मित्रों ,भारत में जाती व्यवस्था वैदिक काल से ही प्रचलन में हैं | विभिन्न हिन्दू जातियों के इतिहास प्रस्तुत करने के सिलसिले में आज धानुक जाती की उत्पत्ति ,इतिहास और वर्तमान की चर्चा कर रहे हैं
धानुक समाज का इतिहास धनुष चलाने वालों या धनुर्धरों के रूप में प्राचीन काल से जुड़ा है, जैसा कि नाम की उत्पत्ति 'धनुष' शब्द से हुई है. ऐतिहासिक रूप से, उन्हें राजा-महाराजाओं के काल में युद्ध में लड़ने वाले योद्धा माना जाता था, और उनका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे 'पद्मावत' और 'दिल्ली सल्तनत' में भी मिलता है. और इनके वंशज राजा जनक जैसे पौराणिक पात्रों से माने जाते हैं। समय के साथ, सामाजिक परिवर्तनों के कारण, कुछ धानुक कपड़ा बनाने और बांस की टोकरी बुनने जैसे अन्य व्यवसायों से भी जुड़ गए. धानुक समाज भारत के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में भी पाए जाते हैं.
धनुर्धर पूर्वज:
धानुक जाति का मूल नाम 'धानुक' है, जो 'धनुष' शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ धनुष चलाने वाला होता है। ये राजा-महाराजाओं के समय में एक वीर कौम के रूप में जाने जाते थे, जो अपनी धनुर्विद्या के लिए प्रसिद्ध थे।
पौराणिक संबंध:
धानुक जाति किसका वंशज है?
राजा शतधनु जो सत्ययुग में मिथिला के राजा थे उनके ही वंशज आगे जाकर त्रेता मे राजा जनक कहलाये। धानुक जाति के पूर्वज का नाम लेते समय धनका मुनि का नाम लिया जाता है। इस आधार पर ही यह माना जाता है कि धनक मुनि राजा जनक और धानुक जाति के पूर्वज थे .
साहित्य में उल्लेख:
धानुक जाति का उल्लेख प्राचीन साहित्य में भी मिलता है। मलिक मोहम्मद जायसी की 'पद्मावत' और आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव की 'दिल्ली सल्तनत' जैसी किताबों में इनका जिक्र है।
पहचान का संघर्ष:
समुदाय के सदस्यों का कहना है कि उन्हें अपनी ऐतिहासिक पहचान के बारे में सही जानकारी नहीं दी गई और इसलिए उन्होंने इसे खोजने की कोशिश नहीं की।
आजीविका:
वर्तमान में धानुक समाज के कई सदस्य खेत में नौकर के रूप में काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं, या फिर शिक्षा और व्यावसायिक क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं।
क्या धानुक क्षत्रिय हैं?नहीं, धानुक समाज को वर्तमान में सरकारी तौर पर क्षत्रिय नहीं माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से, धानुक जाति के लोग धनुष चलाने वाले योद्धाओं से जुड़े थे और उन्हें सम्मान मिलता था, लेकिन संघर्षों और आक्रमणों के बाद, उनकी भूमि, संपत्ति और प्रतिष्ठा खो गई और उन्हें क्षत्रिय से शूद्र या फिर अनुसूचित जातियों में शामिल कर दिया गया। इसके बाद, वे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार जैसे विभिन्न राज्यों में फैल गए।
धानुक जाति के गुरु कौन हैं?
जाती इतिहासकार डॉ .दयाराम आलोक के मतानुसार धानुक जाति का कोई एक निश्चित 'गुरु' नहीं है, बल्कि कई सामाजिक और आध्यात्मिक हस्तियों को उनका गुरु माना जाता है। इनमें प्रमुख रूप से संत कबीर दास हैं, जिन्हें कई क्षेत्रों में धानुक समाज अपना गुरु मानता है, तथा संत सुपल भगत भी समाज के पूजनीय गुरु हैं। इसके अतिरिक्त, कुल देवता के रूप में महाराजा धनक पूजे जाते हैं, और भगवान शिव को धनुष-बाण प्रदान करने वाले मानते हैं।
कुलदेवता :
धानुक समाज के कुल देवता के रूप मे राघो बाबा, बाबा महतो साहेब, महाराजा धनक, ऋषि धनक पूजे जाते हैं।
धानुक जाति के गोत्र:-
धानुक समाज की विभिन्न गोत्र लिस्ट उपलब्ध हैं, लेकिन ये सभी व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं हैं और कुछ स्रोतों में विरोधाभास हो सकता है. मुख्य गोत्रों में कथरिया, इटकान, इंदौरा, नुगरिया, मावर, पचेरवाल, बागड़ी, बावलिया, बुमरा, लडवाल, कायथ, सुरलिया, बामनिया, खरेरा, धेधान, जाट, सोलिया, गुरैया, कटारिया, डाबला, खुन्डिया, चोरा, धलोड़, सिवान, भुर्तिया, होटला, सरोहा, खर्कता, सीलान, बरवाल, रंगबरा, तूर, खस, बोकड, और जारोलिया शामिल हैं. धानुक समाज के गोत्र प्रादेशिक होते हैं, जिसका अर्थ है कि यह जाति के गोत्र क्षेत्र के अनुसार बदलते रहते हैं.
आधुनिक स्थिति-
अनुसूचित जाति/जनजाति:
कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर बिहार में इन्हें 'निचले पिछड़े' के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, चंडीगढ़ और दिल्ली में इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा मिला है।
राजनीतिक चेतना:
बिहार के शहीद रामफल मंडल
वर्तमान समय में धानुक समाज राजनीतिक रूप से सक्रिय है और अपनी पहचान तथा अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है, जिसमें बिहार के शहीद रामफल मंडल का भी योगदान है.Disclaimer: इस content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे|