19.3.23

राम मंदिर लसुडिया-गरोठ/ दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 5 सिमेन्ट बैंच समर्पित

श्री राम मन्दिर लसुडिया का अनुपम दृश्य
                                                      


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

अभिनव  दान -अनुष्ठान 

साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|  

 साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक का परिचय सुनिए इसी लिंक में 


श्री राम मंदिर लसुड़ीया तेहसील गरोठ का विडिओ 

17501/-  की  (5 बेंच+ 2001/- नकद  दान)


श्री राम मंदिर लसु डिया  मे 5 बेंच लगीं 20/12/2022 


गोविंद  जी पंवार  टेलर गारिया खेड़ी  ने यह विडिओ अपनी आवाज मे बनाया 




राम मंदिर लसूडीया के विकास हेतु 2000 रुपये दुर्गा शंकर जी पुजारी को  फोन पे किए 



सूचना-जो भी व्यक्ति  इस मुक्तिधाम  के  फोटो या विडियो  ९९२६५२४८५२ पर whatsap से भेजेंगे  वे फोटो उनके नाम के साथ पोस्ट किये जायेंगे. 

श्री भवानी शंकरजी चौहान टेलर 89896-92699 का सूझाव

मंदिर के मुख्य पुजारी दुर्गा शंकर जी बैरागी हैं|

श्री राम मंदिर ग्राम लसूड़ीया तहसील गरोठ बहुत ही सुंदर है और दीवारों पर देवी देवताओं के बहुत ही आकर्षक चित्र बनाए हुए हैं| साहित्य मनीषी डॉ .दयाराम जी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ.अनिल कुमार जी राठौर ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा इस मंदिर के प्रांगण मे दर्शनार्थियों के बैठने कि सुविधा हेतु 5 सीमेंट बेंच और मंदिर के विकास के लिए 2000 हजार रुपये भेंट किए| मंदिर के मुख्य पुजारी दुर्गा शंकर जी बैरागी हैं| मंदिर मे बेंच और शिलालेख लगाने का प्रस्ताव भवानी शंकर जी चौहान का है| यह विडिओ गारिया खेड़ी निवासी गोविंद जी पंवार ने अपनी आवाज मे बनाया है|

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852, दामोदर पथरी अस्पता  शामगढ़ 98267-95656  द्वारा श्री राम  मंदिर लसूडीया हेतु दान सम्पन्न 20/12/2022 
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 *मुक्ति धाम आगर -मालवा/मोती सागर तालाब बम्बई घाट/ डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 10 सिमेन्ट बेंच दान 


बालोदा-मंदसौर के तीन मंदिरों को डॉ अनिल दामोदर पथरी का हॉस्पिटल शामगढ़ द्वारा 9 बेंच समर्पित

