तो प्रेम तुम्हें कष्ट दे सकता है, अगर तुम जबर्दस्ती किसी पर थोपना चाहो। लेकिन यह प्रेम है? यह प्रेम ने कष्ट दिया, यह अहंकार ही है। यह हिंसा ने कष्ट दिया। तुम्हें हक नहीं है किसी पर अपना प्रेम थोपने का, न हक है जबर्दस्ती किसी से प्रेम मांगने का। प्रेम में जबर्दस्ती तो हो ही नहीं सकती। तो कष्ट पाओगे।
या, जिसे तुमने चाहा वह तुम्हें मिल गया। लेकिन मिलने के बाद तुमने उस पर बहुत अपने को आरोपित किया, तुमने उसे अपनी संपत्ति बनाना चाहा, तुमने उसके सब तरफ पहरे बिठा दिए, तुमने कहा, बस मुझ से प्रेम और किसी से भी नहीं, मेरे साथ हंसना और किसी और के साथ नहीं, और तुम बड़े भयभीत हो गए और तुम सुरक्षा करने लगे, और तुम सदा चिंता करने लगे और तुम जासूसी करने लगे —और अगर तुमने अपनी पत्नी को या अपने पति को किसी के साथ हंसते और मुस्कुराते देख लिया तो तुम्हारे भीतर आग लग गई; इससे तुमने कष्ट पाया, इससे तुम पीड़ित हुए, लेकिन यह पीड़ित होने का कारण प्रेम नहीं है। दूसरे को संपत्ति मानने में ही पीड़ा है।
कोई इस जगत में किसी की संपत्ति नहीं है, न कोई इस जगत में किसी की संपत्ति होने को पैदा हुआ है, न किसी को होना चाहिए, यह अपमान है। कोई किसी का गुलाम नहीं। प्रेम दो स्वतंत्र व्यक्तियों के बीच का बहाव है। जब भी उन में से कोई गुलाम हो जाएगा, एक या दोनों गुलाम हो जाएंगे, तभी बहाव रुक जाता है। और जब बहाव रुक जाता है तब बड़ी पीड़ा है, तब बड़े काटे चुभ जाते है, तब जीवन में घाव हो जाते हैं। प्रेम से लोग दुख पा रहे हैं, वह प्रेम के कारण नहीं, प्रेम के नाम पर कुछ और चल रहा है, अहंकार चल रहा है। यह अहंकार ही है।
तुम चकित होओगे यह जानकर कि व्यक्तियों के साथ तो ईर्ष्या होती ही होती है,ऐसी स्थितियों में ईर्ष्या हो जाती है जहां कि ईर्ष्या का कोई कारण नहीं। पति घर आया है, पत्नी दिनभर राह देखती रही है और पति आकर अखबार पढ्ने बैठ गया, पत्नी अखबार छीन ले सकती है, फाड़कर फेंक दे सकती है—अखबार से ईर्ष्या हो जा सकती है कि मेरे और तुम्हारे बीच आने वाला अखबार कौन होता है?
यह आकस्मिक नहीं है कि दुनिया के बहुत सृजनशील व्यक्तियो को अविवाहित रहना पड़ा। उसके पीछे कुल कारण इतना था कि अगर तुम्हें संगीत से प्रेम है, तो बस इतना ही काफी है, अब स्त्री को तुम प्रेम—वेम मत करो। स्त्री के प्रेम में पड़े तो संगीत और स्त्री में संघर्ष हो जाएगा। सुकरात की स्त्री सुकरात को पीट देती थी। एक बार उसने चाय की पूरी केतली सुकरात के ऊपर उड़ेल दी, उस का आधा चेहरा सदा के लिए जल गया और काला हो गया। क्या अड़चन थी? अड़चन यही थी कि सुकरात सदा दर्शन में लीन था। उस के शिष्य आते, वह दर्शन की बातों मे ऐसा तल्लीन हो जाता कि बस पत्नी को पीड़ा होने लगती। उसे पीड़ा यह थी कि यह दर्शनशास्त्र को मुझ से ज्यादा चाहता है। अब यह किसी व्यक्ति के साथ भी ईर्ष्या का कारण नहीं, लेकिन दर्शनशास्त्र को मुझ से ज्यादा चाहता है। यह बात स्त्री बर्दाश्त नहीं कर सकती। तुम्हारी पत्नी को अगर नृत्य से प्रेम हो या संगीत से, तो तुम्हें लगेगा तुम्हारी अवहेलना हो रही है।
दुनिया में बड़े चित्रकारों को, बड़े संगीतज्ञो को, बड़े कवियों को, बड़े दार्शनिकों को अविवाहित रहने को मजबूर होना पड़ा। विवाह महंगा सौदा मालूम हुआ। जब किसी ने प्रसिद्ध डेनिस विचारक सोरेन कीर्कगार्ड को पूछा कि आप अविवाहित क्यों रहे? तो उसने कहा कि मैं दो पत्नियों के बीच झंझट में नहीं पड़ना चाहता था। दो पत्नियों के बीच,पूछने वाले ने पूछा! हमें तो पता है आपकी एक भी पत्नी नहीं। सोरेन कीर्कगार्ड ने कहा—यह जो फिलासफी है, यह जो दर्शन है, इससे मेरा लगाव है। सोरेन कीर्कगार्ड एक बार प्रेम में पड़ा था किसी स्त्री के और बिलकुल विवाह के करीब पहुंच गई थी बात, और फिर हट गया। क्योंकि जैसे—जैसे स्त्री से निकटता बढ़ी, वैसे—वैसे स्त्री ने बाधा डालनी शुरू कर दी। अभी विवाह भी नहीं हुआ था कि और बाधा आनी शुरू हो गई। तो सोरेन कीर्कगार्ड ने तय कर लिया कि यह बेहतर है, मैं दो में से एक ही चुन लूं। या तो मुझे गैर—दार्शनिक हो जाना पड़ेगा—जो कि महंगा सौदा है, जो कि मेरे प्राणों का प्राण है, जो कि मेरे सारे व्यक्तित्व को धूल से भर देगा, जो कि मेरी आत्मा की तलाश की हत्या हो जाएगी, जो कि बीज में ही मरना हो जाएगा, वृक्ष मैं हो ही न पाऊंगा, फूल तक पहुंच न पाऊंगा।
तुम ध्यान रखना, कहते हो—मैं तो प्रेम से बहुत पीड़ित हो चुका हूं! तो जरा तलाश करना। प्रेम के कारण? प्रेम के कारण कोई कभी पीड़ित नहीं होता, प्रेम के साथ कुछ और जुड़ा होगा, कुछ और लगा होगा; प्रेम का नाम होगा, भीतर कुछ और होगा—अहंकार होगा, ईर्ष्या होगी, परिग्रह का भाव होगा, मालकियत होगी। तो फिर तुम कष्ट पाओगे। और उस कष्ट के पाने के कारण तुम प्रेम से घबड़ा जाओगे और तुम कहने लगोगे—प्रेम गलत है। तब तुमने दूसरी भूल की। क्योंकि प्रेम ही प्रीति बनता और प्रीति ही भक्ति बनता, अब तुम उससे भी वंचित हुए। तुम प्रेम से भी गए और परमात्मा से भी गए। मैं तुमसे कहना चाहता हूं—ठीक से विश्लेषण करो, ठीक से निदान करो, और प्रेम के मार्ग पर जो—जो अड़चनें दूसरी हों उन्हें हटा दो, प्रेम इतना बहुमूल्य है कि उसके लिए सब कुछ कुर्बान किया जा सकता है—अहंकार, मालकियत, सब कुर्बान किया जा सकता है।
मगर दुनिया में अजीब लोग हैं। बातें प्रेम की करते हैं, और जब भी कुर्बानी का सवाल आता है तो प्रेम की कुर्बानी देते है। अगर अहंकार और प्रेम के बीच चुनना है तो तुम अहंकार चुनते हो, प्रेम नहीं चुनते। और फिर दोष भी प्रेम को देते हो! मेरे पास रोज लोग आते हैं, कोई छोटी सी
बात पति—पत्नी में हो गई और उनमें झगड़ा खड़ा हो गया। इतनी छोटी बात कि जब वे मुझे बताने आते हैं तो संकोच करते हैं, पत्नी पति से कहती है—आप ही कह दें, पति कहता है—नहीं, तुम ही कह दो। मैं पूछता हूं—बात क्या है, कहते क्यों नहीं? वे कहते है—बात इतनी छोटी है कि यहा इतने लोगों के सामने कहने में संकोच होता है। जब बात इतनी छोटी है, और तलाक तक नौबत आ पहुंची है, तो मामला क्या है? तुमने प्रेम किया ही नहीं। या किया भी तो बड़ा विषाक्त किया। और आज एक छोटी सी बात पर...।
मैंने सुना है कि हालीवुड में एक विवाह हुआ और जब उस अभिनेत्री ने अपने पति के साथ रजिस्ट्रार के दफ्तर में दस्तखत किए, दस्तखत के करते ही उसने कहा कि नहीं,रजिस्ट्रार से कहा कि रह करिए, मुझे यह विवाह नहीं करना। रजिस्ट्रार भी चौका, उसका पति तो बहुत चौका—होने वाला पति, जो कि हो ही चुका था पति, दस्तखत हो चुके थे स्टाम्प पर। रजिस्ट्रार ने कहा—लेकिन अभी तो कोई बात ही नहीं हुई, झगड़ा शुरू ही नहीं हुआ;मुझे पता है कि साल—छह महीने में झगड़ा शुरू होगा, मगर अभी तो कोई बात भी नहीं उठी। उस अभिनेत्री ने कहा—झगड़ा हो गया, क्योंकि मैंने छोटे अक्षर दस्तखत किए,और इसने इतने बड़े अक्षर किए मेरे सामने! इससे मतलब साफ है, यह झंझट में मुझे पड़ना नहीं है, यह अभी से दिखाने लगा है अपनी अकड़! मैंने छोटे—छोटे अक्षर बनाए और इसने बड़े—बड़े अक्षरों में दस्तखत कर दिए! ये बात साफ हो गई, इसमें आगे जाने की जरूरत नहीं है। ऐसी छोटी—छोटी बातें प्रेम के मार्ग पर अवरोध हैं। फिर तुम उनसे पीड़ा पाओगे। मगर उस पीड़ा को तुम प्रेम के कंधे पर मत थोपना।
प्रेम ने कभी पीड़ा नहीं दी। प्रेम ने सदा सुख दिया है। प्रेम ने सदा शांति दी है। प्रेम ही तो एकमात्र वस्तु है इस जगत मे जिस मे परमात्मा की थोड़ी झलक है। प्रेम ही तो एकमात्र ऊर्जा है यहा जो आदमी की बनाई हुई नहीं है। जो अकृत्रिम है, स्वाभाविक है। जो तुम्हारे प्राणो के प्राण में बसी है, जो तुम्हारी आत्मा का भोजन है। जैसे शरीर बिना भोजन के न जी सकेगा, वैसी तुम्हारी आत्मा भी बिना प्रेम के नहीं जी सकती। इसीलिए तो प्रेम की इतनी तलाश है। और जिसको प्रेम मिल जाता है, उसे सब मिल जाता है। फिर इसी प्रेम के और आगे सोपान है—प्रेम तो सीढ़ी का नाम है—फिर इसके आगे और सीढ़ियां हैं। मगर वे सब प्रेम से ही उत्पन्न होती