10.6.16

सुन्दरकाण्ड :Sundarkand in Hindi



  1. सुन्दरकाण्ड – Sundarkand in Hindi-----विडियो लिंक
  2. चौपाई – सुंदरकाण्ड      
  3. सखा कही तुम्ह नीति उपाई।
    करिअ दैव जौं होइ सहाई॥
    मंत्र न यह लछिमन मन भावा।
    राम बचन सुनि अति दुख पावा॥
    नाथ दैव कर कवन भरोसा।
    सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥
    कादर मन कहुँ एक अधारा।
    दैव दैव आलसी पुकारा॥
    सुनत बिहसि बोले रघुबीरा।
    ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥
    अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई।
    सिंधु समीप गए रघुराई॥
    प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई।
    बैठे पुनि तट दर्भ डसाई॥
    जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए।
    पाछें रावन दूत पठाए॥
    दोहा – Sunderkand
    सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
    प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ॥51॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ।
    अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
    रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने।
    सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥
    कह सुग्रीव सुनहु सब बानर।
    अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥
    सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए।
    बाँधि कटक चहु पास फिराए॥
    बहु प्रकार मारन कपि लागे।
    दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
    जो हमार हर नासा काना।
    तेहि कोसलाधीस कै आना॥
    सुनि लछिमन सब निकट बोलाए।
    दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए॥
    रावन कर दीजहु यह पाती।
    लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥
    दोहा – Sunderkand
    कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
    सीता देइ मिलहु न त आवा कालु तुम्हार ॥52॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    तुरत नाइ लछिमन पद माथा।
    चले दूत बरनत गुन गाथा॥
    कहत राम जसु लंकाँ आए।
    रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥
    बिहसि दसानन पूँछी बाता।
    कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥
    पुन कहु खबरि बिभीषन केरी।
    जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥
    करत राज लंका सठ त्यागी।
    होइहि जव कर कीट अभागी॥
    पुनि कहु भालु कीस कटकाई।
    कठिन काल प्रेरित चलि आई॥
    जिन्ह के जीवन कर रखवारा।
    भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥
    कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी।
    जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥
    दोहा – Sunderkand
    की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
    कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥53॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें।
    मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥
    मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा।
    जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥
    रावन दूत हमहि सुनि काना।
    कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥
    श्रवन नासिका काटैं लागे।
    राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥
    पूँछिहु नाथ राम कटकाई।
    बदन कोटि सत बरनि न जाई॥
    नाना बरन भालु कपि धारी।
    बिकटानन बिसाल भयकारी॥
    जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा।
    सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥
    अमित नाम भट कठिन कराला।
    अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥
    दोहा – Sunderkand
    द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
    दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ॥54॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    ए कपि सब सुग्रीव समाना।
    इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना॥
    राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं।
    तृन समान त्रैलोकहि गनहीं॥
    अस मैं सुना श्रवन दसकंधर।
    पदुम अठारह जूथप बंदर॥
    नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं।
    जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं॥
    परम क्रोध मीजहिं सब हाथा।
    आयसु पै न देहिं रघुनाथा॥
    सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला।
    पूरहिं न त भरि कुधर बिसाला॥
    मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा।
    ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा॥
    गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका।
    मानहुँ ग्रसन चहत हहिं लंका॥
    दोहा – Sunderkand
    सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम।
    रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम ॥55॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    राम तेज बल बुधि बिपुलाई।
    सेष सहस सत सकहिं न गाई॥
    सक सर एक सोषि सत सागर।
    तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥
    तासु बचन सुनि सागर पाहीं।
    मागत पंथ कृपा मन माहीं॥
    सुनत बचन बिहसा दससीसा।
    जौं असि मति सहाय कृत कीसा॥
    सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई।
    सागर सन ठानी मचलाई॥
    मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई।
    रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई॥
    सचिव सभीत बिभीषन जाकें।
    बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें॥
    सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी।
    समय बिचारि पत्रिका काढ़ी॥
    रामानुज दीन्हीं यह पाती।
    नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती॥
    बिहसि बाम कर लीन्हीं रावन।
    सचिव बोलि सठ लाग बचावन॥
    दोहा – Sunderkand
    बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस।
    राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस ॥56(क)॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग।
    होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग ॥56(ख)॥
    सुनत सभय मन मुख मुसुकाई।
    कहत दसानन सबहि सुनाई॥
    भूमि परा कर गहत अकासा।
    लघु तापस कर बाग बिलासा॥
    कह सुक नाथ सत्य सब बानी।
    समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी॥
    सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा।
    नाथ राम सन तजहु बिरोधा॥
    अति कोमल रघुबीर सुभाऊ।
    जद्यपि अखिल लोक कर राऊ॥
    मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही।
    उर अपराध न एकउ धरिही॥
    जनकसुता रघुनाथहि दीजे।
    एतना कहा मोर प्रभु कीजे॥
    जब तेहिं कहा देन बैदेही।
    चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही॥
    नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ।
    कृपासिंधु रघुनायक जहाँ॥
    करि प्रनामु निज कथा सुनाई।
    राम कृपाँ आपनि गति पाई॥
    रिषि अगस्ति कीं साप भवानी।
    राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी॥
    बंदि राम पद बारहिं बारा।
    मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा॥
    दोहा – Sunderkand
    बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
    बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ॥57॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    लछिमन बान सरासन आनू।
    सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
    सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति।
    सहज कृपन सन सुंदर नीति॥
    ममता रत सन ग्यान कहानी।
    अति लोभी सन बिरति बखानी॥
    क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा।
    ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
    अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा।
    यह मत लछिमन के मन भावा॥
    संधानेउ प्रभु बिसिख कराला।
    उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥
    मकर उरग झष गन अकुलाने।
    जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
    कनक थार भरि मनि गन नाना।
    बिप्र रूप आयउ तजि माना॥
    दोहा – Sunderkand
    काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
    बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच ॥58॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे।
    छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥
    गगन समीर अनल जल धरनी।
    इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥
    तव प्रेरित मायाँ उपजाए।
    सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥
    प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई।
    सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥
    प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही।
    मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही॥
    ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
    सकल ताड़ना के अधिकारी॥
    प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई।
    उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥
    प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई।
    करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥
    दोहा – Sunderkand
    सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ।
    जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ ॥59॥
    जय सियाराम जय जय सियाराम
    चौपाई – सुंदरकाण्ड
    नाथ नील नल कपि द्वौ भाई।
    लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥
    तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे।
    तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥
    मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई।
    करिहउँ बल अनुमान सहाई॥
    एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ।
    जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥
    एहि सर मम उत्तर तट बासी।
    हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥
    सुनि कृपाल सागर मन पीरा।
    तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥
    देखि राम बल पौरुष भारी।
    हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥
    सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा।
    चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥
    छं० – निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ।
    यह चरित कलि मलहर जथामति दास तुलसी गायऊ॥
    सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना।
    तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥
    दोहा – Sunderkand
    सकल सुमंगल दायक र
    घुनायक गुन गान।सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ॥60॥






कोई टिप्पणी नहीं: