गोस्वामी समाज केवल एक जाति नही बल्कि एक सम्प्रदाय है एक ऐसा पंथ जो सदैव से ही भगवान महादेव की आराधना को अपना प्रथम कर्तव्य मानते हुए सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करता है।
अनादिकाल से शैव ब्रह्मणों का ये सम्प्रदाय पठन पाठन, योग व अनेकों प्रकार के शोध के कार्य मे व्यस्त रहता था। कुछ जानकारों के अनुसार इस पंथ का उदय आदिगुरू शंकराचार्य जी के समय हुआ था। जबकि अगर गहनता से अध्यन करें तो पता चलता है ये पंथ अनादिकाल से भगवान महादेव की सेवा मे गणों के रूप मे विधमान है।
धर्मरक्षक सन्यासियों का ये सम्प्रदाय दो भाग मे विभाजित हो गया.गृहस्थी और सन्यासी जो साधु गृहस्थ जीवन मे आ गए वह गृहस्थ जीवन मे भी अपनी परम्परा अपने उपनामों से जुड़े रहे।
ऐसा नही है की सभी गोस्वामी शैव है वैष्णव सम्प्रदाय मे भी गोस्वामी होते है
आज हम केवल शैव ब्रह्मणों व दशनामी गोस्वामी पर चर्चा कर रहे है जिनको प्रमुख दश नामों से जाना जाता है वे हैं - गिरी,
जो ब्राह्मण भगवान आदि शंकराचार्य जी के द्वारा सन्यास लेकर परंपरा मे आए उनसे गुरु शिष्य सन्यास परंपरा चली जिसे नाद परंपरा कहा गया तथा जो ब्राह्मण ग्रहस्थ रहते हुए मत का प्रचार कर रहे थे उनसे गोस्वामी ब्राह्मण या दशनामी ब्राह्मण परंपरा चली इसे बिंदु परंपरा कहा गया, यही गृहस्थ ब्राह्मण गोस्वामी ब्राह्मण समाज के नाम से जानी जाती है।
गोस्वामी का मतलब गौ अर्थात पांचो इन्द्रयाँ का स्वामी अर्थात नियंत्रण रखने वाला। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचो इन्द्रयों को वश में रखने वाला होता हैं।
यह समाज सम्पूर्ण भारत समेत नेपाल पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में फैला है सर्वाधिक गोस्वामी ब्राह्मण समाज के लोग राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात,उत्तराखंड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश बिहार एवं नेपाल और बांग्लादेश में रहते है ।
इन साधुओं को भिन्न भिन्न उपाधियां दी जाती हैं। इसमें महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, एवं आचार्य आदि होते है। नागा साधु भी इस ही परम्परा मे आते है नागाओं को शंकराचार्य की सेना भी कहा जाता है नागा साधु को शस्त्र चलाने मे पारंगत हासिल है और वे वे दिगम्बर होते है।
इनके अलाबा गोस्वामी उपाधि अनेक ब्रह्मण भी धारण करते हैं जिनमे तैलंग ब्राह्मण और वैष्णव प्रमुख हैं।
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