14.9.17

सुथार जाति(जांगीड ब्राह्मण) का इतिहास ,suthar jati ka itihas





सुतार जाति की उत्पत्ति भारत में हुई थी और यह बढ़ईगीरी और लकड़ी के काम से जुड़ी हुई है. सुतार जाति के लोग भारत के अलग-अलग हिस्सों और विदेशों में बसे हुए हैं.
विश्वकर्मा एक भारतीय उपनाम है जो मूलतः शिल्पी लोगों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। विश्वकर्मा वंशज मूल रूप से ब्राह्मण होते हैं विश्वकर्मा पुराण के मुताबिक विश्वकर्मा जन्मों ब्राह्मण: मतलब ये जन्म से ही ब्राह्मण होते हैं

सुतार जाति से जुड़ी कुछ खास बातें:
सुतार जाति के लोग विश्वकर्मा समुदाय के अंतर्गत आते हैं.

सुतार जाति के लोग मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान में पाए जाते हैं.

सुतार जाति के लोग वैष्णव धर्म को मानते हैं और उनके कुलदेवता विष्णु हैं.

सुतार जाति के लोगों का गोत्र भारद्वाज है.

सुतार जाति के लोगों का पारंपरिक व्यवसाय बढ़ईगीरी है.

सुतार जाति के लोगों का प्रवास और बसावट का इतिहास दिलचस्प है.

सुतार जाति के लोगों का प्रवास जबरन और स्वैच्छिक दोनों तरह से हुआ है.

सुतार जाति के लोगों का प्रवास व्यापार, शिक्षा, और बेहतर अवसरों की तलाश के लिए हुआ है.

सुथार की उत्पत्ति कैसे हुई थी?

सुथार जाति का इतिहास (सुथार जाति समाज का इतिहास) उस समय से शुरू होता है जब मूलराज सोलंकी ने 10वीं शताब्दी के मध्य में गुजरात में सोलंकी राजवंश की स्थापना की थी। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, राजा मूलराज ने 989 विक्रम संवत में रुद्र महालया मंदिर की आधारशिला रखी थी
 
 सुथार शब्द का प्रयोग ज्यादातर राजस्थान में ही किया जाता है। इनकी आबादी भारत में 7.3 करोड़ के आस पास पाई जाती है। इनके कुल देवता विष्णु है तथा ये वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है।
 सुतार या सुथार भारतीय उपमहाद्वीप के विश्वकर्मा समुदाय के भीतर एक हिंदू जाति है। उनका पारंपरिक व्यवसाय खेती, वास्तुकला और आंतरिक डिजाइन है। हिंदू  सुथारों का बड़ा हिस्सा वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है। विश्वकर्मा को उनके संरक्षक देवता के रूप में माना जाता है।
सुथार कौन से वर्ग में आते हैं?
सुथार स्वयम को ब्राह्मण बताते हैं शर्मा लिखते हैं ।
शर्मा और विश्वकर्मा में क्या अंतर है?

वेदों के अनुसार सुतार  विश्वकर्मा ब्राह्मण हैं, और सबसे योग्य हैं, क्योंकि वे धार्मिक अनुष्ठान और तकनीकी कार्य दोनों कर सकते हैं। वेदों के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि शर्मा उपनाम का उपयोग केवल उस ब्राह्मण द्वारा किया जा सकता है जिसके पास तकनीकी ज्ञान है।
विश्वकर्मा एक भारतीय उपनाम है जो मूलतः शिल्पी लोगों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। विश्वकर्मा वंशज मूल रूप से ब्राह्मण होते हैं विश्वकर्मा पुराण के मुताबिक विश्वकर्मा जन्मों ब्राह्मण: मतलब ये जन्म से ही ब्राह्मण होते है
विश्वकर्मा ब्राह्मण श्रेष्ठ क्यों है?
विश्वकर्मा जी को समस्त सृष्टि का सृजनकर्ता माना जाता है । इसी कारण से उनके वंशजों के प्रति भी सम्मान प्रकट करने के लिए उन्हे विश्व ब्राह्मण की उपाधि से सम्मानित किया गया है 
विश्वकर्मा जाति की उत्पत्ति कैसे हुई थी?

धर्मग्रंथों में विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वंशज माना गया है। ब्रह्माजी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे, जिन्हें शिल्प शास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ।

विश्वकर्मा किसकी संतान है?
सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा की सातवीं संतान भगवान विश्वकर्मा को माना जाता है। कुछ धर्म ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को महादेव का अवतार बताया गया है। मान्यता के अनुसार, विश्वकर्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण के लिए द्वारका नगरी का निर्माण किया था।
जाति कर्म धर्म के अनुसार सुथार समाज जांगिड ब्राह्मण है।
विश्वकर्मा समुदाय भारत का एक सामाजिक समूह है, जिसे कभी-कभी जाति के रूप में वर्णित किया जाता है। वे खुद को ब्राह्मण या जाति पदानुक्रम में उच्च-स्थिति का होने का दावा करते हैं, हालांकि ये दावे आम तौर पर समुदाय के बाहर स्वीकार नहीं किए जाते हैं ।
पौराणिक दृष्टि से सुथार अंगिरा ऋषि की संतान है। अंगिराऋषि ब्राह्मार्षि थे। दिग्विजयी प्रतापी होने के कारण इन्हे जांगिड कहा गया । अंगिरा ऋषि(अंगिरसो) के आश्रम जांगल देश मे थे इसलिये भी अंगिरस स्थान के नाम से जांगिड कहलाये। आदि शिल्पाचार्य भुवन पुत्र विश्वकर्मा देवों के शिल्पी होने से जाँगिड कहलाये। विश्वकर्मा जी अंगिराकुल के होने के कारण वंश परम्परा से सुथारों के  प्रेरक गुरु और भगवान है।

 दिल्ली से 11 मील की दूरी पर कुतुबमीनार के पास सती मठ मे लगा हुआ 460 वर्ष पुराना शिलालेख मिला है। इस पुरावशेष मे जांगिड ब्राह्मण वंश की सतियों का  परिचय खुदा हुआ है।

सम्पूर्ण भारत के 41 विख्यात पंडितो ने संवत १९७७ की दीपावली को काशी मे यह निर्णय लिया कि जांगिड ब्राह्मण जाति वास्तव मे ब्राह्मण है।

ब्रह्मा अर्थात ब्राह्मण होने के कारण अंगिरा वंशी जांगिड, जांगिड ब्राह्मण कहलाये।

सायणाचार्य ने अंगिरा ऋषि को ही जंगिड ऋषि माना है।  वेद या ब्राह्मण ग्रन्थ अथवा प्राचीन भाष्यकारों और पाश्चात्य यूरोपियन समीक्षक  सभी  ने एक मत से यही स्वीकार किया है कि अंगिरा ऋषि का ही दूसरा प्रमाणित नाम जांगिड है।

अग्नि (पवित्र आग ) को खोज निकालने वाले अंगिरस ऋषि कहे गये है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सुतार  विश्वकर्मा के पुत्र मय के वंशज बढ़ई हैं। ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा ब्रह्मांड के दिव्य इंजीनियर हैं। 
सुथारों का गोत्र राठौर (राठौड़), चौहान, परमार, सोलंकी, भाटी, तंवर , सिसोदिया आदि है । 
सुथार समाज, विश्वकर्मा, जांगिड़, खाती, शर्मा और अन्य कई नामों से जाना जाता है। एक ही परिवार में अलग-अलग नामों से लगा कर जाने जाते हैं। 
सुथार की कुछ उपजातियाँ राजस्थान हरियाणा , [गुजरात जैसे राज्यों में ओबीसी के रूप में वर्गीकृत हैं

क्या बढ़ई जाति ब्राह्मण है?

अनुग्रह नारायण शोध संस्थान पटना के द्वारा सर्वेक्षण कर रिपोर्ट बिहार सरकार को  दिया था। शोध संस्थान द्वारा दिए गए रिपोर्ट में बढ़ई जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात स्पष्ट लिखी हुई है। जबकि देश के सात राज्यों में इस समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किया जा चुका है।
सुतार कौन सी कैटेगरी में आते हैं?
सूत्रधार, जिन्हें सुतार या सुथार के नाम से भी जाना जाता है, ये वास्तु शास्त्र के चार वास्तुकारों में से एक हैं। इनका पारंपरिक व्यवसाय काष्ठकारी(Carpentry) है।
भारत में विश्वकर्मा जाति की संख्या कितनी है?

भारत में  में विश्वकर्मा समाज की जनसंख्या साढ़े सात करोड़ है। आज तक यह समाज लोहार, बढ़ई, सोनार, शिल्पकार आदि में बंटे होने के कारण अपनी पहचान नहीं बना पाया है।
विश्वकर्मा जाति के 5 वर्ग कौन से हैं?
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना में 14 जातियो को उल्लेखित किया गया है, जबकि विश्वकर्मा समाज में पांच ही जाति बढ़ई, लोहार स्वर्णकार, कसेरा एवम ठठेरा है।



 

 

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