दर्जी जाति का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव का इतिहास।
विश्व इतिहास में यह माना गया है कि कपास का सर्वप्रथम उपयोग भारत में ही हुआ था अतः यह कहना सार्थक होगा की धागा बनाना और कपड़ा बनाना भी भारत में ही आरम्भ हुआ यही कला चीनियों ने भारत से सीखी किंतु वे इस कला को और अधिक विकसित कर सके |जाति इतिहास लेखक डॉ ,दयाराम आलोक के मतानुसार 2500 ईसा पूर्व से ही मनुष्य प्रजाति का एक तबका वस्त्र निर्माण और उसकी डिजाइन बनाने के कार्य में लग गया| कालांतर में भारत में वैदिक और उत्तर वैदिक काल में जाति व्यवस्था प्रकाश में आई और दर्जी जाति भी इसी काल में आई। जाति व्यवस्था प्रचलित होने पर कपड़े से सम्बंधित कार्य करने वालो को दर्जी कहा गया लेकिन यह जाति बिना पहचान के ही सेकड़ो वर्षो पूर्व से ही कार्य में लगी हुई है।
अब यह जाति अपने द्वारा सीखी गयी कलाकारी को अपनी सन्तानो को भी देने लगे और अगली पीढ़ी भी उन्नत कलाकारी कर पाई जिसमे कपड़ा निर्माण, छपाई, रँगाई, वस्त्र निर्माण आदि कार्य शामिल है और इसी कार्य से सम्बंधित लोगो में वैवाहिक सम्बन्ध होने लगे। यह जाति एक विकसित जाति रही जिसके प्रमाण इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजा और सम्पन्न लोग अपने पर्सनल दर्जी रखते थे और यही प्रथा आधुनिक काल में अंग्रेजो ने भी रखी उन्होंने दर्जी जाति को भारत में टेलर नाम दिया।आज भी दर्जी जाति के लोग इस कार्य को बखूबी कर रहे है |
अब यह जाति अपने द्वारा सीखी गयी कलाकारी को अपनी सन्तानो को भी देने लगे और अगली पीढ़ी भी उन्नत कलाकारी कर पाई जिसमे कपड़ा निर्माण, छपाई, रँगाई, वस्त्र निर्माण आदि कार्य शामिल है और इसी कार्य से सम्बंधित लोगो में वैवाहिक सम्बन्ध होने लगे। यह जाति एक विकसित जाति रही जिसके प्रमाण इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजा और सम्पन्न लोग अपने पर्सनल दर्जी रखते थे और यही प्रथा आधुनिक काल में अंग्रेजो ने भी रखी उन्होंने दर्जी जाति को भारत में टेलर नाम दिया।आज भी दर्जी जाति के लोग इस कार्य को बखूबी कर रहे है |
गागरोन रियासत के प्रतापी शासक जो राजा से बने संत
पीपा क्षत्रिय दर्जी समाज का इतिहास, संत पीपाजी महाराज से जुड़ा हुआ है, जो 14वीं शताब्दी के एक महान संत और भक्ति आंदोलन के नेता थे. वे गागरोनगढ़ के एक राजपूत राजा थे जिन्होंने बाद में सिंहासन त्यागकर संत बनने का फैसला किया.
दामोदर वंशी दर्जी समाज एक पारंपरिक भारतीय समुदाय है जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाया जाता है। यह समुदाय अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और व्यवसाय के लिए जाना जाता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो दामोदर वंशी दर्जी समाज के बारे में बताती हैं:
1. उत्पत्ति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की उत्पत्ति गुजरात से हुई है, जहाँ से वे मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण के दबाव के कारण पलायन कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में बस गए।
2. व्यवसाय: दामोदर वंशी दर्जी समाज का मुख्य व्यवसाय दर्जी का काम है, जिसमें वे कपड़े सिलते और बनाते हैं।
3. संस्कृति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की संस्कृति में हिंदू परंपराएं और रीति-रिवाज शामिल हैं, जिनमें वे अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और त्योहारों को मनाते हैं।
जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए।
पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में विस्थापित हुआ।
इन दोनों जत्थों के लोगों की बोली और संस्कृति में अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। और जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैँ
उल्लेख योग्य है कि वैश्विक स्तर पर दर्जी समाज की सबसे बड़ी और सबसे अधिक पाठकों वाली website का Address
https://damodarjagat.blogspot.com
जिसकी पाठ संख्या करीब साढ़े पाँच लाख है|
दामोदर वंशी दर्जी समुदाय की जानकारी
1. उत्पत्ति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की उत्पत्ति गुजरात से हुई है, जहाँ से वे मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण के दबाव के कारण पलायन कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में बस गए।
2. व्यवसाय: दामोदर वंशी दर्जी समाज का मुख्य व्यवसाय दर्जी का काम है, जिसमें वे कपड़े सिलते और बनाते हैं।
3. संस्कृति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की संस्कृति में हिंदू परंपराएं और रीति-रिवाज शामिल हैं, जिनमें वे अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और त्योहारों को मनाते हैं।
जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए।
पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में विस्थापित हुआ।
इन दोनों जत्थों के लोगों की बोली और संस्कृति में अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। और जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैँ
उल्लेख योग्य है कि वैश्विक स्तर पर दर्जी समाज की सबसे बड़ी और सबसे अधिक पाठकों वाली website का Address
https://damodarjagat.blogspot.com
जिसकी पाठ संख्या करीब साढ़े पाँच लाख है|
डॉ. दयाराम आलोक ने दर्जी समाज के उत्थान और विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने समाज को संगठित करने और उसकी गतिविधियों को सही दिशा देने के लिए अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ का गठन 1965 मे किया, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। इस संस्था का प्रधान कार्यालय 14,जवाहर मार्ग शामगढ़ है ।
इसके अलावा, उन्होंने समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए सामूहिक विवाह की परंपरा शुरू की, जिसमें 9 सामूहिक विवाह आयोजित किए गए। 2010 में उन्होंने स्ववित्त पोषित निशुल्क सामूहिक विवाह का आयोजन किया, जो एक बहुत ही सराहनीय कदम था।
सन्त नामदेव जो दर्जी जाति से थे उन्होंने भक्ति की पराकाष्ठा को पार कर ईश्वर को भोज कराया ततपश्चात नामदेव दर्जी जाति व अन्य जातियों के सन्त बन गए और मुख्य रूप से दर्जी जाति के लोगो ने तो नाम के साथ नामदेव लगाना भी आरंभ कर दिया वर्तमान में नामदेव समाज प्रकाश में आया जो कि आधुनिक महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विकसित हुआ।
पीपा वंशीय दर्जी समाज क्षत्रीय गोत्र वाला सबसे अधिक संख्या वाला दर्जी समाज है जो पीपा जी महाराज के अनुयायी हैं। महाराष्ट्र और गुजरात मे देसाई दर्जी समाज है जिनके साथ क्षत्रीय गोत्र का प्रचलन है।
इस जाति और समाज ने कलात्मक और आर्थिक रूप से राष्ट्र विकास में अहम भूमिका अदा की और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कला से जुड़ाव होने के कारण यह समाज किसी भी आपराधिक गतिविधियों से अछूता ही रहा, सरकारी नीतियों के कुछ नकारात्मक प्रभाव इस जाति पर होने पर भी कभी विरोध के स्वर इस जाति में सुनाई नही पड़े। आज इस समाज ने यथार्थ मानववाद को चरितार्थ किया
इस जाति और समाज ने कलात्मक और आर्थिक रूप से राष्ट्र विकास में अहम भूमिका अदा की और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कला से जुड़ाव होने के कारण यह समाज किसी भी आपराधिक गतिविधियों से अछूता ही रहा, सरकारी नीतियों के कुछ नकारात्मक प्रभाव इस जाति पर होने पर भी कभी विरोध के स्वर इस जाति में सुनाई नही पड़े। आज इस समाज ने यथार्थ मानववाद को चरितार्थ किया
सन्यासी दर्जी
"सन्यासी दर्जी" शब्द का अर्थ है एक ऐसा दर्जी (दर्जी) जो संन्यास (सन्यास) के जीवन को अपनाता है। यह एक ऐसा व्यक्ति है जो दर्जी के रूप में काम करने के साथ-साथ आध्यात्मिक मार्ग पर भी चलता है।यह दर्जी समुदाय अधिकांशत: दक्षिण भारत के राज्यों मे निवास करता है काकुतस्थ दर्जी -
काकुस्थ (Kakustha) वंश, जिसे दर्जी जाति भी कहा जाता है, सूर्यवंशी क्षत्रिय (सूर्यवंश के राजा) माने जाते हैं, जो अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश से संबंधित हैं. वे अपने आप को महाराज पुरंजय के वंशज मानते हैं और सूचीकार (दर्जी) भी कहलाते हैं. यह समाज संत नामदेव को भी अपने समाज का मानते हैं.
काकुस्थ (Kakustha) वंश, जिसे दर्जी जाति भी कहा जाता है, सूर्यवंशी क्षत्रिय (सूर्यवंश के राजा) माने जाते हैं, जो अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश से संबंधित हैं. वे अपने आप को महाराज पुरंजय के वंशज मानते हैं और सूचीकार (दर्जी) भी कहलाते हैं. यह समाज संत नामदेव को भी अपने समाज का मानते हैं.
सोरठिया दर्जी -
सोरठिया दर्जी, गुजरात में पाई जाने वाली अहीर/यादव जाति का एक वंश है। वे यदुवंशी अहीरों के वंशज माने जाते हैं और उनके 484 उपनाम हैं, जो किसी भी अन्य गुजराती अहीर/यादव शाखा से अधिक हैं। वे मुख्य रूप से किसान और जमींदार हैं, लेकिन परिवहन और भारी निर्माण मशीनरी व्यवसाय में भी सक्रिय हैं|पिस्से (Pissey) कर्नाटक में दर्जी समुदाय का एक उपनाम है, जिसे वेड, काकाडे, और सन्यासी के साथ उपयोग किया जाता है.
रूहेला दर्जी समुदाय, जिसे "टांक" या "इदरीसी" दर्जी भी कहा जाता है, एक भारतीय समुदाय है जो दर्जी (सिलाई) का काम करता है। वे मूल रूप से क्षत्रिय राजपूत वंश से माने जाते हैं। कुछ इतिहास के अनुसार, वे अफगानिस्तान के रोह क्षेत्र से आए थे और 18वीं शताब्दी में रोहिलखंड क्षेत्र में बस गए थे। दर्जी समुदाय में, वे वस्त्र निर्माण और सिलाई के काम के लिए जाने जाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें