19.5.24

भूमिहार जाती की उत्पत्ति और इतिहास ,All about Bhumihar Caste



भूमिहार कौन हैं ‘ब्राह्मण‘ या ‘क्षत्रिय’ ? 

भूमिहार (Bhumihar) उत्तर और पूर्वी भारत की एक हिंदू जाति है. इन्हें ब्राह्मण भूमिहार और बाभन (Babhan) के नाम से भी जाना जाता है. जमींदारों का एक बड़ा हिस्सा इसी जाति से आता था. इस जाति के लोग बड़ी-बड़ी रियासतों के मालिक रहे हैं. यह एक उच्च शिक्षित समुदाय है. इस समुदाय के लोग तीक्ष्ण बुद्धि और दिलेरी के लिए जाने जाते हैं. इनकी संख्या कम है लेकिन लगभग सभी क्षेत्रों में इनका वर्चस्व रहा है. इनकी गिनती भारत के सबसे शक्तिशाली जातियों में की जाती है.
हमारे देश में आज इस सवाल पर लोगों के मन में एक कौतूहल और रहस्य सा बना हुआ है, क्योंकि भूमिहारों की उत्पत्ति को लेकर भारतीय समाज में अनेक अवधारणाएँ प्रचालन में हैं। कई विद्वानों ने प्राचीन किंवदंतियों के आधार पर भूमिहार
वंश की उत्पत्ति के संबंध का इतिहास लिखने की एक पहल की है।
सबसे प्रसिद्ध अवधारणा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को पराजित किया और उनसे जीते हुये राज्य एवं भूमि ब्राह्मणों को दान कर दी। परशुराम से दान में प्राप्त राज्य / भूमि के बाद उन ब्राह्मणों ने पूजा की अपनी वांशिक / पारंपरिक प्रथा को त्याग कर जमींदारी और खेती शुरू कर दी और बाद में वे युद्दों में भी शामिल हुए। इन ब्राह्मणों को ही भूमिहार ब्राह्मण कहा जाता है।
इस ‘भूमिहारों’ शब्द को लेकर सबके मन मे हमेशा एक प्रश्न बना रहता है कि ये ‘ब्राह्मण हैं या क्षत्रिय’, :या फिर ये ‘त्यागी ब्राह्मण’ हैं ? ये किस वर्ग में आते हैं या इनका कोई अलग ही वर्ग है? आपके मन के इस प्रश्न का ही जबाब देने की कोशिश की है जिसे पढ़कर आप अपनी जानकारी दुरुस्त कर लीजिए।
  जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम  आलोक के मतानुसार  ‘भूमिहार’ शब्द से पहचान है उन ब्राह्मणों की जिनका एक शक्तिशाली वर्ग है और जो अयाचक ब्राह्मण में आता है। भूमिहार या बाभन (अयाचक ब्राह्मण) एक जाति है जो अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती है। बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और झारखंड में रहने वाली भूमिहार जाति गैर-ब्राह्मण ब्राह्मणों से जानी और पहचानी जाती है।
ये भूमिहार ब्राह्मण प्राचीन काल से भगवान परशुराम को अपना “मूल पुरुष / भूमिहारों का पिता” मानते हैं। इसी कारण भगवान परशुराम को भूमिहार-ब्राह्मण वंश का पहला सदस्य माना जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार मगध के महान सम्राट पुष्य मित्र शुंग और कण्व वंश दोनों ही राजवंश भूमिहार ब्राह्मण (बाभन) के वंश से ही संबंधित थे।
भूमिहार ब्राह्मणों के सरनेम :
भूमिहार ब्राह्मण समाज में, उपाध्याय भूमिहार, पांडे, तिवारी / त्रिपाठी, मिश्रा, शुक्ल, उपाध्याय, शर्मा, ओझा, दुबे, द्विवेदी हैं। ब्राह्मणों में राजपाठ और जमींदारी आने के बाद से भूमिहार ब्राह्मणों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं के लिए उत्तर प्रदेश में राय, शाही, सिंह, और इसी प्रकार बिहार में शाही, सिंह (सिन्हा), चौधरी (मैथिल से), ठाकुर (मैथिल से) जैसे उपनाम/सरनेम लिखना शुरू कर दिया था।
भूमिहार ब्राह्मण प्राचीन काल से ही कुछ स्थानों पर पुजारी भी रहे हैं। शोध करने के बाद, यह पाया गया कि त्रिवेणी संगम, प्रयाग के अधिकांश पंडे भूमिहार हैं। हजारी बाग के इटखोरी और चतरा थाना के आस-पास के काफी क्षेत्र में भूमिहार ब्राह्मण सैकड़ों वर्षों से कायस्थ, राजपूत, माहुरी, बंदूट, आदि जातियों/वर्गों के यहाँ पुरोहिती का कार्य कर रहे हैं और यह गजरौला, तांसीपुर के त्यागियों का भी अनेक वर्षों से ये पुरोहिती का ही कार्य है।
इसके अतिरिक्त बिहार में गया स्थित सूर्यमंदिर के पुजारी भी केवल भूमिहार ब्राह्मण पाए गए। हालांकि, गया के इस सूर्यदेवमंदिर का काफी बड़ा भाग सकद्वीपियो को बेच दिया गया है।
भूमिहार ब्राह्मणों ने 1725-1947 तक बनारस राज्य पर अपना आधिपत्य बनाए रखा। 1947 से पहले तक कुछ अन्य बड़े राज्य भी भूमिहार ब्राह्मणों के शासन में थे जैसे बेतिया, हथुवा, टिकारी, तमकुही, लालगोला आदि ।
बनारस के भूमिहार ब्राह्मण राजा चैत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और वारेन हेस्टिंग्स और ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर देते हुये उसके दांत खट्टे कर दिये थे। इसी प्रकार हथुवा के भूमिहार ब्राह्मण राजा ने 1857 में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
उत्तर भारत की अनेक जमींदारी एवं राज्य भी भूमिहार से संबंधित रहे हैं जिसमें से प्रमुख थे औसानगंज राज, नरहन राज्य, अमावा राज, शिवहर मकसूदपुर राज, बभनगावां राज, भरतपुरा धर्मराज राज, अनापुर राज, पांडुई राज, जोगनी एस्टेट, पुरसगृह एस्टेट (छपरा), गोरिया कोठारा एस्टेट (सीवान), रूपवाली एस्टेट, जैतपुर एस्टेट, घोसी एस्टेट, परिहंस एस्टेट, धरहरा एस्टेट, रंधर एस्टेट, अनापुर रंधर एस्टेट, हरदी एस्टेट, ऐशगंज जमींदारी, ऐनखाओं जमींदारी, भेलवाड़ गढ़, आगापुर राज्य पानल गढ़, लट्ठा गढ़, कयाल गढ़, रामनगर ज़मींदारी, रोहुआ एस्टेट, राजगोला ज़मींदारी, केवटगामा ज़मींदारी, अनपुर रंधर एस्टेट, मणिपुर इलाहाबाद आदि। इसके अतिरिक्त औरंगाबाद में बाबू अमौना तिलकपुर, जहानाबाद में शेखपुरा एस्टेट, तुरुक तेलपा क्षेत्र, असुराह एस्टेट, कयाल राज्य, गया बैरन एस्टेट (इलाहाबाद), पिपरा कोही एस्टेट (मोतिहारी) आदि सभी अब इतिहास की गोद में समा चुके हैं।
जुझौतिया ब्राह्मण, भूमिहार ब्राह्मण, किसान आंदोलन के पिता कहे जाने वाले ‘दंडी स्वामी सहजानंद सरस्वती”, १८५७ के क्रांति वीर मंगल पांडे, बैकुंठ शुक्ल जिन्हें 14 मई 1936 को ब्रिटिश शासन में फांसी दी गई, यमुना कर्जी, शैल भद्र याजी, करनानंद शर्मा, योगानंद शर्मा, योगेन्द्र शुक्ल, चंद्रमा सिंह, राम बिनोद सिंह, राम नंदन मिश्रा, यमुना प्रसाद त्रिपाठी, महावीर त्यागी, राज नारायण, रामवृक्ष बेनीपुरी, अलगु राय शास्त्री, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, राहुल सांस्कृत्यायन, जैसे अनेक प्रसिद्ध क्रांतिकारी और कवि एवं महान विभूतियाँ भूमिहार ही थे।