है। तुम से मैंने कहा कि प्रेम के ये चार रूप है—स्नेह; अपने से छोटे के प्रति हो, बच्चे के प्रति। प्रेम; अपने से समान के प्रति हो, मित्र के प्रति;पति—पत्नी के प्रति। श्रद्धा;अपने से बड़े के प्रति हो, मां के प्रति,पिता के प्रति, गुरु के प्रति। और भक्ति;परमात्मा के प्रति, समग्र के प्रति। ये सब प्रेम की ही धारणाएं हैं। ये प्रेम के ही अलग—अलग ढंग हैं। यह प्रेम का ही पूरा नृत्य है। ये प्रेम की ही भावभगिमाए हैं। मगर प्रेम को शुद्ध करते चलो तो पीड़ा नहीं मिलेगी, परम आनंद मिलेगा। और इतने जल्दी थक मत जाओ, इतने जल्दी हार मत जाओ, इतने जल्दी बूढ़े मत हो जाओ। इतने जल्दी हताश मत हो जाओ। कैफी आजमी की ये कुछ पंक्तियां हैं।
बुढ़ापा कहता है—
यह आंधी, यह तूफान, ये तेज धारे फड़कते तमाशे, गरजते नजारे
अंधेरी फजा, सांस लेता समंदर
न हमराह मिशअल, न गदू पे तारे
मुसाफिर, खड़ा रह अभी जी को मारे
जवानी कहती है—
उसी का है साहिल, उसी के कगारे
तलातुम में फंसकर जो दो हाथ मारे
अंधेरी फजा, सांस लेता समंदर यों ही सर पटकते रहेंगे ये धारे
कहां तक चलेगा किनारे—किनारे
जिस दिन तुम हारे, उस दिन के हुए। जिस दिन तुमने कहा कि तूफान बड़ा है,अभी रुक जाओ, तुम सदा के लिए रुक गए। तूफान तो सदा है। तूफान तो इस जगत के होने का ढंग है। तूफान तो संसार है। अगर तुमने कहा—
यह आंधी, यह तूफान, ये तेज धारे
फड़कते तमाशे, गरजते नजारे
अंधेरी फजा
यह अंधेरी रात...
सांस लेता समंदर
ये उठती हुई गहरी सांसें समंदर की
न हमराह मिशअल
हाथ में एक मशाल भी नहीं
न गदू पे तारे
और आकाश में एक तारा भी नहीं
मुसाफिर खड़ा रह अभी जी को मारे
तो तुम सदा खड़े रह जाओगे। क्योंकि यह तूफान ऐसा ही चलता रहेगा। यह शाश्वत है। ये तारे कभी उगेंगे नहीं। तारे उनको मिलते हैं जो तारों को उघाडते हैं। तारे उनको मिलते हैं जो तारों को पैदा करते हैं। और मशाल कहां से आएगी? जो अपने हृदय की मशाल बनाते हैं, उन्हीं के हाथ में मशाल होती है। मशाल कहौ से आएगी? जो अपने को जलाते हैं, उन्हीं के पथ पर रोशनी होती है। और तो कोई रोशनी का उपाय नहीं है। जो अपने प्रेम को प्रज्वलित करते हैं, उन्हीं का मार्ग रोशन हो जाता है।
न हमराह मिशअल, न गदू पे तारे
मुसाफिर, खड़ा रह अभी जी को मारे अभी जी को मारकर खड़े हो गए तो सदा के लिए खड़े हो जाओगे। ऐसे ही तो बहुत लोग खड़े हो गए। सदियों—सदियों से खड़े हैं। न मालूम कितने जन्मों से खड़े हैं। उतरते ही नहीं हैं तूफान में। और जितनी देर खड़े रहोगे,उतना ही भय पुराना होता जाता है, उतनी ही भय की जड़ें फैलती चली जाती हैं।नहीं, इसको चुनौती समझो। प्रेम चुनौती है। प्रेम के संघर्ष में जाना ही होगा।
उसी का है साहिल, उसी के कगारे
जो चुनौती स्वीकार करता है।
उसी का है साहिल, उसी के कगारे
तलातुम में फंस कर जो दो हाथ मारे
तूफान में उतरकर जो दो हाथ मारता है, फिर तूफान सहयोगी हो जाता है। तूफान सदा ही दुश्मन नहीं है। तूफान दुश्मन उनका है जो किनारे पर खड़े हैं। तूफान उनका संगी और साथी है, जो उस में दो हाथ मार कर आगे बढ़ते हैं। तूफान उन्हें उठा लेता है,तूफान उन्हें दूसरे किनारे तक पहुंचा देता है, तूफान उनके लिए नाव बन जाता है।
उसी का है साहिल, उसी के कगारे
तलातुम में फंस कर जो दो हाथ मारे
अंधेरी फजा, सांस लेता समंदर यों ही सर पटकते रहेंगे ये धारे
कहां तक चलेगा किनारे—किनारे
प्रेम में अड़चनें हैं। प्रेम में कठिनाइयां हैं। प्रेम का फूल बहुत से काटो के बीच खिलता है, सच, इसे मैं स्वीकार करता हूं लेकिन प्रेम काटा नहीं है। प्रेम की झाड़ी में बहुत कांटे हैं, प्रेम तो उस झाड़ी का फूल है। इस डर से कि कहीं कोई काटा हाथ में न चुभ जाए—और निश्चित काटा हाथ में चुभ सकता है, कांटे वहां हैं; जो फूल को तोड़ने जाएगा, उसकी अंगुलियों में कभी खून आ सकता है—लेकिन वह खून दाव पर लगाने जैसा है। फूल की तलाश में अगर थोड़ा खून गिरे, तो बुरा कुछ भी नहीं—खून का करोगे भी क्या और? आज नहीं कल गिर ही जाएगा, आज नहीं कल मिट्टी में सब मिल ही जाएगा। इसके पहले कि मिट्टी तुम्हें अपने में लीन कर ले, तूफान में दो हाथ मार लो। इसके पहले कि कब्र में समा जाओ, जिंदगी, जवानी, जोश, इसका थोड़ा उपयोग करो,थोड़े पंख फैला लो! और कांटे हैं जरूर। यही तो मजा है गुलाब के फूल को पाने का। कांटे न होते तो पाने में कुछ अर्थ भी न होता। किनारा है दूर और तूफान है बड़ा, यही तो चुनौती है।
और मैं उसी को बूढ़ा कहता हूं जो जीवन की चुनौतियां छोड़ देता है। वही जवान है जो जीवन की सारी चुनौतियों को स्वीकार करता है। चुनौती के स्वीकार की मात्रा ही जवानी की मात्रा है। तब कोई आदमी मरते दम तक जवान रह सकता है। और कोई आदमी पहले से ही का हो सकता है।
यह देश बुरी तरह बूढ़ा हो गया है। इस देश की फजा बूढ़ी हो गई है। इस देश की हवा बूढ़ी हो गई है। इस देश में बच्चे के ही पैदा होते हैं। पैदा होते से ही उनके जीवन में क्या—क्या गलत है, क्या—क्या बुरा है, क्या—क्या कठिन है, उसका ही सारा शिक्षण चलता है। उन्हें जीवन को स्वयं देखने का मौका ही नहीं मिलता। वे अपनी परख पैदा नहीं कर पाते, अपना अनुभव नहीं ले पाते। वे किनारे पर ही अटक जाते हैं। वे कभी जवान नहीं हो पाते।
मैं तुम से चाहता हूं कि तुम उतरों तूफान में। तूफान से तैरे तो ही दूसरा किनारा पा सकोगे। इस पार संसार है उस पार परमात्मा है। और प्रेम का तूफान है दोनों के बीच में। लेकिन प्रेम को शुद्ध करते चलना है, रोज—रोज शुद्ध करते चलना है। प्रेम से गंदगी हटाते चलना है। प्रेम से कीचड़ छांटते चलना है और प्रेम के कमल को सम्हालते चलना है। एक दिन जब प्रेम परिपूर्ण रूप से शुद्ध हो जाता है, जब अपने पूरे निखार को उपलब्ध होता है, तो वही भक्ति है।
तू खुर्शीद है बादलों में न छुप
तू महताब है जगमगाना न छोड़
तू शोखी है, शोखी रियायत न कर
तू बिजली है बिजली जलाना न छोड़
अभी इश्क ने हार मानी नहीं
अभी इश्क को आजमाना न छोड़
प्रेम हारता ही नहीं। जब तक परमात्मा न मिल जाए, प्रेम हार ही नहीं सकता। प्रेम बीज है परमात्मा का।
अभी इश्क ने हार मानी नहीं
अभी इश्क को आजमाना न छोड़
तुम हार मान लिए हो, यह तुम्हारे अहंकार की हार है, यह प्रेम की हार नहीं है,इसे तुम प्रेम की हार मत समझ लेना, प्रेम हारता ही नहीं। प्रेम हार जानता ही नहीं। प्रेम तो जीत ही जानता है। और जीतते—जीतते उसी दिन पूर्णता को उपलब्ध होता है जिस दिन परमात्मा उपलब्ध हो जाता है। तभी प्रेम विश्राम में जाता है। उसके पहले तक प्रेम विश्राम नहीं करता। लेकिन अहंकार की हार को अक्सर हम प्रेम की हार मान लेते हैं।
तुम्हारा अहंकार जरूर कष्ट में पड़ गया होगा। तुमने कुछ गलत दिशाओं से प्रेम तलाशा होगा। तुमने गलत हाथों से प्रेम पकड़ना चाहा होगा। तुमने प्रेम को पिंजड़े में बंद करना चाहा होगा। तुमने प्रेम के साथ कुछ दुर्व्यवहार किया होगा। इसलिए तुम प्रेम को पाने में असमर्थ हुए हो। अपना दुर्व्यवहार छोड़ो, अपनी गलतिया स्वीकारो, अपनी गलतिया पहचानो, अपनी गलतियां देखो, और तब तुम चकित होओगे—प्रेम अभी कहां हारा!
सच तो यह है तुम्हारा प्रश्न ही यह कह रहा है कि प्रेम अभी जिंदा है। तुम कहते हों—मैं तो प्रेम से बहुत पीड़ित हो चुका हूं, और आप कहते हैं कि प्रेम का ही ऊर्ध्वगमन भक्ति है। प्रभु, अब उस कीचड़ में नहीं पड़ना चाहता हूं। यह तुम्हारा अहंकार बोल रहा है, प्रेम को कीचड़ कह रहा है। लेकिन तुम्हारे भीतर यह प्रश्न उठा, यह इस बात का सबूत है कि अभी भी प्रेम में प्राण है और अभी भी प्रेम में अंकुर है और अभी भी प्रेम फिर से वृक्ष बन सकता है। किस ने तुम से कहा कि प्रेम कीचड़ है? कीचड़ भी है और कमल भी। अगर तुमने कीचड़ ही जाना तो तुमने पूरा प्रेम नहीं जाना। इसलिए तो कमल को पंकज कहते हैं। पैक यानी कीचड़; कीचड़ से जो जन्मता है उसका नाम पंकज। कितना अदभुत रूपांतरण होता है। कहौ कीचड़, गंदी कीचड़, एक गंदी तलैया तालाब की,और कहां फिर यह प्यारा कमल!
इस देश ने तो कमल के ऊपर किसी फूल को नहीं रखा। इसलिए विष्णु की नाभि में कमल को उगाया है। इसलिए बुद्ध को कमल पर बिठाया है। कमल इस देश के प्राणों में बसा है। कमल की कुछ खूबी है, कमल में कुछ जादू है, जो किसी फूल में नहीं है। वह जादू क्या है? वह जादू यह है कि कमल बड़ी अशुद्ध कीचड़ से उठता है, और इतना शुद्ध,इतना निर्विकार; चमत्कार है कमल! कमल रहस्यपूर्ण है। कमल इस जगत में रूपांतरण का प्रतीक है। अदभुत रूपांतरण का। सारा रसायन बदल गया। कहां कीचड़ थी गंदगी से भरी, बदबू से भरी, सोच भी न सकते थे कि इसमें कमल पैदा हो सकता है। जिसने जाना नहीं है कि कमल कीचड़ में पैदा होता है, वह कमल को देखकर कभी कल्पना भी नहीं कर सकता है कि कीचड़ से इसका कोई संबंध हो सकता है। एक दाग भी तो नहीं होता है कमल पर कीचड़ का। और सुरभि, और रंग अनूठा और खिलावट! इस पृथ्वी पर कमल से कोमल और क्या है?
