सौंधिया राजपूत समाज का इतिहास बहुत ही रोचक और गर्व से भरा है। डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, सौंधिया राजपूतों का उद्गम मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती के क्षेत्रों में हुआ था, जो उस समय सौंधवाड़ के नाम से जाना जाता था ¹। यह क्षेत्र मंदसौर, झालावाड़, उज्जैन और राजगढ़ जिलों में फैला हुआ था। सौंधिया राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि वे मूल रूप से राजपूत जाति से हैं, जो हिंदू धर्म में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आती है ¹। राजपूत जाति को इस देश की सैनिक और शासक जाति माना जाता है, जो युद्धप्रियता और देश एवं धर्म की रक्षा के लिए जानी जाती है। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में आने के बाद, राजपूतों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें जीत और हार दोनों शामिल थे ¹। कुछ राजपूतों ने धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म को अपनाया, जबकि अन्य दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर बस गए। सौंधिया राजपूत समाज में विभिन्न वंशों के राजपूत शामिल हैं, जिनमें चौहान, तंवर, पंवार, सोलंकी, गहलोत, परिहार, बघेला और बोराना प्रमुख हैं ¹। 16वीं और 17वीं शताब्दी में मेवाड़ और मारवाड़ से कई राजपूत वंश सौंधवाड़ में आकर बसे। समय के साथ, राजपूत समाज ने अपनी अलग पहचान बनाई और स्थानीय सोंधिया राजपूतों से दूरी बनाए रखने के लिए उन्हें "सौंधवाड़ के सोंधिया " कहकर बुलाया गया ¹। यह नाम धीरे-धीरे "सौंधिया राजपूत" में बदल गया और बोलचाल की भाषा में "सौंधिया" के रूप में प्रचलित हो गया |सोंधिया राजपूत समाज राजस्थान और मध्य प्रदेश में 700 वर्षों से निवास कर रही एक प्रमुख जाति है, जो छोटे किसानों का एक समुदाय है और वैष्णव हिंदू समुदाय से संबंधित है। इस समाज के लोगों की अपनी कोई विशेष रीति-रिवाज नहीं है, लेकिन उन्हें आमतौर पर पिछड़ी जाति श्रेणी से संबंधित माना जाता है ¹। राजपूत समाज की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि यह समाज 36 कुलों से बना है, जिनमें दस रवि, दस चंद्र, बारह ऋषि, और चार हुतासन शामिल हैं। इस समाज को क्षत्रिय भी कहा जाता है, जो शासक वर्ग के अच्छे और बुरे दोनों कार्यों के लिए जाना जाता है ¹। अब बात करते हैं राजपूत और ठाकुर में अंतर की। राजपूत एक संघ जाति है, जबकि ठाकुर एक उपाधि है जिसका उपयोग कई जातियों द्वारा किया जाता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में कई जातियां ठाकुर सरनेम का उपयोग करती हैं, जिनमें नाई, राजपूत, और अहीर (यादव) शामिल हैं। सबसे पहले ब्राह्मणों ने ठाकुर उपाधि का उपयोग किया था, और आज भी गुजरात और बंगाल में ब्राह्मण ठाकुर कहलाते हैं ¹। सौंधवाड़ के सोंधिया राजपूत के प्रमुख व्यक्तियों मे शामिल हैं- समाज प्रदेश अध्यक्ष विधायक नारायण सिंह,जी राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विधायक चंदरसिंह जी सिसौदिया, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शंभूसिंहजी , जिलाध्यक्ष किशनसिंह जी पावटी, प्रदेश उपाध्यक्ष दिलीपसिंहजी तरनोद, युवा जिलाध्यक्ष दरबार अभयसिंहजी किलगारी, जिला प्रवक्ता डॉ भंवरसिंहजी , प्रदेश सचिव डॉ. भोपालसिंहजी . २०२३ के विधानसभा चुनाव में सुसनेर से भैरो सिंग जी पड़िहार बापू निर्वाचित हुए हैं जो सोंधिया राजपूत समाज से आते हैं
हिन्दू धर्म में प्रचलित चार वर्णों में क्षत्रिय वर्ण प्रमुख है इस वर्ण में राजपूत जाति इस देश की सैनिक और शासक जाति रही । \
सोंधिया छोटे किसानों का एक समुदाय हैं, |यह एक वैष्णव हिंदू समुदाय हैं, और उनके कोई विशेष रीति-रिवाज नहीं हैं। सोंधिया को आमतौर पर पिछड़ी जाति श्रेणी से संबंधित माना जाता है।
मप्र पिछड़ा आयोग की भोपाल में सुनवाई के दौरान सौंधिया राजपूत समाज के पदाधिकारियों ने समाज का पक्ष रखा। कहा कि पिछड़ा वर्ग की जातियों में सौंधिया राजपूत की जगह केवल सौंधिया लिखा है। सौंधिया के साथ राजपूत शब्द जोड़कर जाति को सौंधिया राजपूत किया जाए।
इस हेतु आयोग के समक्ष प्रदेशभर से आए समाजजन ने दस्तावेज पेश किए। समाज प्रदेश अध्यक्ष विधायक नारायण सिंह,
२०२३ के विधानसभा चुनाव में सुसनेर से भैरो सिंग पड़िहार बापू निर्वाचित हुए हैं जो सोंधिया राजपूत समाज से आते हैं
राजपूत संघ है एक जिसमे 36 कुल के लोग शामिल है
“दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण,
चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाण
मगर फिर घाल मेल हुआ 62 कुल हो गए इनको क्षत्रिय भी कहते है | शासक वर्ग के अच्छे बुरे सब कार्य का प्रचार होता है ठाकुर एक उपाधि है कोई संघ या जाती नही इसका प्रयोग लगभग सभी जातियॉ करती है |बिहार उत्तर प्रदेश में नाई जाती भी ठाकुर सरनेम का प्रयोग कराती है. तो राजस्थान में राजपूत भी ठाकुर कहलाते हैं. ,मध्य प्रदेश में घोषी अहीर(यादव) भी करते है ठाकुर सरनेम उपयोग करते हैं. मगर सबसे पहले ब्राह्मणों ने प्रयोग किया था आज भी गुजरात बंगाल में ब्रह्मण ठाकूर कहलाते हैं. राजपूत और ठाकुर में अंतर यहीं है कि राजपूत संघ जाती है . कुल मिलाकर लोग ठाकुर कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं ,