14.9.17

लोहार(विश्वकर्मा) जाति का इतिहास



 
 प्राप्त साक्ष्यों तथा कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी इतिहासकारों के लिए एक ऐसी ऐतिहासिक पुस्तक साबित हुई जिसके अनुसार यह ज्ञात हो सका की लोहारों (विश्वकर्मा वंशीय)का वंश भी शासन प्रभुता में आगे रहा है यह हिन्दू शासन कश्मीर राज्य मे सन 1003 से 1159 तक लगभग 150 सालों तक चला जो अंतिम हिन्दू शासन कहलाया।
 लोहार भारत में पाई जाने वाली एक व्यावसायिक जाति है. इन्हें लुहार, लोहरा और पांचाल के नाम से भी जाना जाता है. झारखंड में लोहार को स्थानीय रूप से लोहरा या लोहारा के नाम से जाना जाता है. प्राचीन काल से ही लोहा या इस्पात से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को बनाना इनका पारंपरिक कार्य रहा है. इसीलिए इन्हें लोहार कहा जाता है. यह हथोड़ा, चीनी और भाथी आदि औजारों का प्रयोग करके दरवाजा, ग्रिल, रेलिंग, कृषि उपकरण, बर्तन और हथियार आदि बनाते हैं. अधिकांश लोहार अभी भी धातु निर्माण के अपने पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. हालांकि यह जीवन यापन के लिए खेती बारी तथा अन्य काम धंधा भी करने लगे हैं. प्राचीन काल से ही इनका समाज में महत्वपूर्ण स्थान रहा है. यह आम लोगों के लिए कृषि उपकरण तथा घर में प्रयोग किए जाने वाले सामान बनाते थे. साथ ही यह राजा महाराजा के सेनाओं के लिए हथियार बनाते थे. आइए जानते हैं लोहार समाज का इतिहास, लोहार शब्द की उत्पति कैसे हुई?

लोहार किस धर्म को मानते हैं?

धर्म से यह हिंदू, मुसलमान या सिख हो सकते हैं. भारत में निवास करने वाले अधिकांश लोहार हिंदू धर्म को मानते हैं. यह भगवान विश्वकर्मा और हिंदू अन्य देवी देवताओं की पूजा करते हैं. धार्मिक आधार पर हिंदू लोहार को विश्वकर्मा के रूप में जाना जाता है, जबकि मुस्लिम लोहार सैफी कहलाते हैं। यह भगवान विश्वकर्मा के वंशज होने का दावा करते हैं.

लोहार समाज के उपनाम

अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग उपनाम है. बिहार और उत्तर प्रदेश में के प्रमुख उपनाम विश्वकर्मा और ठाकुर हैं. दिल्ली में इनके उपनाम हैं -लोहार मिस्त्री और पांचाल. लोहार जाति दो उप समूहों में विभाजित है-
गाडिया लोहार और 
मालविया लोहार.

हिंदू लोहार जाति के प्रमुख गोत्र

हिंदू लोहार जाति के प्रमुख गोत्र इस प्रकार हैं- बडगुजर, तंवर, चौहान, सोलंकी, करहेड़ा, परमार भूंड, डांगी, पटवा, जसपाल, तावड़ा, धारा, शांडिल्य, भीमरा और भारद्वाज.

लोहार किस कैटेगरी में आते हैं?

हिमाचल प्रदेश में तारखान और लोहार दो जातियां हैं. सिख लोहार को तारखान के नाम से जाना जाता है, और इन्हें ओबीसी जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है. यहां लोहार जाति को अनुसूचित जाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. उत्तर प्रदेश में इन्हें ओबीसी जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है. धार्मिक आधार पर हिंदू लोहार को विश्वकर्मा के रूप में जाना जाता है, जबकि मुस्लिम लोहार सैफी कहलाते हैं।आरक्षण व्यवस्था के तहत इन्हें बिहार राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
 लोहार वंश जिसके संस्थापक रानी दिदृदा के भाई संग्रामराज थे संग्रामराज बड़े न्याय प्रिय उदारवादी राजा थे उनके साशन काल में प्रजा सुख-चैन से दिन व्ययतीत कर रही थी किसी भी प्रकार का अभाव व् विकार लोगों में नहीं था।उनके बाद राज सिंहासन अनंतराज को मिला जिन्होंने अपनी वीरता धीरता शौर्यता के बल पर अपने शासन काल में सामन्तों के विद्रोह को छिन्न-भिन्न कर के धराशायी कर दिया तथा अपने सासन क्षेत्र का विस्तार भी किया सासन सत्ता सुचारू रूप से कायम करने में लगभग सफल रहे ।अनंतराज की धर्मपत्नी रानी सूर्यमति में कुशल रानी के गुण विद्यमान तो थे ही साथ साथ कुशल राजनीतिज्ञ व् नेतृत्वकर्ता के गुण भी कूट कूट कर भरे थे। अनंतराज के शासन में उनकी धर्मपत्नी रानी सूर्यमती पूर्ण रूप से हस्तक्षेत व् सहयोग किया करती थी सभी अहम् मुद्दों पर बराबर विचार विमर्श करती थी तथा उनके द्वारा प्रतिपादित नियम व् कानून अकाट्य सिद्ध होते थे स्वयं राजा अनंतराज व् उनका मंत्रिमंडल भी रानी सूर्यमति द्वारा बनाये नियम कानून में कभी कोई कमी नहीं निकाल पाता था ज्यो का त्यों लागू कर दिया जाता था। अनन्तराज के पुत्र कलश थे जिन्होंने कुछ विशेष कार्य नहीं किये कुशल राजा व् नेतृत्व न होने के कारण शासन सत्ता कमजोर क्षीण होती गई जिससे अनंत राज द्वारा विस्तारित क्षेत्र व् राज्य कमजोर होता गया ।
 जाति इतिहासकार डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार राजा कलश के पुत्र हर्षदेव महाविद्वान,प्रखर बुद्धि,दार्शनिक,कवि थे तथा उनमे कुशल राजा के गुण विद्यमान थे उनको कई विभिन्न भाषाओं एवं विद्याओं का भी ज्ञान था। हर्षदेव धीरे धीरे सासन सत्ता में इतने मुग्ध हो गए उन्हें प्रजा के दुःख सुख से मोह ख़त्म होता गया राज्य में अशांति व्याप्त हो गई भयानक अकाल पड़ गया किसानों साहूकारों से अत्यधिक कर वसूला जाने लगा कर या लगान न देने पर राजा के सैनिको द्वारा कई अलग अलग तरह से दंड का प्रावधान किया जाने लगा जिससे प्रजा आतंकित हो गई।राजा हर्षदेव के अत्याचारपूर्ण कार्यो से त्रस्त होकर उत्सल एवं सुस्सल नामक भाईयों ने राजा हर्ष देव के खिलाफ विद्रोह कर दिया अशान्ति,भुखमरी,दमन,अत्याचार के कारण शुरू हुए विद्रोह में लगभग 1101 ई. में राजा हर्षदेव तथा उनके पुत्र भोज की हत्या कर दी गयी।
 हर्षदेव को कश्मीर के 'नीरो' की संज्ञा भी दी गयी है।(नीरो --> रोम का अत्याचारी सासक था पुरे राज्य में आग लगी थी खुद खड़ा होकर सारंगी बजा रहा था कहा जाता है आग खुद नीरो ने लगवाई थी)
राजतरंगिणी के लेखक कल्हण राजा हर्षदेव के आश्रित कवि थे और राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है
श्लाध्य: स एव गुणवान् रागद्वेषबहिष्कृता।
भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती॥ (राजतरंगिणी, १/७)
इस लिए यह माना जा सकता है कि कल्हण द्वारा रागतरंगिनी में तत्कालीन राजाओं का जो भी वर्णन मिलता है वह किंचित मात्र भी विचलित करने वाला नहीं है।
कल्हण जाति से ब्राह्मण था उसके पिता का नाम चम्पक था। चम्पक लोहार वंशीय राजा हर्ष के मन्त्री थे तथा कल्हण हर्ष का आश्रित कवि था। कल्याण मे राजातरिणी ग्रंथ की जब रचना की उस समय लोहार वंशीय राजा जयंसिह का शासन काल कश्मीर मे चल रहा था।
लोहार वंश का अन्तिम शासक राजा जयसिंह (1128-1155 ई.) थे।उन्होंने अपने युद्ध कला कौशल से यूनानी मूल के यवनों को परास्त किया था तथा राज्य की सीमा विस्तार शुरू कर दिया। जयसिंह कश्मीर में हिन्दू वंश तथा लोहार वंश के अंतिम शासक के रूप में जाने जाते हैं जय सिंह राजतरंगिणी के आखिरी सासक हैं।इसके बाद तुर्क शासकों का इतिहास प्राप्त होता है
कश्मीर में अंतिम हिन्दू लोहार वंश के लगातार आठ राजाऒ का वर्णन मिलता है जिनके नाम निम्नवत हैं
1-संग्रामराज
2-अनन्तदेव
3-कलशदेव
4-हर्षदेव
5-उच्छ्ल
6-सुस्सल
7-शिक्षाचर
8-जयसिंह आदि थे
इन हिन्दू लोहार वंशीय (विश्वकर्मा वंशीय)राजाओं ने मिलकर लगभग157 वर्ष तक जम्मू- कश्मीर मे शासन किया।

  बिहार राज्य मे लोहार जाती को अनुसूचित जाती  मे शामिल कर लिया गया है| कुछ राज्यों मे लोहार पिछड़े वर्ग मे माने जाते हैं|
केंद्र व राज्य सरकार वंश परंपरागत कारीगर समाज के उन्नति के लिए विश्वकर्मा कारीगर आयोग तथा विश्वकर्मा कारीगर विकास बोर्ड का गठन करे। सरकार वंश परंपरागत कारीगर समाज के बच्चों के लिए विश्वकर्मा टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय तथा विश्वकर्मा छात्रावास का निर्माण कराये। सरकार सरकारी संस्था और सरकारी भवनों का एवं मार्ग, चौक का नामकरण भगवान विश्वकर्मा के नाम पर नामांकन करे। कहा कि विश्वकर्मा समाज के अधिकार, सम्मान और गौरव को बचाने के लिए पूरे देश के विश्वकर्मा समाज को एकजुट होकर बड़ी सामाजिक ताकत और राजनीतिक ताकत बनानी होगी।


बूढ़ा निवासी श्री बद्रीलाल जी लोहार विश्वकर्मा समाज को आगे बढ़ाने के लिए युवकों को  कृषि यंत्रों  के उद्धयोग लगाने  के लिए भरपूर सहयोग और आर्थिक मदद कर रहे हैं|
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