आस्था और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है, पता ही नहीं चलता कि कब आस्था अंधविश्वास में तब्दील हो गई. विज्ञान, वकील ,डॉक्टर की डिग्री होने के बावजूद ऐसे कई लोग गले मे काला डोरा या ताबीज धारण करते हैं और राशिफल,कुंडली के चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते हैं -Dr.Dayaram Aalok,M.A.,Ayurved Ratna,D.I.Hom(London)
गुरुदेव राम शर्मा आचार्य की युग परिवर्तनकारी अवधारणा को मूर्तरूप देने के उद्देश्य से गांवों-शहरों में गायत्री शक्ति पीठ के मंदिर अस्तित्व में आ रहे हैं। इन शक्तिपीठों के माध्यम से मानव को मनसा, वाचा, कर्मणा जीवन मूल्यों के उच्च स्तर को आत्मसात करना है। समाजसेवी साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक जी ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों को नकद दान करने के अपने आध्यात्मिक दान-पथ के तहत सुवासरा की गायत्री शक्ति पीठ के शुभचिंतक गेंदा लाल जी टेलर से संपर्क किया और 11 हजार दान की रसीद बनवाई। दान पट्टिका मंदिर में स्थापित की गई। मंदिर समिति के सदस्यों ने दान दाता का सम्मान करते हुए आभार व्यक्त किया। यह एक पवित्र और धार्मिक कार्य है, जो धर्मशास्त्रानुसार महान पुण्य का कार्य माना जाता है। डॉ. दयाराम आलोक जी के इस महान कार्य के लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं और उनके इस पुण्य कार्य की सराहना करते हैं। बोलिए गायत्री की माता की जय
गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा का विडियो डॉ.आलोक की आवाज
गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा में दान पट्टी लगी
डॉ.दयाराम जी आलोक
शामगढ़ का
आद्यात्मिक दान -पथ परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से साहित्य मनीषी डॉ.दयाराम आलोकजी राजस्थान और मध्यप्रदेश के आगर,मंदसौर,नीमच ,झालावाड़ ,कोटा और झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्ति धाम में निर्माण व विकास हेतु नकद और आगंतुकों के बैठने हेतु सीमेंट की बेंचें दान देने का अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं. आलोकजी एक सेवानिवृत्त अध्यापक हैं और वे अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने के संकल्प के साथ आध्यात्मिक दान-पथ पर अग्रसर हैं . इसमे वो राशि भी शामिल है जो आपको google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| आपकी ६ वेबसाईट पर google विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% आपको मिलता है| समायोजित दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं
गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा हेतु
11 हजार नकद दान
गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा के शुभ चिन्तक-
अर्जुनलाल जी चौहान- 89894-11420
लक्ष्मी नारायण जी टेलर ९४०६६-५७६१५
समिति के अध्यक्ष गेंदमल जी टेलर हैं
गायत्री ट्रस्ट के वर्तमान पदाधिकारी निम्न हैं-
मुख्य ट्रस्टी सुनील जी मान्दलिया हैं,संयोजक लक्ष्मी नारायण जी परमार टेलर हैं. गेंदमल टेलर ट्रस्टी हैं. कोषाध्यक्ष राजेंद्र जी चौधरी हैं .
डॉ.अनिल कुमार दामोदरआत्मज डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़98267-95656 द्वारा सुवासरा गायत्री मंदिर हेतु दान सम्पन्न सन २०२२
सौंधिया राजपूत समाज का इतिहास बहुत ही रोचक और गर्व से भरा है। डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, सौंधिया राजपूतों का उद्गम मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती के क्षेत्रों में हुआ था, जो उस समय सौंधवाड़ के नाम से जाना जाता था ¹। यह क्षेत्र मंदसौर, झालावाड़, उज्जैन और राजगढ़ जिलों में फैला हुआ था। सौंधिया राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि वे मूल रूप से राजपूत जाति से हैं, जो हिंदू धर्म में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आती है ¹। राजपूत जाति को इस देश की सैनिक और शासक जाति माना जाता है, जो युद्धप्रियता और देश एवं धर्म की रक्षा के लिए जानी जाती है। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में आने के बाद, राजपूतों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें जीत और हार दोनों शामिल थे ¹। कुछ राजपूतों ने धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म को अपनाया, जबकि अन्य दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर बस गए। सौंधिया राजपूत समाज में विभिन्न वंशों के राजपूत शामिल हैं, जिनमें चौहान, तंवर, पंवार, सोलंकी, गहलोत, परिहार, बघेला और बोराना प्रमुख हैं ¹। 16वीं और 17वीं शताब्दी में मेवाड़ और मारवाड़ से कई राजपूत वंश सौंधवाड़ में आकर बसे। समय के साथ, राजपूत समाज ने अपनी अलग पहचान बनाई और स्थानीय सोंधिया राजपूतों से दूरी बनाए रखने के लिए उन्हें "सौंधवाड़ के सोंधिया " कहकर बुलाया गया ¹। यह नाम धीरे-धीरे "सौंधिया राजपूत" में बदल गया और बोलचाल की भाषा में "सौंधिया" के रूप में प्रचलित हो गया |सोंधिया राजपूत समाज राजस्थान और मध्य प्रदेश में 700 वर्षों से निवास कर रही एक प्रमुख जाति है, जो छोटे किसानों का एक समुदाय है और वैष्णव हिंदू समुदाय से संबंधित है। इस समाज के लोगों की अपनी कोई विशेष रीति-रिवाज नहीं है, लेकिन उन्हें आमतौर पर पिछड़ी जाति श्रेणी से संबंधित माना जाता है ¹। राजपूत समाज की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि यह समाज 36 कुलों से बना है, जिनमें दस रवि, दस चंद्र, बारह ऋषि, और चार हुतासन शामिल हैं। इस समाज को क्षत्रिय भी कहा जाता है, जो शासक वर्ग के अच्छे और बुरे दोनों कार्यों के लिए जाना जाता है ¹। अब बात करते हैं राजपूत और ठाकुर में अंतर की। राजपूत एक संघ जाति है, जबकि ठाकुर एक उपाधि है जिसका उपयोग कई जातियों द्वारा किया जाता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में कई जातियां ठाकुर सरनेम का उपयोग करती हैं, जिनमें नाई, राजपूत, और अहीर (यादव) शामिल हैं। सबसे पहले ब्राह्मणों ने ठाकुर उपाधि का उपयोग किया था, और आज भी गुजरात और बंगाल में ब्राह्मण ठाकुर कहलाते हैं ¹। सौंधवाड़ के सोंधिया राजपूत के प्रमुख व्यक्तियों मे शामिल हैं- समाज प्रदेश अध्यक्ष विधायक नारायण सिंह,जी राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विधायक चंदरसिंह जी सिसौदिया, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शंभूसिंहजी , जिलाध्यक्ष किशनसिंह जी पावटी, प्रदेश उपाध्यक्ष दिलीपसिंहजी तरनोद, युवा जिलाध्यक्ष दरबार अभयसिंहजी किलगारी, जिला प्रवक्ता डॉ भंवरसिंहजी , प्रदेश सचिव डॉ. भोपालसिंहजी . २०२३ के विधानसभा चुनाव में सुसनेर से भैरो सिंग जी पड़िहार बापू निर्वाचित हुए हैं जो सोंधिया राजपूत समाज से आते हैं
हमारे देश की भगौलिक रचना कुछ इस प्रकार है कि जो स्वरुप आज दिखाई देता है देश आजाद होने और उसके पूर्व के काल में ऐसा नहीं था । प्राचीन काल में मगध, पाटली पुत्र, पंचनद, उत्कलप्रदेश जैसे नाम प्रचलित थे । मुगलों और अंग्रेजों के काल में मेवाड़, मालवा, सौंधवाड़, हाड़ोती, महाकौशल, बुंदेलखण्ड जैसे नाम अलग-अलग क्षेत्रों के लिए उपयोग किये जाते थे । देश आजाद होने के बाद आज उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे नाम प्रचलित है । हिन्दू धर्म में प्रचलित चार वर्णों में क्षत्रिय वर्ण प्रमुख है इस वर्ण में राजपूत जाति इस देश की सैनिक और शासक जाति रही । \
जुझारू जाति होने के कारण युद्धप्रियता और देश एवं धर्म की रक्षा का भार राजपूतों पर रहा । मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में आने के बाद राजपूतों को कहीं जीत तो कहीं हार का सामना करना पड़ा । कहीं राजपूत धर्म परिवर्तन द्वारा मुस्लिम धर्म को अंगीकार करने के लिए बाध्य हुए तो कहीं दूरस्थ क्षेत्र में जाकर बसने को मजबूर हुए । चूँकि मुस्लिम शासकों का दबाव दिल्ली एवं उसके आसपास ज्यादा रहा अतः स्वाभिमानी राजपूत अपनी आन की रक्षा के लिए दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर बस गए । उस समय मालवा, मेवाड़ एवं हाड़ोती से लगा हुआ "सौंधवाड़" एक सुरक्षित क्षेत्र था जिस कारण दिल्ली एवं उसके आसपास से राजपूत यहां आकर बसे ।
जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम आलोक के मतानुसार मंदसौर, झालावाड़, उज्जैन, राजगढ़ आदि जिलों में फैला यह क्षेत्र सौंधवाड़ कहलाता है|। इस क्षेत्र में विभिन्न वंशो के राजपूत आकर बसे जिसमें चौहान, तंवर, पंवार, सोलंकी, गहलोत, परिहार, बघेला, बोराना, आदि प्रमुख है.16 वीं, 17 वीं शताब्दी में मेवाड़, मारवाड़ से इस क्षेत्र में चुण्डावत, राणावत, शक्तावत, भाटी, चौहान, राठोड़, झाला, सोलंकी, पंवार आदि राजपूत आकर बसना शुरू हुए । स्वयं के श्रेष्ठ होने की भावना के कारण अपनी अलग पहचान के लिए इन लोगों ने स्थानीय राजपूतों से दूरी बनाए रखने बाबत् पहले से बसे हुए राजपूतों को "सौंधवाड़" का राजपूत कहकर बुलाया जो कालान्तर में धीरे-धीरे "सौंधिया राजपूत" बन गया और बोलचाल की भाषा में "सौंधिया" के रूप में प्रचलित हो गया ।
सोंधिया राजस्थान और मध्य प्रदेश में 700 वर्षों से निवास कर रही राजपूत जाति है| सोंधिया छोटे किसानों का एक समुदाय हैं, |यह एक वैष्णव हिंदू समुदाय हैं, और उनके कोई विशेष रीति-रिवाज नहीं हैं। सोंधिया को आमतौर पर पिछड़ी जाति श्रेणी से संबंधित माना जाता है। मप्र पिछड़ा आयोग की भोपाल में सुनवाई के दौरान सौंधिया राजपूत समाज के पदाधिकारियों ने समाज का पक्ष रखा। कहा कि पिछड़ा वर्ग की जातियों में सौंधिया राजपूत की जगह केवल सौंधिया लिखा है। सौंधिया के साथ राजपूत शब्द जोड़कर जाति को सौंधिया राजपूत किया जाए। इस हेतु आयोग के समक्ष प्रदेशभर से आए समाजजन ने दस्तावेज पेश किए। समाज प्रदेश अध्यक्ष विधायक नारायण सिंह,
राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विधायक चंदरसिंह सिसौदिया, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शंभूसिंह, जिलाध्यक्ष किशनसिंह पावटी, प्रदेश उपाध्यक्ष दिलीपसिंह तरनोद, युवा जिलाध्यक्ष दरबार अभयसिंह किलगारी, जिला प्रवक्ता डॉ भंवरसिंह, प्रदेश सचिव डॉ. भोपालसिंह और प्रदेश के पदाधिकारी माैजूद थे।
२०२३ के विधानसभा चुनाव में सुसनेर से भैरो सिंग पड़िहार बापू निर्वाचित हुए हैं जो सोंधिया राजपूत समाज से आते हैं
राजपूत कौन हैं और लोग उन्हें इतना प्रचारित क्यों करते हैं?
राजपूत और ठाकुरों में क्या अंतर है? राजपूत संघ है एक जिसमे 36 कुल के लोग शामिल है “दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाण मगर फिर घाल मेल हुआ 62 कुल हो गए इनको क्षत्रिय भी कहते है | शासक वर्ग के अच्छे बुरे सब कार्य का प्रचार होता है ठाकुर एक उपाधि है कोई संघ या जाती नही इसका प्रयोग लगभग सभी जातियॉ करती है |बिहार उत्तर प्रदेश में नाई जाती भी ठाकुर सरनेम का प्रयोग कराती है. तो राजस्थान में राजपूत भी ठाकुर कहलाते हैं. ,मध्य प्रदेश में घोषी अहीर(यादव) भी करते है ठाकुर सरनेम उपयोग करते हैं. मगर सबसे पहले ब्राह्मणों ने प्रयोग किया था आज भी गुजरात बंगाल में ब्रह्मण ठाकूर कहलाते हैं. राजपूत और ठाकुर में अंतर यहीं है कि राजपूत संघ जाती है . कुल मिलाकर लोग ठाकुर कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं ,
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राजस्थान के झालावाड़ जिले के सिंगपुर गाँव मे शिव हनुमान मंदिर बहुत अच्छी लोकेशन पर है और क्षेत्र के हनुमान भक्तों की आस्था का केंद्र है। मंदिर नया बना है और आधुनिक स्थापत्य इस्तेमाल किया गया है। रंग रोगन देखते ही बनता है । मांगु सिंग जी चौहान और नारायण सिंग जी सिसौदिया से सपर्क किया गया। उनकी सहमति से मंदिर मे स्थापित की जाने वाली दान पट्टिका भिजवाकर गेट की दीवार पर लगवा दी गई है। मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों मे दर्शनार्थियों के लिए बैठक सुविधा की दृष्टि से समाज सेवी डॉ. दयाराम जी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ. अनिल दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर को 4 सिमेन्ट बेंच समर्पित की गईं है। जय भोलेनाथ जय बजरंगबली !!
शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर मे बेंच लगने के बाद का विडिओ
नारायण सिंग जी सिसोदिया ने दान पट्टी फिट करने की जगह बताई
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मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
समाजसेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक
शामगढ़ का आध्यात्मिक दान-पथ
धार्मिक,आध्यात्मिक संस्थानों मे दर्शनार्थियों के लिए सिमेन्ट की बैंचों की व्यवस्था करना महान पुण्य का कार्य है। दान की भावना को साकार करते हुए डॉ. दयाराम जी आलोक मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मुक्ति धाम और मंदिरों के लिए नकद दान के साथ ही सैंकड़ों सीमेंट की बेंचें भेंट करने के अनुष्ठान को गतिमान रखे हुए हैं। मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
श्री शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर हेतु
4 सीमेंट बेंचें दान
दान पट्टी माँगूसिंग जी को भेजी गई
नारायण सिंग जी सिसोदिया सिंगपुर ने मंदिर का विडियो भेजा.
सामने वाले पिलर पर दान पट्टी लगने की जगह बताई गई
शिव हनुमान मंदिर के गेट की दीवार पर दान दाता की दान पट्टिका स्थापित की गई 24/6/2024
मंदिर के शुभचिंतक -
मांगू सिंग जी सिंगपुर ९५८७९-०७७७८
नारायण सिंग जी सिसोदिया ९५८७९-०८६०४
बालूसिंग जी सिंगपुर
मंदिर के पुजारी रोडूलाल जी शर्मा हैं।
डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल 98267-95656 शामगढ़ द्वारा शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर हेतु दान सम्पन्न 9/7/2024
आज हम आपको कुछ ऐसे ही श्लोक और मंत्रों के बारे में बताएंगे, जिनका उच्चारण आपको सुबह उठते ही करना चाहिए। ऐसा करने पर आपका केवल दिन ही अच्छा नहीं बीतता है बल्कि आपको सुख और समृद्धि की भी प्राप्ती होती है।
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
भगवान श्री गणेश जी का यह मंत्र काफी प्रभावशाली है। इससे आपके मन में जो भय होता है वह दूर होता है और पूरे दिन आप सही दिशा में काम कर पाते हैं। इतना ही नहीं इस मंत्र का अर्थ है, 'श्री गणेश, जो बुरा कर रहे हैं उनका विनाश करें, आप सौ सूर्य के समान हैं, विघ्नहरता हैं। आज मेरे कार्यों में जो भी बाधा बनने की कोशिश करे या फिर बाधा डाले, उसका सर्वनाश कर दीजिए।'अर्थात आप इस मंत्र का यदि नियमित उच्चारण करती हैं, तो आपके काम में आने वाली बाधा दूर हो जाती हैं।
पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः ।
पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यश्लोको जनार्दनः ।।
इस श्लोक का भार्वाथ है कि 'पुण्यवान नल, युधिष्ठिर, विदेह तथा भगवान जनार्दनका मैं स्मरण करता हूं।' इन सभी का स्मरण सुबह- सुबह करने से आपका पूरा दिन अच्छा बीत जाता है और आप सही मार्ग पर चलते हैं, जिससे न आपसे कुछ गलत होता है न आपके साथ कोई कुछ गलत करता है। यह श्लोक पूरे दिन आपको आत्मविश्वास और आत्मबल देता है।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्..।।
आप अगर ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं तो आपको सुबह सूर्योदय होने पर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। आपको सूर्य की ओर मुंह करके, आंखे बंद करके और हाथों को जोड़ कर यह प्रर्थना करनी है कि आपके अग्रभाग में लक्ष्मी को मध्य भाग में सरस्वती का और मूल भाग में विष्णु जी का निवास हो।
यह बहुत ही शक्तिशाली मंत्र होता है और इसके नियमित उच्चारण से भाग्य का उदय होना तय होता है। इतना ही नहीं, आप एक मंत्र के माध्यम से सुख, समृरिद्ध और विद्या तीनों का वरदान मांग रहे होते हैं, जबकि इनमें से एक भी आपको प्राप्त हो जाए तो आपको सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
‘गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जल स्मिन्सन्निधिं कुरु..’।।
इस मंत्र को भी सुबह नींद से जागते ही आपको जपना चाहिए । आप यदि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करती हैं, तो आपको इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। इसका अर्थ होता है कि 'हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु कावेरी मैं जिस जल से स्नान कर रही हूं, उस जल में पधारिये।' यह सभी दिव्य नदियां हैं और यदि इनके जल से आप नहाती हैं, तो आपका केवल शरीर ही नहीं बल्कि मन भी पवित्र हो जाएगा और आप पूरे दिन सारे काम अच्छे से कर पाएंगी।
ओम नमः शिवाय'
भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले शिवजी ने अपने पांच मुखों से यह मंत्र ब्रह्माजी को प्रदान किया था। वेदों और पुराणों के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सिर्फ “ॐ नमः शिवाय” का जप ही काफी है।
ॐ गं ऋणहर्तायै नमः
अथवा
ओम छिन्दी छिन्दी वरैण्यम् स्वाहा।
यह मंत्र कर्ज मुक्ति का मंत्र है। अगर आपने किसी से कर्ज लिया हुआ है और अब आप उसे चुका नहीं पा रहे हैं और इस वजह से आपको नियमित अपमान सहना पड़ता है, तो आपको इस मंत्र का उच्चारण रोज करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है और आपने जो भी कर्ज लिया होता है वह खत्म हो जाता है।
खाईखेड़ा मंदसौर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जो शामगढ़ नगर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। यहाँ का कालेश्वर भगवान का मंदिर विशेष रूप से जहरीले जंतुओं के काटने से पीड़ित लोगों के लिए जीवन रक्षा के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में यात्रियों के विश्राम के लिए बेंचों की कमी को देखते हुए, डॉ. दयाराम जी आलोक ने अपने आध्यात्मिक दान पथ के तहत चयनित मंदिरों में सिमेन्ट की बेंचें दान करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पुत्र डॉ. अनिल कुमार राठौर के माध्यम से मंदिर को 4 सिमेन्ट की बेंचें दान कीं। मंदिर समिति और सरपंच श्री शामसिंग जी पड़िहार ने दान दाता का सम्मान करते हुए आभार व्यक्त किया और इस दान को मंदिर के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान बताया। यह दान न केवल मंदिर की सुविधा में सुधार करेगा, बल्कि यात्रियों को भी आराम करने के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित स्थान प्रदान करेगा.
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के
मन्दिरों, मुक्ति धाम, गौशालाओं,विध्यालयों हेतु
साहित्य मनीषी,
डॉ.दयाराम आलोकजी का
आद्यात्मिक दान -पथ परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से साहित्य मनीषी डॉ.दयाराम आलोकजी राजस्थान और मध्यप्रदेश के आगर,मंदसौर,नीमच ,झालावाड़ ,कोटा और झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्ति धाम में निर्माण व विकास हेतु नकद और आगंतुकों के बैठने हेतु सीमेंट की बेंचें दान देने का अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं. आलोकजी एक सेवानिवृत्त अध्यापक हैं और वे अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने के संकल्प के साथ आध्यात्मिक दान-पथ पर अग्रसर हैं . इसमे वो राशि भी शामिल है जो आपको google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| आपकी ६ वेबसाईट पर google विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% आपको मिलता है| समायोजित दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं
श्री कालेश्वर मंदिर खाई खेडा हेतु
4 सीमेंट बेंचें दान
कालेश्वर मंदिर खईखेड़ा का विडियो
कालेश्वर मंदिर खाई खेडा के प्रमुख व्यवस्थापक
शामसिंग जी पडिहार सरपंच खाईखेडा
चरण सिंग जी खाई खेडा
डॉ.अनिल कुमार दामोदरs/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़98267-95656 द्वारा कालेश्वर मंदिर खईखेडा हेतुदान सम्पन्न १०/२/२०२४