आस्था और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है, पता ही नहीं चलता कि कब आस्था अंधविश्वास में तब्दील हो गई. विज्ञान, वकील ,डॉक्टर की डिग्री होने के बावजूद ऐसे कई लोग गले मे काला डोरा या ताबीज धारण करते हैं और राशिफल,कुंडली के चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते हैं -Dr.Dayaram Aalok,M.A.,Ayurved Ratna,D.I.Hom(London)
26.1.24
सनातन धर्म में कितने तरह के होते हैं गोत्र? कैसे ढूंढे अपनी गोत्र
किसी भी सनातनी के शादी-ब्याह, कर्मकांड या पूजा पाठ के समय आप सुनते होंगे कि उनसे उनके गोत्र के बारे में पूछा जाता है. सनातन धर्म में एक गोत्र में शादी पूर्णतः वर्जित है. इसका वैज्ञानिक कारण भी है कि अगर एक ही गोत्र में शादी की जाए तो कई तरह की जेनेटिक परेशानी उनके अगले वंश में आ जाती है. ऐसे में गोत्र का यहां विशेष महत्व है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि गोत्र क्या है और इसे कैसे पता लगाएं कि आपका गोत्र कौन सा है. गोत्र की सही व्याख्या की मानें तो इंद्रिय आघात से रक्षा करनेवाला ही गोत्र है. इस ऋृषि परंपरा से जोड़ा जाता है. मतलब साफ है जो विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि अगर इंद्रिय आघात से रक्षा करना है तो दूसरे गोत्र में शादी-ब्याह जैसे बंधन को स्वीकार करना चाहिए.
ऐसे में ब्राह्मणों के लिए गोत्र का विशेष महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि उनको ऋृषियों की संतान माना गया है. यानी हर ब्राह्मण के गोत्र से पता लग जाएगा कि वह किस ऋृषिकुल से आते हैं. यानी गोत्र सीधे तौर पर आपके पूर्वजों की पहचान को दर्शाता है. पहले चार गोत्र थे अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु फिर बाद में इसमें जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य को भी जोड़ा गया. मतलब ये 8 गोत्र मूल रूप से आपको देखने सुनने को मिलेंगे.
अब जिसको अपने गोत्र का पता नहीं होता उसके लिए कश्यप गोत्र का उच्चारण कराया जाता है. इसके पीछे की मान्यता यह है कि कश्यप ऋृषि की एक से अधिक शादियां हुई थीं. जिससे उनके अनेक पुत्र थे. ऐसे में जिनको अपना गोत्र नहीं पता उन्हें कश्यप गोत्री मान लिया जाता है. साथ ही भगवान श्री हरि नारायण विष्णु का भी गोत्र यही बताया गया है. वैसे समयांतराल के साथ मूल रूप से 7 गोत्र ही रह गए हैं जिसे लोग जानते हैं. इनमें अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र मूल हैं.
वर्तमान में अभी कुल 115 गोत्र प्रचलित हैं. जो आपको यह बताते हैं कि आप इनमें से किस ऋृषि के वंशज हैं. ऐसे में हम आपको 7 शाखाओं सहित कुल 115 गोत्रों के बारे में बताएंगे. जो इस प्रकार हैं. अत्रि गोत्र, भृगुगोत्र, आंगिरस गोत्र, मुद्गल गोत्र,पातंजलि गोत्र, कौशिक गोत्र, मरीच गोत्र, च्यवन गोत्र, पुलह गोत्र, आष्टिषेण गोत्र, उत्पत्ति शाखा, गौतम गोत्र,.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ) पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र, वात्स्यायन गोत्र, बुधायन गोत्र,माध्यन्दिनी गोत्र, अज गोत्र, वामदेव गोत्र, शांकृत्य गोत्र, आप्लवान गोत्र,सौकालीन गोत्र, सोपायन गोत्र,गर्ग गोत्र, सोपर्णि गोत्र, शाखा, मैत्रेय गोत्र,पराशर गोत्र,अंगिरा गोत्र,क्रतु गोत्र, अधमर्षण गोत्र, बुधायन गोत्र, आष्टायन कौशिक गोत्र, अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, कौण्डिन्य गोत्र, मित्रवरुण गोत्र,कपिल गोत्र, शक्ति गोत्र, पौलस्त्य गोत्र, दक्ष गोत्र, सांख्यायन कौशिक गोत्र, जमदग्नि गोत्र, कृष्णात्रेय गोत्र, भार्गव गोत्र, हारीत गोत्र, धनञ्जय गोत्र,पाराशर गोत्र,आत्रेय गोत्र, पुलस्त्य गोत्र, भारद्वाज गोत्र, कुत्स गोत्र, शांडिल्य गोत्र, भरद्वाज गोत्र, कौत्स गोत्र, कर्दम गोत्र, पाणिनि गोत्र, वत्स गोत्र, विश्वामित्र गोत्र, अगस्त्य गोत्र, कुश गोत्र, जमदग्नि कौशिक गोत्र, कुशिक गोत्र, देवराज गोत्र, धृत कौशिक गोत्र, किंडव गोत्र, कर्ण गोत्र, जातुकर्ण गोत्र, काश्यप गोत्र, गोभिल गोत्र, कश्यप गोत्र, सुनक गोत्र, शाखाएं गोत्र, कल्पिष गोत्र, मनु गोत्र, माण्डब्य गोत्र, अम्बरीष गोत्र, उपलभ्य गोत्र, व्याघ्रपाद गोत्र, जावाल गोत्र, धौम्य गोत्र, यागवल्क्य गोत्र, और्व गोत्र, दृढ़ गोत्र, उद्वाह गोत्र, रोहित गोत्र, सुपर्ण गोत्र, गालिब गोत्र, वशिष्ठ गोत्र,मार्कण्डेय गोत्र, अनावृक गोत्र, आपस्तम्ब गोत्र, उत्पत्ति शाखा गोत्र, यास्क गोत्र, वीतहब्य गोत्र, वासुकि गोत्र, दालभ्य गोत्र, आयास्य गोत्र, लौंगाक्षि गोत्र, चित्र गोत्र, विष्णु गोत्र, शौनक गोत्र, पंचशाखा गोत्र,सावर्णि गोत्र, कात्यायन गोत्र, कंचन गोत्र,अलम्पायन गोत्र,अव्यय गोत्र, विल्च गोत्र, शांकल्य गोत्र,उद्दालक गोत्र, जैमिनी गोत्र, उपमन्यु गोत्र, उतथ्य गोत्र, आसुरि गोत्र, अनूप गोत्र और आश्वलायन गोत्र.
ऐसे में पूरी हिंदू जातियां इसी 115 गोत्रों में विभाजित है या कहें कि इन्हीं 115 ऋृषियों के वह वंशज हैं. इसमें से ब्राह्मणों में शाण्डिल्य को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना जाता है. यह तप, वैदिक ज्ञान को धारण करने वाले तीन ब्राह्मणों के उच्च गोत्र गौतम, गर्ग और शाण्डिल्य में से एक है.
25.1.24
पिंजारा समाज का इतिहास और जानकारी -Pinjara caste History
पिंजारा (Pinjara) भारत और पाकिस्तान में पाया जाने वाला एक जातीय समुदाय है. यह अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं. भारत में पिंजारा, मंसूरी और धुनिया शब्द परस्पर उपयोग किए जाते हैं, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में यह अलग-अलग समुदाय हैं. गुजरात में मुख्य रूप से मंसूरी के नाम से जाना जाता है. गुजरात में इस समुदाय के लिए पिंजारा शब्द अब उपयोग में नहीं है. पिंजारा उत्तर भारत के पारंपरिक कपास धूनिया (Cotton Carder) के भांति, मध्य भारत के पारंपरिक कपास कार्डर हैं.भारत में यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान राज्यों में निवास करते हैं.मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है. आइए जानते हैं पिंजारा समाज का इतिहास, पिंजारा की उत्पति कैसे हुई?
