मित्रों ,भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का प्रचलन वैदिक काल से भी पहिले से है ,गोंड जन जाति का इतिहास और वर्तमान स्थिति पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे हैं -
गोंड, भारत का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है. ये संभवतः द्रविड़ मूल के हैं और आर्यन युग के पहले से भारत में रहते आए हैं. गोंड ( Gond) शब्द कोंड (Kond) से आया है जिसका अर्थ है हरे पहाड़. गोंड स्वयं को कोईतुर (Koitur) कहते हैं लेकिन अन्य लोग उन्हें गोंड कहते हैं क्योंकि वे हरे पहाड़ों में रहते थे.
गोंड या कोईतुर दक्षिण में गोदावरी घाटियों से लेकर उत्तर में विंध्य पर्वत तक बड़े क्षेत्रों में फैले हुए हैं. मध्य प्रदेश में, वे सदियों से अमरकंटक पर्वतमाला के नर्मदा क्षेत्र में विंध्य, सतपुड़ा और मंडला के घने जंगलों को आबाद किया. मध्य प्रांत को गोंडवाना कहा जाता था क्योंकि यहाँ गोंडों का शासन था.
मध्य प्रांत ( Central provinces ) ब्रिटिश भारत का एक प्रांत था. इसमें मध्य भारत के मुगलों और मराठों से ब्रिटिश द्वारा जीते गए इलाके थे, और वर्तमान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र राज्यों के कुछ हिस्से शामिल थे. गोंडवाना में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के इलाके भी शामिल थे.
गोंडों का उल्लेख पहली बार 14वीं शताब्दी के मुस्लिम इतिहास में किया गया था। 14वीं से 18वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शक्तिशाली गोंड राजवंशों का कब्जा था, जो मुगल काल के दौरान स्वतंत्र रहे या सहायक प्रमुखों के रूप में कार्य किया। जब 18वीं शताब्दी में गोंडों पर मराठों ने कब्ज़ा कर लिया, तो गोंडवाना का बड़ा हिस्सा नागपुर के भोंसले राजाओं या हैदराबाद के निज़ामों के प्रभुत्व में शामिल कर लिया गया। कई गोंडों ने अपेक्षाकृत दुर्गम ऊंचे इलाकों में शरण ली और आदिवासी हमलावर बन गए। 1818 और 1853 के बीच इस क्षेत्र का बड़ा हिस्सा ब्रिटिशों के पास चला गया, हालाँकि कुछ छोटे राज्यों में गोंड राजाओं ने 1947 में भारतीय स्वतंत्रता तक शासन करना जारी रखा।
जिसे हम आज ‘परधान गोंड कला’ के नाम से जानते हैं वह वर्षों से भित्तिचित्रों के माध्यम से गोंड आदिवासी घरों में प्रचलन में थी. वर्ष 1962 में मध्यप्रदेश के पाटनगढ़ गाँव में गोंड जनजाति में जन्मे जनगढ़ सिंह श्याम ने अपने इलाके से बाहर लेकर गए और देश-दुनिया में पहुँचाया. समकालीन गोंड कला के क्षेत्र में पद्मश्री दुर्गाबाई व्याम, पद्मश्री भज्जू श्याम और वेंकट रमण सिंह श्याम का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. तीनों ही जनगढ़ सिंह श्याम को प्रेरणास्रोत मानते हैं
गोंड (Gond) भारत में पाया जाने वाला एक प्रमुख जातीय समुदाय है. इन्हें कोईतुर (Koitur) या गोंडी (Gondi) भी कहा जाता है. यह भारत के प्राचीनतम समुदायों में से एक है. यह कृषि, खेतिहर मजदूर, पशुपालन और पालकी ढोने का काम करते हैं.यह हिंदी,गोंडी, उड़िया, मराठी और स्थानीय भाषा बोलते हैं। गोंड्डों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से प्रसिद्ध है, जहां 15 वीं और 17 वीं शताब्दी राजगोंड राजवंशों का शासन था। आइए जानते हैं गोंड समाज का इतिहास, गोंड शब्द की उत्पति कैसे हुई?
गोंड जनजाति का इतिहास (Gond Tribes History):-
गोंड जनजाति बहुत ही प्राचीन जनजाति है। आर. बी. रसेल एवं हीरालाल के अनुसार 13 वी से 19 वी शताब्दी के बीच मध्य्रदेश के दक्षिणी एवं मध्य भागो में बसे हुए थे। ये लोग संभवतः पांचवीं - छठवीं शताब्दी में गोदावरी के तट पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई। छत्तीसगढ़ एवं मंडला क्षेत्रों में भी गोंड़ो का शासन हुआ करता था। 'गढ़ मंडला' के गोंड शासक संग्राम शाह तथा उनके पुत्र दलपत शाह भी इसी क्षेत्रों के प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। दलपत शाह ने महोला के चंदेल राजा की पुत्री दुर्गावती से विवाह किया था
गोंड जनजाति बहुत ही प्राचीन जनजाति है। आर. बी. रसेल एवं हीरालाल के अनुसार 13 वी से 19 वी शताब्दी के बीच मध्य्रदेश के दक्षिणी एवं मध्य भागो में बसे हुए थे। ये लोग संभवतः पांचवीं - छठवीं शताब्दी में गोदावरी के तट पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई। छत्तीसगढ़ एवं मंडला क्षेत्रों में भी गोंड़ो का शासन हुआ करता था। 'गढ़ मंडला' के गोंड शासक संग्राम शाह तथा उनके पुत्र दलपत शाह भी इसी क्षेत्रों के प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। दलपत शाह ने महोला के चंदेल राजा की पुत्री दुर्गावती से विवाह किया था
जो कि रूपवती एवं बहादुर शासिका भी थी। इसने तो मुगल सम्राट अकबर से भी युद्ध किया था। गोंडवाना पर मुगलों एवं मराठों का भी शासन रहा था। गोंड लोगो को परिश्रमी, बहादुर योद्धा माना जाता है।
गोंड़ जनजातियो मे विवाह संस्कार (Wedding Ceremony):-
इस जनजाति (God janjati in Hindi) मे कई प्रकार के विवाह प्रचलित है-
दूध लौटाव विवाह – इस विवाह में अपने मामा या फूफा के लड़के या लड़की से शादी करते है।
हल्दी सींचना –इस विवाह में लड़के और लड़की घर वालो की अनुमति न होने पर घर से भाग कर शादी करते है।
चूड़ी पहनना – इस विवाह में लड़की के पति के मरणोपरांत लड़की के देवर से उसकी शादी कर दी जाती है।
लमसेना विवाह (सेवा विवाह)- इस विवाह में वर अपने सास ससुर के घर जाकर रहते है एवं उनकी सेवा करते है उसके पश्चात दोनों की विवाह कर दी जाती है।
पठौनी विवाह – इस विवाह में वधु वर के घर बारात लेकर जाते है जिसमे वर पक्ष के द्वारा वधु के घर वालो को दाल, चांवल और बर्तन भेट स्वरुप दिया जाता है।
चढ़ विवाह – इस विवाह में वर वधु के घर बारात लेकर जाता है जिसमे वधु पक्ष के द्वारा वर के घर वालो को दाल, चांवल और बर्तन भेट स्वरुप दिया जाता है।
गोंड़ जनजाति के प्रमुख त्योहार(Festival of Gond Tribes):-
गोंड़ जनजाति के लोग हरेली, पोला, होली, नवाखानी, दशहरा और दीपावली आदि त्योहार मनाते है।
Disclaimer: इस विडियो में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे|