27.6.24

वैष्णव ब्राह्मण बैरागी जाति की उत्पत्ति और इतिहास ,Bairagi caste history


  वैष्णव ब्राह्मण एक उच्च कोटि के ऋषि कुल जाति के ब्रह्म ज्ञानी ब्राह्मण है कई नाम से पूरे भारत में जाने जाते हैं जिसमें एक बैरागी नाम भी वैष्णव ब्राह्मण का ही है वैष्णव ब्राह्मण में विरक्त बैरागी भी होते हैं जिन्हें बैरागी ब्राह्मण भी कहा जाता है पुराणों ने भी आठ प्रकार के ब्राह्मण बताए गए हैं जिसमें वैष्णव बैरागी ऋषि कुल के ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण हैं क्योंकि उस समय पर ब्रह्म को जानने वाले को ही ब्राह्मण कहा जाता था वैष्णव बैरागी समाज ने अपने गुरुकुलओं मैं सर्व समाज को शिक्षा देने का कार्य किया ऋषि कुल वैष्णव बैरागी समाज ने ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर कर वेद पुराणों और स्मृतियों की रचनाएं की उन वेद पुराणों को पढ़कर ही पंडित पद को प्राप्त करते है और सर्व समाज को उसकी बारे मे पढ़ाया करते है जहां पर वैष्णव ऋषि कुल के गुरुकुल हुआ करते थे आज उस जगह पर हमारे पूर्वजों के स्थापित किए हुए मंदिरो मैं बदल गई है और मंदिरों में पूजा करने वाले को (वैष्णव )(बैरागी )(स्वामी )(पुजारी)( आचार्य)( पंडित )(राजपुरोहित)( राजगुरु)( महाराज) और( गोस्वामी) के नाम से पूरे भारत मैं जाना जाता है कोई कुछ भी कहता रहे पर इतिहास मिटाया नहीं जा सकता आज भी उन मंदिरों पर ब्रह्म ज्ञानी वैष्णव बैरागी ऋषि कुल की संताने ही पूजा पाठ कर रही है ब्राह्मण एक वर्ण है ना की जाति कोई भी ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर कर पहले ब्राह्मण बन जाता था जिस भाई ने भी वैष्णव बैरागी समाज के बारे में यह लिखा था मैं उस भाई को बताना चाहूंगा जब श्री राम को वैष्णव ऋषि कुल की जरूरत पड़ी तो महर्षि वशिष्ठ के रूप में आकर उनको शिक्षा प्रदान की जब भगवान कृष्ण को जरूरत पड़ी तो ऋषि सांदीपनि के रूप में आकर उसको शिक्षा प्रदान की हमने जरूरत पड़ने पर समाज को गाने बजाने का कार्य भी सिखाया और वेद पुराण भी सिखाए

बैरागी की उत्पत्ति कैसे हुई?

राजकुमार रूपसी ने भी वैष्णव संत कृष्णदास पायोहारी से बैरागी दीक्षा ली थी और वह स्वयं को वैष्णव धर्म का रक्षक और उपासक मानते थे । इसलिए इतिहास में उन्हें बैरागी से ही जाना जाता है। राजा भारमल से भी पहले अकबर की मुलाकात रूपसी बैरागी और उनके पुत्र जयमल से हुई थी।
  जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार बैरागी या वैष्णव ब्राह्मण एक प्रतिष्ठित भारतीय जाति हैं। विष्णु के उपासक ब्राह्मणों को वैष्णव या बैरागी कहा जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के समस्त प्राचीन मंदिरो की अर्चना वैष्णव-ब्राह्मणों (बैरागी) द्वारा ही की जाती है। वैष्णवीय आध्यात्मिक मार्ग में परम्परानुसार इन्हें गुरु पद प्राप्त है। पुराणों में वैष्णवों के चार सम्प्रदाय वर्णित हैं। वैष्णवीय परम्परा कर्मकांड पर जोर ना देते हुए भक्तिमार्ग पर अधिक जोर देती है। अतः वैष्णव ब्राह्मण मंदिरो में भगवान की पूजा अर्चना करते है
वेदों और पुराणों में वैष्णव-ब्राह्मणों का वर्णन कई बार आया है। सृष्टि के आरम्भ में ही भगवान श्री हरि विष्णु ने ब्रह्मा को व ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम सनकादिक व सप्तऋषियों की उतपत्ति करि वे सर्वप्रथम वैष्णव कहलाये।

वैष्णव समाज की कुलदेवी

वैष्णव समाज की कुलदेवी मां कमला देवी है जो गुजरात के कच्छ स्थित नारायण सरोवर में नवनिर्मित मंदिर मे विराजित हैं। 

वैष्णव और ब्राह्मण में क्या अंतर है?

 ब्राह्मण और वैष्णव में बस इतना ही अंतर है कि ब्राह्मण वे मनुष्य होते हैं जो जन्म के आधार पर किसी धर्म के संप्रदाय में निर्धारित होते हैं और उसके बाद वहां निर्णय होता है। वैष्णव वे मनुष्य हैं जो अपने कर्म, भक्ति और भक्ति से निर्धारित होते हैं।
  बैरागी जाति बंगाल की उच्च जातियों में से एक है - ब्राह्मण, राजपूत, छत्री, ग्रहाचार्य ब्राह्मण, वैद्य। मिलर उन्हें ब्राह्मणों, राजपूतों और जाटों के बीच एक उच्च जाति समूह के रूप में रखता है। मिलर का कहना है कि बैरागी ब्राह्मण वर्ण से हैं। सेनगुप्ता उन्हें एक उच्च जाति समूह के रूप में वर्णित करते हैं।

वैष्णव बैरागी कौन सी कैटेगरी में आते हैं?

बैरागी ब्राह्मण या वैष्णव बैरागी या वैष्णव ब्राह्मण एक हिंदू जाति है। वे हिंदू पुजारी हैं. वे वैष्णव संप्रदाय , विशेषकर रामानंदी संप्रदाय के स्थिर रसिक (मंदिर में रहने वाले या मंदिर के पुजारी) ब्राह्मण सदस्य हैं। उपनामों में स्वामी , बैरागी, महंत , वैष्णव और वैरागी शामिल हैं।

बैरागी ब्राह्मणों की संरचना

बैरागी ब्राह्मण चार संप्रदायों में विभाजित हैं - जिन्हें अक्सर सामूहिक रूप से 'चतुर-संप्रदाय' के रूप में संदर्भित किया जाता है। 1. रुद्र संप्रदाय ( विष्णुस्वामी ), 2 श्री संप्रदाय ( रामानंदी ), 3. निम्बार्क संप्रदाय और 4. ब्रह्म संप्रदाय ( माधवाचार्य )

महाभारत 

महाभारत में कहा गया है कि एक बार, बभ्रुवाहन द्वारा एक सूखा तालाब खोदने के बाद, एक बैरागी ब्राह्मण तालाब के बीच में पहुंचा और तुरंत ही गड़गड़ाहट की आवाज के साथ तालाब से पानी बाहर आ गया।

उद्भव

वैष्णववाद का प्राचीन उद्भव अस्पष्ट है, और मोटे तौर पर विष्णु की पूजा के साथ विभिन्न क्षेत्रीय गैर-वैदिक धर्मों के संलयन के रूप में इसकी परिकल्पना की गई है । इसे कई लोकप्रिय गैर-वैदिक आस्तिक परंपराओं का विलय माना जाता है, विशेष रूप से वासुदेव-कृष्ण और गोपाल-कृष्ण के भागवत पंथ , साथ ही नारायणजो 7वीं से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में विकसित हुए थे। इसे शुरुआती शताब्दियों में वैदिक भगवान विष्णु के साथ एकीकृत किया गया था, और वैष्णववाद के रूप में अंतिम रूप दिया गया जब इसने अवतार सिद्धांत विकसित किया, जिसमें विभिन्न गैर-वैदिक देवताओं को सर्वोच्च भगवान विष्णु के अलग-अलग अवतारों के रूप में सम्मानित किया जाता है । राम , कृष्ण , नारायण , कल्कि , हरि , विठोबा , वेंकटेश्वर , श्रीनाथजी और जगन्नाथ लोकप्रिय अवतारों के नामों में से हैं जिन्हें एक ही सर्वोच्च सत्ता के विभिन्न पहलुओं के रूप में देखा जाता है।
वैष्णव परंपरा विष्णु के एक अवतार (अक्सर कृष्ण) के प्रति प्रेमपूर्ण भक्ति के लिए जानी जाती है, और इस तरह दूसरी सहस्राब्दी ई. में भारतीय उपमहाद्वीप में भक्ति आंदोलन के प्रसार की कुंजी थी। इसमें कई संप्रदायों ( संप्रदाय ) के चार वेदांत -स्कूल हैं: रामानुज का मध्यकालीन युग विशिष्टाद्वैत स्कूल , माधवाचार्य का द्वैत स्कूल , निम्बार्काचार्य का द्वैताद्वैत स्कूल और वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैत ।कई अन्य विष्णु-परंपराएं भी हैं। रामानंद (14वीं शताब्दी) ने राम-उन्मुख आंदोलन बनाया, जो अब एशिया का सबसे बड़ा मठवासी समूह है।
वैष्णव धर्म के प्रमुख ग्रंथों में वेद , उपनिषद , भगवद गीता , पंचरात्र (आगम) ग्रंथ, नलयिर दिव्य प्रबंधम और भागवत पुराण शामिल हैं
 मंदसौर जिले के नारायण दास  जी वैष्णव  कोटड़ा  बुजुर्ग एक जाने माने व्यक्तित्व हैं। 

बैरागी का महत्व बताने वाला एक श्लोक  है : -

नाम वैराग्य दंश विप्राण ,कम वैराग्य श्तोनी च: !
ज्ञान वैराग्य ममो दोही , त्याग वैराग्य मम दुर्लभ: 
!
अथार्त : - श्री कृष्ण भगवान कहते है की जो नाम से वैरागी है वह दस ब्राह्मणो के बराबर है जो कर्म  से बैरागी है वह 100 ब्राह्मणो के बराबर है और जो ज्ञान से बैरागी है वह मेरे अर्थात कृष्ण के सामान है, अतः जो त्यागी होते हुए बैरागी है वह मुझ से भी महान है|

सच्चा वैष्णव कौन है?

एक सच्चे वैष्णव में काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे बुरे गुण नहीं होते। उसे कोई अभिमान नहीं होता। वह कभी अपने पिता की आलोचना नहीं करता, बल्कि उनके प्रति आदरभाव रखता है। वह हर किसी में हरि को देखता है, और कभी किसी जीवित प्राणी को चोट नहीं पहुँचाता, चाहे वह मनुष्य हो या जानवर।

26.6.24

आँजणा जाति की जानकारी और इतिहास ,History of Anjana caste




 आँजणा समाज, चौधरी, पटेल, कलबी या पाटीदार समाज के नाम से भी जाना जाता है। आँजणा समाज की कुल २३२ गोत्रे हैं ।जिसमे अटीस ओड,आकोलिया, फेड़, फुवा,फांदजी, खरसान, भुतादिया, वजागांड, वागडा, फरेन, जेगोडा, मुंजी, गौज, जुआ लोह, इटार, धुजिया, केरोट, रातडा, भटौज, वगेरह समाविष्ट हैं । भव्य बादशाही भूतकाल धरानी आँजणा जाति का इतिहास गौरान्वित हैं ।
आँजणा कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं। जैसे भाट चारण के चोपडे में आँजणा समाज के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जोड़ ली है । जब परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए । युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके ९२ पुत्रो की मृत्यु हो गयी ।आठ पुत्र युध्भूमि छोड के आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये ।अर्बुदा देवी ने उनको रक्षण दिया । भविष्य मैं वो कभी सशत्र धारण न करे उस शर्त पर परशुराम ने उनको जीवनदान दिया ।उन आठ पुत्रो मैं से दो राजस्थान गए ।उन्होंने भरतपुर मैं राज्य की स्थापना  की उनके वंसज जाट से पहचाने गए । बाकि के छह पुत्र आबू मैं ही रह गए वो पाहता अंजन के जैसे और उसके बाद मैं उस शब्द का अपभ्रंश  होते आँजणा नाम से पहचाने गए ।
 जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम आलोक के मतानुसार  गुजरात में निवास करने वाले जाट समुदाय को आँजणा जाट या आँजणा चौधारी कहा जाता है। गुजरात के चौधरियों को आँजणा के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात के कई चौधरियों के गोत्र उत्तर भारत के जाटों के समान हैं
आँजणा जाट (अंजना, चौधरी) जालौर, पाली, सिरोही, जोधपुर, बाड़मेर, उदयपुर और चित्तौड़गढ़ जिलों में वितरित की जाती है। वे राजस्थानी की मारवाड़ी बोली बोलते हैं। मध्य प्रदेश और गुजरात में बनासकांठा, मेहसाणा, गांधीनगर, साबरकांठा में भी। अन्य उत्तर भारतीय जाट समुदाय की तरह, आँजणा चौधरी गोत्र बहिर्विवाह का पालन करते हैं।
राजस्थान में, आंजणा को दो व्यापक क्षेत्रीय प्रभागों में विभाजित किया गया है: मालवी और गुजराती। मालवी आँजणा चौधरी को आगे कई बहिर्विवाही कुलों में विभाजित किया गया है जैसे कि जेगोडा,अट्या, बाग, भूरिया, डांगी, एडिट, बकवास, गार्डिया, हुन, जुडाल, काग, कावा, खरोन, कोंडली, कुकल, कुवा, लोगरोड, मेवाड़, मुंजी, ओड।, तारक, वागडा,कुणीया, सुराणा, पोतरोड,भोड,कातरोटिया,टांटिया,फोक,हरणी,ठांह,सिलाणा,बोका और यूनाइटेड। अंजना राजस्थानी की मारवाडी बोली बोलती हैं।
पारंपरिक व्यवसाय खेती है, और आँजणा चौधरी मूल रूप से छोटे किसान किसानों का समुदाय है। उनके पास एक पारंपरिक जाति परिषद है, जो भूमि और वैवाहिक विवादों के विवादों को सुलझाती है। आँजणा हिंदू हैं, और उनके प्रमुख देवता अंजनी (अर्बुदा)माता हैं, जिनका मंदिर माउंट आबू में स्थित है। और श्री राजाराम जी महाराज, राजस्थान में जोधपुर जिले के शिकारपुरा में स्थित आश्रम है, श्री राजाराम जी महाराज आँजणा पटेल समाज के धर्म गुरु भी हैसोलंकी राजा भीमदेव पहले की पुत्री अंजनाबाई ने आबू पर्वत पर अन्जनगढ़ बसाया और वहां रहनेवाले आँजणा कहलाये ।मुंबई मैं गेझेट के भाग १२ मैं बताये मुजब इ. स. ९५३ में भीनमाल मैं परदेशियों का आक्रमण हुआ, तब कितने ही गुजर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र गए । उस वक्त आँजणा पटिदारो के लगभग २००० परिवार गाडे में भीनमाल का निकल के आबू पर्वत की तलेटी मैं आये हुए चम्पावती नगरी मैं आकर रहने लगे । वहां से धाधार मे आकर स्थापित हुए, अंत मे बनासकांठा ,साबरकांठा ,मेहसाना और गांधीनगर जिले मे विस्तृत हुए ।
सिद्धराज जयसिंह इए .स . 1335-36 मैं मालवा के राजा यशोवर्मा को हराकर कैद करके पटना में लकडी के पिंजरे मे बंद करके घुमाया था।मालवा के दंडनायक तरीके दाहक के पुत्र महादेव को वहिवाट सोंप दिया ।तब उत्तर गुजरात मे से बहुत से आँजणा परिवार मालवा के उज्जैन प्रदेश के आस -पास स्थाई हुए है ।वो पाटन आस पास की मोर, आकोलिया , वगदा ,वजगंथ,जैसी इज्जत से जाने जाते हैं ।आँजणा समाज का इतिहास राजा महाराजो की जैसे लिखित नहीं हैं ।धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई शिलालेखों मे बोध नहीं है।
   इस समाज के लोग मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात,मध्य प्रदेश ( मेवाड़ एवं मारवाङ क्षेत्र ) में रहते हैं ।आँजणा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। आँजणा समाज बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है एवं आजादी के बाद यह परिपाटी बदल रही है। समाज के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार की ओर बढ रहे हैं।इस समय समाज के बहुत से लोग,महानगरों और अन्य छोटे - बड़े शहरों मे कारखानें और दुकानें चला रहे है।आँजणा समाज के बहुत से लोग सरकारी एवं निजी सेवा क्षेत्र में विभिन्न पदों पर जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, अध्यापक, प्रोफेसर और प्रशासनिक सेवाओं जैसे आईएएस, आईएफएस आदि में हैं।
आँजणा समाज में कई सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने जन्म लिया है।अठारहवीं सदी में महान संत श्री राजाराम जी महाराज ने आँजणा समाज में जन्म लिया ।उन्होंने समाज में अन्याय ( ठाकुरों और राजाओं द्वारा ) और सामाजिक कुरितियों के खिलाफ जागरूकता पैदा की।उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। आँजणा समाज की सनातन( हिन्दू ) धर्म में मान्यता है।आँजणा समाज में अलग अलग समय पर महान संतों एवं विचारकों ने जन्म लिया हैं।इन संतो एवं विचारकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों एवं मठों का निर्माण भी करवाया।राजस्थान में जोधपुर जिले की लूणी तहसील में शिकारपुरा नामक गाँव में एक मठ ( आश्रम )का भी निर्माण करवाया।यही आश्रम आज श्री शिकारपुरा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ।
संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम,शिकारपुरा जोधपुर यह आश्रम राजस्थान के जोधपुर जिले के शिकारपुरा गाव में स्थित है।शिकारपुरा आश्रम लूणी से 13 किमी पर स्थित है लूणी राजस्थान के जोधपुर जिले में एक तहसील है । इस आश्रम की स्थापना उन्नीसवीं शताब्दी में संत श्री राजारामजी महाराज द्वारा की गयी थी ।
चौधरी आँजणा समाज के इतिहास पर कोई शिलालेख नहीं है। चौधरी समाज का यह इतिहास भाट की किताबों और पीढ़ियों से चली आ रही कहानियों और इसकी स्वीकृति देने वाली अन्य किताबों की जानकारी के आधार पर लिखा गया है। देवेंद्र पटेल द्वारा लिखित महाजाती की संदर्भ पुस्तक भी इस इतिहास का प्रमाण देती है। परशुराम स्वयं ब्राह्मण और ऋषि थे। महाभारत में यह भी उल्लेख है कि परशुराम ने पितामह भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या सिखाई थी। परशुराम ने इस पृथ्वी को इक्कीस बार निक्षत्रिय (क्षत्रिय विहीन) बनाया। जब उन्होंने अंततः पृथ्वी पर देखा, तो सहस्त्रार्जुन नामक एक क्षत्रिय राजा और उनके 100 पुत्र जीवित थे। परशुराम ने वहाँ पहुँच कर उसके 100 पुत्रों में से 92 को मार डाला। अन्य आठ बेटे युद्ध के मैदान से भाग गए और आबू पर 'मा अर्बुदा' के मंदिर के पीछे छिप गए। परशुराम वहां एक फ़रशी लेकर आए और उन्हें मारने की तैयार हुए। आठों घबरा गए और बचाने के लिए मा अर्बुदा से प्रार्थना की "हे मैया हमे बचाओ।" 'माँ अर्बुदा' प्रकट हुई और परशुराम से निवेदन किया, अरे ऋषिराज ये आठों अजनबी है। और उन्होंने मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इसलिए मैं उन्हें मरने नहीं दूंगी। ” परशुराम ने कहा कि आठ में से भविष्य में अस्सी हजार होंगे और वह मेरे खिलाफ युद्ध छेड़ेंगे? मा अर्बुदा ने उत्तर दिया, "मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि ये आठ अब अपने हाथों में हथियार नहीं रखेंगे, आज से ये कृषि कार्य करेंगे और पृथ्वी के पुत्र बन के रहेंगे।"' परशुराम का क्रोध शांत हुआ। जब वे वापस गए, तो वो आठो बाहर आए, माँ के सामने अपने हाथ जोड़ कर खड़े हुए, और कहा, 'मा आज से तुम हमारी माँ हो। अब हमें रास्ता दिखाओ। ' मा ने कहा तुम अजनबी हो। आप यहाँँ कृषि काम करो। आज से लोग आपको आँजणा के रूप में पहचानेंगे। "आगे बढ़, आँजणा तेरा छोड़ू न साथ तनिक। बड़े मन से बाँटना तेरे घर धी दूध रहे अधिक।" आँजणा ने भारत के विभिन्न राज्यों में रहने लगे। खेती और पशुपालन के व्यवसाय के साथ भारत के राज्यों में फैल गए। जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान और गुजरात। आज, आँजणा भारत के लगभग नौ राज्यों में रहते हैं और उन सभी ने मिलकर अखिल आँजणा महासभा का गठन किया। इसका मुख्य कार्यालय राजस्थान के आबू में है। उन्होंने देहरादून के पास एक बड़ा शिक्षण संस्थान भी स्थापित किया है।कुछ आंजना जाट लोग अपने को हिंदू देवता हनुमान की माता अंजना से संबंधित मानते हैं[

25.6.24

श्री देवनारायण मंदिर देवपुरा बामनी -सुवासरा -मंदसौर के प्रांगण मे बेंच लगने से भक्त प्रसन्न

 श्री देवनारायण मंदिर देवपुरा बामनी   को 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 

4 सिमेन्ट की बेंच समर्पित 

श्री देव नारायण मंदिर देवपुरा का विडिओ 



धार्मिक,आध्यात्मिक संस्थानों मे दर्शनार्थियों के लिए सिमेन्ट की बैंचों की व्यवस्था करना महान पुण्य का कार्य है। दान की भावना को साकार करते हुए डॉ. दयाराम जी आलोक मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मुक्ति धाम और मंदिरों के लिए नकद दान के साथ ही सैंकड़ों सीमेंट की बेंचें भेंट करने के अनुष्ठान को गतिमान रखे हुए हैं।इसी तारतम्य मे दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ की समिति को घसोई के राजेन्द्र जी धनोतिया का सहयोग मिला । देवपुरा बामनी के मंदिर का विडिओ भेजकर सिमेन्ट बेंच भेंट करने का सुझाव दिया। मंदिर बहुत अच्छा लगा . गाँव के सरपंच साब विक्रम सिंगजी से दान की अनुमति लेकर मंदिर मे दान पट्टिका स्थापित करते हुए 4 सिमेन्ट की बेंच भेजना प्रक्रिया मे है।

मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ   

मित्रों 
  परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं



 श्री देवनारायण  मंदिर देवपुरा बामनी 
4 सिमेन्ट बेंच दान 

दान पट्टिका भेजी गई 


देवपुरा  के श्री देवनारायण मंदिर मे दानपट्टिका स्थापित 



श्री देवनारायण मंदिर के संरक्षक और शुभचिंतक-

विक्रम सिंग जी सरपंच साब 9001526421

राजेन्द्र जी धनोतिया पत्रकार साब घसोई का सुझाव



श्री पञ्च मुखी बालाजी मंदिर सुराखेड़ी मे सिमेन्ट बेंचें लगने से लोग हर्षित

 श्री पञ्च मुखी बंजारी बालाजी धाम सुराखेड़ी  हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 

4 सिमेन्ट बेंच समर्पित 

 धार्मिक,आध्यात्मिक संस्थानों मे दर्शनार्थियों के लिए सिमेन्ट की बैंचों की व्यवस्था करना महान पुण्य का कार्य है। दान की भावना को साकार करते हुए डॉ. दयाराम जी आलोक मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मुक्ति धाम और मंदिरों के लिए नकद दान के साथ ही सैंकड़ों सीमेंट की बेंचें भेंट करने के अनुष्ठान को गतिमान रखे हुए हैं
  मंदसोर जिले  की गरोठ  तहसील के गाँव सुराखेड़ी का पञ्चमुखी बालाजी का मंदिर अपनी लोकेशन और आध्यात्मिक गतिविधियों  की लिए जाना जाता है।शामगढ़ से बोलिया जाने वाली सड़क पर स्थित है यह मंदिर।  दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 9826795656 की दान समिति ने इस 
सिलसले मे कृष्णकांत जी आकली दीवान के माध्यम से लालसिंग जी सुराखेड़ी से संपर्क किया। दान पर विमर्श के बाद दानपट्टिका मंदिर मे स्थापित की गई है। 4 बेंच समर्पित होंगी। 
श्री पञ्चमुखी बालाजी की जय हो !!

दान दाता की दान पट्टिका मंदिर की दीवार पर स्थापित की गई


 दान दाता की दान पट्टिका भेजी गई 


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का
आध्यात्मिक दान-पथ   

मित्रों 
  परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं


पञ्च मुखी बालाजी मंदिर सुराखेड़ी को 
4 सिमेन्ट बेंच दान 

पञ्चमुखी बालाजी मंदिर  सुराखेड़ी का विडिओ 



पञ्च मुखी बालाजी के मंदिर के शुभचिंतक 

लाल सिंग जी अध्यक्ष  शिव सेना 9770012197 

कृष्ण कान्त जी आकली दीवान की पहल  9174097674 


23.6.24

श्री हनुमान मंदिर जूनाखेड़ा पिपल्या हमीर आगर मालवा को समर्पित होंगी सिमेन्ट की 4 बेंच

 श्री हनुमान मंदिर जूनाखेड़ा पिपल्या हमीर आगर -मालवा हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 

4 सिमेन्ट बेंच समर्पित 

जूनाखेड़ा  पिपल्या हमीर  का  हनुमान जी का मंदिर आगर से बडोद जाने वाले मार्ग पर स्थित है। आगर शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर है। मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। बनावट और स्थापत्य  मनोहारी है। रंग रोगन की तो बात ही मत पूछो । यह  मंदिर क्षेत्र की  हिन्दू आबादी की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। यहाँ अखंड रामायण का पाठ भी निरंतर होता रहता है। अमृत लाल जी व्यास टोंकड़ा  शामगढ़ आए और इस मंदिर के लिए 4 बेंच दान करने का अनुरोध किया । दामोदर पथरी चिकित्सालय की दान समिति ने प्रस्ताव स्वीकृत किया और  दान पट्टिका बनाकर  मंदिर को भेज दी गई है । मंदिर के शुभचिंतक लाल सिंग जी ने मंदिर मे दान पट्टिका स्थापित करने का स्थान का फ़ोटो भेजा। दान पट्टिका लगाने पर बेंचें भेजी जाएंगी। जय हो जूनाखेड़ा बजरंगबली!

जूनाखेड़ा हनुमान मंदिर पिपल्या हमीर का विडिओ 


पिपल्या हमीर मंदिर हेतु दान पट्टिका 
जूनाखेड़ा हनुमान मंदिर पिपल्या हमीर लालसिंग जी ने प्लेट लगाने की जगह बताई 




दान पट्टिका निर्धारित स्थान पर लगाने पर दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ की तरफ से सिमेन्ट की 4 बेंच  भेजी जाएंगी 
..





22.6.24

मुक्तिधाम भानपुरा -मंदसौर -मध्य प्रदेश के सभागृह मे 11 बेंचें लगने से बढ़िया हुई बैठक व्यवस्था

  भानपुरा के मुक्तिधाम हेतु

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 

11 सीमेंट बेंच समर्पित    

मंदसौर जिले के भानपुरा नगर का मुक्ति धाम छोटे -बड़े महादेव पर्यटन स्थल की तरफ जाने वाले मार्ग पर स्थित है. मुक्ति धाम मे विकास कार्य चल रहे हैं। एक बरामदा है जिसका उपयोग श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए होता है|लकड़ी का गोदाम वाला कमरा भी बना हुआ है। | फर्श पर टाइल्स लगी हुई हैं। कुछ पेड़ भी लगाए हुए हैं।बंदरों के उत्पात से पेड़ पौधों के पनपने मे रुकावट आती है।  मुक्ति धाम की समिति विकास गतिविधियां चला रही है |पहिले मनोज जी  मंगलोरिया इस मुक्ति धाम  के  बतौर अध्यक्ष व्यवस्था देखते थे। अब वे समिति मे नहीं हैं । मंगलोरिया जी के अनुरोध पर समाजसेवी डॉ दयाराम जी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ अनिल, दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा इस मुक्ति धाम मे 11 सिमेन्ट की बेंचें भेंट की गईं हैं सभी बेंचें सभागृह मे रखवा दी गई हैं। दान दाता की दान -पट्टिका लोहे के चद्दर की फ्रेम मे सभागृह के पिलर पर स्थापित करवा दी गई है। वर्तमान समिति की जानकारी नहीं मिल पा रही है।  


      


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

मित्रों |
 परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|

  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 5 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|                                      

                                                        
भानपुरा के मुक्तिधाम को
 11  बेंच भेंट 

भानपुरा मुक्तिधाम मे बेंच लगीं

 

भानपुरा मुक्तिधाम में बेंचें ऐसी दिखती हैं
 


भानपुरा मुक्तिधाम समिति का आभार - पत्र 


मुक्ति धाम भानपुरा  के शुभ चिंतक -

रमेश जी राठौर आशुतोष शामगढ़ का सुझाव 

 पूर्व अध्यक्ष मुक्तिधाम समिति मनोज जी मंगलोरीया 80852-20499 


 डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा भानपुरा  के मुक्ति धाम हेतु दान सम्पन्न 

11.6.24

सतनामी संप्रदाय की जानकारी और इतिहास ,history of satnami samaj




सतनामी संप्रदाय , भारत में कई समूहों में से एक है जिसने सतनाम (संस्कृत शब्द सत्यानामन , "वह जिसका नाम सत्य है") के रूप में भगवान की समझ के इर्द-गिर्द रैली करके राजनीतिक और धार्मिक प्राधिकरण को चुनौती दी है।
प्रारंभिक सतनामी भिक्षुकों और गृहस्थों का एक संप्रदाय था जिसकी स्थापना 1657 में पूर्वी पंजाब के नारनौल में बीरभान ने की थी। 1672 में उन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब की अवहेलना की और उसकी सेना द्वारा कुचल दिए गए। उस संप्रदाय के अवशेषों ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में एक और संप्रदाय के गठन में योगदान दिया हो सकता है, जिसे साध (अर्थात, साधु , "अच्छा") के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अपने देवता को सतनाम के रूप में नामित किया था। लखनऊ के पास बाराबंकी जिले के जगजीवनदास के नेतृत्व में एक समान और मोटे तौर पर समकालीन समूह के बारे में कहा जाता है कि वह सूफी रहस्यवादी यारी शाह (1668-1725) के एक शिष्य से प्रभावित था उन्होंने एक व्यापक सृजनकर्ता भगवान की छवि निर्गुण ("समझदार गुणों से रहित") के रूप में पेश की , फिर भी जगजीवनदास ने हिंदू देवी-देवताओं के बारे में भी रचनाएं लिखीं , और जाति उन्मूलन , जो सतनामी पंथ का केंद्रीय हिस्सा है, उनके संदेश का हिस्सा नहीं था।
सबसे महत्वपूर्ण सतनामी समूह की स्थापना 1820 में मध्य भारत के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में हुई थीघासीदास, एक कृषि सेवक और चमार जाति के सदस्य (दलित या अछूत जाति जिसका वंशानुगत व्यवसाय चमड़ा बनाना था, जिसे हिंदू अपवित्र मानते हैं)। हालाँकि छत्तीसगढ़ के चमारों ने चमड़ा बनाना छोड़ दिया था और किसान बन गए थे, लेकिन उच्च हिंदू जातियाँ उन्हें अपवित्र मानती रहीं। उनके सतनाम पंथ ("सच्चे नाम का मार्ग") ने बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ी चमारों (जो इस क्षेत्र की कुल आबादी का छठा हिस्सा थे) को धार्मिक और सामाजिक पहचान दिलाने में सफलता प्राप्त की, जबकि उच्च जाति के हिंदुओं द्वारा उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता था और उन्हें हिंदू मंदिर पूजा से बाहर रखा जाता था। घासीदास को हिंदू देवताओं की मूर्तियों को कूड़े के ढेर में फेंकने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने नैतिक और आहार संबंधी संयम और सामाजिक समानता का उपदेश दिया। कबीर पंथ के साथ संबंध ऐतिहासिक रूप से कुछ चरणों में महत्वपूर्ण रहे हैं, और समय के साथ सतनामियों ने जटिल तरीकों से एक व्यापक हिंदू व्यवस्था के भीतर अपनी जगह बनाने के लिए बातचीत की है।
भारतीय इतिहास के 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में एक एक अभूतपूर्व प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व लेकर छत्तीसगढ़ के इस विशाल भूभाग में महामानव | महामानव युग पुरुष संत बाबा गुरु घासीदास अवतरित हुए वे अपने युग के सजग प्रहरी थे। अंधविश्वास , एवं संकीर्ण मनोविज्ञान से भरी भूमि से समाज को ऊपर उठाने का आजीवन प्रयास किया। हिंदु समाज के मनु वादियों और उनके आडंबरओ पर निर्मम प्रहार किया। महाकौशल छत्तीसगढ़ की विशाल धरती पर गुरु घासीदास प्रथम व एक-मेव मनीषी हैं, जिन्होंने मानव द्वारा बनाए गए तथाकथित जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था के उत्पीड़न के प्रति समाज को सजग बनाया। संत बाबा गुरु घासीदास ने सभी संप्रदायों में व्याप्त जड़ता का घोर विरोध किया, जो तर्क मूलक था । और इन्हीं आडंबर प्रधान संप्रदायों के विरोध में ही बाबा गुरु घासीदास ने सहज धर्म “ सतनाम धर्म ” को ही ससम्मान प्रतिष्ठापित किया।