30.6.16

आचार्य श्री राम शर्मा के उपदेश वचन



आचार्य श्रीराम शर्मा के उपदेश

*इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है।
*जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं।
*मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय।
मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है।
*असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया।
*जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥
*केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं।
*नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥
*मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं।
*प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी।
*मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले।
*संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया।
*समाज के हित में अपना हित है।
*सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें।
*उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥
*बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है।
*जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय
*विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है।
*जब तक व्‍यक्ति असत्‍य को ही सत्‍य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्‍य को जानने की जिज्ञासा उत्‍पन्‍न नहीं होती है।
*अवसर तो सभी को जिन्‍दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्‍त पर सही तरीके से इस्‍तेमाल कुछ ही कर पाते हैं।
वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है ।
धनवान नहीं चारित्र्यवान ही सुख पाते है ।
विकास की सबसे बड़ी बाधा मनुष्य के अहंकारपूर्ण विचार है ।
बहादुरी का अर्थ है – हिम्मत भरी साहसिकता, निर्भिकता, पुरुषार्थ परायणता ।
स्वाध्याय और सत्संग में जितना अधिक समय लगाया जाता है, उतनी ही कुविचारो से सुरक्षा बन पड़ती है ।
: आचार्य सफलताये अपने ही पुरुषार्थ और परिश्रम का फल होती है ।
आत्म प्रशंसा तथा बडबोलेपन में लगा मनुष्य कोई ठोस कार्य नहीं कर सकता ।
: तीव्र इच्छाशक्ति के बिना कोई महत्वपूर्ण वस्तु प्राप्त नहीं होती ।
असफलता केवल यह सिद्ध कराती है कि सफलता का प्रयत्न पुरे मन से नहीं हुआ । :
मनुष्य की दुर्बलता से बढाकर और कोई बुराई नहीं ।











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