5.1.24

सनातन धर्म में कितनी गीता ?





जब भी श्रीमदभगवद्गीता की बात आती है तो हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान का ही ध्यान आता है। निःसंदेह भगवद्गीता सर्वाधिक प्रसिद्ध है किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पुराणों में और भी कई गूढ़ ज्ञान का वर्णन है जिन्हे गीता कहा गया है। वैसे तो लगभग ३०० गीताओं का वर्णन मिलता है किन्तु इस लेख में मुख्य गीताओं के विषय में बताया जा रहा है:

श्रीमद्भगवद्गीता: 

ये सर्वाधिक प्रसिद्ध गीता है जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए उन्हें गूढ़ ज्ञान की बात बताई थी। ये इतना प्रसिद्ध है कि आज गीता का अर्थ श्रीमद्भगवद्गीता ही माना जाता है। इसमें १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। इनमें से १ श्लोक धृतराष्ट्र ने, ४० श्लोक संजय ने, ८४ श्लोक अर्जुन ने और बांकी ५७५ श्लोक श्रीकृष्ण ने कहे हैं।

अणु गीता: 

इसमें भी श्रीकृष्ण और अर्जुन का ही संवाद है। ये वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता का ही पुनः उद्धरण है। इसका वर्णन हमें महाभारत में तब मिलता है जब युद्ध के पश्चात अर्जुन श्रीकृष्ण से पुनः वही ज्ञान देने को कहते हैं क्यूंकि उनके मन से उस ज्ञान का कुछ भाग लुप्त हो चुका था। तब श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि उस ज्ञान को ठीक उसी प्रकार सुनाना असंभव है। फिर श्रीकृष्ण उसी लुप्त हुए ज्ञान को अणु गीता में अर्जुन को बताते हैं।

भिक्षु गीता: 

इसे श्रीमद्भगवद्गीता का भाग माना जाता है जिसमें श्रीकृष्ण ने उद्धव को एक भिक्षुक के रूप में मन को वश में करने का रहस्य बताया।

गोपी गीता:

 इसे भी भगवद्गीता का भाग माना जाता है जिसे वृन्दावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण से बिछुड़ते समय गीत के रूप में गया। इसमें उनके प्रति असीम भक्ति के विषय में जानने को मिलता है।

उद्धव गीता

इसमें श्रीकृष्ण और उद्धव के बीच का संवाद है जिसमें श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा को ज्ञान की अनेक बातें बताई। इसे श्रीकृष्ण द्वारा दी गयी अंतिम शिक्षाओं के रूप में देखा जाता है क्यूंकि इसके बाद श्रीकृष्ण ने निर्वाण ले लिया था।

नारद गीता: 

इसमें देवर्षि नारद और श्रीकृष्ण का वार्तालाप है जिसमें जीवन में गुरु और आध्यात्मिक संरक्षक के महत्त्व को बताया गया है। इसका वर्णन हमें हरिवंश पुराण में मिलता है।

पांडव गीता: 

इसका एक नाम प्रपन्न गीता भी है जिसमें श्रीहरि के प्रति की गयी कई प्रार्थनाओं का संग्रह है। ये नारायण के प्रति पूर्ण समर्पण हो जाने के बारे में बताती है। इसमें से अधिकांश श्लोक पांडवों द्वारा रचित माने जाते हैं जब उन्होंने युद्ध के पश्चात अपने पापों के नाश के लिए श्रीहरि की स्तुति की थी।

उत्तर गीता:

 ये भी श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है। युद्ध के पश्चात पांडवों ने हस्तिनापुर पर ३६ वर्ष राज्य किया। इतने समय तक राज्य करने के कारण अर्जुन का मन सांसारिक चीजों में रम गया। तब उन्हें पता चला कि श्रीकृष्ण ने निर्वाण लेने का निर्णय किया है। उनके चले जाने पर ज्ञान का लोप हो जाता इसीलिए अर्जुन ने सांसारिक मोह को छोड़ कर फिर से उस ज्ञान को ऋषियों के साथ सुना। ज्ञान की वही गंगा उत्तर गीता के नाम से प्रसिद्ध हुई।

शौनक गीता: 

इसमें महर्षि शौनक और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच का संवाद है जिसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और उसकी संरचना के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन हमें महाभारत के अरण्य पर्व में मिलता है।

व्याध गीता: 

ये भी एक प्रसिद्ध गीता है जिसका वर्णन महाभारत के वन पर्व में मिलता है। इसमें एक व्याध, उसकी पत्नी और एक संन्यासी, जो स्वयं को सिद्ध मानने लगा था, उसका वर्णन है। ये कथा महर्षि मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को सुनाई थी और इसका वर्णन भागवत पुराण में भी है।

नहुष गीता: 

इसका वर्णन हमें महाभारत में मिलता है जिसमें महाराज नहुष और युधिष्ठिर के बीच का संवाद है। सप्तर्षियों के श्राप के कारण नहुष सर्प योनि में एक अजगर के रूप में जन्में। उन्होंने मुक्ति के लिए एक लम्बी प्रतीक्षा की और जब भीम उनके पास आये तो उन्होंने उसे जकड लिया। तब अपने भाई को छुड़ाने के लिए युधिष्ठिर ने नहुष के कई गूढ़ प्रश्नों का उत्तर दिया जो नहुष गीता के नाम से विख्यात हुआ।

युधिष्ठिर गीता: 

इस गीता का वर्णन महाभारत में है जब धर्मराज एक यक्ष का रूप लेकर युधिष्ठिर की परीक्षा लेने आये। उनकी माया से भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव मृत हो गए और अंततः युधिष्ठिर ने उनके गूढ़ और कठिन प्रश्नों का सही सही उत्तर देकर उन्हें जीवित किया।

पराशर गीता:

 इस गीता का वर्णन हमें महाभारत के शांतिपर्व में मिलता है जिसमें महर्षि पराशर और मिथिला के सम्राट महाराज जनक के बीच का संवाद है। पराशर उप-पुराण में भी इस गीता का वर्णन है।

पिंगला गीता: 

महाभारत के शांति पर्व में वर्णित इस गीता में पितामह भीष्म और युधिष्ठिर का संवाद है। पिंगला एक प्रसिद्ध गणिका थी जिसमे मिले ज्ञान को इस गीता में सम्मलित किया गया है।

बोध्य गीता: 

इसमें महाराज ययाति और ऋषि बोध्य के बीच का संवाद है जिसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में है।

विचक्षु गीता: 

इसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में है जिसमें पितामह भीष्म और युधिष्ठिर के बीच का संवाद है। इसमें भीष्म युधिष्ठिर को अहिंसा की शिक्षा देते हैं। जीवहत्या से जो पाप मनुष्य को लगता है, उसका वर्णन भी इस गीता में है।

मणकी गीता: 

महाभारत के शांति पर्व में ही भीष्म युधिष्ठिर को मणकी मुनि की कथा सुनाते हैं। उसी प्रकरण का ज्ञान इस गीता में है।

व्यास गीता: 

ये गीता महर्षि व्यास द्वारा रचित ब्रह्म पुराण का भाग है। इसमें महर्षि व्यास अनेक ऋषियों को योग एवं अध्यात्म की शिक्षा देते हैं।

वृत्र गीता: 

इसका वर्णन भी महाभारत के शांतिपर्व में आता है जहाँ दैत्यराज वृत्रासुर और उनके गुरु शुक्राचार्य के बीच का संवाद है।

संपक गीता:

 इसका वर्णन भी महाभारत के शांतिपर्व में है जहाँ पितामह भीष्म युधिष्ठिर को संपक नाम के एक पवित्र ब्राह्मण के बारे में बताते हैं जिन्होंने ये शिक्षा दी थी कि प्रसन्नता एवं सुख केवल त्याग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

हरिता गीता:

 इसका वर्णन भी महाभारत के शांति पर्व में भीष्म-युधिष्ठिर संवाद के दौरान आता है जिसमें भीष्म ऋषि हरिता द्वारा दी गयी संन्यास की शिक्षा के बारे में बताते हैं जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

भीष्म गीता: 

महाभारत में वर्णित ये गीता पितामह भीष्म द्वारा रचित श्लोकों से भरी है जिसमें वे महादेव और भगवान विष्णु की भांति-भांति से आराधना करते हैं।

ब्रह्म गीता: 

इसका वर्णन रामायण में आता है जब ब्रह्मपुत्र वशिष्ठ अपने शिष्य श्रीराम को निर्वाण के प्रकार के बारे में बताते हैं। इसमें ब्रह्म, आत्मा और विश्व का गूढ़ ज्ञान दिया गया है। यही ज्ञान योग वशिष्ठ ग्रन्थ का भी भाग है।

ब्राह्मण गीता: 

महाभारत में वर्णित इस गीता में एक विद्वान ब्राह्मण और उनकी पत्नी के बीच का संवाद है जिसमें वे अपनी पत्नी को बताते हैं कि किस प्रकार माया के बंधन से बचा जा सकता है और मनुष्य के उच्चतम स्वरुप को प्राप्त किया जा सकता है।

सनत्सुजान गीता: 

महाभारत के उद्योग पर्व में वर्णित इस गीता में महर्षि सनत्सुजान एवं हस्तिनापुर के नरेश महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद है। इसमें मन, बुद्धि एवं ब्रह्म को प्राप्त करने के साधन के साधन के विषय में बताया गया है।

विदुर गीता:

 महाभारत में वर्णित ये भी बहुत प्रसिद्ध है जिसे आम भाषा में विदुर नीति भी कहा जाता है। इसमें हस्तिनापुर के महामंत्री महात्मा विदुर महाराज धृतराष्ट्र को देश, राज्य और राजनीती सम्बन्धी अनेक गूढ़ बातें बताते हैं।

भ्रमर गीता: 

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित इस गीता में एक भ्रमर (मधु मक्खी) के माध्यम से गोपियों एवं श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त उद्धव के बीच का संवाद है।

वेणु गीता: 

भागवत पुराण में ही वर्णित इस गीता में गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण के वेणु (बांसुरी) के बारे में गूढ़ जानकारी दी गयी है।

जनक गीता: 

कुछ लोग अष्टावक्र गीता को ही जनक गीता कहते हैं किन्तु ये अलग है। इसका वर्णन तब आता है जब राजा जनक ने कुछ सिद्धों द्वारा गए गए एक गुप्त गीत को सुना और स्वयं से ही ज्ञान चर्चा की।

बक गीता: 

इसमें देवराज इंद्र और महर्षि बक के बीच का संवाद है जिसमें महर्षि बक ने संसार के दुखों का वर्णन किया है जो प्राणियों के अपने कर्मों के अनुसार भोगनी पड़ती है। इसका वर्णन भी हमें महाभारत में मिलता है।

सिद्ध गीता: 

यही वो सिद्धों द्वारा गयी गयी गीता है जिसे महाराज जनक ने अपने राजभवन से सुना था। इसमें स्वज्ञान एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन भी हमें योग वशिष्ठ के उपशांति प्रकरण में प्राप्त होता है।

राम गीता:

 इसमें श्रीराम द्वारा गूढ़ ज्ञान की बातें बताई गयी हैं। पुराणों में हमें दो राम गीता का वर्णन मिलता है। पहली राम गीता में श्रीराम और लक्ष्मण के बीच का संवाद है। इसमें जीव, विद्या, अविद्या, ईश्वर, माया और अद्वैत वेदांत के बारे में बहुत कुछ बताया गया है। इस गीता के बारे में हमें ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णित अध्यात्म रामायण में मिलता है। दूसरी राम गीता में श्रीराम और हनुमान जी के बीच का संवाद है जिसमें ज्ञान और इस संसार को ना छोड़ने पर जोर दिया गया है। कहते हैं इसी गीता के बाद श्रीराम ने हनुमान जी को कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान दिया था। इसका वर्णन हमें ज्ञान वशिष्ठ तत्व सरायण में मिलता है।

अष्टावक्र गीता: 

ये भी बहुत प्रसिद्ध गीता है जिसमें महर्षि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच का संवाद है। ये स्वयं को जानने और अद्वैत वेदांत को समझाता है। ये आत्मा और इस नश्वर शरीर के विषय में भी बताता है। इसका मुख्य वर्णन महाभारत के वन पर्व में है और रामायण के कुछ अन्य संस्करणों में हमें इसके बारे में पता चलता है।

अगस्त्य गीता: 

ये महर्षि अगत्स्य द्वारा रचित है जिसमें मोक्ष और धर्म की व्याख्या की गयी है। गुरु के निर्देश में भक्ति मार्ग से कोई जीव किस प्रकार परमात्मा को प्राप्त कर सकता है, इसमें उसके बारे में विस्तार से बताया गया है। इसका वर्णन हमें वाराह पुराण में मिलता है।

देवी गीता: 

ये देवी भागवत का एक भाग है जिसमें माता आदिशक्ति और पर्वतराज हिमालय के बीच का संवाद है। इसमें माता हिमालय को अपने दिव्य स्वरुप के विषय में बताती है। इसका वर्णन हमें लिंग पुराण में मिलता है।

भरत गीता: 

ये भागवत पुराण का भाग है जिसमें चक्रवर्ती सम्राट भरत के विषय में विस्तार से बताया गया है जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत वर्ष पड़ा।

अवधूत गीता: 

महर्षि अत्रि के पुत्र भगवान दत्तात्रेय और भगवान कार्तिकेय के बीच के संवाद को इस गीता में बताया गया है। इसमें जीवात्मा और आत्मा के गूढ़ रहस्य को समझाया गया है। इसका वर्णन भी हमें स्कन्द पुराण में मिलता है।

ऋषभ गीता:

 इस गीता में महर्षि ऋभु और उनके शिष्य निगध के बीच का वार्तालाप है। इसमें अद्वैत वेदांत के विषय में बताया गया है जिसका वर्णन हमें उप पुराणों में से एक - श्री शिवरहस्य पुराण में मिलता है।

हंस गीता: 

ये भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक हंस अवतार से जुड़ा है जिसमें श्रीहरि ने हंस के रूप में ब्रह्मा के पुत्रों को ज्ञान प्रदान किया था। इसमें संसार को माया और आत्मा को एकमात्र सत्य के रूप में उजागर किया गया है।

जीवन्मुक्त गीता:

 यह भगवान दत्तात्रेय द्वारा कहा गया है जिसमें जीवन्मुक्त जीव, अर्थात जिसनें अपने आत्मा के रहस्य को जान लिया हो, उसके बारे में बताया गया है। इसमें प्रकृति के गूढ़ रहस्यों के विषय में भी बताया गया है।

श्रुति गीता: 

