22.10.17

हिन्दी व्याकरण:तत्सम और तद्भव शब्द





तत्सम - तत्सम (तत् + सम = उसके समान) 

आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त ऐसे शब्द जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है!हिन्दी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगू कन्नड, मलयालम,सिंहल आदि में बहुत से शब्द संस्कृत से सीधे ले लिए गये हैं क्योंकि ये सभी भाषाएँ संस्कृत से ही जन्मी हैं। तत्सम शब्दों में समय और परिस्थितियों के कारण कुछ परिवर्तन होने से जो शब्द बने हैं उन्हें तद्भव (तत् + भव = उससे उत्पन्न) कहते हैं।
 भारतीय भाषाओं में तत्सम और तद्भव शब्दों का बाहुल्य है। इसके अलावा इन भाषाओं के कुछ शब्द 'देशज' और अन्य कुछ 'विदेशी' हैं। तद्भव - संस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी आदि से गुजरने के कारण आज परिवर्तित रूप में मिलते हैं, वे तद्भव शब्द कहलाते हैं। तद्भव हिन्दी की एक पत्रिका है। यह पत्रिका हर बार आधुनिक रचनाशीलता पर केन्द्रित एक विशिष्ट संचयन होती है तथा विशुद्ध साहित्यिक सामग्रियों को प्रकाशन में महत्व देती है। ये हिन्दी में प्रयुक्त वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है।
 आभीर -- अहेर धन्नश्रेष्ठी -- धन्नासेठी धैर्य -- धीरज धूम -- धुँआ दंत -- दाँत दद्रु -- दाद दिषांतर -- दिषावर धर्म -- धरम नृत्य -- नाच निर्वाह -- निवाह निम्ब -- नीम नकुल -- नेवला नयन -- नैन नव -- नौ स्नेह -- नेह पक्ष -- पख पथ -- पंथ 
    परीक्षा -- परख पार्ष्व -- पड़ोसी पृष्ठ -- पीठ पुष्कर -- पोखर पूर्ण -- पूरा पंचम -- पाँच पौष -- पूस पूर्व -- पूरब पंचदष -- पंद्रह पक्षी -- पंछी पक्क -- पका पट्टिका -- पाटी प्रकट -- प्रगट वाणिक -- बनिया दौहित्र -- दोहिता देव -- दई पवन -- पौन प्रिय -- पिय पुच्छ -- पूंछ पर्पट -- पापड़ वक -- बगुला बंध्या -- बाँझ वधू -- बहू वंष -- बाँस वद्ध -- बुड्ढ़ा भगिनी -- बहन द्वादष -- बारह विष्ठा -- बींट 
   वृष्चिक -- बिच्छु दीप -- दीया द्विवर -- देवर
    वीण -- वीना रक्षा -- राखी रज्जु -- रस्सी राषि -- रास रिक्त -- रीता लज्जा -- लाज लौहकार -- लुहार लवणता -- लुनाई लेपन -- लीपना सर्सप -- सरसों श्रावण -- सावन लक्ष्मण -- लखन शर्करा -- शक्कर सपत्नी -- सौत स्वर्णकार -- सुनार शूकर -- सुअर शाप -- श्राप
    विकार -- विगाड़ भक्त -- भगत भद्र -- भला भ्रात्जा -- भतीजी भिक्षा -- भीख भ्रमर -- भौरां भ्रू -- भौं भस्म -- भस्मि मित्र -- मीत मेध -- मेह मृत्यु -- मौत मयूर -- मोर मुषल -- मूसल नम्र -- नरम नासिका -- नाक फणि -- फण पद्म -- पदम परखः -- परसों पाष -- फंदा पुहुप -- पुष्प प्रस्वेद -- पसीना 
   मनुष्य -- मानुस महिषि -- भैस मार्ग -- मारग मृत -- घट्ट/मरघट मरीच -- मिर्च रूदन -- रोना ऋक्ष -- रीछ शैया -- सेज शुष्क -- सूखा शृंग -- सींग शिक्षा -- सीख हस्ती -- हाथी हट्ट -- हाट होलिका -- होली हृदय -- हिय हंडी -- हाँड़ी वचन -- बचन व्यथा -- विथा शुक -- सुआ वर्षा -- बरसात विधुत -- बिजली श्याली -- साली श्मषान -- मसान सर्प -- साँप यषोदा -- जसोदा मस्तक -- माथा मुख -- मुँह आर्य -- आरज अनार्य -- अनाड़ी आश्विन -- आसोज आश्चर्य -- अचरज अक्षर -- अच्छर अगम्य -- अगम अक्षत -- अच्छत

    
अक्षय -- आखा अष्टादश -- अठारह अग्नि -- आग आम्रचूर्ण -- अमचूर आमलक -- आँवला अमूल्य -- अमोल अंगुलि -- अँगुरी अक्षि -- आँख अर्क -- आक अट्टालिका -- अटारी अशीति -- अस्सी ईर्ष्या -- ईर्षा उज्ज्वल -- उजला उद्वर्तन -- उबटन 
    उत्साह -- उछाह ऊषर -- ऊसर उलूखल -- ओखली उच्छवास -- उसास किरण -- किरन कटु -- कड़वा कपर्दिका -- कौड़ी कर्तव्य -- करतब कंकण -- कंगन कुपुत्र -- कपूत काष्ठ -- काठ कृष्ण -- किसन कार्तिक -- कातिक कार्य -- कारज कर्म -- काम किंचित -- कुछ कदली -- केला कुक्षि -- कोख केवर्त -- केवट क्षीर -- खीर 
   क्षेत्र -- खेत गायक -- गवैया गर्दभ -- गधा ग्रंथि -- गाँठ गोधूम -- गेहूँ ग्रामीण -- गँवार गोमय -- गोबर गृहिणी -- घरनी धृत -- घी चंद्र -- चाँद चंडिका -- चाँदनी चित्रकार -- चितेरा चतुष्पद -- चौपाया चैत्र -- चैत छिद्र -- छेद यमुना -- जमुना यज्ञोपवीत -- जनेऊ ज्येष्ठ -- जेठ जामाता -- जवाई जिह्वा -- जीभ ज्योति -- जोत यव -- जौ दंष्ट्रा -- दाढ़ तपस्वी -- तपसी त्रीणि -- तीन तुंद -- तोंद स्तन -- धन दधि -- दही दंत धावन -- दातुन 
दीपशलाका -- दीया सलाई
    दीपावली -- दीवाली दृष्टि -- दीठि दूर्वा -- दूब दुग्ध -- दूध द्विप्रहरी -- दुपहरी धरित्री -- धरती धूम -- धुंआ नक्षत्र -- नखत नापित -- नाई निष्ठुर -- निठुर निद्रा -- नींद नयन -- नैन पर्यंक -- पलंग प्रहर -- पहर पंक्ति -- पंगत पक्वान्न -- पकवान पाषाण -- पाहन प्रतिच्छाया -- परछाई पत्र -- पत्ता फाल्गुन -- फागुन वज्रांग -- बजरंग वल्स -- बच्चा/बछड़ा वरयात्रा -- बरात बलीवर्द -- वैल बली वर्द -- वींट विवाह -- ब्याह व्याघ्र -- बाघ भक्त -- भगत 
    भिक्षुक -- भिखारी बुभुक्षित -- भूखा भाद्रपद -- भादौं मक्षिका -- मक्खी मशक -- मच्छर मिष्टान्न -- मिठाई मौक्तिक -- मोती मर्कटी -- मकड़ी मश्रु -- मूँछ राजपुत्र -- राजपूत लौह -- लोहा लवंग -- लौंग लोमशा -- लोमड़ी सप्तशती -- सतसई स्वप्न -- सपना साक्षी -- साखी सौभाग्य -- सुहाग श्वसुर -- ससुर श्यामल -- साँवला श्रेष्ठी -- सेठी शृंगार -- सिंगार हरिद्रा -- हल्दी हास्य -- हँसी
    एला -- इलायची नारिकेल -- नारियल वट -- बड़ अमृत -- अमिय वधू -- बहू अगाणित -- अनगणित अंचल -- आँचल अँगरखा -- अंगरक्षक अज्ञान -- अजान अन्यत्र -- अनत अंधकार -- अँधेरा आषिष् -- असीस अमृत -- अमीय अमावस्या -- अमावस अर्पण -- अरपन अंगुष्ट -- अँगूठा आश्रय -- आसरा अद्य -- आज अर्द्ध -- आधा आलस्य -- आलस अखिल -- आखा अंक -- आँक अम्लिका -- इमली आदित्यवार -- इतवार इक्षु -- ईख इष्टिका -- ईंट उत्साह -- उछाह उच्च -- ऊँचा 
   उलूक -- उल्लू एकत्र -- इकट्ठा कच्छप -- कछुआ क्लेष -- कलेष कर्ण -- कान कज्जल -- काजल कंटक -- काँटा कुमार -- कुँअर कुक्कुर -- कुत्ता कुंभकार -- कुम्हार कष्ठ -- कोढ़ कपाट -- किवाड़ कोष्ठ -- कोठा कूप -- कुआँ कर्पट -- कपड़ा कर्पूर -- कपूर 
  कपोत -- कबूतर कास -- खाँसी क्रूर -- कूर गोस्वामी -- गुसाई गोंदुक -- गेंद ग्राम -- गाँव गोपालक -- ग्वाला गृह -- घर घटिका -- घड़ी गर्मी -- घाम चर्वण -- चबाना चिक्कण -- चिकना चूर्ण -- चूरन चक -- चाक चतुर्विंष -- चौबीस क्षति -- छति छाया -- छाँह क्षीण -- छीन क्षत्रिय -- खत्री खटवा -- खाट यज्ञ -- जग/जज्ञ जन्म -- जनम यति -- जति यूथ -- जत्था जंधा -- जाँध 
   युक्ति -- जुगति ज्योति -- जोत झरन -- झरना जीर्ण -- झीना दंष -- डंका ताम्र -- ताँबा तीक्ष्ण -- तीखा तृण -- तिनका तीर्थ -- तीरथ त्वरित -- तुरंत त्रयोदष -- तेरह स्थल -- थल स्थिर -- थिर द्विपट -- दुपट्टा दुर्बल -- दुबला दुःख -- दुख द्वितीय -- इजा दक्षिण -- दाहिना धूलि -- धूरि धुर् -- धुर


हिंदी पर्यायवाची शब्द, या समानार्थक शब्द

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हिंदी पर्यायवाची शब्द

अग्नि - आग, अनल, पावक, दहन, वह्नि, कृशानु।
अपमान - अनादर, अवज्ञा, अवहेलना, अवमान, तिरस्कार।
अलंकार - आभूषण, भूषण, विभूषण, गहना, जेवर।
अहंकार- दंभ, गर्व, अभिमान, दर्प, मद, घमंड, मान।
अमृत- सुधा, अमिय, पीयूष, सोम, मधु, अमी।
असुर- दैत्य, दानव, राक्षस, निशाचर, रजनीचर, दनुज, रात्रिचर,
तमचर।
अतिथि- मेहमान, अभ्यागत, आगन्तुक, पाहूना।
अनुपम- अपूर्व, अतुल, अनोखा, अदभुत, अनन्य।
अर्थ- धन्, द्रव्य, मुद्रा, दौलत, वित्त, पैसा।
अश्व- हय, तुरंग, घोड़ा, घोटक, हरि, बाजि, सैन्धव।
अंधकार- तम, तिमिर, तमिस्र, अँधेरा, तमस, अंधियारा।

आम- रसाल, आम्र, सौरभ, मादक, अमृतफल, सहुकार।
आग- अग्नि, अनल, हुतासन, पावक, दहन, ज्वलन, धूमकेतु, कृशानु,
वहनि, शिखी, वह्नि।
आँख- लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि।
आकाश- नभ, गगन, अम्बर, व्योम, अनन्त, आसमान, अंतरिक्ष, शून्य, अर्श।
आनंद- हर्ष, सुख, आमोद, मोद, प्रमोद, उल्लास।
आश्रम- कुटी, विहार, मठ, संघ, अखाडा।
आंसू- नेत्रजल, नयनजल, चक्षुजल, अश्रु।
आत्मा- जीव, देव, चैतन्य, चेतनतत्तव, अंतःकरण।

इच्छा- अभिलाषा, अभिप्राय, चाह, कामना, लालसा, मनोरथ,
आकांक्षा, अभीष्ट।
इन्द्र- सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, सुरपति, शक्र, पुरंदर, देवराज, महेन्द्र,
मधवा, शचीपति, मेघवाहन, पुरुहूत, यासव।
इन्द्राणि - इन्द्रवधू, मधवानी, शची, शतावरी, पोलोमी।

ईश्वर- परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर,
विधाता।

उपवन - बाग़, बगीचा, उद्यान, वाटिका, गुलशन।
उक्ति - कथन, वचन, सूक्ति।
उग्र - प्रचण्ड, उत्कट, तेज, महादेव, तीव्र, विकट।
उचित - ठीक, मुनासिब, वाज़िब, समुचित, युक्तिसंगत, न्यायसंगत, तर्कसंगत, योग्य।
उच्छृंखल - उद्दंड, अक्खड़, आवारा, अंडबंड, निरकुंश, मनमर्जी, स्वेच्छाचारी।
उजड्ड - अशिष्ट, असभ्य, गँवार, जंगली, देहाती, उद्दंड, निरकुंश।

उजला - उज्ज्वल, श्वेत, सफ़ेद, धवल।
उजाड - जंगल, बियावान, वन।
उजाला - प्रकाश, रोशनी, चाँदनी।
उत्कर्ष- समृद्धि, उन्नति, प्रगति, प्रशंसा, बढ़ती, उठान।
उत्कृष्ट - उत्तम, उन्नत, श्रेष्ठ, अच्छा, बढ़िया, उम्दा।
उत्कोच - घूस, रिश्वत।
उत्पति - उद्गम, पैदाइश, जन्म, उद्भव, सृष्टि, आविर्भाव, उदय।
उद्धार - मुक्ति, छुटकारा, निस्तार, रिहाई।
उपाय - युक्ति, साधन, तरकीब, तदबीर, यत्न, प्रयत्न।

ऊधम - उपद्रव, उत्पात, धूम, हुल्लड़, हुड़दंग, धमाचौकड़ी।

ऐक्य - एकत्व, एका, एकता, मेल।
ऐश्वर्य - समृद्धि, विभूति।

ओज - तेज, शक्ति, बल, वीर्य।
ओंठ- ओष्ठ, अधर, होठ।

औचक - अचानक, यकायक, सहसा।
औरत - स्त्री, जोरू, घरनी, घरवाली।

ऋषि - मुनि, साघु, यति, संन्यासी, तत्वज्ञ, तपस्वी।

कच - बाल, केश, कुन्तल, चिकुर, अलक, रोम, शिरोरूह।
कमल- नलिन, अरविन्द, उत्पल, राजीव, पद्म, पंकज, नीरज, सरोज,
जलज, जलजात, शतदल, पुण्डरीक, इन्दीवर।
कबूतर - कपोत, रक्तलोचन, पारावत, कलरव, हारिल।
कामदेव - मदन, मनोज, अनंग, काम, रतिपति, पुष्पधन्वा, मन्मथ।
कण्ठ - ग्रीवा, गर्दन, गला, शिरोधरा।
कृपा- प्रसाद, करुणा, दया, अनुग्रह।
किताब- पोथी, ग्रन्थ, पुस्तक।
किनारा - तीर, कूल, कगार, तट।
कपड़ा- चीर, वसन, पट, अंशु, कर, मयुख, वस्त्र, अम्बर, परिधान।
किरण- ज्योति, प्रभा, रश्मि, दीप्ति, मरीचि।
किसान- कृषक, भूमिपुत्र, हलधर, खेतिहर, अन्नदाता।
कृष्ण- राधापति, घनश्याम, वासुदेव, माधव, मोहन, केशव, गोविन्द,
गिरधारी।
कान- कर्ण, श्रुति, श्रुतिपटल, श्रवण, श्रोत, श्रुतिपुट।
कोयल- कोकिला, पिक, काकपाली, बसंतदूत, सारिका,
कुहुकिनी, वनप्रिया।
क्रोध- रोष, कोप, अमर्ष, कोह, प्रतिघात।कीर्ति - यश,
प्रसिद्धि।

खग - पक्षी, द्विज, विहग, नभचर, अण्डज, शकुनि, पखेरू।
खंभा स्तूप, स्तम्भ, खंभ।
खल - दुर्जन, दुष्ट, घूर्त, कुटिल।
खून - रक्त, लहू, शोणित, रुधिर।

गज- हाथी, हस्ती, मतंग, कूम्भा, मदकल ।
गाय- गौ, धेनु, सुरभि, भद्रा, रोहिणी।
गंगा- देवनदी, मंदाकिनी, भगीरथी, विश्नुपगा, देवपगा, ध्रुवनंदा,
सुरसरिता, देवनदी, जाह्नवी, त्रिपथगा।
गणेश- विनायक, गजानन, गौरीनंदन, गणपति, गणनायक, शंकरसुवन,
लम्बोदर, महाकाय, एकदन्त।
गृह- घर, सदन, गेह, भवन, धाम, निकेतन, निवास, आलय, आवास,
निलय, मंदिर।
गर्मी- ताप, ग्रीष्म, ऊष्मा, गरमी, निदाघ।
गुरु - शिक्षक, आचार्य, उपाध्याय।

घट - घड़ा, कलश, कुम्भ, निप।
घर - आलय, आवास, गेह, गृह, निकेतन, निलय, निवास, भवन, वास,
वास-स्थान, शाला, सदन।
घृत - घी, अमृत, नवनीत।
घास - तृण, दूर्वा, दूब, कुश, शाद।

चरण- पद, पग, पाँव, पैर, पाद।चतुर - विज्ञ, निपुण, नागर, पटु, कुशल,
दक्ष, प्रवीण, योग्य।
चंद्रमा- चाँद, हिमांशु, इंदु, विधु, तारापति, चन्द्र, शशि, हिमकर,
राकेश, रजनीश, निशानाथ, सोम, मयंक, सारंग, सुधाकर,
कलानिधि।
चाँदनी - चन्द्रिका, कौमुदी, ज्योत्स्ना, चन्द्रमरीचि,
उजियारी, चन्द्रप्रभा, जुन्हाई।
चाँदी - रजत, सौध, रूपा, रूपक, रौप्य, चन्द्रहास।
चोटी - मूर्धा, शीश, सानु, शृंग।

छतरी - छत्र, छाता, छत्ता।
छली - छलिया, कपटी, धोखेबाज।
छवि - शोभा, सौंदर्य, कान्ति, प्रभा।
छानबीन - जाँच, पूछताछ, खोज, अन्वेषण, शोध, गवेषण।
छैला - सजीला, बाँका, शौकीन।
छोर - नोक, कोर, किनारा, सिरा।


जल- अमृत, सलिल, वारि, नीर, तोय, अम्बु, उदक, पानी, जीवन, पय,
पेय।
जगत - संसार, विश्व, जग, जगती, भव, दुनिया, लोक, भुवन।
जीभ - रसना, रसज्ञा, जिह्वा, रसिका, वाणी, वाचा, जबान।
जंगल- विपिन, कानन, वन, अरण्य, गहन, कांतार, बीहड़, विटप।
जेवर - गहना, अलंकार, भूषण, आभरण, मंडल।
ज्योति - आभा, छवि, द्युति, दीप्ति, प्रभा, भा, रुचि, रोचि।

झूठ- असत्य, मिथ्या, मृषा, अनृत।




तरुवर - वृक्ष, पेड़, द्रुम, तरु, विटप, रूंख, पादप।
तलवार - असि, कृपाण, करवाल, खड्ग, चन्द्रहास।
तालाब- सरोवर, जलाशय, सर, पुष्कर, पोखरा, जलवान, सरसी,
तड़ाग।
तीर - शर, बाण, विशिख, शिलीमुख, अनी, सायक।

दास- सेवक, नौकर, चाकर, परिचारक, अनुचर, भृत्य, किंकर।
दधि - दही, गोरस, मट्ठा, तक्र।
दरिद्र- निर्धन, ग़रीब, रंक, कंगाल, दीन।
दिन- दिवस, याम, दिवा, वार, प्रमान, वासर, अह्न।
दीन - ग़रीब, दरिद्र, रंक, अकिंचन, निर्धन, कंगाल।
दीपक - दीप, दीया, प्रदीप।
दुःख- पीड़ा,कष्ट, व्यथा, वेदना, संताप, शोक, खेद, पीर, लेश।
दूध- दुग्ध, क्षीर, पय, गौरस, स्तन्य।
दुष्ट- पापी, नीच, दुर्जन, अधम, खल, पामर।
दाँत - दशन, रदन, रद, द्विज, दन्त, मुखखुर।
दर्पण- शीशा, आरसी, आईना, मुकुर।
दुर्गा- चंडिका, भवानी, कुमारी, कल्याणी, महागौरी,
कालिका, शिवा, चण्डी, चामुण्डा।
देवता- सुर, देव, अमर, वसु, आदित्य, लेख, अजर, विबुध।
देह - काया, तन, शरीर, वपु, गात।

धन- दौलत, संपत्ति, सम्पदा, वित्त।
धरती- धरा, धरती, वसुधा, ज़मीन, पृथ्वी, भू, भूमि, धरणी, वसुंधरा,
अचला, मही, रत्नवती, रत्नगर्भा।
धनुष- चाप्, शरासन, कमान, कोदंड, धनु।

नदी- सरिता, तटिनी, सरि, सारंग, जयमाला, तरंगिणी, दरिया,
निर्झरिणी।
नया- नूतन, नव, नवीन, नव्य।
नाव- नौका, तरणी, तरी।

पवन- वायु, हवा, समीर, वात, मारुत, अनिल, पवमान, समीरण,
स्पर्शन।
पहाड़- पर्वत, गिरि, अचल, शैल, धरणीधर, धराधर, नग, भूधर, महीधर।
पक्षी- खेचर, दविज, पतंग, पंछी, खग, चिडिया, गगनचर, पखेरू,
विहंग, नभचर।
पति- स्वामी, प्राणाधार, प्राणप्रिय, प्राणेश, आर्यपुत्र।
पत्नी- भार्या, वधू, वामा, अर्धांगिनी, सहधर्मिणी, गृहणी, बहु,
वनिता, दारा, जोरू, वामांगिनी।
पुत्र- बेटा, आत्मज, सुत, वत्स, तनुज, तनय, नंदन।
पुत्री- बेटी, आत्मजा, तनूजा, सुता, तनया।
पुष्प- फूल, सुमन, कुसुम, मंजरी, प्रसून, पुहुप।

फूल - पुष्प, सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून।

बादल- मेघ, घन, जलधर, जलद, वारिद, नीरद, सारंग, पयोद, पयोधर।
बालू- रेत, बालुका, सैकत।
बन्दर- वानर, कपि, कपीश, हरि।
बिजली- घनप्रिया, इन्द्र्वज्र, चंचला, सौदामनी, चपला,
दामिनी, ताडित, विद्युत।
बगीचा - बाग़, वाटिका, उपवन, उद्यान, फुलवारी, बगिया।
बाण - सर, तीर, सायक, विशिख, शिलीमुख, नाराच।बाल - कच,
केश, चिकुर, चूल।
ब्रह्मा - विधि, विधाता, स्वयंभू, प्रजापति, पितामह, चतुरानन,
विरंचि, अज, कर्तार, कमलासन, नाभिजन्म, हिरण्यगर्भ।
बलदेव - बलराम, बलभद्र, हलायुध, राम, मूसली, रोहिणेय, संकर्षण।
बहुत - अनेक, अतीव, अति, बहुल, प्रचुर, अपरिमित, प्रभूत, अपार,
अमित, अत्यन्त, असंख्य।
ब्राह्मण - द्विज, भूदेव, विप्र, महीदेव, भूमिसुर, भूमिदेव।

भय - भीति, डर, विभीषिका।
भाई - तात, अनुज, अग्रज, भ्राता, भ्रातृ।
भूषण- जेवर, गहना, आभूषण, अलंकार।
भौंरा - मधुप, मधुकर, द्विरेप, अलि, षट्पद,भृंग, भ्रमर।

मनुष्य- आदमी, नर, मानव, मानुष, मनुज।
मदिरा- शराब, हाला, आसव, मधु, मद।
मोर- केक, कलापी, नीलकंठ, नर्तकप्रिय।
मधु- शहद, रसा, शहद, कुसुमासव।
मृग- हिरण, सारंग, कृष्णसार।
मछली- मीन, मत्स्य, जलजीवन, शफरी, मकर।
माता- जननी, माँ, अंबा, जनयत्री, अम्मा।
मित्र- सखा, सहचर, साथी, दोस्त।

यम - सूर्यपुत्र, जीवितेश, श्राद्धदेव, कृतांत, अन्तक, धर्मराज,
दण्डधर, कीनाश, यमराज।
यमुना - कालिन्दी, सूर्यसुता, रवितनया, तरणि-तनूजा, तरणिजा,
अर्कजा, भानुजा।
युवति - युवती, सुन्दरी, श्यामा, किशोरी, तरुणी, नवयौवना।

रमा - इन्दिरा, हरिप्रिया, श्री, लक्ष्मी, कमला, पद्मा,
पद्मासना, समुद्रजा, श्रीभार्गवी, क्षीरोदतनया।
रात- रात्रि, रैन, रजनी, निशा, यामिनी, तमी, निशि, यामा,
विभावरी।
राजा- नृप, नृपति, भूपति, नरपति, नृप, भूप, भूपाल, नरेश, महीपति,
अवनीपति।
रात्रि - निशा, क्षया, रैन, रात, यामिनी, शर्वरी, तमस्विनी,
विभावरी।
रामचन्द्र - अवधेश, सीतापति, राघव, रघुपति, रघुवर, रघुनाथ,
रघुराज, रघुवीर, रावणारि, जानकीवल्लभ, कमलेन्द्र,
कौशल्यानन्दन।
रावण - दशानन, लंकेश, लंकापति, दशशीश, दशकंध, दैत्येन्द्र।
राधिका - राधा, ब्रजरानी, हरिप्रिया, वृषभानुजा।

लड़का - बालक, शिशु, सुत, किशोर, कुमार।
लड़की - बालिका, कुमारी, सुता, किशोरी, बाला, कन्या।
लक्ष्मी- कमला, पद्मा, रमा, हरिप्रिया, श्री, इंदिरा, पद्मजा,
सिन्धुसुता, कमलासना।
लक्ष्मण - लखन, शेषावतार, सौमित्र, रामानुज, शेष।
लौह - अयस, लोहा, सार।लता - बल्लरी, बल्ली, बेली।

वायु - हवा, पवन, समीर, अनिल, वात, मारुत।
वसन - अम्बर, वस्त्र, परिधान, पट, चीर।
विधवा - अनाथा, पतिहीना, राँड़।
विष- ज़हर, हलाहल, गरल, कालकूट।
वृक्ष- पेड़, पादप, विटप, तरू, गाछ, दरख्त, शाखी, विटप, द्रुम।
विष्णु- नारायण, दामोदर, पीताम्बर, चक्रपाणी।
विश्व - जगत, जग, भव, संसार, लोक, दुनिया।
विद्युत - चपला, चंचला, दामिनी, सौदामिनी, तड़ित, बीजुरी,
घनवल्ली, क्षणप्रभा, करका।
वारिश - वर्षण, वृष्टि, वर्षा, पावस, बरसात।
वीर्य - जीवन, सार, तेज, शुक्र, बीज।
वज्र - कुलिस, पवि, अशनि, दभोलि।
विशाल - विराट, दीर्घ, वृहत, बड़ा, महा, महान।
वृक्ष - गाछ, तरु, पेड़, द्रुम, पादप, विटप, शाखी।

शिव- भोलेनाथ, शम्भू, त्रिलोचन, महादेव, नीलकंठ, शंकर।
शरीर- देह, तनु, काया, कलेवर, अंग, गात।
शत्रु- रिपु, दुश्मन, अमित्र, वैरी, अरि, विपक्षी, अराति।
शिक्षक- गुरु, अध्यापक, आचार्य, उपाध्याय।
शेर - केहरि, केशरी, वनराज, सिंह, शार्दूल, हरि, मृगराज।
शेषनाग - अहि, नाग, भुजंग, व्याल, उरग, पन्नग, फणीश, सारंग।
शुभ्र - गौर, श्वेत, अमल, वलक्ष, शुक्ल, अवदात।
शहद - पुष्परस, मधु, आसव, रस, मकरन्द।
श्र

षंड - हीजड़ा, नपुंसक, नामर्द।
षडानन - षटमुख, कार्तिकेय, षाण्मातुर।

सीता - वैदेही, जानकी, भूमिजा, जनकतनया, जनकनन्दिनी,
रामप्रिया।
साँप- अहि, भुजंग, ब्याल, सर्प, नाग, विषधर, उरग, पवनासन।
सूर्य- रवि, सूरज, दिनकर, प्रभाकर, आदित्य, दिनेश, भास्कर,
दिनकर, दिवाकर, भानु, अर्क, तरणि, पतंग, आदित्य, सविता, हंस,
अंशुमाली, मार्तण्ड।
संसार- जग, विश्व, जगत, लोक, दुनिया।
सोना- स्वर्ण, कंचन, कनक, हेम, कुंदन।
सिंह- केसरी, शेर, महावीर, हरि, मृगपति, वनराज, शार्दूल, नाहर,
सारंग, मृगराज।
समुद्र- सागर, पयोधि, उदधि, पारावार, नदीश, जलधि, सिंधु,
रत्नाकर, वारिधि।
सम - सर्व, समस्त, सम्पूर्ण, पूर्ण, समग्र, अखिल, निखिल।
समीप - सन्निकट, आसन्न, निकट, पास।
समूह- दल, झुंड, समुदाय, टोली, जत्था, मण्डली, वृंद, गण, पुंज, संघ,
समुच्चय।
सभा - अधिवेशन, संगीति, परिषद, बैठक, महासभा।
सुन्दर - कलित, ललाम, मंजुल, रुचिर, चारु, रम्य, मनोहर, सुहावना,
चित्ताकर्षक, रमणीक, कमनीय, उत्कृष्ट, उत्तम, सुरम्य।
सन्ध्या - सायंकाल, शाम, साँझ, प्रदोषकाल, गोधूलि।
स्त्री- सुन्दरी, कान्ता, कलत्र, वनिता, नारी, महिला, अबला,
ललना, औरत, कामिनी, रमणी।
सुगंधि- सौरभ, सुरभि, महक, खुशबू।
स्वर्ग- सुरलोक, देवलोक, दिव्यधाम, ब्रह्मधाम, द्यौ, परमधाम,
त्रिदिव, दयुलोक।
स्वर्ण - सुवर्ण, कंचन, हेन, हारक, जातरूप, सोना, तामरस, हिरण्य।
सरस्वती - गिरा, शारदा, भारती, वीणापाणि, विमला,
वागीश, वागेश्वरी।
सहेली - आली, सखी, सहचरी, सजनी, सैरन्ध्री।
संसार - लोक, जग, जहान, जगत, विश्व।

हस्त - हाथ, कर, पाणि, बाहु, भुजा।
हिमालय- हिमगिरी, हिमाचल, गिरिराज, पर्वतराज, नगेश।
हिरण - सुरभी, कुरग, मृग, सारंग, हिरन।
होंठ - अक्षर, ओष्ठ, ओंठ।
हनुमान - पवनसुत, पवनकुमार, महावीर, रामदूत, मारुततनय,
अंजनीपुत्र, आंजनेय, कपीश्वर, केशरीनंदन, बजरंगबली, मारुति।
हिमांशु - हिमकर, निशाकर, क्षपानाथ, चन्द्रमा, चन्द्र,
निशिपति।
हंस - कलकंठ, मराल, सिपपक्ष, मानसौक।
हृदय- छाती, वक्ष, वक्षस्थल, हिय, उर।
हाथ- हस्त, कर, पाणि।
हाथी- नाग, हस्ती, राज, कुंजर, कूम्भा, मतंग, वारण, गज, द्विप,
करी, मदकल।

हिन्दी व्याकरण , विलोम शब्द (विपरीतार्थक शब्द)


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किसी शब्द का विलोम शब्द उस शब्द के अर्थ से उल्टा अर्थ वाला होता है। दूसरे शब्दो में एक - दूसरे के विपरीत या उल्टा अर्थ देने वाले शब्द विलोम कहलाते हैं। अत: विलोम का अर्थ है - उल्टा या विरोधी अर्थ देने वाला ।
उदाहरण - प्रमुख शब्दों के विलोम शब्द
शब्द - विलोम
दिन - रात
अच्छा - बुरा
राजा - रंक या रानी या प्रजा
बालक - वृद्ध / बालिका
स्त्री - पुरुष
कृतज्ञ - कृतघ्न
अंकुश - निरंकुश
अकाल - सुकाल
अक्रुर -क्रुर
अकलुष - कलुष
अग्राह्य - ग्राह्य
अग्रज - अनुज
अगला - पिछला
अग्रिम - अन्तिम
अचल - चल
अजल -निर्जल
वृष्टि - अनावृष्टि
अनंत - अंत
अति -अल्प
अथ - इति
अतुकान्त - तुकान्त
अतिवृष्टि - अनावृष्टि
अनाहूत - आहुत
अनुकूल - प्रतिकूल
अनुरक्ति -विरक्ति
अनित्य - नित्य
अनुलोम- - विलोम
अनभिज्ञ- - भिज्ञ
अभिज्ञ - अनभिज्ञ
अमृत, - अमि, (अमिय)
विष - जहर
अर्पण - ग्रह्र्ण
अपेक्षा- - उपेक्षा
अर्वाचीन - प्राचीन
अपकार - उपकार
अवलम्ब - निरालम्ब
अल्प - अधिक
अधम - उत्तम
अवनत - उन्नत
अन्तरंग - बहिरंग
अनाथ - सनाथ
अथ - इति
आदर -अनादर




अदेय -देय
अन्तरंग- -बहिरंग
अंतर -बाह्य
अंशतः -पूर्णतः
अल्पकालीन -दीर्घकालीन
अल्पज्ञ - बहुज्ञ
अपेक्षित - अनपेक्षित
अधुनातन -पुरातन
अस्पृश्य- - स्पृश्य
स्वीकार - अस्वीकार
अवनि, - पृथ्वी,
भू, -अम्बर,
आकाश - नभ
अधर्म - सध्दर्म
अदोष - सदोष
अल्पायु - दीर्घायु
अभ्यस्त - अनभ्यस्त
अनुरक्त - विरक्त
अमर - मर्त्य
अतल - वितल
अवर - प्रवर
अमावस्या - प्रूर्णिमा
असली - नकली
अरूचि - सुरूचि
अज्ञ - विज्ञ
अपकार - उपकार
अनागत - आगत
अनिष्ट - इष्ट
अस्त - उदय
अस्ताचल - उदयाचल
अनातुर - आतुर
अनैतिहासिक - ऐतिहासिक


अपचार - उपचार
अवरोह - आरोह
अनुर्तीण - उर्तीण
रात - दिन
अमृत - विष
अथ - इति
अन्धकार - प्रकाश
अल्पायु - दीर्घायु
इच्छा - अनिच्छ।
उत्कर्ष - अपकर्ष
अनुराग - विराग
आदि - अंत
आगामी - गत
उत्थान - पतन
आग्रह - दुराग्रह
एकता - अनेकता
अनुज - अग्रज
आकर्षण - विकर्षण
उद्यमी - आलसी
अधिक - न्यून
आदान - प्रदान
उर्वर - ऊसर
एक - अनेक
आलस्य - स्फूर्ति
अर्थ - अनर्थ
उधार - नगद
उत्कृष्ट - निकृष्ट
उत्तम - अधम
आदर्श - यथार्थ
आय - व्यय
स्वाधीन - पराधीन
आहार - निराहार
दाता - याचक
खेद - प्रसन्नता
गुप्त - प्रकट
प्रत्यक्ष - परोक्ष
घृणा - प्रेम
सजीव - निर्जीव
सुगंध - दुर्गन्ध
मौखिक - लिखित
संक्षेप - विस्तार
घात - प्रतिघात
निंदा - स्तुति
मितव्यय - अपव्यय
सरस - नीरस
सौभाग्य - दुर्भाग्य
मोक्ष - बंधन
कृतज्ञ - कृतघ्न
क्रय - विक्रय
दुर्लभ - सुलभ
निरक्षर - साक्षर
नूतन - पुरातन
बंधन - मुक्ति
ठोस - तरल
यश - अपयश
सगुण - निर्गुण
मूक - वाचाल
रुग्ण - स्वस्थ
रक्षक - भक्षक
वरदान - अभिशाप
शुष्क - आर्द्र
हर्ष - शोक
क्षणिक - शाश्वत
विधि - निषेध
विधवा - सधवा
शयन - जागरण
शीत - उष्ण
सक्रिय - निष्क्रय
सफल - असफल
सज्जन - दुर्जन
शुभ - अशुभ
संतोष - असंतोष

अमृत- विष
अथ- इति
अन्धकार- प्रकाश
अल्पायु- दीर्घायु
अनुराग- विराग
अनुज- अग्रज
अधिक- न्यून
अर्थ- अनर्थ
अतिवृष्टि- अनावृष्टि
अनुपस्थिति- उपस्थिति
अज्ञान- ज्ञान
अनुकूल- प्रतिकूल
अभिज्ञ- अनभिज्ञ
अल्प- अधिक
अनिवार्य- वैकल्पिक
अगम- सुगम
अभिमान- नम्रता
अनुग्रह- विग्रह
अपमान- सम्मान
अरुचि- रुचि
अर्वाचीन- प्राचीन
अवनति- उन्नति
अवनी- अंबर
अच्छा- बुरा
अच्छाई- बुराई
अमीर- ग़रीब
अंधेरा- उजाला
अर्जित- अनर्जित
अंत- प्रारंभ
अंतिम- प्रारंभिक
अनजान- जाना-पहचाना
आदि- अंत
आगामी- गत
आग्रह- दुराग्रह
आकर्षण- विकर्षण
आदान- प्रदान
आलस्य- स्फूर्ति
आदर्श- यथार्थ
आय- व्यय
आहार- निराहार
आविर्भाव- तिरोभाव
आमिष- निरामिष
आर्द्र- शुष्क
आज़ादी- ग़ुलामी
आकाश- पाताल
आशा- निराशा
आश्रित- निराश्रित

आरंभ- अंत
आदर- अनादर
आयात- निर्यात
आर्य- अनार्य
आदि- अनादि
आस्तिक- नास्तिक
आवश्यक- अनावश्यक
आनंद- शोक
आधुनिक- प्राचीन
आना- जाना
आलस्य- फुर्ती
आध्यात्मिक- भौतिक
इच्छा- अनिच्छा
इष्ट- अनिष्ट
इच्छित- अनिच्छित
इहलोक- परलोक
उत्कर्ष- अपकर्ष
उत्थान- पतन
उद्यमी- आलसी
उर्वर- ऊसर
उधार- नक़द
उपस्थित- अनुपस्थित
उत्कृष्ट- निकृष्ट
उपजाऊ- बंजर
उदय- अस्त
उपकार- अपकार
उदार- अनुदार
उत्तीर्ण- अनुत्तीर्ण
उत्तर- दक्षिण
ऊंचा- नीचा
उन्नति- अवनति
उचित- अनुचित
उत्तरार्द्ध- पूर्वार्द्ध
एकता- अनेकता
एक- अनेक
ऐसा- वैसा
औपचारिक- अनौपचारिक
कृतज्ञ- कृतघ्न
क्रय- विक्रय
कमाना- खर्च करना
क्रूर- दयालु
कच्चा- पक्का
कटु- मधुर
क्रिया- प्रतिक्रिया
कड़वा- मीठा
क्रुद्ध- शान्त
कर्म- निष्कर्म
कठिनाई- सरलता
कभी-कभी- अक्सर
कठिन- सरल
केंद्रित- विकेंद्रित
क़रीबी- दूर के
कम- अधिक
खेद- प्रसन्नता
खिलना- मुरझाना
खुशी- दु:ख
ख़रीददार- विक्रेता
ख़रीद- बिक्री
ख़रीदना- बेचनागर्म- ठंडा
गन्दा- साफ़
गहरा- उथला
ग़रीब- अमीर
गुण- दोष, अवगुण
ग़लत- सही
घृणा- प्रेम
घात- प्रतिघात
घर- बाहर
घाटा- फ़ायदा
चर- अचर
चौड़ी- संकरी, तंग
छोटा- बड़ा
छूत- अछूत
जन्म- मृत्यु
जल्दी- देरी
जीवन- मरण
जल- थल
जड़- चेतन
जटिल- सरस
झूठ- सच
ठोस- तरल
डरपोक- निड़र
तुच्छ- महान
तकलीफ़- आराम
तपन- ठंडक
दुर्लभ- सुलभ
दाता- याचक
दिन- रात
देव- दानव
दुराचारी- सदाचारी
दयालु- निर्दयी
देशी- परदेशी
धीरे- तेज़
धनी- ग़रीब, निर्धन
धर्म- अधर्म
धूप- छाँव
धीर- अधीर
न्याय- अन्याय
निजी- सार्वजनिक
नक़द- उधार
नियमित- अनियमित
निश्चित- अनिश्चित
निरक्षर- साक्षर
नूतन- पुरातन
निंदा- स्तुति
निर्दोष- र्दोष
नीचा- ऊंचा
नकली- असली
निर्माण- विनाश
निकट- दूर
प्यार- घृणा
प्रत्यक्ष- परोक्ष
पतला- मोटा
पाप- पुण्य
पतिव्रता- कुलटा
प्रलय- सृष्टि
पवित्र- अपवित्र
प्रश्न- उत्तर
पूर्ण- अपूर्ण
प्रेम- घृणा
परतंत्र- स्वतंत्र
प्राचीन- नवीन / नया
पक्ष- निष्पक्ष
प्राकृतिक- अप्राकृतिक
प्रसन्न- अप्रसन्न
प्रभावित- अप्रभावित
पोषण- कुपोषण
परिचित- अपरिचित
प्रवेश- निकास
पदोन्नति- पदावनति
प्रतिकूल- अनुकूल
प्रारंभ- अंत
पसंद- नापसंद
बंधन- मुक्ति
बुद्धिमता- मूर्खता
बासी- ताजा
बाढ़- सूखा
बुराई- भलाई
भूलना- याद करना
भाव- अभाव
मूक- वाचाल
मितव्यय- अपव्यय
मोक्ष- बंधन
मौखिक- लिखित
मानवता- दानवता
महात्मा- दुरात्मा
मान- अपमान
मधुर- कटु
मित्र- शत्रु
मिथ्या- सत्य
मंगल- अमंगल
महंगा- सस्ता
मेहनती- आलसी / कामचोर
मृत्यु- जन्म
मंजूर- नामंजूर
मुमकिन- नामुमकि
नयशनयश- अपयश
युद्ध- शांति
योग्य- अयोग्य
रात- दिन
रुग्ण- स्वस्थ
रक्षक- भक्षक
राग- द्वेष
रात्रि- दिवस
राजा- रंक
रुचि- अरुचि
रोज़गार- बेरोज़गा
लाभ- हानि
व्यवस्था- अव्यवस्था
व्यावहारिक- अव्यावहारिक
विधि- निषेध
विधवा- सधवा
वरदान- अभिशाप
विनम्रता- घमंड
विजय- पराजय
वसंत- पतझड़
विरोध- समर्थन
विशुद्ध- दूषित
विषम- सम
विद्वान- मूर्ख
विश्वास- अविश्वास
विकसित- अविकसित
विशिष्ट- सामान्य / साधारण
विश्वनीय- अविश्वनीय
विस्तृत- संक्षिप्त
विकास- ह्रास
श्वेत- श्याम
शयन- जागरण
शीत- उष्ण
शुभ- अशुभ
शुष्क- आर्द्र
शोर- शांन्ति
श्रम- विश्राम
श्रोता- वक्ता
स्वतंत्र- परतंत्र
स्वस्थ- अस्वस्थ
स्वीकृत- अस्वीकृत
स्वदेश- विदेश
स्वर्ग- नरक
स्तुति- निंदा
स्वाधीन- पराधीन
स्वतंत्रता- दासता
स्वीकार- अस्वीकार
स्थाई- अस्थायी
सजीव- निर्जीव
सुगंध- दुर्गन्ध
संक्षेप- विस्तार
सरस- नीरस
सौभाग्य- दुर्भाग्य
सगुण- निर्गुण
सक्रिय- निष्क्रय
सफल- असफल
सज्जन- दुर्जन
संतोष- असंतोष
सुखान्त- दुखांत
सच- झूठ
सुन्दर- बदसूरत, कुरूप
साक्षर- निरक्षर
साधु- असाधु
सुपुत्र- कुपुत्र
सुर- असुर
सुमति- कुमति
साकार- निराकार
सुजन- दुर्जन
सम्मान- अपमान, अनादर
सुबह- शाम
सूर्योदय- सूर्यास्त
सरकारी- ग़ैरसरकारी
सुविधा- असुविधा
सस्ता- महंगा
सक्षम- अक्षम
सुरक्षित- असुरक्षित
संभव- असंभव
संतुलित- असंतुलित
संतुलन- असंतुलन
सावधानी- असावधानी
सघन- विरल
सहायक- बाधक
सहमत- असहमत
सुख- दुख
सहयोग- असहयोग
सहमति- असहमति
समापन- उद्घाटन
सर्दी- गर्मी
हर्ष- शोक
हित- अहित
हिंसा- अहिंसा
हार- जीत
हानि- लाभ
क्षणिक- शाश्वत
ज्ञान- अज्ञान
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हिन्दी : समास के भेद या प्रकार




हिन्दी : समास के भेद या प्रकार 

समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि "समास वह क्रिया है, जिसके द्वारा कम-से-कम शब्दों मे अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट किया जाता है।
समास का शाब्दिक अर्थ है- 'संक्षेप'। समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है।
समास के भेद या प्रकार
समास के छ: भेद होते है-
अव्ययीभाव समास - (Adverbial Compound)
तत्पुरुष समास - (Determinative Compound)
कर्मधारय समास - (Appositional Compound)
द्विगु समास - (Numeral Compound)
द्वंद्व समास - (Copulative Compound)
बहुव्रीहि समास - (Attributive Compound)
अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण -
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
अव्ययीभाव समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।
तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
कर्म तत्पुरुष (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)
 

तत्पुरुष समास के प्रकारनञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रह
असभ्य न सभ्य अनंत न अंत
अनादि न आदि असंभव न संभव
कर्मधारय समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रह
चंद्रमुख चंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयन
देहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा
नीलकमल नीला कमल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन सत् (अच्छा) जन नरसिंह नरों में सिंह के समान
द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रह
नवग्रह नौ ग्रहों का समूह दोपहर दो पहरों का समाहार
त्रिलोक तीन लोकों का समाहार चौमासा चार मासों का समूह
नवरात्र नौ रात्रियों का समूह शताब्दी सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
अठन्नी आठ आनों का समूह त्रयम्बकेश्वर तीन लोकों का ईश्वर
द्वंद्व समास
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रह
पाप-पुण्य पाप और पुण्य अन्न-जल अन्न और जल
सीता-राम सीता और राम खरा-खोटा खरा और खोटा
ऊँच-नीच ऊँच और नीच राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण
बहुव्रीहि समास
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रह
दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट)
श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे - नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।.पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण-
पूर्वपद प्रधान - अव्ययीभाव
उत्तरपद प्रधान - तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु
दोनों पद प्रधान - द्वंद्व
दोनों पद अप्रधान - बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)
संधि और समास में अंतरसंधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे - देव+आलय = देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे - माता-पिता = माता और पिता।



रस के प्रकार और उदाहरण






काव्य या साहित्य को पढने-सुनने या देखने से जो आनंद मिलता है, उसे रस कहा जाता है!
रस के अवययो और अंगो पर प्रकाश डालिए!
रस-निष्पति के तिन प्रमुख अवयय है-
1.भाव
2.विभाव
3.अनुभाव
1.भाव
मन के विकारो या आवेगों को भाव कहते है! ये दो प्रकार के होते है-
1.स्थायी भाव
2.व्यभिचारी या संचारी भाव
स्थायी भाव-ये प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय में स्थायी रूप से स्थित होते है! कोई भी मनुष्य इनसे
वंचित नहीं है! ये संख्या नौ है-
रति, उत्साह, विस्मय, हास, शोक, क्रोध, भय, जुगुप्सा, बैराग्य!
स्थायी भाव     रस
1.रति           श्रृंगार
2.उत्साह       वीर
3.वैराग्य         शांत
4.शोक          करुण
5.क्रोध           रौद्र
6.भय          भयानक
7.घृणा         वीभत्स
8.बिस्मय    अद्भुत
9.हास        हास्य
10.वत्सलता   वात्सल्य

व्यभिचारी या संचारी भाव: 
ये संख्या में 33 होते है! ये मनोभाव स्थायी ना होकर चंचल होते है
तथा बुलबुलों की तरह उठाते गिरते रहते है! कुछ प्रमुख संचारी भाव निम्न है-
शंका, जड़ता, चिंता, उग्रता, हर्ष, गर्व आदि!
2.विभाव
विभाव का अर्थ है- भावो के कारण! जिन विषय-प्रस्तुतियों के द्वारा मन के स्थायी भाव
जाग्रत होते है, उन्हें विभाव कहते है!
विभाव के तिन अंग है-
आश्रय, आलंबन और उधीपन
1.आश्रय: जिनके ह्रदय में भाव जागते है, उन्हें आश्रय कहते है! ये दो प्रकार के होते है-
1.विभव के अंग:जैसे कहानी में राम को देखकर सीता के मन में प्रेम की अनुभाती हुई!
इसमें सीता आश्रय है! सीता के ह्रदय में प्रेम जाग्रत हुआ! सीता आश्रय विभव है!
2.सहृदय का ह्रदय:कहानी या काव्या को पढने, सुनने या देखने वाला भी आश्रय है! उसके
ह्रदय में सभी भाव जाग्रत होते है!
2.आलंबन:जिस प्रमुख व्यक्ति, वास्तु को देखकर ह्रदय में भाव जागता है, उसे आलंबन कहते है!
3.उधीपन:जिन प्रेरक व्यक्तियों के सहयोग से नुल भाव जागने में सहायता मिली, उन्हें उधीपन कहते है!
3.अनुभाव:
आश्रय की चेस्ठावो को अनुभाव कहते है!
1.श्रृंगार रस-Image result for श्रृंगार रस-
नायक-नायिका के प्रेम को देखकर श्रृंगार रस प्रकट होता है! यह सृष्टि का सबसे व्यापक भाव है
जो सभी में पाया जाता है, इसलिए इसे रसराज भी कहा जाता है! इसके दो प्रमुख प्रकार है-
1.संयोग श्रृंगार 2.वियोग श्रृंगार
संयोग श्रृंगार: उदाहरण-
एक पल मेरे प्रिय के दृग पलक, थे उठे ऊपर सहज निचे गिर
चपलता ने इसे विकंपित पुलक से दृढ किया मनो प्रणय सम्बन्ध था!
वियोग श्रृंगार: उदाहरण-
पीर मेरी कर रही गमगीन मुझको
और उससे भी अधिक तेरे नयन का नीर, रानी
और उससे भी अधिक हर पाँव की जंजीर, रानी!
2.वीर रस-Image result for वीर रस-
उत्साह स्थायी भाव जब विभावो अनुभावो और संचारी भावो की सहायता से पुष्ट होकर
आस्वादन के योग्य हो जाता है तब वीर रस निष्पन होता है!
वीर चार प्रकार के मने गए है-
(1)युद्याविर
(2)दानवीर
(3)दयावीर
4)धर्मवीर
इनमे युध्यविर रूप प्रमुख है!
उदाहरण- ‘‘हे सारथे ! हैं द्रोण क्या, देवेन्द्र भी आकर अड़े,
है खेल क्षत्रिय बालकों का व्यूह-भेदन कर लड़े।
3.शांत रस-
जहा संसार के प्रति निर्वेद रस रूप में परिणत होता है वहा शांत रस होता है!
उदाहरण: ऐसेहू साहब की सेवा सों होत चोरू रे।
अपनी न बूझ, न कहै को राँडरोरू रे।।
मुनि-मन-अगम, सुगत माइ-बापु सों।
कृपासिंधु, सहज सखा, सनेही आपु सों।।
4.करुण रस-Image result for करुण रस-
इष्ट की हानि का चिर वियोग अर्थ हानि शोक का विभाग अनुभाव और संचारी भावो के सहयोग
से रस रूप में व्यक्त होता है, उसे करुण रस कहते है!
उदाहरण:
हा सही ना जाती मुझसे
अब आज भूख की जवाला !
कल से ही प्याश लगी है
हो रहा ह्रदय मतवाला!
सुनती हु तू राजा है
मै प्यारी बेटी तेरी!
क्या दया ना आती तुझको
यह दशा देख कर मेरी!
5.रौद्र रस-Image result for रौद्र रस-
जहा विरोधी के प्रति प्रतिशोध एवं क्रोध का भाव जाग्रत हो, वहा रौद्र रस होता है!
उदाहरण:
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन छोभ से जलने लगे!
सब शील अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे!
संसार देखे अब हमारे शत्रु रन में मृत पड़े!
करते हुए यह घोषणा हो गए उठकर खड़े!!
6.भयानक रस-Image result for भयानक रस-
जहा भय स्थायी भाव पुष्ट और विकशित हो वहा भयानक रस होता है!
उदाहरण:
एक ओर अजग्रही लखी, एक ओर मृगराय!
विकल बटोही बिच ही, परयो मूर्छा खाय!!

7.वीभत्स रस-

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जहा किसी वास्तु अथवा दृश्य के प्रति जुगुप्सा का भाव परिप्रुष्ट हो, वहा वीभत्स रस होता है!
उदाहरण:
सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खाक निकारत!
खींचत जिभाही स्यार अतिहि आनंद उर धारत!!
गीध जांघि को खोदी-खोदी के मांश उपारत!
स्वान अंगुरिन काटी-काटी के खात विदारत!!

8.अद्भुत रस-
Image result for अद्भुत रस के उदाहरण
आश्चर्जनक एवं विचित्र वास्तु के देखने व सुनने जब सब आश्चर्य का परिपोषण हो, तब अद्भुत
रस की प्रतीति होती है!
उदाहरण:
अखील भुवन चर अचर सब, हरी मुख में लखी मातु!
चकित भई गदगद वचन, विकशित दृग पुल्कातु!!
9.हास्य रस-Image result for हास्य रस के उदाहरण
विलक्षण विषय द्वारा जहा हास्य का विस्तार एवं पोषण हो, वहा हास्य रस होते है!
उदाहरण:
लाला की लाली यो बोली-
सारा खाना ये चर जायेंगे!
जो बचे भूखे बैठे है
क्या पंडित जी को खायेंगे!!
10.वात्सल्य रस-
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संस्कृत आचार्यो ने केवल नौ रासो को ही मान्यता दी है! कुछ आधुनिक विद्वान वात्सल्य और
भक्ति रस को भी मानते है! उनके अनुसार-बाल-रति के आधार पर क्रमशः वात्सल्य और भक्ति
रस का प्रकाशन होता है!
उदाहरण:
बाल दशा मुख निरखि जसोदा पुनि पुनि नन्द बुलावति!
अंचरा तर तै ढंकी सुर के प्रभु को दूध पियावति!!
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