                           बालाजी मंदिर बालोदा -गरोठ-मंदसौर के लिए

समाजसेवी डॉ .दयाराम जी आलोक शामगढ़ की तरफ से   

दर्शनार्थियों के बैठने हेतु 4 सिमेन्ट की बेंच दान     

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले का गाँव बालोदा चम्बल नदी की  गाँधीसागर झील के समीप  स्थित है। यहाँ का बालाजी का मंदिर गाँव के बीच मे है और लोगों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। मंदिर के सामने खुला प्रांगण  है। मंदिर बहुत छोटा  है और टीन  के चद्दर लगे हुए हैं। मंदिर  प्रबंधन की समिति के लोगों मे ज्यादा उत्साह नहीं दिखाई दिया । फिर भी समाज सेवी डॉ .दयाराम जी आलोक शामगढ़ ने अपने आध्यात्मिक दान-पथ के सिलसिले मे शामलाल जी विश्वकर्मा मिस्त्री के अनुरोध पर आँख मूदकर भरोसा करते हुए  इस मंदिर मे 4  सिमेन्ट की बेंचें  भेंट की हैं।खुले मे पड़ी होने और देख रेख के अभाव मे एक बेंच टूट गई है, दान दाता  का शिलालेख भी विस्थापित कर दिया गया है। दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ के माध्यम से इस छोटे से गाँव के 3 मंदिरों मे सिमेन्ट की 9  बेंच की व्यवस्था की गई है। हमारी टीम जब बलोदा पहुंची तो अनुभव किया कि शामलाल जी विश्वकर्मा पर भरोसा करना  गलत निर्णय था। एक अन्य  मंदिर के प्रबंधक शामनाथजी जो योगी हैं।ये  मंदिर मे शिलालेख लगाने की अपनी बात पर कायम रहने वाले व्यक्ति नहीं हैं।  जिन मंदिरों मे ऐसे प्रबंधक हों वहाँ  बाहर के दान दाताओं  को  दान  देते वक़्त  आँख खुली रखकर अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। नृसिंह मंदिर चंद्रावत राजाओं द्वारा निर्मित है जितेंद्र सिंग जी रावले ने नया निर्माण करवाया है। रावले ने नृसिंग मंदिर मे बेंच भेंट के लिए आभार माना !दान दाता  को संतुष्ट करना मंदिर समितियों का दायित्व बनता है. 

 


 मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

मित्रों ,
परमात्मा की असीम अनुकंपा और

कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से 
डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,नीमच ,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं| 



बालोदा मंदसौर जिले का चम्बल नदी के पास बस हुआ छोटा सा गाँव है| इस गाँव मे बालाजी का मंदिर है| यह मंदिर स्थानीय और आस पास के ग्रामीण अञ्चल के आस्थावान हिन्दू लोगों के लिए हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा भक्ति प्रदर्शित करने का धर्म स्थल है| इस मंदिर के लिए यात्रा करने के लिए शामगढ़,गरोठ ,सुवासरा ,मंदसौर से बसें उपलब्ध हो जाती हैं| मंदिर मे दर्शनार्थियों के बैठने की सुविधा हेतु समाज सेवी डॉ. दयाराम जी आलोक 9926524852 के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ. अनिल कुमार राठौर ,दामोदर पथरी चिकित्सालय 9826795656 ,शामगढ़ द्वारा 4 सीमेंट बेंच और 1501/- नकद दान समर्पित किया गया है|


5.3.23

गायत्री शक्तिपीठ शामगढ़-मंदसौर /डॉ. दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा एक लाख दो हजार रूपये का दान .

                                          

गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ में विकास एवं निर्माण हेतु 

समाजसेवी  डॉक्टर दयाराम जी आलोक द्वारा 

५१ -५१ हजार के दो दान समर्पित किये गए.

 
 गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ एक अद्वितीय आध्यात्मिक स्थल है, जो न केवल धार्मिक गतिविधियों के लिए बल्कि सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ वाचनालय, व्यायाम के उपकरण, स्वास्थ्य वर्धक पेय और वानस्पतिक जड़ी बूटियों की व्यवस्था इस शक्तिपीठ की विशेषता को दर्शाती है।
 मंदिर में माँ गायत्री, माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी जी की आकर्षक प्रतिमाएँ इस स्थल की आध्यात्मिक महत्ता को बढ़ाती हैं। गुरु पूर्णिमा पर आयोजित भंडारा और 'माला के मोती' ग्रुप की गतिविधियाँ इस स्थल की लोकप्रियता को दर्शाती हैं।
 समाजसेवी डॉ. दयाराम आलोकजी का 51 हजार का नकद दान और समाज सेवी रमेश चंद्र जी राठौर "आशुतोष" की महती भूमिका इस स्थल के निर्माण और प्रबंधन में उल्लेखनीय है। मोहन जी जोशी गायत्री  के प्रखर प्रवक्ता  हैं और गायत्री के अनुष्ठान में उनकी अग्रणी भूमिका भी प्रशंसनीय है।
गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ ने हिन्दू धर्मावलंबियों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है, जो इसकी आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियों के कारण है। यह स्थल लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सामाजिक सेवा के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा है

स्व. श्रीमति शांति देवी धर्म पत्नि  डॉ .दयाराम जी आलोक  की स्मृति  मे पुत्र डॉ अनिल कुमार राठौर ,दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ द्वारा ज्ञान मंदिर के लिए 51 हजार  दान का शिलालेख लगवाया 

ज्ञान मंदिर मे शिलालेख लगाया गया                                             


(यह 51 हजार का नकद दान डॉ. अनिल कुमार राठौर की

                                                               


स्वर्गीय मातुश्री श्रीमति शान्ति देवी धर्मपत्नी डॉ.दयाराम जी आलोक की पुण्य स्मृति में समर्पित )

मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

साथियों,

  शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
  दर्जी कन्याओं के स्ववित्तपोषित निशुल्क सामूहिक विवाह सहित 9 सम्मेलन ,डग दर्जी मंदिर मे भगवान  सत्यनारायण की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा ,मंदिरों और मुक्ति धाम को नकद और सैंकड़ों सिमेन्ट बेंच दान ,दर्जी समाज की वंशावलियाँ निर्माण,दामोदर दर्जी महासंघ का गठन ,सामाजिक कुरीतियों को हतोत्साहित करना जैसे अनेकों समाज हितैषी लक्ष्यों के लिए अथक संघर्ष के प्राणभूत डॉ .दयाराम आलोक अपने 84 वे वर्ष मे भी सामाज सेवा के नूतन अवसर सृजित करने के अरमान सँजोये हुए है
  परमात्मा की असीम अनुकंपा और

कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ  नीमच  जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

                                                                  

शामगढ़ गायत्री शक्तिपीठ के ज्ञान मंदिर हेतु

51 हजार रु. का प्रथम दान

गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ के अंतर्गत ज्ञानमंदिर के उदघाटन का विडियो



विडियो गुरु पूर्णिमा गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़  3/7/2023 



गायत्री शक्तिपीठ का दृश्य

                                                  
                                                                                                              

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 , दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा गायत्री शक्तिपीठ के अंतर्गत ज्ञान मंदिर हेतु 51 हजार का प्रथम दान समर्पित 

******************
                                                         
शामगढ़ की गायत्री शक्तिपीठ हेतु

                     
                   
विकास और निर्माण कार्य के लिए 


51 हजार रुपये का दूसरा दान समर्पित

शामगढ़ गायत्री शक्तिपीठ का विडियो



मोहन लाल जी जोशी 95888-27033 गायत्री के प्रखर प्रवक्ता की प्रेरणा



राजू जी छाबड़ा ९४२५९-७८५८४ का सुझाव



गायत्री शक्तिपीठ का प्रबंधन रमेशजी राठौर आशुतोष-99264-26499 करते हैं.


डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ हेतु 51 हज़ार का दूसरा नक़द दान सम्पन्न

4.3.23

मुक्ति धाम शिवना तट मंदसौर/डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा १८ सिमेन्ट बैंच भेंट

मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर के शिवना तट  स्थित मुक्तिधाम हेतु 

समाजसेवी  डॉ. दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 

18 सिमेन्ट बेंचें समर्पित 

 मंदसौर शहर का मुक्ति धाम शिवना नदी के किनारे स्थित है| यहाँ का मुक्ति धाम शांतिलाल जी बड़जात्या और उनकी टीम के अनवरत प्रयासों से एक आदर्श मुक्ति धाम बन गया है| मुक्ति धाम मे बैठक सुविधा को विस्तार देते हुए साहित्य मनीषी ,समाज सेवी डॉ.दयारामजी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर 9826795656 ,दामोदर पथरी चिकित्सालय ,शामगढ़ ने इस संस्थान को 18 सीमेंट बेच भेंट की|सभी भेंट की गई |बेंचें श्रद्धान्जली सभा हाल में लगा दी गई हैं. ज्ञातव्य है कि हमारी संस्था दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा मध्य प्रदेश और राजस्थान के नीमच,मंदसौर,रतलाम,झाबुआ,झालावाड,आगर जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम को सीमेंट बेंच और नकद दान का अनुष्ठान चलाया हुआ है.