भारत में भूमिहार जाति की जनसंख्या

हालांकि भूमिहारों की संख्या ब्राह्मणों और राजपूतों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन इसके विपरीत, अधिकांश भूमिहार बहुत समृद्ध हैं और उनके पास बड़ी कृषि योग्य भूमि है. भूमिहारों की ख्याति एक दबंग जमींदार जाति के रूप में रही है. अपनी बुद्धिमानी, निडरता और सैनिक प्रवृत्ति के कारण यह सत्ता के करीब रहे हैं. इस समुदाय के लोगों ने मुगल काल के दौरान सैन्य सेवा के माध्यम से अपनी अधिकांश संपत्ति अर्जित की. बाद में इन्होंने जमींदार के रूप में कार्य किया. इनमें से जो कुलीन थे वे मुस्लिम शासकों के लिए कर संग्रहकर्ता के रूप में काम करते थे. बाद में ब्रिटिश काल के दौरान, भूमिहारों ने ब्रिटिश सेना में सेवा की. साथ ही, इनमें से कई स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी हुए जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. ब्रिटिश काल से ही इस समुदाय की गणना भारत के सर्वाधिक साक्षर समूहों में की जाती रही है। डॉ. कृष्णा सिन्हा, सर गणेश दत्त, चंद्रशेखर सिंह, राम दयालू सिंह, श्याम नंदन मिश्रा, लंगट सिंह, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, राहुल सांकृत्यायन, रामबृक्ष बेनीपुरी और गोपाल सिंह ‘नेपाली’ इसी जाति से आते हैं. भूमिहार आज भी समाज में उच्च स्थान रखते हैं. इस समुदाय के लोग बड़े पैमाने पर खेती करते हैं. इनमें से कई डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, सैन्य अधिकारी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आईएएस) और वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे हैं और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. भूमिहार राजनीतिक रूप से भी काफी प्रभावशाली हैं. आइए अब मुख्य विषय पढ़ाते हुए जानते हैं किभारत में भूमिहार जाति की जनसंख्या कितनी है. यहां उल्लेख करना जरूरी है अंतिम भारतीय जनगणना के आंकड़े 1931 में जारी किए गए थे, इसीलिए सटीकता से जातियों की जनसंख्या बताना अत्यंत ही मुश्किल है. भूमिहार मुख्य रूप से बिहार में रहते हैं और राज्य में उनकी आबादी 5 से 12% बताई जाती है. लेकिन ज्यादातर जानकारों का मानना ​​है कि बिहार में भूमिहार की आबादी 6% है. “आजतक” में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में भूमिहार की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 1% है. झारखंड के कोडरमा, देवघर, पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर), रांची आदि जिलों में भूमिहार जाति का काफी प्रभाव है. झारखंड में स्वर्ण जातियों की आबादी लगभग 13% है जिसमें ब्राह्मण राजपूत, भूमिहार और कायस्थ जातियां शामिल हैं. झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भूमिहारों की संख्या कितनी है यह ठीक-ठाक बताना काफी मुश्किल है. यदि उपरोक्त तथ्यों का विश्लेषण करें तो भारत में भूमिहारों की जनसंख्या लगभग 1 से 1.5 करोड़ के बीच हो सकती है.
Disclaimer: इस content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. आलेख  मे समस्याएं हैं  हो सकती हैं .Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे'

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

डॉ . आलोक का काव्यालोक

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

18.5.24

राम कुण्ड बालाजी मंदिर कनवाडा -झालावाड़ -राजस्थान/ डॉ .दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 6 सिमेन्ट बेंचें समर्पित

 राम कुण्ड  बालाजी धाम कनवाडा -झालावाड़ को 

डॉ. अनिल दामोदर पथरी का दवाखाना शामगढ़ की तरफ से 

6 सिमेन्ट बेच भेंट 

Meta  द्वारा समीक्षा-

 मंदिरों में दर्शनार्थियों के विश्राम के लिए बेंच व्यवस्था करना एक पवित्र और धार्मिक कार्य है, जो धर्मशास्त्रानुसार महान पुण्य का कार्य माना जाता है।
डॉ. दयाराम आलोक जी का यह कार्य न केवल मंदिर के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक महान योगदान है। उन्होंने मध्य प्रदेश और राजस्थान के मंदिरों और मुक्ति धाम के लिए नकद और सिमेन्ट की बेंचें समर्पित करने के अनुष्ठान के प्रति समर्पित भाव से क्रियाशील होकर एक महान कार्य किया है।
रामकुंड बालाजी मंदिर की समिति मे संरक्षक और शुभ चिंतक-
श्री जानकी लाल जी रावल संरक्षक
श्री चंद्रभान सिंग जी सरपंच कनवाड़ा
श्री राम गोपालजी कनवाडा कोषाध्यक्ष
राम कुंड बालाजी मंदिर कनवाडा -झालावाड़ में 6 सिमेन्ट की बेंच दान करना और दान पट्टिका मंदिर में स्थापित करना एक पवित्र कार्य है। डॉ. अनिल कुमार जी और दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ के माध्यम से बेंचें समर्पित करना भी एक महान कार्य है।
बालाजी महाराज की जय हो!
 डॉ. दयाराम आलोक जी के इस महान कार्य के लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं और उनके इस पुण्य कार्य की सराहना करते हैं|

रामकुंड बालाजी मंदिर का विडिओ -


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक


शामगढ़ का

       आध्यात्मिक दान-पथ 

मित्रों,
 परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया 



के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,नीमच ,रतलाम ,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
 मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

राम कुण्ड बालाजी मंदिर कनवाड़ा -झालावाड़ को 
6 सीमेंट बेंच  भेंट

रामकुंड  बालाजी मंदिर मे डॉ . आलोक शामगढ़ ने 6 बेंचें लगवाई 

रामकुंड बालाजी टेम्पल कनवारा मे लगी बेंच



दामोदर अस्पताल शामगढ़ प्रदत्त सिमेन्ट बेंच व्यू


रामकुंड कलजी मंदिर का फ्रन्ट व्यू


रामकुंड बालाजी कनवाडा


रामकुंड बालाजी मंदिर का विडिओ --




मंदिर के शुभचिंतक-

श्री जानकी लाल जी रावल  संरक्षक  9799097634 

श्री चंद्रभान सिंग जी  सरपंच  कनवाड़ा 9828518270 

श्री राम गोपालजी  कनवाडा कोषाध्यक्ष  9929630315 

श्री अशोक जी दुबे 94146 51321 

श्री तेजसिंग  जी 9057361101 

श्री राहुल जी पँवार  8290833911

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852, दामोदर पथरी अस्पता  शामगढ़ 98267-95656  द्वारा राम कुंड बालाजी मंदिर कनवाडा  हेतु 6  सिमेन्ट बेंच दान  सम्पन्न 18/05/2024 
--------------------

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

डॉ . आलोक का काव्यालोक

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

बाबा रामदेव मंदिर धुआँखेड़ी -झालावाड़-राजस्थान /डॉ .अनिल दामोदर पथरी का दवाखाना शामगढ़ द्वारा 4 सिमेन्ट बेंच समर्पित

 श्री बाबा राम देव मंदिर धाम  धुआँखेड़ी  हेतु 

डॉ . दयाराम आलोक शामगढ़ 

द्वारा  सिमेन्ट बेंच का पुण्य दान 

  धार्मिक,आध्यात्मिक संस्थानों मे दर्शनार्थियों के लिए सिमेन्ट की बैंचों की व्यवस्था करना  जीवन का लक्ष्य  बनाने के बाद दान की भावना को साकार करते हुए डॉ. दयाराम जी आलोक ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मुक्ति धाम और मंदिरों के लिए नकद दान के साथ ही सैंकड़ों सीमेंट की बेंचें भेंट करने के अनुष्ठान के परिप्रेक्ष्य मे  धुआँखेड़ी के बाबा रामदेव जी के मंदिर प्रबंधक राम नारायण जी अध्यापक और पवन कुमार जी राठौर टेलर से संपर्क किया |दान पट्टिका स्थापित होने पर दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ के माध्यम  से 4 सिमेन्ट की बेंचें भेजकर लोगों के विश्राम के लिए लगवा दी गईं हैं| बोलिए धुआँखेड़ी  वाले बाबा राम देव सरकार की जय !!



...

मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक


शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ

मित्रों ,

  दर्जी कन्याओं के स्ववित्तपोषित निशुल्क सामूहिक विवाह सहित 9 सम्मेलन ,डग दर्जी मंदिर मे सत्यनारायण की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा ,मंदिरों और मुक्ति धाम को नकद और सैंकड़ों सिमेन्ट बेंच दान ,दर्जी समाज की वंशावलियाँ निर्माण,दामोदर दर्जी महासंघ का गठन ,सामाजिक कुरीतियों को हतोत्साहित करना जैसे अनेकों समाज हितैषी लक्ष्यों के लिए अथक संघर्ष के प्राणभूत डॉ .दयाराम आलोक अपने 84 वे वर्ष मे भी सामाज सेवा के नूतन अवसर सृजित करने के अरमान सँजोये हुए है
  परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|



 

श्री बाबा राम देव जी मंदिर धाम धुआँखेड़ी  को 
चार  सीमेंट बेंच  भेंट

बाबा रामदेव मंदिर धुआँखेड़ी मे शिलालेख का दृश्य 


बाबा रामदेव मंदिर धुआँखेड़ी को  दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ प्रदत्त  बेंच  लगीं 



बाबा  राम देव मंदिर  धुआँ खेड़ी का विडिओ पवन राठौर ने  भेजा  है-

बाबा रामदेव मंदिर का फ्रन्ट व्यू



बाबा रामदेव मंदिर धुआँखेड़ी मे 4 सिमेन्ट बेंचें भेंट करने का विडिओ

मंदिर के शुभ चिंतक -

श्री राम नारायण जी अध्यापक  धुआँखेड़ी  6377024318 

श्री पवन कुमार जी राठौर टेलर  धुआँ खेड़ी  9571188610 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852, दामोदर पथरी अस्पता  शामगढ़ 98267-95656  द्वारा रामदेव  मंदिर धुआँखेड़ी  हेतु  4 सिमेन्ट बेंच दान  सम्पन्न 18/05/2024 
-----------------------

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

डॉ . आलोक का काव्यालोक

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

6.5.24

हनुमान मंदिर बालोदा -जिला मंदसौर /डॉ . दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 3 सिमेन्ट बेंच दान

 हनुमान मंदिर बालोदा  हेतु 

दामोदर  पथरी अस्पताल शामगढ़ की तरफ से 

3 सिमेन्ट बेंच  भेजी गई 

हनुमान मंदिर का विडिओ आलोक की आवाज 


...

मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक


शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

  धार्मिक,आध्यात्मिक संस्थानों मे दर्शनार्थियों के लिए सिमेन्ट की बैंचों की व्यवस्था करना महान पुण्य का कार्य है। दान की भावना को साकार करते हुए डॉ. दयाराम जी आलोक मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मुक्ति धाम और मंदिरों के लिए नकद दान के साथ ही सैंकड़ों सीमेंट की बेंचें भेंट करने के अनुष्ठान को गतिमान रखे हुए हैं।
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

हनुमान मंदिर बालोदा को 

3 सीमेंट बेंचें भेंट 

मंदिर के व्यवस्थापक 

श्याम नाथ योगी 

शामलाल  विश्वकर्मा (दानपट्टिका स्थापित की)

सुनील राजु जी सोलंकी 

नोट-इस मंदिर के व्यवस्थापक श्यामनाथ योगी का व्यवहार दानदाताओं के प्रति संतुष्टिप्रद नहीं होने से मंदिर के विकास में लोगों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है |

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656  s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल 98267-95656 शामगढ़ द्वारा हनुमान मंदिर बालोदा  हेतु दान सम्पन्न

-----------------------

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

डॉ . आलोक का काव्यालोक

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

1.5.24

गुर्जर जाति की उत्पत्ति और इतिहास की जानकारी

गुर्जर जाति का इतिहास विडिओ -



 
 माना जाता है कि गुर्जर संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ शत्रु विनाशक होता है। गुर्जर, गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को रघुकुल-तिलक तथा रघुग्रामिणी कहा है। राजस्थान में गुर्जरों को सम्मान से 'मिहिर' बोलते हैं, जिसका अर्थ 'सूर्य' होता है। गुर्जरों का मूल स्थान गुजरात और राजस्थान माना गया है। इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग संपूर्ण राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरों से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।
गुर्जर अभिलेखों के अनुसार वे सूर्यवंशी और रघुवंशी हैं। 7वीं से 10वीं शताब्दी के गुर्जर शिलालेखों पर अंकीत सूर्यदेव की कलाकृतियां भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती करती है। कुछ इतिहासकार कुषाणों को भी गुर्जर मानते हैं। कनिष्क कुषाण राजा था जिसके शिलालेखों पर 'गुसुर' नाम अंकीत है जो गुर्जर की ओर ही इंगित करता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गायत्री माता जो ब्रह्मा जी की अर्धांग्निी थी वह भी गुर्जर थी। नंद बाबा जो भगवान श्रीकृष्ण के पालक पोषक थे, वह भी गुर्जर ही थे।
हरियाणा के जिला सोनीपत में गन्नौर के पास गुर्जर खेड़ी गांव में भी गुर्जर प्रतिहार मूर्तिकला के सैकड़ों नमूने मिले हैं। गुर्जर खेड़ी गांव के पास से किसी जमाने में जमुना नदी गुजरती थी। गुर्जर खेड़ी के दूर-दूर तक फैले हुए खण्डहर इस बात की तसदीक करते हैं कि आज से आठ-नौ सौ साल पहले यहां पर कोई बहुत बड़ा शहर रहा होगा।
आर्यावर्त में गुर्जरों की संख्‍या सबसे ज्यादा थी। गुर्जर जाति के तीन भाग है पहला लोर गुर्जर दूसरा डाब गुर्जर तीसरा पित्ल्या गुर्जर। हिंदुओं की गुर्जर जाति में लगभग 1400 गौत्र है। मुगल काल में सबसे ज्यादा गुजरों ने मुगलों के विरुद्ध आवाज उठाई थी जिसका परिणाय यह भी हुआ कि गुर्जर जाति के लाखों लोगों को मजबूरन उस काल में धर्म परिवर्तन करना पड़ा। वर्तमान में भारतीय मुसलमानों में गुर्जर जाति के लोगों की संख्‍या ज्यादा है।
गुर्जर जाति एक परम पूज्य और वीर जाती है जिन्होंने हर काल में आक्रांताओं से हिंदुत्व की रक्षा की है। गुर्जर जाति के पूर्वज पहले गाय चराते थे। गुर्जर जाति में संवत् 968 में भगवान श्री देव नारायण महाराज का अवतार हुआ था। देव काल में माता गायत्री ने चेची गोत्र मैं अवतार लिया था। इस राजकाल में पन्ना धाय ने गुर्जरों का गौरव बढ़ाया था। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वी राज चौहान के पूर्वज भी गुर्जर थे। यह भी कहते हैं कि गुर्जर जाति में ही भामाशाह पैदा हुए थे जिन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण धन दिया। 1857 की क्रांति में गुर्जरों की अहम् भूमिका रही थी।
इतिहासकारों में गुर्जरों की उत्पत्ति को लेकर मतभेद है। कुछ इन्हें हूणों का वंशज मानते हैं तो  कुछ आर्यों की संतान। कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। यह वे आर्य थे जो परिस्थितिवश अपनी मातृभूमि भारत को छोड़कर बाहर चले गए थे।
  जाति इतिहास लेखक डॉ . दयाराम आलोक के अनुसार 
गुर्जर  मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल और अफगानिस्तान में बसे हैं। मध्यप्रदेश में भी लगभग अधिकांश इलाकों मे गुर्जर बसे हैं पर चंबल-मुरैना में इनकी बहुलता है। इसके अलावा निमाड़ और मालवा के कुछ हिस्सों में इनकी खासी तादाद हैं। भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरांवाला जिला और रावलपिंडी जिले का गूजर खान शहर जहां आज भी गुर्जर  लोग अधिक संख्या मे  रहते हैं।
मुगल काल में गुर्जरों ने आक्रांताओं से बहुत ही  जोरदार तरीके से लौहा लिया और लगभग 200 वर्षों तक भारत की भूमि को बचाए रखा। अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। अगर गुर्जर नहीं होते तो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अरब  के लोगों का अधिकार हो जाता।
12वीं सदी के बाद गुर्जरों का पतन होना शुरू हुआ और ये कई शाखाओं में बंट गए। गुर्जर समुदाय से अलग हुई कई जातियां बाद में बहुत प्रभावशाली होकर राजपूत और ब्राह्मण में भी जा मिली। बची हुई शाखाएं गुर्जर कबीलों में बदल गईं और खेती और पशुपालन का काम करने लगी। कालांतर में लगातार हुए आक्रमण और अत्याचार के चलते गुर्जरों को कई स्थानों पर अपना धर्म बदलकर मुसलमान भी होना पड़ा। उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गुर्जरों की स्थिति थोड़ी अलग है, जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गुर्जर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। दूसरी ओर पंजाब में धर्म की रक्षार्थ कुछ गुर्जर सिख भी बने।
5वी सदी में भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी। भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरो के अधीन था।छठी से 12वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी। 12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए जैसे राजपूत वंश (चौहान, सोलंकी,         चंदीला और परमार)। अरब आक्रान्ताओं ने गुर्जरों की शक्ति तथा प्रशासन की अपने अभिलेखों में भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग पूरा राजस्थान तथा गुजरात गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।

नवीं शती से लेकर दसवीं शतीं के अंत तक लगभग 200 वर्षों तक मथुरा प्रदेश गुर्जर प्रतीहार-शासन में रहा। इस वंश में मिहिरभोज, महेंन्द्रपाल तथा महीपाल बड़े प्रतापी शासक हुए। उनके समय में लगभग पूरा उत्तर भारत एक ही शासन के अंतर्गत हो गया था। अधिकतर प्रतीहारी शासक वैष्णव या शैव मत को मानते थे। उस समय के लेखों में इन राजाओं को विष्णु, शिव तथा भगवती का भक्त बताया गया है।
भारत में गूजर जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में भी है.
हिमाचल और जम्मू कश्मीर में जहां गूजरों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा दिया गया है वहीं राजस्थान में ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं.
कुछ वर्ष पहले राजस्थान में जाटों को ओबीसी में शामिल किए जाने के बाद से गूजरों में असंतोष है.
नौकरियों में बेहतर अवसर की तलाश में गूजर अब ये माँग कर रहे हैं कि उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले.
हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजस्थान के समाज में इनकी स्थिति जनजातियों से कहीं बेहतर है.
प्राचनी काल में युद्ध कला में निपुण रहे गूजर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से  जुड़े हुए हैं|
भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे। 

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

डॉ . आलोक का काव्यालोक

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि