28.8.16

जीवन एक रहस्य है,पहेली नहीं ! – ओशो





“Life is a Mystery not a Puzzle”
जीवन एक रहस्य है-
जिसे हम जीवन जानते हैं, जैसा जानते हैं, वैसा ही सब कुछ नहीं है। बहुत कुछ है जो अनजाना ही रह जाता है। शायद सब कुछ ही अनजाना रह जाता है। जो हम जान पाते हैं वह ऐसा ही है जैसे कोई लहरों को देख कर समझ ले कि सागर को जान लिया। लहरें भी सागर की हैं, लेकिन लहरों को देख कर सागर को नहीं समझा जा सकता। और जो लहरों में उलझ जाएगा वह सागर तक पहुंचने का शायद मार्ग भी न खोज सके। असल में जिसने लहरों को ही सागर समझ लिया, उसके लिए सागर की खोज का सवाल भी नहीं उठता।
जो दिखाई पड़ता है हमें वह जीवन के सागर पर लहरों से ज्यादा नहीं है। जो नहीं दिखाई पड़ता है वही सागर है। जो नहीं दिखाई पड़ता है वही वस्तुतः जीवन है। जो दृश्य है वह सब कुछ नहीं है, सब कुछ का अत्यंत छोटा सा अंश है। जो अदृश्य है वही सब कुछ है। लेकिन हम सब दृश्य पर ही अटक जाते हैं और अदृश्य तक नहीं पहुंच पाते हैं। जो ज्ञात है वह अणु भी नहीं है और जो अज्ञात है वह विराट है। लेकिन हम सब अणु को ही विराट समझ लेते हैं और जीवन की जो यात्रा विराट तक पहुंच सकती थी, वह अणु के इर्द-गिर्द ही घूम-घूम कर नष्ट हो जाती है 

जीवन रहस्य है, जब मैं ऐसा कहता हूं, तो मेरा मतलब है कि जितना ही हम जानेंगे उतना ही जानने को सदा और भी मुक्त और खुला हो जाएगा। जितना हम जान लेंगे उतने जानने से जीवन समाप्त नहीं होगा, बल्कि जितना हम जानेंगे उतना ही हमारे ज्ञान का अहंकार समाप्त हो जाता है। जो जितना ही जान लेता है उतना ही बड़ा अज्ञानी हो जाता है। इस जगत में अज्ञानियों के सिवाय ज्ञानी होने का भ्रम और किसी को भी नहीं होता। ज्ञानी को तो दिखाई पड़ने लगता है कि सब कुछ अज्ञात है, और मुझसे बड़ा अज्ञानी कौन! जितना ही हम जानते हैं उतना ही जान नहीं पाते, बल्कि जानने वाला ही धीरे-धीरे खो जाता है। जितना ही हम खोजते हैं, खोज पूरी नहीं होती, खोजने वाला ही समाप्त हो जाता है।
इसलिए कहता हूंः जीवन रहस्य है, मिस्ट्री है। जीवन पहेली नहीं है। पहेली और रहस्य में कुछ फर्क है। पहेली हम उसे कहते हैं जो हल हो सके। रहस्य उसे कहते हैं कि जितना हम हल करेंगे उतना ही हल होना मुश्किल होता जाएगा। पहेली उसे कहते हैं कि जिसकी सुलझ जाने की पूरी संभावना है। क्योंकि पहेली को जान-बूझ कर उलझाया गया है। उलझन बनाई हुई है, निर्मित है। जीवन पहेली नहीं है। उसकी उलझन बनाई हुई नहीं है, निर्मित नहीं है। किसी ने उसे उलझाया नहीं है। सिर्फ सुलझाने वाले ही उलझन में पड़ जाते हैं। जीवन रहस्य है, उसका मतलब यह है कि सुलझाने की कोशिश की तो उलझ जाएगा। और अगर सहज स्वीकार कर लिया तो सब सुलझा हुआ है।
जीवन रहस्य है, उसका अर्थ यह है कि हम कहीं से भी यात्रा करें और कहीं की भी यात्रा करें, अंततः जहां हम पहुंचेंगे वह वही जगह होगी जहां से हमने शुरू किया था। जीवन रहस्य है का अर्थ यह है कि जो प्रारंभ का बिंदु है वही अंत का बिंदु भी है; और जो साधन है वही साध्य भी है;और जो खोज रहा है वही खोजा जाने वाला भी है।
इस रहस्य, इस जीवन की निश्चित ही कुंजी भी है,’सीक्रेट की’ भी है। उस कुंजी को समझने, खोजने के लिए हम  यहां उपस्थित हुए हैं। पहली बातः जो व्यक्ति विचार से खोजने जाएगा जीवन को, वह उलझा लेगा। विचार कुंजी नहीं है, कुंजी का धोखा है। कितना ही हम विचार करें, जितना हम विचार करेंगे उतना हम जीवन से दूर चले जाते हैं। जितना हम विचार करते हैं उतना ही सत्य से हमारा फासला बढ़ता चला जाता है। उन्हीं क्षणों में हम सत्य के निकट होते हैं जब हम विचार से बाहर होते हैं। जो विचार करेगा वह भटक जाएगा।
इसलिए इन चार दिनों में मैं आपको विचार करने को नहीं कहूंगा। इन चार दिनों में हम अनुभव करने की कोशिश करेंगे। थिंकिंग नहीं, विचार नहीं, एक्सपीरिएंस की, अनुभव की, अनुभूति की कोशिश करेंगे। अनुभूति ही कुंजी है। वे जो इस रहस्य को जानना चाहते हैं, खोलना चाहते हैं, उघाड़ना चाहते हैं, उनके लिए अनुभूति के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। लेकिन अत्यधिक अनुभूति की जगह हम विचार में उलझ जाते हैं। हम सोचने लगते हैं कि सत्य क्या है। हम सोचने लगते हैं कि जीवन क्या है। हम सोचने लगते हैं कि मृत्यु क्या है। हम सोचने लगते हैं…और जितना हम सोचते हैं उतना ही हम सिद्धांतों को तो पा लेते हैं, लेकिन सत्य को पाने से वंचित रह जाते हैं। सब सोचना अंततः सिद्धांत दे सकता है–मृत, मरे हुए। सब सोचना शास्त्र दे सकता है–मृत, मरे हुए। सब सोचना पहेलियां दे सकता है–खुद की बनाई हुई, खुद की सुलझाई हुई। लेकिन सोचने से कोई सत्य तक न कभी पहुंचा है, न कभी पहुंच सकता है।

8.8.16

मूर्ति पूजा का विज्ञान और रहस्य: ओशो

जिन लोगों ने भी मूर्ति विकसित की होगी, उन लोगों ने जीवन के परम रहस्य के प्रति सेतु बनाया था...मूर्ति-पूजा शब्द सेल्फ कंट्राडिकटरी है। इसीलिए जो पूजा करता है वह हैरान होता है कि मूर्ति कहां? और जिसने कभी पूजा नहीं की वह कहता है कि इस पत्थर को रख कर क्या होगा? इस मूर्ति को रख कर क्या होगा? ये दो तरह के लोगों के अनुभव हैं, जिनका कहीं तालमेल नहीं हुआ है। और इसीलिए दुनिया में बड़ी तकलीफ हुई है।
आप मंदिर के पास से गुजरेंगे तो मूर्ति दिखाई पड़ेगी, क्योंकि पूजा के पास से गुजरना आसान नहीं है। तो आप कहेंगे, इन पत्थर की मूर्तियों से क्या होगा? लेकिन जो उस मंदिर के भीतर कोई एक मीरा अपनी पूजा में लीन हो गई है, उसे वहां कोई भी मूर्ति नहीं बची। पूजा घटित होती है, मूर्ति विदा हो जाती है। मूर्ति सिर्फ प्रारंभ है। जैसे ही पूजा शुरू होती है, मूर्ति खो जाती है।

तो वह जो हमें दिखाई पड़ती है वह इसीलिए दिखाई पड़ती है कि हमें पूजा का कोई पता नहीं है। और दुनिया में जैसे-जैसे पूजा कम होती जाएगी, वैसे-वैसे मूर्तियां बहुत दिखाई पड़ेंगी। और जब बहुत मूर्तियां दिखाई पड़ेंगी और पूजा कम हो जाएगी तो मूर्तियों को हटाना पड़ेगा, क्योंकि पत्थरों को रख कर क्या करिएगा? उनका कोई प्रयोजन नहीं है। साधारणतः लोग सोचते हैं कि जितना पुराना आदमी होता है, जितना आदिम, उतना मूर्ति-पूजक होता है। जितना आदमी बुद्धिमान होता चला जाता है, उतना ही मूर्ति को छोड़ता चला जाता है। सच नहीं है यह बात। असल में पूजा का अपना विज्ञान है। वह जितना ही हम उससे अपरिचित होते चले जाते हैं, उतनी ही कठिनाई होती चली जाती है।

इस संबंध में एक बात और आपको कह देना उचित होगा। हमारी यह दृष्टि नितांत ही भ्रांत और गलत है कि आदमी ने सभी दिशाओं में विकास कर लिया है। जब हम कहते हैं विकास, तो उससे भ्रम पैदा हित है कि सभी दिशाओं में विकास हो गया होगा, इवोल्यूशन हो गई होगी। आदमी की जिंदगी इतनी बड़ी चीज है कि अगर आप एकाध चीज में विकास कर लेते हैं तो आपको पता ही नहीं चलता कि आप किसी दूसरी चीज में पीछे छूट जातें हैं।

अगर आज विज्ञान पूरी तरह विकसित है, तो धर्म के मामले में हम बहुत पीछे छूट गए हैं। कभी धर्म विकसित होता है, तो विज्ञान के मामले में पीछे छूट जाते हैं। कभी ऐसा होता है कि एक आयाम में हम कुछ जान लेते हैं, दूसरे आयाम को भूल जाते हैं।

अठारह सौ अस्सी में यूरोप में अल्टामीरा की गुफाएं मिली हैं। उन गुफाओं में बीस हजार साल पुराने चित्र हैं, और रंग ऐसा है जैसे सांझ को चित्रकार ने किया हो। डान मार्सिलानो ने, जिसने वे गुफाएं खोजीं, उस पर सारे यूरोप में बदनामी हुई उसकी। लोगों ने यह शक किया कि ये अभी इसने पुतवा कर रंग तैयार करवा लिए हैं, ये अभी गुफा में रंग पोते गए हैं। और जो भी चित्रकार देखने गया उसी ने कहा कि यह मार्सिलानो की धोखाधड़ी है, इतने ताजे रंग पुराने तो हो ही नहीं सकते।

उन चित्रकारों का कहना भी ठीक ही था, क्योंकि वानगोग के चित्र सौ साल पुराने नहीं हैं, लेकिन सब फीके पड़ गए हैं। और पिकासो ने अपनी जवानी में जो चित्र रंगे थे, उसके बूढ़े होने के साथ वे चित्र भी बूढ़े हो गए हैं। आज सारी दुनिया में किसी भी कोने में, चित्रकार जिन रंगों की सौ साल में वे फीके हो ही जाने वाले हैं।


लेकिन जब मार्सिलानो की खोज पूरी तरह सिद्ध हुई, और उन गुफाओं का निर्णायक रूप से निष्कर्ष निकल गया कि वे बीस हजार साल पुरानी हैं, तो बड़ी मुश्किल हो गई। क्योंकि जिन लोगों ने वे रंग बनाए होंगे, रंग बनाने के संबंध में वे हम से बहुत विकसित रहे होंगे। हम आज चांद पर पहुंच सकते हैं, लेकिन सौ साल से ज्यादा चलने वाला रंग बनाने में हम अभी समर्थ नहीं हैं। यह थोड़ी हैरानी की बात मालूम पड़ती है। और बीस हजार साल पहले जिन लोगों ने वे रंग बनाए होंगे, वे कुछ कीमिया जानते थे, जो हमें बिलकुल पता नहीं है।

इजिप्त की ममीज हैं कोई दस हजार साल पुरानी! आदमी के शरीर हैं, वे जरा भी नहीं खराब हुए हैं। वे ऐसे ही रखे हैं जैसे कल रखे गए हों। और आज तक भी राज नहीं खोल जा सका है कि किन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था जिससे कि लाशें इतनी सुरक्षित दस हजार साल तक रह सकीं हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि वे ठीक वैसी ही हैं जैसे कल आदमी मरा हो। किसी तरह का डिटिरिओरेशन, किसी तरह का उनमें ह्रास नहीं हुआ है। पर हम साफ नहीं कर पाए अभी तक कि कौन से द्रव्यों का उपयोग हुआ है।

इजिप्त के पिरामिडों पर जो पत्थर चढ़ाए गए हैं, अभी भी हमारे पास कोई क्रेन नहीं है जिनसे हम उन्हें चढ़ा सकें। आदमी के तो वश की बात ही नहीं है। लेकिन जिन लोगों ने वे चढ़ाए थे पत्थर उनके पास क्रेन रही होगी, इसकी संभावना कम मालूम होती है। तो जरुर उनके पास कोई और टेक्नीक, और तरकीबें रही होंगी जिनसे वे पत्थर चढ़ाए गए हैं, जिनका हमें कोई अंदाज नहीं है।

और जीवन के सत्य बहुयामी हैं। एक ही काम बहुत तरह से किया जा सकता है। और एक ही काम तक पहुंचने की बहुत सी टेक्नीक और बहुत सी विधियां हो सकती हैं। और फिर जीवन इतना बड़ा है कि जब हम एक दिशा में लग जाते हैं तो हम दूसरी दिशाओं को भूल जाते हैं।

मूर्ति बहुत विकसित लोगों ने पैदा की थी। सोचने जैसा है। क्योंकि मूर्ति का संबंध है, वह जो कॉस्मिक फोर्स है, हमारे चारों तरफ जो ब्रह्म शक्ति है, उससे संबंधित होने का सेतु है वह। जिन लोगों ने भी मूर्ति विकसित की होगी, उन लोगों ने जीवन के परम रहस्य के प्रति सेतु बनाया था।