 मंदसौर के मुक्तिधाम में 51 हजार दान का शिलालेख स्थापित किया गया                           


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

  दर्जी कन्याओं के स्ववित्तपोषित निशुल्क सामूहिक विवाह सहित 9 सम्मेलन ,डग दर्जी मंदिर मे सत्यनारायण की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा ,मंदिरों और मुक्ति धाम को नकद और सैंकड़ों सिमेन्ट बेंच दान ,दर्जी समाज की वंशावलियाँ निर्माण,दामोदर दर्जी महासंघ का गठन ,सामाजिक कुरीतियों को हतोत्साहित करना जैसे अनेकों समाज हितैषी लक्ष्यों के लिए अथक संघर्ष के प्राणभूत डॉ .दयाराम आलोक अपने 85वे वर्ष मे भी सामाज सेवा के नूतन अवसर सृजित करने के अरमान सँजोये हुए है
  परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

मंदसौर मे शिवना के किनारे 
मुक्तिधाम के लिए 18 सिमेन्ट बेंच भेंट.

Video of Bench donation to mukti dham Mandsaur 

                                                
  
    
मुक्ति धाम मंदसौर  के श्रद्धांजलि हाल  में १८ बैंच लगीं 


    मंदसौर के मुक्ति धाम मे  डॉ.अनिल कुमार  ,दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ की तरफ से 


मातुश्री  शांति देवी w/o डॉ.दयाराम जी आलोक की स्मृति में 18 बेंच लगी

मुक्ति धाम मंदसौर के शुभचिंतक ,प्रबंधक , संरक्षक -
                                                           
जवाहर लाल जी जैन मुक्तिधाम समिति के सचिव हैं. 

समाज सेवी  सुनील जी बंसल

शांतिलाल जी बड़जात्या 94259 23534 समिति के अध्यक्ष हैं.

मुक्ति धाम मंदसौर में शमशान समिति के पदाधिकारी कर्मचारी मानव की अंतिम सेवा कर अदा कर रहे इंसानियत का फर्ज समाज सेवी व शमशान समिति के पदाधिकारी श्री शांतिलाल जी बडजात्या मंदसौर में मानव की अंतिम सेवा कर अदा कर रहे इंसानियत का फर्ज |श्री सुनील जी बंसल दे रहे पिछले 25 वर्षों से नी स्वार्थ सेवा निरंतर कर रहे है। कोरो ना काल में शमशान समिति के माध्यम से कर्मचारी नगर पालिका कर्मी के सहयोग से करवा रहे अंतिम संस्कार की सभी तैयारी मृतकों के परिजनों को दुःख की घड़ी में करते है मदद जो लोग मुक्ति धाम से उनके परिजनो की अस्तिया हरिद्वार नहीं ले जा पाते उनकी मदद कर उनकी व कई लावारिश अस्थियों को हर वर्ष करते है गंगा जी में विधि विधान से प्रवाहित |

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा मंदसौर के मुक्तिधाम हेतु  18 बेंच  दान सम्पन्न 

28.2.23

मोची समाज की जानकारी और इतिहास :Mochi samaj history


मोची समाज का इतिहास विडिओ-



परिचय / इतिहास

मोची समाज के लोग चमड़े का काम करने वाले या जूते बनाने वाले होते हैं. मोची शब्द संस्कृत के 'मुञ्चक' या फ़ारसी के 'मोजा' और 'ई' से मिलकर बना है, जिसका मतलब है छुड़ाना. मोची समाज के लोग कई जातियों के गांवों में रहते हैं, लेकिन अपने अलग-अलग क्वार्टर में रहते हैं. हरियाणा के मोची का दावा है कि वे राजस्थान से पलायन करके आए हैं और मुख्य रूप से अंबाला के छावनी शहर में पाए जाते हैं. वे अभी भी ब्रजभाषा बोलते हैं और अंतर्जातीय विवाह करते हैं. फैक्ट्री निर्मित जूतों के प्रसार के साथ मोची का पारंपरिक व्यवसाय कम हो गया है. बड़ी संख्या में मोची भूमिहीन कृषि मजदूर हैं, जिनमें से कुछ अन्य व्यवसायों को अपना रहे हैं. मोची समाज को अनुसूचित जाति में रखा गया है और सकारात्मक कार्रवाई द्वारा समर्थित किया जाता है.
 मोची जाति को कुछ लोग चमार जाति की एक शाखा मानते हैं, लेकिन मोची ने इसे अस्वीकार कर दिया है, वे खुद को चमार से उच्च दर्जे की एक अलग जाति मानते हैं। चमार लोग खाल को संसाधित करते हैं, जबकि मोची इस कच्चे उत्पाद से चमड़े के उत्पाद बनाते हैं। अतीत में, कुछ मोची सड़े हुए मांस को हटाने और हड्डियों और खाल को बेचने में शामिल थे। मोची उपसमूहों और कुलों में विभाजित हैं, और उपसमूहों के बीच एक सामाजिक रैंकिंग प्रणाली है।
मोची लोग मुख्य रूप से भारत और बांग्लादेश में रहते हैं, लेकिन नेपाल और पाकिस्तान में भी छोटे समुदाय हैं।

उनका जीवन किस जैसा है?

चमड़े के उत्पाद बनाने के साथ-साथ मोची ईंटें और टोकरियाँ भी बनाते हैं। साल के एक निश्चित समय में, मोची परिवारों में सभी ईंटें बनाते हैं। हालाँकि, केवल पुरुष ही टोकरियाँ बनाते हैं। वे अपनी टोकरियाँ बेचने और दूसरे लोगों के खेतों में मज़दूर के रूप में काम करने जैसी आर्थिक गतिविधियों के ज़रिए दूसरे समुदायों से नियमित संपर्क में रहते हैं।
मोची लोगों की कुछ बुरी स्वास्थ्य आदतें हैं जैसे सूअर का मांस खाना, धूम्रपान करना, पान चबाना और पुरुषों के मामले में शराब पीना।

उनकी मान्यताएं क्या हैं?

मोची लोग हिंदू धर्म का पालन करते हैं, जो भारत का प्राचीन धर्म है। हिंदू धर्म दक्षिण एशिया के स्थानीय धर्मों के लिए एक व्यापक मुहावरा है, इसलिए यह बहुत विविध है। लोकप्रिय स्तर पर, हिंदू हिंदू देवताओं की पूजा और सेवा करते हैं। वे हिंदू मंदिरों में जाते हैं और सुरक्षा और लाभ प्राप्त करने की उम्मीद में अपने देवताओं को प्रार्थना, भोजन, फूल और धूप चढ़ाते हैं। ईसाई या यहूदियों की तरह उनका अपने देवताओं के साथ कोई व्यक्तिगत या पारिवारिक संबंध नहीं है। ऐसे अन्य हिंदू भी हैं जो बहुत अधिक दार्शनिक हैं, खासकर ब्राह्मणों में।
लगभग सभी हिंदू होली, रंगों का त्योहार और वसंत की शुरुआत / दिवाली, रोशनी का त्योहार / नवरात्रि, शरद ऋतु का उत्सव / और राम नवमी, राम के जन्मदिन जैसे वार्षिक उत्सवों में भाग लेते हैं।मोची दक्षिण एशिया में पाया जाने वाला एक व्यवसायिक जाति समुदाय है. चमड़े के जूते बनाना इनका पारंपरिक कार्य रहा है. ऐतिहासिक रूप से यह समुदाय चमड़े के सुरक्षात्मक शिल्प के निर्माण में शामिल था. सैनिकों के लिए सुरक्षात्मक चमड़े के कपड़े निर्माण में शामिल होने के कारण यह समुदाय सेना के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था. जूता निर्माण करना इनका पारंपरिक व्यवसाय था, लेकिन कारखानों में निर्मित जूतों के प्रसार के कारण इनके पारंपरिक व्यवसाय में गिरावट आई है. वर्तमान में अधिकांश मोची ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं, और स्थानीय रूप से प्रभावशाली जातियों पर निर्भर हैं. यह खेतिहर मजदूरों के रूप में काम करते हैं. इन्हें रोजी-रोटी की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन करना पड़ता है. यह अन्य व्यवसायों भी अपनाने लगे हैं. 
आइए जानते हैं मोची समाज का इतिहास, 
मोची ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मुञ्चक या फा़॰ मोजा (= जूता) + ई (प्रत्य॰) (= चमड़ा) छुड़ाना] चमड़े का काम बनानेवाला । वह जो जूते आदि बनाने का व्यवसाय करता हो ।


पाटनवाडा  गुजराती मोची समाज की महिलाएं 

मोची किस कैटेगरी में आते हैं?

गुजरात में, मोची (हिंदू) जाति को बक्शीपंच में ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मोची को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. भारत के कई राज्यों में इन्हें अनुसूचित जाति (scheduled caste) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

मोची की जनसंख्या, कहां पाए जाते हैं?

यह मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पाए जाते हैं. भारत में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात में पाए जाते हैं. पंजाब में यह व्यापक रूप से पाए जाते हैं और लगभग हर जिले में निवास करते हैं. हरियाणा के मोची राजस्थान से पलायन करने का दावा करते हैं. यह मुख्य रूप से अंबाला के छावनी शहर में पाए जाते हैं.


बांसवाडा में मोची समाज की महिलाऐं एक सामाजिक उत्सव में 

मोची किस धर्म को मानते हैं?

धर्म से यह हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई या बौद्ध हो सकते हैं. भारत में पाए जाने वाले ज्यादातर मोची हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं. मुस्लिम मोची भी पहले हिंदू थे जो 14 वीं मई और 16 वीं शताब्दी के बीच धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गए. विभाजन के पूर्व पंजाब के अधिकांश मोची को जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया था. मुस्लिम मोची पूरे उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं, लेकिन लखनऊ और फैजाबाद जिलो में इनकी अधिक एकाग्रता है. यह सुन्नी इस्लाम का अनुसरण करते हैं. अन्य मुसलमानों की तरह, यह बरेलवी और देवबंदी विभाजन में विभाजित हैं. हिंदी, अवधी और उर्दू भाषा बोलते हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश में पाए जाने ज्यादातर मोची मुस्लिम हैं.
  मोची समाज छोटा होने के बावजूद अनुशासन और अपनी धार्मिक भावना में अग्रणी है। यहां पर समाज में किसी भी प्रकार के विवाद को समाज के पंचों के माध्यम से निपटाया जाता है। करीब 95 प्रतिशत को समाज स्तर पर ही सुलझाया गया है। समाज अध्यक्ष नानुराम मोची, कोषाध्यक्ष शिवराम मोची, सचिव शिवराम मोची और संरक्षक बसंतलाल मोची हैं। समाज के समक्ष सास-बहू, ननद-भाभी और पिता पुत्र जैसे मामले भी आए हैं। इन्हें समाज स्तर पर निपटारा कराया गया है। कई मामलों मे कोर्ट के निर्णय से पहले राजीनामा कर समाज की मुख्यधारा से लोगों को जोड़ने का प्रयास किया गया है। समाज के 16 गांवों के चौखला स्तर पर मामले को निपटाने के लिए सहयोग लिया जाता है। समाज के लोग कुवैत में ज्यादा रोजगाररत हैं। ऐसे में समाज एकरूपता और अनुशासन के साथ विकास कर रहा है। हर 1 तारीख को मासिक बैठक का आयोजन होता है। इसमें समाज में किसी भी प्रकार विवाद उसी समय पंचों के सामने सुलझाया जाता है। जिसे पूरा समाज स्वीकार करता है। समाज में परिवारों के विवाद निपटारे के साथ ही शराबबंदी पर भी सख्ती की गई है। समाज के किसी भी प्रोगाम में शराब पर रोक लगा रखी है। समाज में सरकारी नौकरी के साथ ही व्यापार में भी अव्वल है।

मोची शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

मोची संस्कृत के शब्द मोचिका से बना है, जिसका अर्थ होता है- मोची या जूता बनाने वाला (cobbler). परंपरागत रूप से यह गांव में जूता बनाने का कार्य करते थे. मूल रूप से चमार जाति से संबंध रखते हैं. यह मूल रूप से चमार जाति की एक शाखा हैं.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।


20.2.23

माँ बगलामुखी मन्दिर नलखेडा मध्य प्रदेश/ डॉ.दयारामआलोक शामगढ़ द्वारा ५१ हजार का दान

 माँ बागलामुखी पीतांबरा शक्तिपीठ हेतु 

यात्रियों ,दर्शनार्थियों  की बैठक सुविधा  के लिए 

समाजसेवी डॉ .आलोक शामगढ़ द्वारा 

सीमेंट बेंचें और नकद दान 

बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा, मध्य प्रदेश एक बहुत ही पवित्र और चमत्कारी धर्म स्थल है, जहां देश के कोने-कोने से लोग दर्शन और पूजा-पाठ के लिए आते हैं। यह मंदिर आगर मालवा से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है और यहां बड़े-बड़े राजनेताओं, कलाकारों, तांत्रिकों का आना-जाना लगा रहता है।
नवरात्रि के पर्व के समय तो यहां दर्शनार्थियों की भीड़ को संभालने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है, और  यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस मंदिर का प्रबंधन तहसीलदार साहेब के निर्देशों के मुताबिक होता है और विनोदजी गवली यहां के मैनेजर हैं।
मंदिर के विकास के लिए शासन ने करोड़ों रुपये स्वीकृत किए हैं, जिससे यहां एक सुंदर गोलाकार  शेड बनाया गया है और रंग-रोगन से स्थान की खूबसूरती बढ़ गई है। समाज सेवी डॉ. दयाराम जी आलोक ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों को नकद दान और दर्शनार्थियों के विश्राम करने के लिए सीमेंट की बेंचें भेंट करने के आध्यात्मिक दान पथ के तहत इस मंदिर के लिए 51 हजार का दान समर्पित किया है।
इस दान में 12 सीमेंट की बेंचें और 10 हजार नकद दान शामिल हैं और दान दाता का शिलालेख लोगों को दान हेतु प्रेरित करने के लिए मंदिर प्रबंधक गवली जी ने रामायण पाठ भवन की दीवाल पर स्थापित कर दिया है।
 जय हो मां बगला मुखी

अखंड रामायण पाठ-भवन की दीवार पर 

दान पट्टी का दृश्य 




                                       

 मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

             आध्यात्मिक दान-पथ 
मित्रों,

   परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
  मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

माँ बगलामुखी शक्ति पीठ (नलखेड़ा)
12 सीमेंट बैंच +दस हजार रुपये

दान -पट्टिका  तहसीलदार श्री पारस जी की अनुमति से बगलामुखी  भेजी गई| 

 दान-पट्टिका   रामायण पाठ भवन की दीवार पर  

तहसीलदार आदरणीय पारस जी  की अनुमति से 

विनोद जी  गवली (कार्यालय प्रबंधक)  के  निर्देशानुसार रामायण -पाठ भवन 

की दीवार पर  स्थापित . १९/२/२०२३ 

दान पट्टिका  के इस फोटो में  कार्यालय प्रबंधक श्री विनोद जी गवली ,डॉ. दयाराम जी आलोक ,डॉ. अनिल जी दामोदर हैं 


माँ बगला मुखी का एक दृश्य 

माँ बगला मुखी का विडियो १९/२/२०२३ 



मन्दिर की समिति के खाते में नकद राशी जमा की गई|२०/२/२०२३ 


बगलामुखी शक्तिपीठ मे 12 बेंच लगीं  1/9/2022


बगलामुखी में दामोदर अस्पताल की भेंट की हुई बेंच का दृश्य का विडियो


बगलामुखी मंदिर का विडिओ


पेंटर अनिलजी  सूर्य वंशी को दान पट्टी वाली दीवार पर कलर  करने का चार्ज १५००/

मोहनलाल जी रान्गोट के नंबर पर  फोन  किये 

बगलामुखी मंदिर मे बेंच पर बैठे  यात्री 

बगलामुखी मंदिर मे स्थापित शिलालेख  के फ़ोटो मे झाबुआ की अल्पना देवी और ऐश्वर्या चोहान 

माँ बगला मुखी के दरबार में डॉ अनिल कुमार जी " दामोदर पथरी अस्पताल" शामगढ़ .


झाबुआ का चौहान परिवार बगलामुखी के दरबार में  विडियो




यह मंदिर सुसनेर नगर से करीब 26 किलोमीटर है.

मंदिर के कार्यकलापों का प्रबंधन तहसीलदार सा.

श्री पारस जी  ७६९२९-१२०६१ के दिशा निर्देशों के अनुसार होता है|

मंदिर के कार्यालय प्रबंधक श्री  विनोदजी  गवली 98933-30300   हैं 
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माँ बगला मुखी का चमत्कारिक भव्य मन्दिर मध्य प्रदेश के आगर जिले के नलखेड़ा शहर में स्थित है|
  दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या बगलामुखी के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। उनका स्वरूप, मंत्र, साधना, आराधना, पूजा और बगलामुखी भक्ति को क्या वरदान देती है इस संबंध में संक्षिप्त में जानिए।
1. बगलामुखी का अर्थ- बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुल्हन। कुब्जिका तंत्र के अनुसार, बगला नाम तीन अक्षरों से निर्मित है व, ग, ला; 'व' अक्षर वारुणी, 'ग' अक्षर सिद्धिदा तथा 'ला' अक्षर पृथ्वी को संबोधित करता है। अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है।
2. देवी का प्राकट्य- बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। एक अन्य मान्यता अनुसार देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से संबंधित हैं। परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती हैं। परन्तु, कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से संबंध भी रखती हैं।
3. देवी का स्वरूप- इनके कई स्वरूप हैं। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित हैं। देवी, विशेषकर चंपा फूल, हल्दी की गांठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला धारण करती हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।
देवी देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं।
4. तीन ही शक्तिपीठ हैं- भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।
5. युद्ध में दिलाती है विजय : युद्ध में विजय दिलाने और वाक् शक्ति प्रदान करने वाली देवी- माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। कहते हैं कि नलखेड़ा में कृष्ण और अर्जुन ने महाभारत के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी।
महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर अर्जुन ने कई जगह जाकर शक्ति की साधना की थी। उनकी साधना के वरदान स्वरूप शक्ति के विभिन्न रूपों ने पांडवों की मदद की थी। उन्हीं शक्ति में से एक माता बगलामुखी भी साधना भी की थी। कहते हैं कि युद्ध में विजय की कामना से अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उज्जैन में हरसिद्ध माता और नलखेड़ा में बगलामुखी माता का पूजन भी किया था। वहां उन्हें युद्ध में विजयी भव का वरदान मिला था।
6. उपासना का लाभ : माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। शांति कर्म में, धन-धान्य के लिए, पौष्टिक कर्म में, वाद-विवाद में विजय प्राप्त करने हेतु देवी उपासना व देवी की शक्तियों का प्रयोग किया जाता हैं। देवी का साधक भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर लेते हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकाल कर सही करती हैं।
7. बगलामुखी का मंत्र- हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला 'ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम:' दूसरा मंत्र- 'ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
8. बगलामुखी की साधना- सर्वप्रथम देवी की आराधना ब्रह्मा जी ने की थी, तदनंतर उन्होंने बगला साधना का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया, कुमारों से प्रेरित हो देवर्षि नारद ने भी देवी की साधना की। देवी के दूसरे उपासक स्वयं जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु हुए तथा तीसरे भगवान परशुराम। इनकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिक काल में समय समय पर की है।
इस महाविद्या की उपासना या साधना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए। पीले फूल और नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं।
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 *मुक्ति धाम आगर -मालवा/मोती सागर तालाब बम्बई घाट/ डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 10 सिमेन्ट बेंच दान