9.12.19

पारसी समाज का धर्म व इतिहास:Parasi samaj ka itihas

Dr.Dayaram Aalok Shamgarh donates sement benches to Hindu temples and Mukti Dham 




आधुनिक अफगानिस्तान के उत्तरी भाग में जन्मे पैगंबर जरथुष्ट्र द्वारा स्थापित पहला एकेश्वरवाद मत, पारसी धर्म कहलाया। जरथुष्ट्र का काल 1700-1500 ईपू के बीच के बीच माना जाता है। जरथुष्ट्र को राजा सुदास तथा ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना जाता है। एक ज़माने में पारसी धर्म ईरान का राजधर्म हुआ करता था। अखेमनी साम्राज्य के समय पारसी मध्य एशिया का प्रमुख धर्म था। 7वीं सदी मे इस्लाम के उदय के बाद अरब आक्रमणकारियों से बचकर समुद्र के रास्ते भागे पारसियों ने गुजरात में संजान के निकट शरण ली। बाद में वे लोग उदवाडा और नवसारी में बस गए। अपने खुले विचारों के कारण पारसी लोग काफी पहले शिक्षित हुए और ज्यादातर मुम्बई में बस गए। भारत में सबसे अधिक पारसी मुम्बई मे ही हैंं।
जेंद अवेस्ता पारसियों का सर्व प्रमुख ग्रंथ है जिसकी भाषा ऋग्वेद के समान है। ‘जेंद अवेस्ता' में भी वेद के समान गाथा (गाथ) और मंत्र (मन्थ्र) हैं। कई मायने में पारसी धर्म सनातन या वैदिक हिन्दू धर्म के समान है हलांकि, आप केवल जन्म से ही पारसी हो सकते हैं। प्राचीन युग के पारसियों और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना और कर्मकांड में कोई ज्यादा भेद नजर नहीं आता।  वे अग्नि, सूर्य, वायु आदि प्रकृति तत्वों की उपासना और अग्निहोत्र कर्म करते थे। आज भी वे पंचभूतों का आदर करते हैं किंतु अग्नि को सबसे पवित्र माना जाता है। पारसी धर्म की शिक्षा हैः हुमत, हुख्त, हुवर्श्त जो संस्कृत में सुमत (अच्छा विचार), सूक्त (अच्छा वचन), सुवर्तन (अच्छा व्यवहार) कहलाता है। यह शिक्षा ज्यादातर पारसियों के जीवन में दिखाई देता है।
 भारत में आधी आबादी के साथ दुनिया में पारसियों की संख्या डेढ़ लाख के आसपास है। देर से विवाह या सिंगल रहने की प्रवृत्ति के कारण पारसियों की संख्या तेजी से घटी है। भारत सरकार द्वारा समर्थित ‘जियो पारसी’ योजना से इनकी संख्या में वृद्धि होने की आशा है। कम संख्या के बाद भी पारसियों ने सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थित दर्ज कर देश को गौरवान्वित करने में अपनी भूमिका निभाई है। टाटा, गोदरेज, वाडिया उद्योग समूह, दादाभाई नौरोजी, मैडम भीखाजी कामा, सोली सोराबजी आदि कुछ नाम इस छोटे से समूह के योगदान को गिनाने के लिए काफी है।
पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, इसकी उत्पत्ति का पता द्वितीय सहस्राब्दी ईसा पूर्व से लगाया जा सकता है। जोरास्ट्रियनवाद के अस्तित्व की पुष्टि करने वाले शुरुआती रिकॉर्ड 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं।
पारसी धर्म की शुरुवात फारस (persia - Modern day Iran) में हुई थी।
हिंदू धर्म की तरह पारसी धर्म में भी ‘अग्नि’ को पवित्र माना जाता है।
पारसी धर्म एक एकेश्वरवादी (monotheist) आस्था है (अर्थात एक ईश्वर को मानना)।
‘अहोरा माज़दा’ पारसी धर्म में पूजा की एकलौते और सर्वोच्च भावना है। वह पारसी धर्म का निर्माता और एकमात्र देवता है।
आग पारसी धर्म का एक प्राथमिक प्रतीक है।
पारसी धर्म में अग्नि मंदिर, पारसियों के लिए पूजा का स्थान है, जिसे अक्सर ‘दार-ए मेहर’ (फारसी में) या ‘अगियारी ‘(गुजराती में) कहा जाता है। पारसी धर्म में, अग्नि (अतर), स्वच्छ जल (अवन) के साथ मिलकर, अनुष्ठान शुद्धता के कारक हैं।
कार्यात्मक रूप से, अग्नि मंदिरों को उनके भीतर अग्नि की सेवा के लिए बनाया जाता है, और अग्नि मंदिरों को उनके भीतर अग्नि आवास के ग्रेड के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है।
आग के तीन ग्रेड हैं,
1. अताश ददगाह (Atash Dadgah)
2. अताश अदरान (Atash Adaran)
3.अताश बेहराम (Atash Behram)
दुनिया में अधिकांश जोरोस्ट्रियन भारत में रहते हैं (आमतौर पर उन्हें 'पारसी’ के रूप में जाना जाता है)।
हालाँकि पारसी (आधुनिक दिन ईरान) में जोरास्ट्रियनवाद की उत्पत्ति हुई थी, लेकिन दुनिया में सबसे बड़ी आबादी जोरास्ट्रियन की भारत में है।
 636-651 BCE में फारस (persia) पर अरब के हमले के दौरान, पारसी समुदाय के लोग पारस से भारतीय उपमहाद्वीप में चले गए इस दौरान कई ईरानी (जिन्हें अब पारसी कहा जाता है) ने अपनी धार्मिक पहचान को संरक्षित करने के लिए फारस से भारत की ओर पलायन करने का विकल्प चुना।
पारसी हिदुओ की तरह 'दाह संस्कार' में नहीं मानते और नाही ईसाईयो की तरह 'दफ़न' में।
, एक ऐसी जगह है जहाँ मृतक के शवों को रखा जाता है और मेहतर पक्षियों (जैसे गिद्ध) को उजागर किया जाता है, जो उनकी मान्यताओं के अनुसार मृतकों से निपटने का सबसे पवित्र तरीका है।
पारसी परंपरा में एक मृत शरीर को अशुद्ध मानती है, अर्थात संभावित प्रदूषक। पृथ्वी या आग के प्रदूषण को रोकने के लिए, मृतकों के शवों को एक टॉवर के ऊपर रखा जाता है और उन्हें सूरज के संपर्क में लाया जाता है ताकि सूरज की गर्मी और गिद्धो की वजह से शव को नष्ट किया जाता है! आज भारत और पूरी दुनिया में पारसी लोगो ने 'दाह संस्कार' करना या दफ़न करना शुरू कर दिया है।
पारसी धर्म एक अति प्राचीन धर्म है।इसकी शुरुआत वैदिक काल में ही प्रारंभ हुई थी।
पारसी धर्म के प्रणेता ज़रस्तु नाम के ईश्वर दूत थे, जिन्होंने अहूर माज़दा को मुख्य देवता माना था।
यह धर्म तत्कालीन फारस की खाड़ी याने वर्तमान ईरान के आसपास के क्षेत्र में प्रचलित था।
पारसी धर्म में अग्नि एवं यज्ञ ही प्रमुख रूप से पूजनीय होते हैं। यहां पर ईश्वर अवश्य ही अजन्मा एवं सर्वव्यापी माना गया है।
काल के प्रवाह में पारसी धर्म स्वंय के अस्तित्व के लिए आज भी संघर्ष ही कर रहा है।
इस्लाम के उदय के साथ पारसी धर्म एवं पारसी शासकों का पतन एवं पलायन शुरू हुआ जो आज भी जारी है।पारसियों ने हिंदुस्तान के विकास में काफी योगदान दिया है। टाटा वाडिया गोदरेज प्रमुख औद्योगिक घराने है।
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