श्रीमद्भागवत में वर्णित इस गीता में अनेकों ऋषियों और विद्वानों द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति से सम्बंधित श्लोक हैं।
युगल गीता: इसका वर्णन भी भागवत में आता है जिसमें गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण की विभिन्न प्रकार से स्तुति की गयी है।

हनुमद गीता: 

इसमें श्रीराम और माता सीता का हनुमान जी के साथ संवाद है जब वे रावण का वध कर पुनः अयोध्या आ जाते हैं।

ईश्वर गीता: 

इसका वर्णन हमें कूर्म पुराण में मिलता है जिसमें भगवान शंकर की शिक्षाएं सम्मलित हैं। इसमें भी भगवत्गीता की भांति ही अनेक गूढ़ रहस्य सम्मलित हैं और भगवान शंकर के प्रति पूर्ण समर्पण के बारे में बताया गया है। शैव संप्रदाय के लिए इस ग्रन्थ का बड़ा महत्त्व है।

सूर्य गीता:

 तत्व सरण्य में वर्णित इस गीता को भगवान ब्रह्मा ने भगवान शंकर के दक्षिणमूर्ति स्वरुप से कहा था जिसमें भगवान सूर्यनारायण और उनके सारथि अरुण का संवाद है।

गणेश गीता:

 इसमें श्रीगणेश द्वारा अपने भक्त राजा वरेण्य को दी गयी शिक्षाओं का वर्णन है। इसके बारे में हमें गणेश पुराण में पता चलता है। इस विषय में एक विस्तृत लेख हमने पहले ही धर्म संसार पर प्रकाशित किया है ।

यम गीता:

 इसका वर्णन विष्णु पुराण और नृसिंह उप-पुराण में दिया गया है। इसमें भगवान विष्णु के गुणों, आत्मज्ञान, ब्रह्म, जीवन मरण का चक्र और मोक्ष के विषय में बताया गया है।

विभीषण गीता: 

इसमें श्रीराम और राक्षस राज विभीषण के बीच का संवाद है जो रामायण के अंतिम खंड - युद्ध कांड में वर्णित है। इसमें श्रीराम विभीषण को जीवन के संघर्ष और पीड़ा के विषय में बताते हैं।

गुरु गीता: 

इस गीता में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के बीच का संवाद है। इसमें महादेव ने माता को जीवन में गुरु के महत्त्व के विषय में बताया है। इस गीता का वर्णन स्कन्द पुराण में दिया गया है।

कपिल गीता:

 इसमें प्रजापति कर्दम के पुत्र कपिल मुनि और उनकी पत्नी (कपिल मुनि की माता) देवहुति के बीच का संवाद है। इसमें कपिल मुनि ने अपनी माता को आत्मा के गूढ़ रहस्य से परिचित करवाया है।

शिव गीता: 

पद्म पुराण का भाग इस गीता में भगवान शिव द्वारा श्रीराम को दी गयी शिक्षाओं का सार है।

सुत गीता:

 इसका वर्णन स्कन्द पुराण के यज्ञ वैभव खंड में दिया गया है। ये अद्वैतवाद का समर्थन और द्वैतवाद का खंडन करता है।

वशिष्ठ गीता: 

इसमें ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और श्रीराम के बीच का संवाद है जिसमें अंतिम सत्य के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन हमें योग वशिष्ठ के निर्वाण प्रकरण में मिलता है।

ऋषभ गीता:

 इसमें महर्षि ऋषभ द्वारा उनके पुत्रों को दी गयी शिक्षा है जो सत्य के रहस्य को उजागर करती है और विश्व के कल्याण के लिए स्वयं को भौतिक माया से मुक्त करने का उपाय बताती है। श्रीमद्भागवत में वर्णित इस गीता का उद्देश्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर स्वयं को विश्व कल्याण के लिए समर्पित कर देना है।

रूद्र गीता: 

भागवत पुराण में वर्णित इस गीता में भगवान रूद्र द्वारा भगवान विष्णु की प्रशंसा में रचे गए श्लोक हैं। इसमें रूद्र द्वारा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के स्वरूप का वर्णन भी किया गया है।

विद्या गीता: 

इस गीता में त्रिपुर रहस्य के बारे में बताया गया है जिसे भगवान दत्तात्रेय भगवान परशुराम से कहते हैं। इसमें दत्तात्रेय ने माता त्रिपुरसुन्दरी की आराधना भी की है जो विद्या की देवी भी मानी गयी है।

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30.12.23

श्री हनुमान मंदिर पिपल्या राठौर-गरोठ-मंदसौर/ डॉ. अनिल दामोदर पथरी अस्पताल द्वारा 4 सिमेन्ट बेंच समर्पित

 ग्राम पिपल्या राठौर के हनुमान मंदिर हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल  शामगढ़ द्वारा 

सीमेंट बेंचें भेंट 

पिपलिया मोहम्मद गांव गरोठ विधानसभा क्षेत्र और मंदसौर लोकसभा क्षेत्र में स्थित है, जिसका निकटतम शहर गरोठ है, जो लगभग 8 किमी दूर है .  इस गांव को लोग पिपल्या राठौर के नाम से जानते हैं। यहां का हनुमान जी का मंदिर हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था और धार्मिक अनुष्ठानों का महत्वपूर्ण केंद्र है, जिसका शिल्प और स्थापत्य आधुनिक शैली का है और रंग रोगन बहुत आकर्षक है.
मंगलवार के दिन मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ करने से समस्याग्रस्त भक्तों के दुख दूर होते हैं, ऐसी मान्यता है.  यह धर्म स्थल बर्डिया अमरा गांव से गरोठ स्टेशन सड़क पर पड़ता है, जिससे यहां पहुंचना आसान है .
समाजसेवी डॉ. दयाराम आलोक जी ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों में दर्शनार्थियों के विश्राम के लिए सिमेन्ट बेंचें लगवाई हैं, जिनमें यह धर्म स्थल भी शामिल है . मंदिर के शुभचिंतक दिलीपसिंग जी राठौर ने दान दाता की दान पट्टिका मंदिर में स्थापित की और आभार व्यक्त किया.
 


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


दानशील,दयालु आत्मा 


डॉ.दयाराम आलोकजी 




शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

ग्राम पिपल्या राठौर  के हनुमान मंदिर हेतु 

 ४ सीमेंट बेंचें समर्पित 


हनुमान मंदिर के सेवादार 

दिलीप सिंग जी राठौर -८१२०५६ ५८१२ 

कालूरामजी  बैरागी पुजारी  -9171901460

नरसिंग जी मालवीय  ९७५२९-५८८२६ 

https://youtu.be/cLM_oWbzfkU

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा हनुमान मंदिर पिपल्या राठौर  हेतु दान सम्पन्न २८/१२/२०२३ 

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दूधाखेडी माता मंदिर फूलखेडा -गरोठ -मंदसौर/डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 4 बेंच दान

दूधाखेडी माता मंदिर फूलखेडा(गरोठ) में 

समाज सेवी डॉ.आलोक जी शामगढ़  द्वारा 

सीमेंट  बैंच व्यवस्था 





मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


साहित्य मनीषी


डॉ.दयाराम जी आलोक




शामगढ़ का

अभिनव  दान-अनुष्ठान


साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|


     My You Tube Channel address :



फूल खेडा(गरोठ) के दूधाखेडी मंदिर 


१२५५१ रुपये की ४ सीमेंट बेंचें भेंट 








विडियो  दूध खेडी माताजी मंदिर फुल खेडा 



मंदिर के सेवादार 

पिंकेशजी  बैरागी फूलखेडा पुजारी  ९०९८५-६३२०९ 

शम्भुसिंग जी सरपंच  फुल खेडा 

सुनील जी  विश्व कर्मा  फूल खेडा 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा फूल खेडा  क दूधाखेडी  के मंदिर   हेतु दान सम्पन्न २८/१२/२०२३ 
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29.12.23

सकल जाति भेरूजी मंदिर रूंडी घसोई -सुवासरा-मंदसौर/ डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 4 बेंच समर्पित

 जगत भेरूजी महाराज का  मंदिर रूंडी  घसोई  में 

दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ द्वारा 

सीमेंट  बैंच व्यवस्था 




घसोई के जगत भेरुजी महाराज एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल है, जो मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की सुवासरा तहसील में स्थित है। यहाँ की जानकारी निम्नलिखित है:

भेरुजी महाराज की विशेषताएं:

- हिंदू धर्म की मान्यतानुसार प्रत्येक कुल और गोत्र के भेरू महाराज होते हैं
- वर्ष के एक अवसर पर अधिकांश लोग अपने भेरुजी की पूजा आराधान करने के लिए आते हैं
- भेरुजी महाराज की पूजा के विधि विधान सामाजिक रूढ़ियों के अनुसार भिन्न भिन्न हैं

भेरुजी महाराज की पूजा विधि:


- प्रातः काल स्नान आदि के बाद भैरव बाबा के मंदिर जाकर उनकी पूजा-अर्चना करनी
- बाबा के मंदिर में इमरती, जलेबी, उड़द की दाल, पान व नारियल का भोग लगाना
- कालभैरवाष्टक का पाठ करने से बाबा भैरव प्रसन्न होते हैं

भेरुजी महाराज का महत्व:


- काल भैरव को शिव का प्रचंड स्वरुप माना जाता है, जिनका पूजन दुश्मनों को पराजित करने के लिए किया जाता है
- काल  भैरव का पूजन पिछली कई सदियों से किया जा रहा है
- देवी शक्ति के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है

मंदिर की सुविधाएं:

- मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं
- नीचे सड़क के पास धर्मशाला भी बनी हुई है

 डॉ.दयाराम आलोकजी का दान-

मंदिर के महात्म्य की जानकारी के बाद साहित्य मनीषी डॉ.दयाराम आलोक जी के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ. अनिल कुमार राठौर जो दामोदर पथरी अस्पताल के संचालक हैं के माध्यम से इस मंदिर को 4 सिमेन्ट की बेंचें समर्पित की गई हैं| 
मंदिर समिति के सदस्यों और राजेन्द्र जी धनोतीया  ने दान दाता का सम्मान करते हुए आभार व्यक्त किया |बाबा काल भैरव की जय !



जगत  भेरूजी मंदिर -बैंच दृश्य 

 मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक




शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 


परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|


जगत भेरूजी महाराज का मंदिर  घसोई हेतु 


 ४ सीमेंट बेंचें भेंट 








भैरव जी की उपासना से न केवल भयंकर विपत्तियां टलती हैं, बल्कि भूत-प्रेत सम्बन्धित बाधाओं का भी निवारण होता है, यही नहीं, भैरव जी की उपासना से क्रूर ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। अगर कोई व्यक्ति शनि, राहु, केतु द्वारा निर्मित ग्रह दोषों से परेशान है, तो उसे भैरव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए।
भगवान काल भैरव का महामंत्र ऐसे में जीवन से जुड़े सभी प्रकार के भय और दु:खों से मुक्ति पाने के लिए कालभैरवाष्टमी पर नीचे दिए गए मंत्रों का पूरी आस्था और विश्वास के साथ जप जरूर करें.
ॐ कालभैरवाय नम:।। ॐ भयहरणं च भैरव:।। ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्।

घसोई  के भेरूजी महाराज मंदिर  के शुभचिन्तक

श्री राजेंद्र जी धनोतिया पत्रकार ,घसोई  ९५१६४-९३४१४ 

श्री दशरथ जी जैन घसोई 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा jagat bheru ji mandir Ghasoi  हेतु दान सम्पन्न २८/१२/२०२३ 

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मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

डॉ . आलोक का काव्यालोक

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

13.12.23

कायस्थ जाती के बारे में पूरी जानकारी




मूलतः कायस्थों के ऋषि गोत्र ये हैं :-

कश्यप, वत्स, वशिष्ठ, शांडिल्य, हुलस, हर्षल, भारद्वाज, अत्रि।
हिन्दू मिताक्षरा के अनुसार सगोत्र की मान्यता सात पीढ़ी तक रहती है और ऋषियों का अवसान हुये कई हजार वर्ष बीत गये हैं तो अब यह सगोत्र नहीं माना जायेगा। ये सब ऋषि भी मूलतः बृह्मा व मनु से उत्पन्न हुये हैं उस दृष्टि से तो हम सब के पिता एक ही थे।
जहाँ तक विवाह संबंधों की बात है तो वहाँ ऋषि गोत्र जिसे कुल गोत्र भी कहा गया है,नहीं अपितु पिंड गोत्र या परिवार गोत्र जिसे हम अल्ल कहते हैं को मिलाया जाता है ताकि परिवार समूह में अंतर जान सकें और ऐक ही परिवार समूह में विवाह न हो जाये।
Kayastha कायस्थ , एक 'उच्च' श्रेणी की जाति है हिन्दुस्तान में रहने वाले सवर्ण हिन्दू हैं ।चित्रगुप्त वंशी क्षत्रियो को ही कायस्थ कहा जाता है। स्वामी वेवेकानंद ने अपनी जाती की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है :-
एक बार स्वामी विवेकानन्द से भी एक सभा में उनसे उनकी जाति पूछी गयी थी। अपनी जाति अथवा वर्ण के बारे में बोलते हुए 
यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता का शेष क्या रहेगा ? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, सबसे बड़े इतिहास वेत्ता, सबसे बड़े दार्शनिक, सबसे बड़े लेखक और सबसे बड़े धर्म प्रचारक हुए हैं।मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चंद्र बसु) से भारत वर्ष को विभूषित किया है।
’’स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था।
कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं.
हम बाबू बनने के लिए नहीं, हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिए पैदा हुए हैं ।जिन्होंने हमें जन्म दिया है। यही वह ऐतिहासिक वर्ग है जो श्रीचित्रगुप्तजी का वंशज है। इसी वर्ग की  चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं।
यह वर्ग 12 उप-वर्गो में विभजित किया गया है। यह 12 वर्ग श्रीचित्रगुप्तजी की पत्नियो देवी शोभावति और देवी नन्दिनी के 12 सुपुत्रो के वंश के आधार पर है।
 कायस्थो के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है। .
   पौराणिक उत्पत्त्ति कायस्थों का स्त्रोत भग्गवान श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है |कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये ( ब्राह्मण , क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र) तब यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने मे सहायता मांगी।
फिर ब्रह्मा 11००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात-स्याही, पुस्तक तथा कमर मे तलवार बाँधे पाया। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि "हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा। और जैसा कि तुम मेरे चित्र (शरीर) मे गुप्त (विलीन) थे इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा " श्री चित्रगुप्त जी को महा शक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया है.
श्री चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुये,
पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा / नंदिनी जो सूर्य के पुत्र श्राद्धदेव की कन्या थी, इनसे 4 पुत्र हुए।
दूसरी पत्नी ऐरावती / शोभावति धर्मशर्मा (नागवन्शी क्षत्रिय) की कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए।
कायस्थ की 12 शाखाएं हैं - श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीक, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ |
इन बारह पुत्रों का वृतांत अहिल्या, कामधेनु, धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी दिया गया है | श्री चित्रगुप्तजी महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ, जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है | माता नंदिनी के चार पुत्र काश्मीर के आस -पास जाकर बसे तथा ऐरावती / शोभावति के आठ पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, उड़ीसा, तथा बंगाल में जा बसे |
बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था ।
पदम पुराण में इसका उल्लेख किया गया है | माता सूर्यदक्षिणा / नंदिनी के पुत्रों का विवरण -

1 - भानु (श्रीवास्तव) -

 श्री भानु माता नंदिनी के जेष्ठ पुत्र थे | उनका राशि नाम धर्मध्वज था | श्री भानु मथुरा में जाकर बसे | इसलिये भानु परिवार वाले माथुर कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |

2 - विभानु (सूर्यध्वज) - 

भटनागर उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला एक जाति नाम है, जो कि हिन्दुओं की कायस्थ जाति में आते है। इनका प्रादुर्भाव यमराज, मृत्यु के देवता, के पाप पुण्य के अभिलेखक, श्री चित्रगुप्त जी की प्रथम पत्नी दक्षिणा नंदिनी के द्वितीय पुत्र विभानु के वंश से हुआ है। उनकी राशि का नाम श्यामसुंदर था | विभानु को चित्राक्ष नाम से भी जाना जाता है। महाराज चित्रगुप्त ने इन्हें भट्ट देश में मालवा क्षेत्र में भट नदी के पास भेजा था। इन्होंने वहां चित्तौर और चित्रकूट बसाये। ये वहीं बस गये और इनका वंश भटनागर कहलाया। इनका वास स्थान भारत के वर्तमान पंजाब प्रदेश में भट्ट प्रदेश था। इनकी पत्नी का नाम मालिनी था। उपासना देवी- जयन्ती

3 - विश्वभानु (बाल्मीकि) -

 श्री विश्वभानु माता नंदिनी के तृतिय पुत्र थे | उनका राशि नाम दीनदयाल था | श्री विश्वभानु का परिवार गंगा - यमुना दोआब, जिसको प्राचीन काल में साकब द्वीप कहते थे, में जाकर बसे | इसलिये विश्वभानु परिवार वाले सक्सेना कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |

4 - वीर्यभानू (अष्ठाना) - 

श्री वीर्यभानू माता नंदिनी के सबसे छोटे पुत्र थे | उनका राशि नाम माधवराव था | श्री वीर्यभानू का परिवार बांस देश (काश्मीर), में जाकर बसे | इसलिये वीर्यभानू परिवार वाले श्रीवास्तव कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |
माता ऐरावती / शोभावति के पुत्रों का विवरण

1- चारु (माथुर) -

 श्री चारु माता ऐरावती / शोभावति के जेष्ठ पुत्र थे | उनका राशि नाम पुरांधर था | श्री चारु का परिवार सूर्यदेश (बिहार) देश, में जाकर बसे और उनके राष्ट्रध्वज का चिन्ह सूर्य होने के कारण सूर्यध्वज कहलाये |

2- सुचारु (गौड़) -

 श्री सुचारु माताऐरावती / शोभावति के द्वितीय पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंगधार था | श्री सुचारु का परिवार पश्चिम बंगाल के अम्बष्ठ जनपद, में जाकर बसे इस कारण अम्बष्ठ कहलाये |

3- चित्र (चित्राख्य) (भटनागर) -

 श्री चित्र माता ऐरावती / शोभावति के तृतीय पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंगधार था | श्री चित्र का परिवार गौड़ देश (बंगाल), में जाकर बसे इस कारण गौड़ कहलाये |

4- मतिभान (हस्तीवर्ण) (सक्सेना) - 

निगम उत्तर भारतीय कायस्थ होते हैं। श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के चौथे पुत्र थे | उनका राशि नाम रामदयाल था | श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) का परिवार निगम देश (काशी), में जाकर बसे इस कारण निगम कहलाये|

5- हिमवान (हिमवर्ण) अम्बष्ठ - 

श्री हिमवान (हिमवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के पाँचवें पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंधार था | श्री हिमवान (हिमवर्ण) का परिवार गौड़ देश (बिहार), में प्राचीन करनाली नामक ग्राम में जाकर बसे इस कारण कर्ण कहलाये |

6- चित्रचारु (निगम) - 

श्री चित्रचारु माता ऐरावती / शोभावति के छटवें पुत्र थे | उनका राशि नाम सुमंत था | श्री चित्रचारु का परिवार अष्ठाना देश (छोटा नागपुर), जो नागदेश से भी प्रसिद्ध है में जाकर बसे इस कारण अष्ठाना कहलाये |

7- चित्रचरण (कर्ण)- 

श्री चित्रचरण माता ऐरावती / शोभावति के सातवें पुत्र थे | उनका राशि नाम दामोदर था | श्री चित्रचरण का परिवार बंगाल में नदिया जो बंगाल की खाडी के ऊपर स्थित है, में जाकर बसे | सेवा की भावना के कारण अपने कायस्थ कुल में श्रेष्ठ माने गये इस कारण कुलश्रेष्ठ कहलाये |

8- अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) (कुलश्रेष्ठ) -

 श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) माता ऐरावती / शोभावति के सबसे छोटे पुत्र थे | उनका राशि नाम सदानंद था | श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) का परिवार बाल्मीकि देश (पुराना मध्य भारत), में जाकर बसे इस कारण बाल्मीकि कायस्थ कहलाये |
भाई दूज के दिन कलम-दवात पूजा (कलम, स्याही और तलवार पूजा) करते हैं, जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है। यह वह दिन है जब भगवान श्रीचित्रगुप्त का उदभव ब्रह्माजी केद्वारा हुआ था और यमराज अपने कर्तव्यों से मुक्त हो, अपनी बहन देवी यमुना से मिलने गये, इसलिए इस दिन पूरी दुनिया भैयादूज मनाती है ।

ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को

ब्राह्मणों को हर जाति से दान लेने का अधिकार है लेकिन कायस्थ है कि उन्हे ब्राह्मणों से दान लेने का अधिकार है ।यह बात सुनने में अजीब जरूर लगती है लेकिन किदवंती के अनुसार यह सत्य है । कायस्थों को ब्राह्मणों से दान लेने का अधिकार क्यूं है , पढिये ।

जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी थी कलम ,उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था । परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ है ?कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद कलम रख देते है और फिर यमदुतिया के दिन कलम- दवात के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I

कायस्थ के देवता कौन है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करनेवाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते

कायस्थ इतने बुद्धिमान क्यों होते हैं?

चित्रगुप्त जी महाराज यमराज के यहाँ भविष्यवाणी लिखा करते थे। जैसे राजपूत हथियारों की पूजा करते हैं ठीक वैसे ही कायस्थ कलम और दवात की पूजा करता है। पढ़ना और पढ़ाना उसके खून में है। यही कारण है कि कुशाग्र बुद्धि होने के कारण कायस्थ हर क्षेत्र में श्रेष्ठ साबित होते हैं


कायस्थ कितने प्रकार के होते हैं?

कायस्थ जाति 12 उपजातियों में विभाजित है। कायस्थ के उपविभाजन:- उत्तर भारत के चित्रगुप्त कायस्थ, महाराष्ट्र के प्रभु कायस्थ, दक्षिण भारत के कर्णम/करुणीगर (कायस्थ), उड़ीसा के करण (कायस्थ), बंगाल के बंगाली कायस्थ और असम के कलितस (कायस्थ)

श्रीवास्तव कौन सी जाति के होते हैं?

श्रीवास्तव, चित्रगुप्तवंशी कायस्थ के बारह उप-कुलों में से एक हैं, जो परंपरागत रूप से शासन, प्रशासन और सैन्य सेवाओं में शामिल थे। भारतीय उपमहाद्वीप में वैदिक काल , मध्यकालीन हिंदू और इस्लामी साम्राज्यों के दौरान इस कुल के लोग प्रभावशाली थे, तथा लाला और कायस्थ जैसे शीर्षक अर्जित करते थे।

श्रीवास्तव को हिंदी में क्या कहते हैं?

आपको बता दें कि श्रीवास्तव नाम का अर्थ भगवान विष्णु, धन के धाम होता है। 

कायस्थ क्या काम करते हैं?

कायस्थ। विशेष— कायस्थ जाति के लोग प्रायः लिखने पढ़ने तथा युध्द करने का काम करते है और ये लोग उच्च कोटि के संत पुरुष राजा महाराजा व चक्रवर्ती सम्राट होते हैं और ये लोग प्रायः सारे भारतवर्ष में पाए जाते हैं।

कायस्थ समाज की उत्पत्ति कैसे हुई?

चित्रगुप्त जी का जन्म ब्रह्माजी के अंश से हुआ है. वह उनकी काया से उत्पन्न हुए थे, इसलिए कायस्थ कहलाए. इसी तरह उनकी संतानों के जरिए जो वंश आगे बढ़ा और जो जाति बनी वह कायस्थ कहलाई. चित्रगुप्त जी की जन्म कथा भी अद्भुत है

कायस्थ में कितने उपनाम होते हैं?

आज, केवल चार कुलिन परिवार हैं - बोस, घोष (हालांकि आमतौर पर सदगोप-मिल्कमैन समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है), मित्रा, गुहा। मौलिक कायस्थ के अनेक उपनाम हैं, जिनमें से कुछ हैं- दत्ता, चंद्रा, दास (कुछ), पाल, गेन, पुरकायस्थ, विश्वास, कर, सेन, गुहा-ठाकुरता, सोम, पालित, डे, मल आदि

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