पिंजारा किस धर्म को मानते हैं?
यह इस्लाम धर्म को मानते हैं. यह हिंदी, मारवाड़ी, मराठी, कन्नड़ और उर्दू भाषा बोलते हैं. इस समुदाय के ज्यादातर लोग हाल के दिनों तक किसी सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि, अब इस समुदाय के अधिकांश खान, पठान आदि उपनामों को लगाने लगे हैं. जबकि अन्य मशहूर फारसी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज, जो खुद भी एक बुनकर थे, के नाम पर मंसूरी उपनाम का प्रयोग करते हैं.
पिंजारा समाज का इतिहास
पिंजरा समाज मूल रूप से फारस (ईरान) और अफगानिस्तान के रहने वाले थे. यह समुदाय कपास की खेती और उद्योगों के व्यवसाय के उद्देश्य के लिए अफगानिस्तान और फारस से भारत आया था, और यहां आकर बस गया. बता दें कि तब भारत और पाकिस्तान में बंटवारा नहीं हुआ था. इसीलिए यह समुदाय भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में पाया जाता है. इस समुदाय की उत्पत्ति स्थानीय धर्मांतरित लोगों और विदेशियों से हुई है जो मुख्य रूप से फारस अफगानिस्तान और बाहर के अन्य क्षेत्रों से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में बस गए. यहां आकर यह पारंपरिक रूप से कपास की खेती और व्यवसाय में शामिल हो गए. कुछ पिंजारा जो इस्लाम में धर्मांतरित होने से उत्पन्न हुए थे, इस बात का दावा करते हैं कि वह मूल रूप से राजपूत वंश के हैं. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, वह राजा रण सिंह के शासन के दौरान राजस्थान से गुजरात आए थे और यही आकर बस गए. आज भी इनमें राजपूतों के समान राव, देवड़ा, चौहान, भाटी वंश पाए जाते हैं. कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह समुदाय का संबंध मूल रूप से अफगानिस्तान से है. इनमें से कुछ राजपूतों से धर्मांतरित मुसलमान हैं. लेकिन उन्हें हिंदू समाज में धूना कहा जाता था. मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है.
दर्जी समाज का इतिहास क्या है? दर्जी जाती की उत्पत्ति के बारे में बताओ -Darji Samaj history
दर्जी (Darzi or Darji) भारत, पाकिस्तान और नेपाल के तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली एक व्यवसायिक जाति है. कर्नाटक में इन्हें पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है. यह मुख्य रूप से एक भूमिहीन या कम भूमि वाला समुदाय है, जिसका परंपरागत व्यवसाय सिलाई (Tailoring) है. आज भी यह मुख्य रूप से अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए हैं. यह खेती भी करने लगे हैं. साथ ही यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हुए अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत के आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत हिंदू और मुस्लिम दर्जी दोनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. आइए जानते हैैं दर्जी समाज का इतिहास, दर्जी शब्द की उत्पति कैसे हुई?
दर्जी समाज की धर्म को मानते हैं?
भारत के गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाइन्ह महारा , छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. धर्म से यह हिंदू या मुसलमान हो सकते हैं. हिंदू समुदाय में इन्हें हिंदू दर्जी या क्षत्रिय दर्जी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ण का गोत्र माना जाता है. मुस्लिम समुदाय में दर्जी जाति को इदरीशी (हजरत इदरीस के नाम पर) के नाम से जाना जाता है.
दर्जी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
सिलाई के कार्य से जुड़े होने के कारण इनका नाम दर्जी पड़ा. कहा जाता है कि “दर्जी” शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा के शब्द “दारजान” से हुई है, जिसका अर्थ होता है- “सिलाई करना”. हिंदुस्तानी भाषा में दर्जी का शाब्दिक अर्थ है- “टेलरिंग का काम करने वाला या सिलाई का काम करने वाला’. कहा जाता है कि पंजाबी दर्जी हिंदू छिम्बा जाति से धर्मांतरित हुए हैं, और उनके कई क्षेत्रीय विभाजन हैं जैसे- सरहिंदी, देसवाल और मुल्तानी. पंजाबी दर्जी (छिम्बा दारज़ी) लगभग पूरी तरह सुन्नी इस्लाम के अनुयाई हैं. इदरीसी दर्जी दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दौर में दक्षिण एशिया में बस गए थे. यह भाषाई आधार पर भी विभाजित हैं. उत्तर भारत में निवास करने वाले उर्दू, हिंदी समेत विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, जबकि पंजाब में रहने वाले पंजाबी भाषा बोलते हैं.
दर्जी समाज का इतिहास
हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति के बारे में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं. राजस्थान में निवास करने वाले दर्जी राजपूत से अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं और खुद को लोकनायक श्री पीपा जी महाराज का वंशज बताते हैं, जो बाद में भारत में भक्ति आंदोलन के दौरान संत बन गए. जैसे-जैसे समय बीतता गया, कई कारणों से इस समुदाय के लोग अपने मूल स्थान से रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में चले गए और इस तरह से पूरे भारत में फैल गए. भारत में निवास करने वाले हिंदू दर्जी अनेक कुलों में विभाजित हैं. इनके प्रमुख कुल हैं- काकुस्त, दामोदर वंशी, टाँक , रोहिल्ला, जूना गुजराती. उड़ीसा में यह महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं. मुस्लिम दर्जी कुरान और बाइबिल में वर्णित हजरत इदरीस (Prophet Idris) के वंशज होने का दावा करते हैं. इनकी मान्यताओं के अनुसार, हजरत इदरीस सिलाई का काम सीखने वाले पहले व्यक्ति थे. उनका मानना है कि हजरत इदरीसी असली शिक्षक थे, जिनसे उनके पूर्वजों ने सिलाई की कला सीखी थी. उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले मुस्लिम दर्जी खय्यात के नाम से भी जाने जाते हैं.
20.1.24
श्री शिव हनुमान मंदिर बसई -सुवासरा-मंदसौर को डॉ अनिल दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 3 बेंच समर्पित
चम्बल किनारे बसई ग्राम में श्री शिव हनुमान मंदिर में
दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ द्वारा
भक्तों के बैठने के लिए सीमेंट की बेंचें भेंट
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के बसई गाँव में स्थित शिव हनुमान मंदिर वास्तव में एक अद्वितीय और आकर्षक स्थल है!
चम्बल नदी के किनारे स्थित इस मंदिर की संरचना और स्थानीय लोगों की भक्ति देखकर मन खुश होता है.
मंदिर के दर्शनार्थियों को शिव हनुमान की प्रतिमाओं के दर्शन के साथ चम्बल नदी का विहंगम दृश्य देखने का अवसर मिलता है.
डॉ. दयाराम आलोक जी शामगढ़ का आध्यात्मिक दान अनुष्ठान और मंदिर समिति के प्रमुख पांडे जी की की सक्रियता इस स्थल को और भी महत्वपूर्ण बनाती है.
दान पट्टिका की स्थापना लोगों को दान की प्रेरणा देने के लिए एक अच्छा कदम है.
यह स्थल पर्यटन और आध्यात्मिक अनुभव के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
जय शिव हनुमान!
शिव हनुमान मंदिर बसई में बेंचें लगने का दृश्य
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
दानशील,सामाजसेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक
शामगढ़ का
आध्यात्मिक दान-पथ
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
7.1.24
हनुमान मंदिर ग्राम दसोरिया-गरोठ -मंदसौर को डॉ .अनिल दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 4 सिमेन्ट बेंच दान
श्री हनुमान मंदिर गाँव दसोरिया (गरोठ) हेतु
दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा
सीमेंट बैंच व्यवस्था
दसोरिया गाँव, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की गरोठ तहसील में स्थित एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां सौंधिया राजपूतों और पाटीदार समाज का प्रभुत्व है ¹। यह गाँव बरडिया अमरा से गरोठ रेलवे स्टेशन को जाने वाली सड़क पर स्थित है, जो इसकी पहुंच को आसान बनाता है. आस्था का केंद्र है, जो अपनी अलौकिक भव्यता और सुंदर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर की विशेषताओं में उठा हुआ चबूतरा, दूर से दिखाई देने वाला शिखर, पक्का फर्श, अच्छा प्रांगण, और मंदिर पहुंचने के लिए सीढ़ियां शामिल हैं .
इस मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है, और वे बालाजी को अपनी मुरादें पूरी करने वाले मानते हैं . समाजसेवी डॉ. दयाराम जी आलोक ने मंदिर को 4 सिमेंट की बेंच दान की हैं, जो आध्यात्मिक दान-पथ के तहत किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान है. बालाराम जी पाटीदार द्वारा दान दाता का शिलालेख मंदिर गेट के पास की दीवार पर स्थापित किया गया है, जो अन्य लोगों को भी दान की प्रेरणा दिलाता है .सरपंच होकम सिंह जी और ग्राम जनों ने दान दाता का आभार व्यक्त किया है.
दसोरिया के हनुमान मंदिर में सीमेंट बेंचे लगने का विडियो
video mandir dasoriya
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
साहित्य मनीषी
डॉ.दयाराम जी आलोक
शामगढ़ का
आध्यात्मिक दान-पथ
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
हनुमान मंदिर दसोरिया हेतु
४ सीमेंट बेंचें समर्पित
दसोरिया मंदिर में बेंचें लगीं
बालाराम जी पाटीदार दसोरिया 9977775834
होकम सिंग जी सरपच द्सोरिया 9630671634
प्रकाश नाथ जी पुजारी हनुमान मंदिर 9826519977
डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा हनुमान मंदिर दसोरिया हेतु दान सम्पन्न २०/१/२०२४
----
5.1.24
सनातन धर्म में कितनी गीता ?
जब भी श्रीमदभगवद्गीता की बात आती है तो हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान का ही ध्यान आता है। निःसंदेह भगवद्गीता सर्वाधिक प्रसिद्ध है किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पुराणों में और भी कई गूढ़ ज्ञान का वर्णन है जिन्हे गीता कहा गया है। वैसे तो लगभग ३०० गीताओं का वर्णन मिलता है किन्तु इस लेख में मुख्य गीताओं के विषय में बताया जा रहा है:
श्रीमद्भगवद्गीता:
अणु गीता:
भिक्षु गीता:
गोपी गीता:
उद्धव गीता:
पांडव गीता:
शौनक गीता:
व्याध गीता:
युधिष्ठिर गीता:
पराशर गीता:
पिंगला गीता:
बोध्य गीता:
विचक्षु गीता:
मणकी गीता:
व्यास गीता:
वृत्र गीता:
संपक गीता:
हरिता गीता:
भीष्म गीता:
ब्राह्मण गीता:
सनत्सुजान गीता:
विदुर गीता:
भ्रमर गीता:
वेणु गीता:
सिद्ध गीता:
राम गीता:
भरत गीता:
अवधूत गीता:
ऋषभ गीता:
जीवन्मुक्त गीता:
युगल गीता: इसका वर्णन भी भागवत में आता है जिसमें गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण की विभिन्न प्रकार से स्तुति की गयी है।
ईश्वर गीता:
गणेश गीता:
शिव गीता:
सुत गीता:
रूद्र गीता:
विद्या गीता: