र, आंगिरस गोत्र, मुद्गल गोत्र,पातंजलि गोत्र, कौशिक गोत्र, मरीच गोत्र, च्यवन गोत्र, पुलह गोत्र, आष्टिषेण गोत्र, उत्पत्ति शाखा, गौतम गोत्र,.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ) पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र, वात्स्यायन गोत्र, बुधायन गोत्र,माध्यन्दिनी गोत्र, अज गोत्र, वामदेव गोत्र, शांकृत्य गोत्र, आप्लवान गोत्र,सौकालीन गोत्र, सोपायन गोत्र,गर्ग गोत्र, सोपर्णि गोत्र, शाखा, मैत्रेय गोत्र,पराशर गोत्र,अंगिरा गोत्र,क्रतु गोत्र, अधमर्षण गोत्र, बुधायन गोत्र, आष्टायन कौशिक गोत्र, अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, कौण्डिन्य गोत्र, मित्रवरुण गोत्र,कपिल गोत्र, शक्ति गोत्र, पौलस्त्य गोत्र, दक्ष गोत्र, सांख्यायन कौशिक गोत्र, जमदग्नि गोत्र, कृष्णात्रेय गोत्र, भार्गव गोत्र, हारीत गोत्र, धनञ्जय गोत्र,पाराशर गोत्र,आत्रेय गोत्र, पुलस्त्य गोत्र, भारद्वाज गोत्र, कुत्स गोत्र, शांडिल्य गोत्र, भरद्वाज गोत्र, कौत्स गोत्र, कर्दम गोत्र, पाणिनि गोत्र, वत्स गोत्र, विश्वामित्र गोत्र, अगस्त्य गोत्र, कुश गोत्र, जमदग्नि कौशिक गोत्र, कुशिक गोत्र, देवराज गोत्र, धृत कौशिक गोत्र, किंडव गोत्र, कर्ण गोत्र, जातुकर्ण गोत्र, काश्यप गोत्र, गोभिल गोत्र, कश्यप गोत्र, सुनक गोत्र, शाखाएं गोत्र, कल्पिष गोत्र, मनु गोत्र, माण्डब्य गोत्र, अम्बरीष गोत्र, उपलभ्य गोत्र, व्याघ्रपाद गोत्र, जावाल गोत्र, धौम्य गोत्र, यागवल्क्य गोत्र, और्व गोत्र, दृढ़ गोत्र, उद्वाह गोत्र, रोहित गोत्र, सुपर्ण गोत्र, गालिब गोत्र, वशिष्ठ गोत्र,मार्कण्डेय गोत्र, अनावृक गोत्र, आपस्तम्ब गोत्र, उत्पत्ति शाखा गोत्र, यास्क गोत्र, वीतहब्य गोत्र, वासुकि गोत्र, दालभ्य गोत्र, आयास्य गोत्र, लौंगाक्षि गोत्र, चित्र गोत्र, विष्णु गोत्र, शौनक गोत्र, पंचशाखा गोत्र,सावर्णि गोत्र, कात्यायन गोत्र, कंचन गोत्र,अलम्पायन गोत्र,अव्यय गोत्र, विल्च गोत्र, शांकल्य गोत्र,उद्दालक गोत्र, जैमिनी गोत्र, उपमन्यु गोत्र, उतथ्य गोत्र, आसुरि गोत्र, अनूप गोत्र और आश्वलायन गोत्र.
ऐसे में पूरी हिंदू जातियां इसी 115 गोत्रों में विभाजित है या कहें कि इन्हीं 115 ऋृषियों के वह वंशज हैं. इसमें से ब्राह्मणों में शाण्डिल्य को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना जाता है. यह तप, वैदिक ज्ञान को धारण करने वाले तीन ब्राह्मणों के उच्च गोत्र गौतम, गर्ग और शाण्डिल्य में से एक है.

25.1.24

पिंजारा समाज का इतिहास और जानकारी -Pinjara caste History


 
    पिंजारा (Pinjara) भारत और पाकिस्तान में पाया जाने वाला एक जातीय समुदाय है. यह अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं. भारत में पिंजारा, मंसूरी और धुनिया शब्द परस्पर उपयोग किए जाते हैं, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में यह अलग-अलग समुदाय हैं. गुजरात में मुख्य रूप से मंसूरी के नाम से जाना जाता है. गुजरात में इस समुदाय के लिए पिंजारा शब्द अब उपयोग में नहीं है. पिंजारा उत्तर भारत के पारंपरिक कपास धूनिया (Cotton Carder) के भांति, मध्य भारत के पारंपरिक कपास कार्डर हैं.भारत में यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान राज्यों में निवास करते हैं.मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है. आइए जानते हैं पिंजारा समाज का इतिहास, पिंजारा की उत्पति कैसे हुई?

पिंजारा किस धर्म को मानते हैं?

यह इस्लाम धर्म को मानते हैं. यह हिंदी, मारवाड़ी, मराठी, कन्नड़ और उर्दू भाषा बोलते हैं. इस समुदाय के ज्यादातर लोग हाल के दिनों तक किसी सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि, अब इस समुदाय के अधिकांश खान, पठान आदि उपनामों को लगाने लगे हैं. जबकि अन्य मशहूर फारसी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज, जो खुद भी एक बुनकर थे, के नाम पर मंसूरी उपनाम का प्रयोग करते हैं.




 जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम आलोक के मतानुसार बादशाह शहबुद्दीन गौरी ने कुछ हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया था। ये लोग गौरी पठान कहलाने लगे . पिंजारा जाति के अधिकांश रीति रिवाज हिंदुओंसे मिलते जुलते हैं.इनमे विधवा विवाह प्रचलित है। गांवों मे रहने वाले पिंजारा समाज के लोग खेती का  धंधा कर रहे हैं।  इनका पहनावा हिंदुओं जैसा ही है। अधिकांश लोग सरनेम का प्रयोग नहीं करते हैं लेकिन हाल ही मे ये लोग पठान ,खान उपनामों का प्रयोग करने लगे हैं। कुछ लोग मंसूरी उपनाम लेकर चल रहे हैं। इनकी स्त्रियाँ हिन्दुओ जैसी लगती हैं. पाजामा  बहुत कम पहनती हैं . पुरुष धोती कमीज पहनते हैं.  पिंजारा समाज के लोगों की गोत्र  हिन्दू क्षत्रियों जैसी हैं जैसे  देवड़ा चौहान,भाटी,सोलंकी,पड़िहार,राठौड  आदि . इससे विदित होता है कि  पिंजारा समाज किसी समय हिन्दू  क्षत्रिय समाज  के अंग थे. 

पिंजारा समाज का इतिहास


 पिंजरा समाज मूल रूप से फारस (ईरान) और अफगानिस्तान के रहने वाले थे. यह समुदाय कपास की खेती और उद्योगों के व्यवसाय के उद्देश्य के लिए अफगानिस्तान और फारस से भारत आया था, और यहां आकर बस गया. बता दें कि तब भारत और पाकिस्तान में बंटवारा नहीं हुआ था. इसीलिए यह समुदाय भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में पाया जाता है. इस समुदाय की उत्पत्ति स्थानीय धर्मांतरित लोगों और विदेशियों से हुई है जो मुख्य रूप से फारस अफगानिस्तान और बाहर के अन्य क्षेत्रों से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में बस गए. यहां आकर यह पारंपरिक रूप से कपास की खेती और व्यवसाय में शामिल हो गए. कुछ पिंजारा जो इस्लाम में धर्मांतरित होने से उत्पन्न हुए थे, इस बात का दावा करते हैं कि वह मूल रूप से राजपूत वंश के हैं. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, वह राजा रण सिंह के शासन के दौरान राजस्थान से गुजरात आए थे और यही आकर बस गए. आज भी इनमें राजपूतों के समान राव, देवड़ा, चौहान, भाटी वंश पाए जाते हैं. कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह समुदाय का संबंध मूल रूप से अफगानिस्तान से है. इनमें से कुछ राजपूतों से धर्मांतरित मुसलमान हैं. लेकिन उन्हें हिंदू समाज में धूना कहा जाता था. मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे। 

दर्जी समाज का इतिहास क्या है? दर्जी जाती की उत्पत्ति के बारे में बताओ -Darji Samaj history




 दर्जी (Darzi or Darji) भारत, पाकिस्तान और नेपाल के तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली एक व्यवसायिक जाति है. कर्नाटक में इन्हें पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है. यह मुख्य रूप से एक भूमिहीन या कम भूमि वाला समुदाय है, जिसका परंपरागत व्यवसाय सिलाई (Tailoring) है. आज भी यह मुख्य रूप से अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए हैं. यह खेती भी करने लगे हैं. साथ ही यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हुए अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत के आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत हिंदू और मुस्लिम दर्जी दोनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. आइए जानते हैैं दर्जी समाज का इतिहास, दर्जी शब्द की उत्पति कैसे हुई?

र्जी समाज की धर्म को मानते हैं?

भारत के गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाइन्ह महारा , छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. धर्म से यह हिंदू या मुसलमान हो सकते हैं. हिंदू समुदाय में इन्हें हिंदू दर्जी या क्षत्रिय दर्जी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ण का गोत्र माना जाता है. मुस्लिम समुदाय में दर्जी जाति को इदरीशी (हजरत इदरीस के नाम पर) के नाम से जाना जाता है.

दर्जी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

सिलाई के कार्य से जुड़े होने के कारण इनका नाम दर्जी पड़ा. कहा जाता है कि “दर्जी” शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा के शब्द “दारजान” से हुई है, जिसका अर्थ होता है- “सिलाई करना”. हिंदुस्तानी भाषा में दर्जी का शाब्दिक अर्थ है- “टेलरिंग का काम करने वाला या सिलाई का काम करने वाला’. कहा जाता है कि पंजाबी दर्जी हिंदू छिम्बा जाति से धर्मांतरित हुए हैं, और उनके कई क्षेत्रीय विभाजन हैं जैसे- सरहिंदी, देसवाल और मुल्तानी. पंजाबी दर्जी (छिम्बा दारज़ी‍‌‌) लगभग पूरी तरह सुन्नी इस्लाम के अनुयाई हैं. इदरीसी दर्जी दिल्ली सल्तनत ‌के शुरुआती दौर में दक्षिण एशिया में बस गए थे. यह भाषाई आधार पर भी विभाजित हैं. उत्तर भारत में निवास करने वाले उर्दू, हिंदी समेत विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, जबकि पंजाब में रहने वाले पंजाबी भाषा बोलते हैं.

दर्जी समाज का इतिहास

हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति के बारे में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं. राजस्थान में निवास करने वाले दर्जी राजपूत से अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं और खुद को लोकनायक श्री पीपा जी महाराज का वंशज बताते हैं, जो बाद में भारत में भक्ति आंदोलन के दौरान संत बन गए. जैसे-जैसे समय बीतता गया, कई कारणों से इस समुदाय के लोग अपने मूल स्थान से रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में चले गए और इस तरह से पूरे भारत में फैल गए. भारत में निवास करने वाले हिंदू दर्जी अनेक कुलों में विभाजित हैं. इनके प्रमुख कुल हैं- काकुस्त, दामोदर वंशी, टाँक , रोहिल्ला, जूना गुजराती. उड़ीसा में यह महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं. मुस्लिम दर्जी कुरान और बाइबिल में वर्णित हजरत इदरीस (Prophet Idris) के वंशज होने का दावा करते हैं. इनकी मान्यताओं के अनुसार, हजरत इदरीस सिलाई का काम सीखने वाले पहले व्यक्ति थे. उनका मानना है कि हजरत इदरीसी असली शिक्षक थे, जिनसे उनके पूर्वजों ने सिलाई की कला सीखी थी. उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले मुस्लिम दर्जी खय्यात के नाम से भी जाने जाते हैं.
दामोदर वंशी  क्षत्रीय दर्जी समाज 

  जाति इतिहास लेखक डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार दामोदर वंशीय दर्जी समाज की गोत्र क्षत्रियों की हैं इसलिए माना जाता है कि इनके पूर्वज क्षत्रिय थे। इस समुदाय को दामोदर वंशी दर्जी से संबोधित किया जाता है। इस समाज मे नया गुजराती और जूना गुजराती के दो समुदाय अस्तित्व मे हैं। यह दर्जी समुदाय गुजरात मे मुस्लिम शासकों के अत्याचार और जबरन धर्म परिवर्तन के लिए दवाब के चलते अपने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए जूनागढ़ ,लिमड़ी ,जामनगर आदि स्थानों से भागकर मध्य प्रदेश और राजस्थान मे आकर बस गया । इंदौर ,उज्जैन,रतलाम मे दामोदर वंशी जूना गुजराती ज्यादा संख्या मे हैं। नया गुजराती दामोदर वंशी क्षत्रिय दर्जी समाज संख्या के हिसाब से बहुत छोटा है और अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों मे बसा हुआ है लेकिन  बदलते  समय से तालमेल बिठाने के लिए धीरे धीरे यह समुदाय शामगढ़ ,भवानी मंडी ,रामपुरा, डग ,मंदसौर आदि कस्बों का रुख कर रहा है। नया और जूना गुजराती दर्जी समाज मे फिरका परस्ती छोड़कर परस्पर विवाह होने की कई घटनाएं प्रकाश मे आई हैं,
  देसाई दर्जी समाज गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों मे आबाद है। इनकी गोत्र क्षत्रियों की हैं जैसे चौहान,राठोड ,परमार,गोहील  आदि। माना जाता है कि  इनके पूर्वज क्षत्रिय  थे। दाहोद ,लिमड़ी ,झाबुआ,रानापुर  क्षेत्र मे  बसे  दर्जी समाज  के लोग  दामोदर वंशी  हैं और इनकी  रिश्तेदारी  मालवा  और गुजरात के दर्जी समुदाय मे पाई जाती  है। 


20.1.24

श्री शिव हनुमान मंदिर बसई -सुवासरा-मंदसौर को डॉ अनिल दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 3 बेंच समर्पित

 चम्बल किनारे बसई ग्राम में श्री शिव हनुमान मंदिर  में 

दामोदर  पथरी चिकित्सालय  शामगढ़  द्वारा 

भक्तों के बैठने के लिए सीमेंट की बेंचें  भेंट 



मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के बसई गाँव में स्थित शिव हनुमान मंदिर वास्तव में एक अद्वितीय और आकर्षक स्थल है!
चम्बल नदी के किनारे स्थित इस मंदिर की संरचना और स्थानीय लोगों की भक्ति देखकर मन खुश होता है.
मंदिर के दर्शनार्थियों को शिव हनुमान की प्रतिमाओं के दर्शन के साथ चम्बल नदी का विहंगम दृश्य देखने का अवसर मिलता है.
डॉ. दयाराम आलोक जी शामगढ़ का आध्यात्मिक दान अनुष्ठान और मंदिर समिति के प्रमुख पांडे जी की की सक्रियता इस स्थल को और भी महत्वपूर्ण बनाती है.
दान पट्टिका की स्थापना लोगों को दान की प्रेरणा देने के लिए एक अच्छा कदम है.
यह स्थल पर्यटन और आध्यात्मिक अनुभव के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
जय शिव हनुमान!
 

शिव हनुमान मंदिर बसई में बेंचें लगने का दृश्य 

मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

दानशील,सामाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक




शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 


परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|

मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

शिव हनुमान मंदिर बसई  को 

 ३ सीमेंट बेंचें समर्पित 



शिव हनुमान मंदिर बसई का विडियो 


विडियो  बसई के शिव हनुमान मंदिर का 



मंदिर के शुभचिंतक- 

जगदीश जी पाण्डेय  पुजारी  ९७७००-११३५१ 

 पंकज  जी मान्दलिया  8085144186 

राजेंद्र जी  पाण्डेय  ९७५४७८३१४५ 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा  शिव हनुमान मंदिर बसाई  हेतु दान सम्पन्न  २०/१/२०२४ 
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7.1.24

हनुमान मंदिर ग्राम दसोरिया-गरोठ -मंदसौर को डॉ .अनिल दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 4 सिमेन्ट बेंच दान

 श्री हनुमान मंदिर गाँव  दसोरिया (गरोठ)  हेतु 

दामोदर पथरी  अस्पताल शामगढ़  द्वारा 

सीमेंट बैंच  व्यवस्था 



दसोरिया गाँव, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की गरोठ तहसील में स्थित एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां सौंधिया राजपूतों और पाटीदार समाज का प्रभुत्व है ¹। यह गाँव बरडिया अमरा से गरोठ रेलवे स्टेशन को जाने वाली सड़क पर स्थित है, जो इसकी पहुंच को आसान बनाता है.  आस्था का केंद्र है, जो अपनी अलौकिक भव्यता और सुंदर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है.  मंदिर की विशेषताओं में उठा हुआ चबूतरा, दूर से दिखाई देने वाला शिखर, पक्का फर्श, अच्छा प्रांगण, और मंदिर पहुंचने के लिए सीढ़ियां शामिल हैं . 

इस मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है, और वे बालाजी को अपनी मुरादें पूरी करने वाले मानते हैं . समाजसेवी डॉ. दयाराम जी आलोक ने मंदिर को 4 सिमेंट की बेंच दान की हैं, जो आध्यात्मिक दान-पथ के तहत किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान है. बालाराम जी पाटीदार द्वारा दान दाता का शिलालेख मंदिर गेट के पास की दीवार पर स्थापित किया गया है, जो अन्य लोगों को भी दान की प्रेरणा दिलाता है .सरपंच होकम सिंह जी और ग्राम जनों ने दान दाता का आभार व्यक्त किया है. 

दसोरिया के हनुमान मंदिर में सीमेंट बेंचे लगने का विडियो 



video mandir dasoriya 





मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


साहित्य मनीषी


डॉ.दयाराम जी आलोक




शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ  



परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

हनुमान मंदिर  दसोरिया  हेतु 

 ४ सीमेंट बेंचें समर्पित 



दसोरिया  मंदिर में बेंचें  लगीं 




श्री हनुमान मंदिर दसोरिया के सेवादार 

बालाराम जी पाटीदार दसोरिया   9977775834

होकम सिंग जी सरपच  द्सोरिया 9630671634

प्रकाश नाथ जी पुजारी  हनुमान मंदिर 9826519977

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा हनुमान मंदिर दसोरिया  हेतु दान सम्पन्न   २०/१/२०२४ 

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5.1.24

सनातन धर्म में कितनी गीता ?





जब भी श्रीमदभगवद्गीता की बात आती है तो हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान का ही ध्यान आता है। निःसंदेह भगवद्गीता सर्वाधिक प्रसिद्ध है किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पुराणों में और भी कई गूढ़ ज्ञान का वर्णन है जिन्हे गीता कहा गया है। वैसे तो लगभग ३०० गीताओं का वर्णन मिलता है किन्तु इस लेख में मुख्य गीताओं के विषय में बताया जा रहा है:

श्रीमद्भगवद्गीता: 

ये सर्वाधिक प्रसिद्ध गीता है जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए उन्हें गूढ़ ज्ञान की बात बताई थी। ये इतना प्रसिद्ध है कि आज गीता का अर्थ श्रीमद्भगवद्गीता ही माना जाता है। इसमें १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। इनमें से १ श्लोक धृतराष्ट्र ने, ४० श्लोक संजय ने, ८४ श्लोक अर्जुन ने और बांकी ५७५ श्लोक श्रीकृष्ण ने कहे हैं।

अणु गीता: 

इसमें भी श्रीकृष्ण और अर्जुन का ही संवाद है। ये वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता का ही पुनः उद्धरण है। इसका वर्णन हमें महाभारत में तब मिलता है जब युद्ध के पश्चात अर्जुन श्रीकृष्ण से पुनः वही ज्ञान देने को कहते हैं क्यूंकि उनके मन से उस ज्ञान का कुछ भाग लुप्त हो चुका था। तब श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि उस ज्ञान को ठीक उसी प्रकार सुनाना असंभव है। फिर श्रीकृष्ण उसी लुप्त हुए ज्ञान को अणु गीता में अर्जुन को बताते हैं।

भिक्षु गीता: 

इसे श्रीमद्भगवद्गीता का भाग माना जाता है जिसमें श्रीकृष्ण ने उद्धव को एक भिक्षुक के रूप में मन को वश में करने का रहस्य बताया।

गोपी गीता:

 इसे भी भगवद्गीता का भाग माना जाता है जिसे वृन्दावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण से बिछुड़ते समय गीत के रूप में गया। इसमें उनके प्रति असीम भक्ति के विषय में जानने को मिलता है।

उद्धव गीता

इसमें श्रीकृष्ण और उद्धव के बीच का संवाद है जिसमें श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा को ज्ञान की अनेक बातें बताई। इसे श्रीकृष्ण द्वारा दी गयी अंतिम शिक्षाओं के रूप में देखा जाता है क्यूंकि इसके बाद श्रीकृष्ण ने निर्वाण ले लिया था।

नारद गीता: 

इसमें देवर्षि नारद और श्रीकृष्ण का वार्तालाप है जिसमें जीवन में गुरु और आध्यात्मिक संरक्षक के महत्त्व को बताया गया है। इसका वर्णन हमें हरिवंश पुराण में मिलता है।

पांडव गीता: 

इसका एक नाम प्रपन्न गीता भी है जिसमें श्रीहरि के प्रति की गयी कई प्रार्थनाओं का संग्रह है। ये नारायण के प्रति पूर्ण समर्पण हो जाने के बारे में बताती है। इसमें से अधिकांश श्लोक पांडवों द्वारा रचित माने जाते हैं जब उन्होंने युद्ध के पश्चात अपने पापों के नाश के लिए श्रीहरि की स्तुति की थी।

उत्तर गीता:

 ये भी श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है। युद्ध के पश्चात पांडवों ने हस्तिनापुर पर ३६ वर्ष राज्य किया। इतने समय तक राज्य करने के कारण अर्जुन का मन सांसारिक चीजों में रम गया। तब उन्हें पता चला कि श्रीकृष्ण ने निर्वाण लेने का निर्णय किया है। उनके चले जाने पर ज्ञान का लोप हो जाता इसीलिए अर्जुन ने सांसारिक मोह को छोड़ कर फिर से उस ज्ञान को ऋषियों के साथ सुना। ज्ञान की वही गंगा उत्तर गीता के नाम से प्रसिद्ध हुई।

शौनक गीता: 

इसमें महर्षि शौनक और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच का संवाद है जिसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और उसकी संरचना के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन हमें महाभारत के अरण्य पर्व में मिलता है।

व्याध गीता: 

ये भी एक प्रसिद्ध गीता है जिसका वर्णन महाभारत के वन पर्व में मिलता है। इसमें एक व्याध, उसकी पत्नी और एक संन्यासी, जो स्वयं को सिद्ध मानने लगा था, उसका वर्णन है। ये कथा महर्षि मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को सुनाई थी और इसका वर्णन भागवत पुराण में भी है।

नहुष गीता: 