तुमने प्रेम का आधा ही हिस्सा देखा। जिसने प्रेम में सिर्फ कामवासना देखी, उसने कीचड़ देखी। जिसने प्रेम में सिर्फ संभोग देखा, उसने कीचड़ देखी। और जिसने प्रेम में समाधि देखी, उसने कमल देखा। जिसने प्रेम में भक्ति देखी, उसने कमल देखा। उठो,कीचड़ से कमल की यात्रा करो!
पाचवां प्रश्न :
भक्त, भक्ति और भगवान, इन तीनो शब्दों को समझाने की कृपा करें।
वैज्ञानिक कहते है—प्रत्येक वस्तु के तीन रूप होते है। जैसे जल को उदाहरण के लिए लें, तो बर्फ एक रूप—जमा हुआ, सख्त कठोर। फिर जल दूसरा रूप—बहता हुआ,प्रवाहमान, तरल। फिर भाप तीसरा रूप—अदृश्य, ऊर्ध्वगामी। तीनो में बड़ा फर्क है। बर्फ कठोर है, जल जरा भी कठोर नहीं। बर्फ थिर है, एक जगह अटका है, बर्फ मे कोई गति नहीं है, जल में गति है, प्रवाह है, जल यात्रा है। बर्फ पत्थर की तरह पड़ा है। इसीलिए तो बर्फ को पत्थर का बर्फ कहते है। उसमें कोई यात्रा नहीं है, बंद, कहीं जाता नहीं, उसमे कुछ होता नहीं, जैसा का तैसा है;मुर्दा है, जड़ है। जल में जीवन है। गति जीवन का आधार है।
फिर जल में और भाप में भी बड़े फर्क हैं। जल सदा नीचे की तरफ जाता है, भाप सदा ऊपर की तरफ जाती है। जल अधोगामी है, भाप ऊर्ध्वगामी है। जल दिखाई पड़ता है, भाप दिखाई भी नहीं पड़ती। और भी क्रांति घट गई। भाप अदृश्य के साथ एक हो गई।
ऐसे ही ये तीन शब्द है— भक्त, भक्ति और भगवान। भक्त है बर्फ की तरह। बड़ी अस्मिता है अभी, मैं भाव है अभी। भक्ति है तरलता, नृत्य, गति, यात्रा;भक्त चल पड़ा,भक्त अब पड़ा नहीं है, उठ खड़ा हुआ; भक्त अब रुका नहीं है, उसने पहला कदम तो उठा लिया। और जिसने पहला कदम उठा लिया, उसने आधी यात्रा पूरी कर ली। क्योंकि एक—एक कदम से ही तो हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाती है। पहला कदम ही कठिन है, फिर तो सब सरल हो जाता है। क्योंकि सब कदम एक जैसे हैं। पहला उठ गया तो दूसरे में क्या फर्क है? दूसरा भी पहले जैसा है और तीसरा भी पहले जैसा है। फिर तो उन्हीं कदमों की पुनरुक्ति है। कदम तो एक ही है। फिर कदम के ऊपर कदम रखते जाना है, सीढ़ी के ऊपर सीढ़ी चढ़ते जाना है। मगर जिसे पहला कदम उठाना आ गया,उसे सब कदम उठाने आ गए, क्योंकि कदमो—कदमो में कोई भेद नहीं है।
भक्ति तरलता है, बहाव शुरू हुआ, यात्रा शुरू हुई। और भगवान वाष्प की दशा है,अदृश्य होने की दशा है। भक्त कठोर होता है, भक्ति में तरलता होती है, जब भक्त भगवान तक पहुंचता है तो अदृश्य हो जाता है। ये चैतन्य की ही तीन दशाएं हैं।
भक्त से शुरू करना है, भगवान पर पूर्णाहुति होनी है। भक्त कभी भगवान को मिलता है, ऐसा मत सोच लेना, भक्त भगवान हो जाता है।
मिलना कहा है?
मिलना में तो दूजापन रहता है, दुई रहती है, भेद रहता है। भक्त भगवान से मिलता नहीं, भक्त भगवान हो जाता है। जैसे भाप आकाश के साथ एक हो जाती है। ये भगवत्ता की तीन दशाएं हैं। भक्त कठोर दशा है, अभी मैं का भाव मौजूद है। भक्ति में मैं टूटा, तरलता आई;मध्य की दशा है। और भगवान में ऊर्ध्वगमन हुआ; जो दृश्य था,अदृश्य हुआ; जो स्थूल था, सूक्ष्म हुआ; जो शांत था, अतात हुआ।
हर घड़ी खुद से उलझना मुकद्दर है मेरा
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ओला-मैथिली शरण गुप्त
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा-
विशिष्ट कवियों की चयनित कविताओं की सूची (लिंक्स)
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास "नीरज"
यात्रा और यात्री - हरिवंशराय बच्चन
शक्ति और क्षमा - रामधारी सिंह "दिनकर"
राणा प्रताप की तलवार -श्याम नारायण पाण्डेय
वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्राकुमारी चौहान
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा-अल्लामा इकबाल
कुछ बातें अधूरी हैं, कहना भी ज़रूरी है-- राहुल प्रसाद (महुलिया पलामू)
पथहारा वक्तव्य - अशोक वाजपेयी
कितने दिन और बचे हैं? - अशोक वाजपेयी
उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक
राधे राधे श्याम मिला दे -भजन
ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का
हम आपके हैं कौन - बाबुल जो तुमने सिखाया-Ravindra Jain
नदिया के पार - जब तक पूरे न हो फेरे सात-Ravidra jain
जब तक धरती पर अंधकार - डॉ॰दयाराम आलोक
जब दीप जले आना जब शाम ढले आना - रविन्द्र जैन
अँखियों के झरोखों से - रविन्द्र जैन
किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है - साहिर लुधियानवी
सुमन कैसे सौरभीले: डॉ॰दयाराम आलोक
वह देश कौन सा है - रामनरेश त्रिपाठी
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ -महादेवी वर्मा
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - महादेवी वर्मा
प्रणय-गीत- डॉ॰दयाराम आलोक
गांधी की गीता - शैल चतुर्वेदी
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार -शिवमंगलसिंह सुमन
सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक
हम पंछी उन्मुक्त गगन के-शिवमंगल सिंह 'सुमन'
जंगल गाथा -अशोक चक्रधर
मेमने ने देखे जब गैया के आंसू - अशोक चक्रधर
सूरदास के पद
रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक
घाघ कवि के दोहे -घाघ
मुझको भी राधा बना ले नंदलाल - बालकवि बैरागी
बादल राग -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
आओ आज करें अभिनंदन.- डॉ॰दयाराम आलोक
प्रेयसी-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
राम की शक्ति पूजा -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
आत्मकथ्य - जयशंकर प्रसाद
गांधी के अमृत वचन हमें अब याद नहीं - डॉ॰दयाराम आलोक
बिहारी कवि के दोहे
झुकी कमान -चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
कबीर की साखियाँ - कबीर
भक्ति महिमा के दोहे -कबीर दास
गुरु-महिमा - कबीर
तु कभी थे सूर्य - चंद्रसेन विराट
सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक
बीती विभावरी जाग री! jai shankar prasad
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
मैं अमर शहीदों का चारण-श्री कृष्ण सरल
हम पंछी उन्मुक्त गगन के -- शिवमंगल सिंह सुमन
उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक
रश्मिरथी - रामधारी सिंह दिनकर
डॉ.दयाराम आलोक : साहित्य सृजन एवं दर्जी समाज उन्नायक अनुष्ठान
सुदामा चरित - नरोत्तम दास
अरुण यह मधुमय देश हमारा -जय शंकर प्रसाद
यह वासंती शाम -डॉ.आलोक
तुमन मेरी चिर साधों को झंकृत और साकार किया है.- डॉ॰दयाराम आलो
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से ,गोपालदास "नीरज"
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों , कुमार विश्वास
रहीम के दोहे -रहीम कवि
जागो मन के सजग पथिक ओ! , फणीश्वर नाथ रेणु
रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक