गोस्वामी समाज केवल एक जाति नही बल्कि एक सम्प्रदाय है एक ऐसा पंथ जो सदैव से ही भगवान महादेव की आराधना को अपना प्रथम कर्तव्य मानते हुए सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करता है।
अनादिकाल से शैव ब्रह्मणों का ये सम्प्रदाय पठन पाठन, योग व अनेकों प्रकार के शोध के कार्य मे व्यस्त रहता था। कुछ जानकारों के अनुसार इस पंथ का उदय आदिगुरू शंकराचार्य जी के समय हुआ था। जबकि अगर गहनता से अध्यन करें तो पता चलता है ये पंथ अनादिकाल से भगवान महादेव की सेवा मे गणों के रूप मे विधमान है।
समय समय पर स्वंय भगवान महादेव ने इस पंथ की पद भ्रष्ट होने व अपने कर्तव्य से विमुखता को रोकने के लिए गुरु दत्तात्रेय, आदि गुरु शंकराचार्य के रूप मे अवतार लिया। व शैव ब्रह्मणों को धर्म रक्षा के लिए प्रेरित किया। धर्मरक्षक सन्यासियों का ये सम्प्रदाय दो भाग मे विभाजित हो गया. गृहस्ती और सन्यासी जो साधु गृहस्त जीवन मे आ गए वह गृहस्थ जीवन मे भी अपनी परम्परा अपने उपनामों से जुड़े रहे।
ऐसा नही है की सभी गोस्वामी शैव है वैष्णव सम्प्रदाय मे भी गोस्वामी होते है
आज हम केवल शैव ब्रह्मणों व दशनामी गोस्वामी पर चर्चा कर रहे है जिनको प्रमुख दश नामों से जाना जाता है जिनमें गिरी,पुरी,भारती,सरस्वती,सागर, अरण्य,तीर्थ,वन,आश्रम, व पर्वत हैं।
गोस्वामी समाज पंच देव उपासक एवं शिव को इष्ट मानने वाले ब्राह्मणों का समाज है आदि गुरु शंकराचार्य जी जो आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व यानी ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे उन्होंने बौद्ध धर्म मे धर्मांतरण कर रहे सनातनी लोगों को बचाने के लिए विद्वान ब्राह्मणों को साथ लेकर स्मार्त मत तथा अद्वैत वेदांत का प्रचार किया और बौद्ध मत को भारत से उखाड़ फेका और सनातन हिंदू धर्म का पुनरुद्धार किया।
जो ब्राह्मण भगवान आदि शंकराचार्य जी के द्वारा सन्यास लेकर परंपरा मे आए उनसे गुरु शिष्य सन्यास परंपरा चली जिसे नाद परंपरा कहा गया तथा जो ब्राह्मण ग्रहस्थ रहते हुए मत का प्रचार कर रहे थे उनसे गोस्वामी ब्राह्मण या दशनामी ब्राह्मण परंपरा चली इसे बिंदु परंपरा कहा गया, यही गृहस्थ ब्राह्मण गोस्वामी ब्राह्मण समाज के नाम से जानी जाती है।
इसमें कुल दश तरह के उपनाम होते है जिनमे गिरि, पुरी, भारती, पर्वत,सरस्वती,सागर, वन, अरण्य, आश्रम एवं तीर्थ शामिल है गोस्वामी शीर्षक का मतलब गौ अर्थात पांचो इन्द्रयाँ स्वामी अर्थात नियंत्रण रखने वाला। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचो इन्द्रयों को वस में रखने वाला होता हैं।
यह समाज सम्पूर्ण भारत समेत नेपाल पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में फैला है सर्वाधिक गोस्वामी ब्राह्मण समाज के लोग राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात,उत्तराखंड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश बिहार एवं नेपाल और बांग्लादेश में रहते है ।
इन सन्यासियों ने तपस्या के बल से अपनी पांचों इन्द्रियों को वश में कर लिया था इसलिए इन्हें गोस्वामी कहा गया। गो का एक अर्थ इन्द्रियां होता है और स्वामी का अर्थ उनको वश में करने वाला होता है। गोस्वामी अर्थातः पांचों इन्द्रियों को वश में रखने वाला।
इन साधुओं को भिन्न उपाधियां दी जाती हैं। इसमें महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, एवं आचार्य आदि होते है। नागा साधु भी इस ही परम्परा मे आते है नागाओं को शंकराचार्य की सेना भी कहा जाता है नागा साधु को शस्त्र चलाने मे पारंगत हासिल है वे दिगम्बर होते है। नागाओं को समझने के लिए पहले गोस्वामी संप्रदाय को समझना बहुत जरूरी है।ये शिव को इष्ट मानकर शिव के साथ अन्य चार देव यानी कुल पांच देवों के उपासक होते है। ये तीन काल संध्या एवं शिव का पूजन करते है अतः ये स्मार्त ब्राह्मण माने जाते है।यह लोग स्मार्त यानी पंच देव उपासक होते हैं । इनके मुख्य कार्य शिवकथा, भागवतकथा, देवीभागवत आदि होते हैं। भारत नेपाल बांग्लादेश मे सैकड़ों पौराणिक मंदिर समेत हजारों बड़े बड़े प्रसिद्ध मंदिरों के महंत पुजारी गोस्वामी ब्राह्मण हैं और सिर्फ भारत ही नहीं इस्लामिक देश पाकिस्तान के प्रसिद्ध एवं पौराणिक मंदिरों मे भी गोस्वामी ब्राह्मण ही महंत हैं जिनमे बलूचिस्तान का हिंगलाज शक्तिपीठ एवं सिंध के चार मंदिर शामिल हैं.
दशनामी गोस्वामी पंथ विज्ञान के आधार पर धर्म का प्रचार प्रसार करते है। शैव व वैष्णव सम्प्रदाय के महान संतों ने आयुर्वेद, योग, ज्योतिष आदि विषय पर शोध कर जनमानस को लाभांवित कराया। दशनामी पंथ मठों व आश्रमों की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के कार्य मे निपुण है। वर्तमान मे इनका प्रमुख कार्य शिव मंदिरों मे पूजा करना, धर्म उपदेश देना व धर्म का प्रचार प्रसार करना होता है
दशनामी सम्प्रदाय मे कुल 52 गोत्रों होते है। जिन्हे मढ़ी भी कहा जाता है गिरियों की कुल 27 मढ़ी, पुरियों की कुल 16, भारतीयों की कुल 4 मढ़ी, वनों की कुल 4 मढ़ी, व लामा गुरु की 1 मढ़ी है।
गिरि :1.ऋद्धिनाथी, 2.संजानाथी,
3.दुर्गानाथी, 4.ब्रह्मांडनाथी, 5.बैकुंठनाथी, 6.ब्रह्मनाथी, 7. रामदत्ती, 8. श्रृयभृंगनाथी, 9.ज्ञाननाथी,10.माननाथी,11. बलभद्रनाथी,
12. अपारनाथी, 13. पाटम्बरनाथी, 14.सागरबोदला, 15. ओंकारी, 16.सिंह श्याम यति, 17.चंदननाथी, 18.नागेंद्रनाथी, 19.सहजनाथी, 20.मोहननाथी,21.बालेंद्रनाथी, 22. रुद्रनाथी, 23.कुमुस्थनाथी, 24.परमानंदी, 25.सागरनाथी, 26.बाघनाथी, 27. रतननाथी,
वन: 1.श्याम सुंदर वन, 2. गंगा वन व बलभद्र वन, 3 गोपाल वन व शंखधारी वन, 4. भगवंत वन व रामचंद्र वन,
लामा: 1 वेदगिरि लामा मढ़ी।
पुरी:1.केवल पुरी, 2.अचिंत्य पुरी, 3.मथुरा पुरी, 4.माधव पुरी, 5.हृषिकेश पुरी, 6.जगदेव पुरी, 7.रामचंद्र पुरी, 8.व्यंकट पुरी,
9.श्याम सुंदर पुरी,10.जड़भरत पुरी, 11.गंगा दर्याव पुरी,12.सिंह दर्याव पुरी,13. भगवान पुरी,14.भगवंत पुरी,15. सहज पुरी,16.मेघनाथ पुरी।
भारती:1.नृसिंह भारती, 2.मनमुकुंद भारती, 3.विश्वम्भर भारती, 4.मनमहेश भारती।
इस सम्प्रदाय के लोग एक दूसरे का सम्बोधन "ओम नमो नारायण" व "हर हर महादेव" से करते है।सनातन धर्म में इनकी "गुरुजी" महराज जी के रूप में प्रसिद्धि हैं। वेद पुराण में इनको गोSशर्यु, वैदिक ब्राह्मण, तपोधन ब्राह्मण, शिरोजन्मा ब्राह्मण, शिरज ब्राह्मण आदि नाम से जाना जाता है।
इनके अलाबा गोस्वामी उपाधि अनेक ब्रह्मण भी धारण करते हैं जिनमे तैलंग ब्राह्मण और वैष्णव प्रमुख हैं।