इसका वर्णन हमें महाभारत में मिलता है जिसमें महाराज नहुष और युधिष्ठिर के बीच का संवाद है। सप्तर्षियों के श्राप के कारण नहुष सर्प योनि में एक अजगर के रूप में जन्में। उन्होंने मुक्ति के लिए एक लम्बी प्रतीक्षा की और जब भीम उनके पास आये तो उन्होंने उसे जकड लिया। तब अपने भाई को छुड़ाने के लिए युधिष्ठिर ने नहुष के कई गूढ़ प्रश्नों का उत्तर दिया जो नहुष गीता के नाम से विख्यात हुआ।

युधिष्ठिर गीता: 

इस गीता का वर्णन महाभारत में है जब धर्मराज एक यक्ष का रूप लेकर युधिष्ठिर की परीक्षा लेने आये। उनकी माया से भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव मृत हो गए और अंततः युधिष्ठिर ने उनके गूढ़ और कठिन प्रश्नों का सही सही उत्तर देकर उन्हें जीवित किया।

पराशर गीता:

 इस गीता का वर्णन हमें महाभारत के शांतिपर्व में मिलता है जिसमें महर्षि पराशर और मिथिला के सम्राट महाराज जनक के बीच का संवाद है। पराशर उप-पुराण में भी इस गीता का वर्णन है।

पिंगला गीता: 

महाभारत के शांति पर्व में वर्णित इस गीता में पितामह भीष्म और युधिष्ठिर का संवाद है। पिंगला एक प्रसिद्ध गणिका थी जिसमे मिले ज्ञान को इस गीता में सम्मलित किया गया है।

बोध्य गीता: 

इसमें महाराज ययाति और ऋषि बोध्य के बीच का संवाद है जिसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में है।

विचक्षु गीता: 

इसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में है जिसमें पितामह भीष्म और युधिष्ठिर के बीच का संवाद है। इसमें भीष्म युधिष्ठिर को अहिंसा की शिक्षा देते हैं। जीवहत्या से जो पाप मनुष्य को लगता है, उसका वर्णन भी इस गीता में है।

मणकी गीता: 

महाभारत के शांति पर्व में ही भीष्म युधिष्ठिर को मणकी मुनि की कथा सुनाते हैं। उसी प्रकरण का ज्ञान इस गीता में है।

व्यास गीता: 

ये गीता महर्षि व्यास द्वारा रचित ब्रह्म पुराण का भाग है। इसमें महर्षि व्यास अनेक ऋषियों को योग एवं अध्यात्म की शिक्षा देते हैं।

वृत्र गीता: 

इसका वर्णन भी महाभारत के शांतिपर्व में आता है जहाँ दैत्यराज वृत्रासुर और उनके गुरु शुक्राचार्य के बीच का संवाद है।

संपक गीता:

 इसका वर्णन भी महाभारत के शांतिपर्व में है जहाँ पितामह भीष्म युधिष्ठिर को संपक नाम के एक पवित्र ब्राह्मण के बारे में बताते हैं जिन्होंने ये शिक्षा दी थी कि प्रसन्नता एवं सुख केवल त्याग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

हरिता गीता:

 इसका वर्णन भी महाभारत के शांति पर्व में भीष्म-युधिष्ठिर संवाद के दौरान आता है जिसमें भीष्म ऋषि हरिता द्वारा दी गयी संन्यास की शिक्षा के बारे में बताते हैं जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

भीष्म गीता: 

महाभारत में वर्णित ये गीता पितामह भीष्म द्वारा रचित श्लोकों से भरी है जिसमें वे महादेव और भगवान विष्णु की भांति-भांति से आराधना करते हैं।

ब्रह्म गीता: 

इसका वर्णन रामायण में आता है जब ब्रह्मपुत्र वशिष्ठ अपने शिष्य श्रीराम को निर्वाण के प्रकार के बारे में बताते हैं। इसमें ब्रह्म, आत्मा और विश्व का गूढ़ ज्ञान दिया गया है। यही ज्ञान योग वशिष्ठ ग्रन्थ का भी भाग है।

ब्राह्मण गीता: 

महाभारत में वर्णित इस गीता में एक विद्वान ब्राह्मण और उनकी पत्नी के बीच का संवाद है जिसमें वे अपनी पत्नी को बताते हैं कि किस प्रकार माया के बंधन से बचा जा सकता है और मनुष्य के उच्चतम स्वरुप को प्राप्त किया जा सकता है।

सनत्सुजान गीता: 

महाभारत के उद्योग पर्व में वर्णित इस गीता में महर्षि सनत्सुजान एवं हस्तिनापुर के नरेश महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद है। इसमें मन, बुद्धि एवं ब्रह्म को प्राप्त करने के साधन के साधन के विषय में बताया गया है।

विदुर गीता:

 महाभारत में वर्णित ये भी बहुत प्रसिद्ध है जिसे आम भाषा में विदुर नीति भी कहा जाता है। इसमें हस्तिनापुर के महामंत्री महात्मा विदुर महाराज धृतराष्ट्र को देश, राज्य और राजनीती सम्बन्धी अनेक गूढ़ बातें बताते हैं।

भ्रमर गीता: 

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित इस गीता में एक भ्रमर (मधु मक्खी) के माध्यम से गोपियों एवं श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त उद्धव के बीच का संवाद है।

वेणु गीता: 

भागवत पुराण में ही वर्णित इस गीता में गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण के वेणु (बांसुरी) के बारे में गूढ़ जानकारी दी गयी है।

जनक गीता: 

कुछ लोग अष्टावक्र गीता को ही जनक गीता कहते हैं किन्तु ये अलग है। इसका वर्णन तब आता है जब राजा जनक ने कुछ सिद्धों द्वारा गए गए एक गुप्त गीत को सुना और स्वयं से ही ज्ञान चर्चा की।

बक गीता: 

इसमें देवराज इंद्र और महर्षि बक के बीच का संवाद है जिसमें महर्षि बक ने संसार के दुखों का वर्णन किया है जो प्राणियों के अपने कर्मों के अनुसार भोगनी पड़ती है। इसका वर्णन भी हमें महाभारत में मिलता है।

सिद्ध गीता: 

यही वो सिद्धों द्वारा गयी गयी गीता है जिसे महाराज जनक ने अपने राजभवन से सुना था। इसमें स्वज्ञान एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन भी हमें योग वशिष्ठ के उपशांति प्रकरण में प्राप्त होता है।

राम गीता:

 इसमें श्रीराम द्वारा गूढ़ ज्ञान की बातें बताई गयी हैं। पुराणों में हमें दो राम गीता का वर्णन मिलता है। पहली राम गीता में श्रीराम और लक्ष्मण के बीच का संवाद है। इसमें जीव, विद्या, अविद्या, ईश्वर, माया और अद्वैत वेदांत के बारे में बहुत कुछ बताया गया है। इस गीता के बारे में हमें ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णित अध्यात्म रामायण में मिलता है। दूसरी राम गीता में श्रीराम और हनुमान जी के बीच का संवाद है जिसमें ज्ञान और इस संसार को ना छोड़ने पर जोर दिया गया है। कहते हैं इसी गीता के बाद श्रीराम ने हनुमान जी को कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान दिया था। इसका वर्णन हमें ज्ञान वशिष्ठ तत्व सरायण में मिलता है।

अष्टावक्र गीता: 

ये भी बहुत प्रसिद्ध गीता है जिसमें महर्षि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच का संवाद है। ये स्वयं को जानने और अद्वैत वेदांत को समझाता है। ये आत्मा और इस नश्वर शरीर के विषय में भी बताता है। इसका मुख्य वर्णन महाभारत के वन पर्व में है और रामायण के कुछ अन्य संस्करणों में हमें इसके बारे में पता चलता है।

अगस्त्य गीता: 

ये महर्षि अगत्स्य द्वारा रचित है जिसमें मोक्ष और धर्म की व्याख्या की गयी है। गुरु के निर्देश में भक्ति मार्ग से कोई जीव किस प्रकार परमात्मा को प्राप्त कर सकता है, इसमें उसके बारे में विस्तार से बताया गया है। इसका वर्णन हमें वाराह पुराण में मिलता है।

देवी गीता: 

ये देवी भागवत का एक भाग है जिसमें माता आदिशक्ति और पर्वतराज हिमालय के बीच का संवाद है। इसमें माता हिमालय को अपने दिव्य स्वरुप के विषय में बताती है। इसका वर्णन हमें लिंग पुराण में मिलता है।

भरत गीता: 

ये भागवत पुराण का भाग है जिसमें चक्रवर्ती सम्राट भरत के विषय में विस्तार से बताया गया है जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत वर्ष पड़ा।

अवधूत गीता: 

महर्षि अत्रि के पुत्र भगवान दत्तात्रेय और भगवान कार्तिकेय के बीच के संवाद को इस गीता में बताया गया है। इसमें जीवात्मा और आत्मा के गूढ़ रहस्य को समझाया गया है। इसका वर्णन भी हमें स्कन्द पुराण में मिलता है।

ऋषभ गीता:

 इस गीता में महर्षि ऋभु और उनके शिष्य निगध के बीच का वार्तालाप है। इसमें अद्वैत वेदांत के विषय में बताया गया है जिसका वर्णन हमें उप पुराणों में से एक - श्री शिवरहस्य पुराण में मिलता है।

हंस गीता: 

ये भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक हंस अवतार से जुड़ा है जिसमें श्रीहरि ने हंस के रूप में ब्रह्मा के पुत्रों को ज्ञान प्रदान किया था। इसमें संसार को माया और आत्मा को एकमात्र सत्य के रूप में उजागर किया गया है।

जीवन्मुक्त गीता:

 यह भगवान दत्तात्रेय द्वारा कहा गया है जिसमें जीवन्मुक्त जीव, अर्थात जिसनें अपने आत्मा के रहस्य को जान लिया हो, उसके बारे में बताया गया है। इसमें प्रकृति के गूढ़ रहस्यों के विषय में भी बताया गया है।

श्रुति गीता: 

श्रीमद्भागवत में वर्णित इस गीता में अनेकों ऋषियों और विद्वानों द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति से सम्बंधित श्लोक हैं।
युगल गीता: इसका वर्णन भी भागवत में आता है जिसमें गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण की विभिन्न प्रकार से स्तुति की गयी है।

हनुमद गीता: 

इसमें श्रीराम और माता सीता का हनुमान जी के साथ संवाद है जब वे रावण का वध कर पुनः अयोध्या आ जाते हैं।

ईश्वर गीता: 

इसका वर्णन हमें कूर्म पुराण में मिलता है जिसमें भगवान शंकर की शिक्षाएं सम्मलित हैं। इसमें भी भगवत्गीता की भांति ही अनेक गूढ़ रहस्य सम्मलित हैं और भगवान शंकर के प्रति पूर्ण समर्पण के बारे में बताया गया है। शैव संप्रदाय के लिए इस ग्रन्थ का बड़ा महत्त्व है।

सूर्य गीता:

 तत्व सरण्य में वर्णित इस गीता को भगवान ब्रह्मा ने भगवान शंकर के दक्षिणमूर्ति स्वरुप से कहा था जिसमें भगवान सूर्यनारायण और उनके सारथि अरुण का संवाद है।

गणेश गीता:

 इसमें श्रीगणेश द्वारा अपने भक्त राजा वरेण्य को दी गयी शिक्षाओं का वर्णन है। इसके बारे में हमें गणेश पुराण में पता चलता है। इस विषय में एक विस्तृत लेख हमने पहले ही धर्म संसार पर प्रकाशित किया है ।

यम गीता:

 इसका वर्णन विष्णु पुराण और नृसिंह उप-पुराण में दिया गया है। इसमें भगवान विष्णु के गुणों, आत्मज्ञान, ब्रह्म, जीवन मरण का चक्र और मोक्ष के विषय में बताया गया है।

विभीषण गीता: 

इसमें श्रीराम और राक्षस राज विभीषण के बीच का संवाद है जो रामायण के अंतिम खंड - युद्ध कांड में वर्णित है। इसमें श्रीराम विभीषण को जीवन के संघर्ष और पीड़ा के विषय में बताते हैं।

गुरु गीता: 

इस गीता में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के बीच का संवाद है। इसमें महादेव ने माता को जीवन में गुरु के महत्त्व के विषय में बताया है। इस गीता का वर्णन स्कन्द पुराण में दिया गया है।

कपिल गीता:

 इसमें प्रजापति कर्दम के पुत्र कपिल मुनि और उनकी पत्नी (कपिल मुनि की माता) देवहुति के बीच का संवाद है। इसमें कपिल मुनि ने अपनी माता को आत्मा के गूढ़ रहस्य से परिचित करवाया है।

शिव गीता: 

पद्म पुराण का भाग इस गीता में भगवान शिव द्वारा श्रीराम को दी गयी शिक्षाओं का सार है।

सुत गीता:

 इसका वर्णन स्कन्द पुराण के यज्ञ वैभव खंड में दिया गया है। ये अद्वैतवाद का समर्थन और द्वैतवाद का खंडन करता है।

वशिष्ठ गीता: 

इसमें ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और श्रीराम के बीच का संवाद है जिसमें अंतिम सत्य के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन हमें योग वशिष्ठ के निर्वाण प्रकरण में मिलता है।

ऋषभ गीता:

 इसमें महर्षि ऋषभ द्वारा उनके पुत्रों को दी गयी शिक्षा है जो सत्य के रहस्य को उजागर करती है और विश्व के कल्याण के लिए स्वयं को भौतिक माया से मुक्त करने का उपाय बताती है। श्रीमद्भागवत में वर्णित इस गीता का उद्देश्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर स्वयं को विश्व कल्याण के लिए समर्पित कर देना है।

रूद्र गीता: 

भागवत पुराण में वर्णित इस गीता में भगवान रूद्र द्वारा भगवान विष्णु की प्रशंसा में रचे गए श्लोक हैं। इसमें रूद्र द्वारा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के स्वरूप का वर्णन भी किया गया है।

विद्या गीता: 

इस गीता में त्रिपुर रहस्य के बारे में बताया गया है जिसे भगवान दत्तात्रेय भगवान परशुराम से कहते हैं। इसमें दत्तात्रेय ने माता त्रिपुरसुन्दरी की आराधना भी की है जो विद्या की देवी भी मानी गयी है।