14.9.17

सुनार,स्वर्णकार जाति का इतिहास



सुनार समाज के आदिपुरुष महाराज  अजमीढजी
  सुनार (वैकल्पिक सोनार या स्वर्णकार) भारत और नेपाल के स्वर्णकार समाज से सम्बन्धित जाति है जिनका मुख्य व्यवसाय स्वर्ण धातु से भाँति-भाँति के कलात्मक आभूषण बनाना, खेती करना तथा सात प्रकार के शुद्ध व्यापार करना है। यद्यपि यह समाज मुख्य रूप से हिन्दू को मानने वाला है लेकिन इस जाति का एक विशेष कुलपूजा स्थान है। सुनार अपने पुर्वजो के स्मृति स्थान की कुलपूजा करते है। यह जाति हिन्दूस्तान की मूलनिवासी जाति है। मूलत: ये सभी क्षत्रिय वर्ण में आते हैं इसलिये ये क्षत्रिय सुनार भी कहलाते हैं। आज भी यह समाज इस जाति को क्षत्रिय सुनार कहने में गर्व महसूस करता हैं।
इतिहास-

सदियों पुर्व हमारे पुर्वजों को भी केवल यही ज्ञात था की हम मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार राजपुत क्षत्रियों से संबधित है । हमारे पुर्वज कौन थे? कहां थे? कैसे थे? यह किसी को ज्ञात नही था । और आज भी लगभग ऐसी ही स्थीती है 

 हम मैढ क्षत्रिय कहलाते है ,क्यों ?
 हमारे पुर्वज कौन थे और अन्य समाज हमे हैय दृष्टी से क्यों देखती थी क्या अज्ञान व अशिक्षा अथवा सामाजिक कुप्रथा मात्र ही इसका कारण है , । इस प्रकार के अनेकानेक प्रश्नों का समाधान के लिए मुलचंद आर्य अजमेर से इन्होने 15-20 वर्ष सतत प्रयास किया और हमारे शुध्द क्षत्रिय होने का प्रमाण अनेक धार्मिक व एतिहासीक ग्रन्थोंसे प्राप्त कर के मैढ मीमांसा यह ग्रंथ प्रकाशित किया ।
यह सर्वविवादीत है की हमारा समाज के 90 प्रतिशत लोग स्वर्ण कलाकार के नाम से विश्वविख्यात है । धन्धे से कीसी जाती का निर्धारण करना असंभव है ।आज 21वी सदी है और भारतीय संविधान के अनुसार हर वर्ण-वर्ग, जाती का व्यक्ति आजिवीका हेतु कोइ भी उद्योग कर सकता है । कहने का तात्पर्य है, स्वर्णकार का काम सदियों से दुसरे जाती के लोग भी करते आए है यथा ब्राम्हण, खाती, जाट, बनिये, कुम्हार, मुसलमान, सरावगी, बंगाली, सिन्धी, पंजाबी, गुजराती, श्रीमाली, आदी अन्यान्य कई वर्ग के स्वर्णकारी काम करते है इससे यह नही कहा जा सकता कि स्वर्णकार एक जाती है बल्की एक व्यवसाय है ।
हम लोग विशुध्द चन्द्रवंशीय है तथा मैढ क्षत्रिय हमारी जाती है इसका प्रमाण महाभारत के शान्तीपर्व राजधर्म प्रकाश अध्याय 49 के 83 से 87 श्लोकों के अनुसार है ।
इसका अतिरीक्त अंग्रेजोने भी सन 1901 मे यह स्वीकार किया था कि मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार चन्द्रवंशीय क्षत्रिय है । काशी व जयपुर के भोज मन्दिर की धर्म व्यवस्था मे भी मैढों को क्षत्रिय स्वीकार किया गया है ।
समस्त भारत के ब्राम्हण, रईस व जागीरदार लोगों के हस्ताक्षर युक्त प्रमाण हमारे पास है जिसके अनुसार मैढ द्विज है । ये स्वर्णकारों का पेशा करते है पर इन्हे चौधरी या प्रधानजी कहकर पुकारते है । यह दरसल मैढ राजपुत है ।
वैसे भारत वर्ष की प्राय सभी जातीयों का इतिहास अन्धकारमय है तथापि महाभारत, विष्णुपुराण, भागवत, व कर्नल टाड साहब बहादुर संपादित राजस्थान का इतिहास आदी ग्रन्थों के देखने से स्पष्ट होता है कि जन्मानुसार मैढ स्वर्णकार की जाती क्षत्रिय है ।

व्यवहारिक प्रमाण –
1 . प्राय गावों व शहरों मे मैढ स्वर्णकारों को वहां के निवासी श्रध्दाभाव से देखते है, जैसे ठाकुरों को तथा उन्हे सोनी राजा कहकर संबोधित करते है जो की क्षत्रिय होने का प्रमाण है ।
हमारी जाती के गोत्र उपगोत्र (नख) अन्य राजपुतों का गोत्रों से मिलते जुलते है (देखिये मैढ कुल दर्शन लेखक प्रो. नारायणप्रसादजी वर्मा )
हमारी जाती स्वयं का ओरमे मां, दादी, नानी का गोत्र छोडकर विवाह संबंध होता है, कही कही कन्या या वर के अभाव मे दो नखों मे भी इस भौतिक युग मे संबंध होने लगे है और राजपुत समाज मे भी ऐसी प्रथा प्रचलित हो गयी है ।
हमारे यहां जन्मोत्सव के समय पर कमानगर शकुन के लिए तीर कमान लेकर आते है
पाणिग्रहण-संस्कार के पश्चात् जब वर वधु को लेकर गृह प्रवेश के समय तलवार से अडचनों को दुर करता करता वधु को माताजी (देवी माता ) के पास सर्व प्रथम ले जाकर ज्योती (पुजा) अर्चना करते है । स्त्रियां भी गीत गाते समय सोनी राजा या कंवर और आदी शब्दों का उच्चारण करती है जो की केवल राजपुत समाज मै ही प्रचलित था एवं अब भी है ।
हमारे जागे, भाट-पुरोहीत, पंडे होते है जो वंशानुसार चले आते हैतथा हमारी ही गुणगान व बल वैभव का बखान करते हुए अपनी आजिवीका सदियों से चलाते आये है (अनेक नगरों मे अभी भी ढाडीयों के वंश आज भी मौजुद है जो शुभ कार्यों मे समाज से भेंट लेते है । हरीद्वार के पंडो के पास भी अनेक प्रमाण मिलते है ।
हमारी जाती के 80 प्रतिशत लोग दशहरे के दिन तलवार घोडे तथा अपने औजारों व कलम दवात शस्त्र आदी का पुजन करते है।    
8. राजपुत के भांति हमारे समाज मे माताजी की मान्यता ज्यादा है तथा मेढ क्षत्रिय माताजी के बडे भक्त होते है तथा वर्ष के दोनो नवरात्री के व्रत करते है
हमारी समाज के अधिकांश लोग माताजी के यहां अपने बच्चे का मुंडन संस्कार कराते है तथा वर वधु को लेकर गरजोडें सहीत जात देते है ।
लोकमानस में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार सुनार जाति के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि त्रेता युग में परशुराम ने जब एक-एक करके क्षत्रियों का विनाश करना प्रारम्भ कर दिया तो दो राजपूत भाइयों को एक सारस्वत ब्राह्मण ने बचा लिया और कुछ समय के लिए दोनों को मैढ़ बता दिया जिनमें से एक ने स्वर्ण धातु से आभूषण बनाने का काम सीख लिया और सुनार बन गया और दूसरा भाई खतरे को भाँप कर खत्री बन गया और आपस में रोटी बेटी का सम्बन्ध भी न रखा ताकि किसी को यह बात कानों-कान पता लग सके कि दोनों ही क्षत्रिय हैं।आज इन्हें मैढ़ राजपूत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये वही राजपूत है जिन्होंने स्वर्ण आभूषणों का कार्य अपने पुश्तैनी धंधे के रूप में चुना है।
लेकिन आगे चलकर गाँव में रहने वाले कुछ सुनारों ने भी आभूषण बनाने का पुश्तैनी धन्धा छोड़ दिया और वे खेती करने लगे।
वर्ग भेद -
अन्य हिन्दू जातियों की तरह सुनारों मे भी वर्ग-भेद पाया जाता है। इनमें अल्ल का रिवाज़ इतना प्राचीन है कि जिसकी कोई थाह नहीं।ये निम्न 3 वर्गों में विभाजित है,जैसे 4,13,और सवा लाख में इनकी प्रमुख अल्लों के नाम भी विचित्र हैं जैसे ग्वारे,भटेल,मदबरिया,महिलबार,नागवंशी,छिबहा, नरबरिया,अखिलहा,जडिया, सड़िया, धेबला पितरिया, बंगरमौआ, पलिया, झंकखर, भड़ेले, कदीमी, नेगपुरिया, सन्तानपुरिया, देखालन्तिया, मुण्डहा, भुइगइयाँ, समुहिया, चिल्लिया, कटारिया, नौबस्तवाल, व शाहपुरिया.सुरजनवार , खजवाणिया.डसाणिया,मायछ.लावट .कड़ैल.दैवाल.ढल्ला.कुकरा.डांवर.मौसूण.जौड़ा . जवडा. माहर. रोडा. बुटण.तित्तवारि.भदलिया. भोमा. अग्रोयाआदि-आदि। अल्ल का अर्थ निकास या जिस स्थान से इनके पुरखे निकल कर आये और दूसरी जगह जाकर बस गये थे आज तक ऐसा माना जाता है


जनसंख्या के आंकड़े-

सन् 1911 में हिन्दुस्तान के एक प्रान्त मध्य प्रदेश में ही सुनारों की जनसंख्या 96,000 थी और अकेले बरार में 30,000 सुनार रहते थे। सम्पन्न सुनारों की आबादी गाँवों के बजाय शहरों में अधिक थी। .
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9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Maid rajput ke vanshj koun he

Unknown ने कहा…

Maid rajput Thalia gotar ke bare me batye

Unknown ने कहा…

Maid rajput ke bare me batye dobara

Harsh Verma ने कहा…

M maid Kshatriya swarnkar hu

Unknown ने कहा…

Sunar Jati ka guru kon tha

Pankaj ने कहा…

कल्याण गोत्र की कुलदेवी कौनसी माता जी है अगर किसी समाज बंधु को पता है तो मुझे इस नंबर पर फोन करके जरूर बताएं
पंकज कुमार सोनी (कथराथला)
आपका धन्यवाद

Unknown ने कहा…

सतलखिया गोत्र क्षत्रिय सुनारो का है क्या?

बेनामी ने कहा…

Kalyana gotra mata chandli

बेनामी ने कहा…

भारद्वाज गोत्र और भुइगुइंया के बारे में बताए