1000 साल में पूरे आर्यावर्त का इस्लामीकरण क्यों नहीं हो पाया??
1000 साल में पूरे आर्यावर्त का इस्लामीकरण क्यों नहीं हो पाया|एक कुतर्क आखिर हिन्दू 1000 सालों तक हुए इस्लामी हमलों में कैसे सुरक्षित बचा ?
इस्लाम की आंधी जिसने आधे एशिया को अरबी मजहब का गुलाम बना दिया यहाँ से आगे क्यों नहीं बढ़ पाया
इन्टरनेट पर मुस्लिम ये बात बहुत कहते हैं जो कि कुछ कुतर्की मुस्लिम विद्वानों की सोच का नतीजा है जो वो इस्लामी शासनकाल के खून और लाशों के ढेर को छुपाने , गैर मुस्लिम के ऊपर किये गए अत्याचारों को झूठा साबित करने , मंदिरों की लूट और कत्लेआम को राजनीतिकरण से जोड़ कर , इस्लाम को शान्ति का मजहब साबित करने और खुद को पाक साफ़ साबित करने के लिए करते हैं |वैसे तो बहुत से देश में इस्लामीकरण और उसके बाद हुए कत्लेआम की निशानियाँ भी शेष नहीं है पर फिर भी बहुत सी सभ्यताएं इतना सब होने के बाद भी सर उठा के खड़ी हुई हैं इनमे तत्कालीन पारस यूरोप का एक बड़ा हिस्सा और भारत प्रमुख हैं |जहाँ पारस आज बहुत हद तक इस्लामीकरण की चपेट में है पर आज से कुछ साल पहले वहां की संस्कृति भारत की तरह विकसित थी इतिहास में नजर डालने पे पता चलता है की भारत के राजाओं में राजनीतिक एवं पारिवारिक सम्बन्ध थे |
आखिर 1000 साल में पूरे आर्यावर्त का इस्लामीकरण क्यों नहीं हो पाया जबकि मुस्लिम शासक पूरी ताकत से मंदिरों को तोड़ के मस्जिदे बनवा रहे थे लूट रहे थे धार्मिक स्थानों पे कब्रिस्तान बसाए जा रहे थे , हिन्दुओं को मारा जा रहा था और महिलाओं से ज्यादतियां हो रही थी फिर भी मुस्लिम विचारक इस बात से परेशान हो जाते हैं आखिर इतने सब के बाद भी ये हिन्दू बच कैसे गया आज भी मुस्लिम सिर्फ ३० % हो पाए जब बांग्लादेशियों को भी बसा लिया |
1 – हिन्दूवीरों की तलवारें
तलवारें जो सदा मलेक्षों के खून की प्यासी रहीं जिन्होंने अपने जीते जी मुस्लिम आक्रान्ताओं को अपने राज्यों में घुसने नहीं दिया डेक्कन वीर शिवाजी और मराठा राजाओं ने 1670 से औरंगजेब की सेनाओं को हराते हुए कुछ ही वर्षों में पुरे मुग़ल साम्राज्य को उखाड़ फेका और 1818 तक राज्य किया उन्होंने हिन्दुकुश पर्वत के आखिरी छोर अफगानिस्तान तक भगवा झंडे गाड दिए |
राजस्थान में राजपूतों और महाराणा प्रताप जैसे वीरों ने कभी मलेचों को टिकने ही नहीं दिया |
भरतपुर और मथुरा में जाट वीरों ने दुशमनो को मार मार के भगाया , वीरदुर्गादास राठौर जैसे राजाओं ने , बुंदेलखंड के वीर छत्रसाल, विजयगढ़ के राजा कृष्णदेव ने इस्लामी शासन जड़ो को कभी उत्तर भारत में मजबूत नहीं होने दिया हिन्दू समाज के लिए हमेशा ऐसे राज्य उपलब्ध थे जहाँ वो सुरक्षित थे |
दूसरी तरफ सिख गुरुओं ने बंदा बैरागी हरी सिंह नलवा और महराजा रणजीत सिंह ने भी अपने अपने छेत्रों में मुस्लिम आक्रांताओ की इट से इट बजा दी |
कुल मिलाके जितनी तेजी से मुस्लिम शासक सत्ता में आये उतनी ही तेजी से सम्पूर्ण भारत में शुर वीरों ने उनसे अपनी तलवारें भी तेज की |
2 – हिन्दुओं में मलेक्षों के प्रति नफरत –
हिन्दुओं के कत्लेआम , औरतों ( विधवा , शादीशुदा , या नाबालिग लड़कियों ) के प्रति होने वाले मुस्लिम सेनाओं और राजाओं के व्यभिचारो , बलात धर्मान्तरण , मंदिरों की लूट और तोड़फोड़ , मंदिरों में गाये की हत्या , धार्मिक स्थलों को तोड़ फोड़ के मस्जिद और कब्रिस्तान बनाने की वजह से समस्त हिन्दू समाज में मलेक्षों के प्रति नफरत थी भले ही बलात धर्मान्तरित किसी एक ही परिवार के लोग होते थे पर वे सभी सामजिक रूप से समाज से निष्काषित ही थे जिस कारण समाज में एक भावना काम कर रही थी और लोग अत्याचारों को सहते हुए भी धर्मान्तरित नहीं हुए |
मुख्य आजीविका का साधन कृषि था और पूरे देश की जमीनें खाली जब कही मुस्लिम शासन पहुचता था हिन्दू समाज वो क्षेत्र ही छोड़ देते थे और नए स्थानों पे बस के नारकीय जीवन से बच जाते थे और अपनी और अपने घर वालों की इज्जत आबरू और धर्म की रक्षा कर लेते थे | ऐसा सदियों से हो रहा था तो ये कोई नई बात नहीं थी मुस्लिम शासन काल से पहले भी जब कोइ राजा युद्ध हार जाता था तो या तो वो किसी मित्र राज्य में शरण लेता था मंत्रियों के साथ या बंदी बना लिया जाता था पर जो मुस्लिम सेनाये करती थी वो कोई नहीं क्योंकि मुस्लिम सेनाओ को हिन्दू लड़कियों को अपने हरम में भरने की आदत थी तो यही था जो वो कर सकते थे |
उदाहरण के लिए जब गुजरात में मुस्लिम शासन आया तो सौराष्ट्र के भगेल राजा रावल चले गए |
उत्तर भारत के झांसी चले गए |
जब शिवाजी का शासन आया तो बहुत से ब्राह्मण वहां चले गए |
ये सरल तरीका था की शिकार ही वहां से हट जाए जहाँ शिकारी पहुचे और इस्लामी शासन में अशक्त छोटे राज्यों की प्रजा के द्वारा अपनाया गया | हिन्दुओं ने लगातार प्रवास का नुकसान स्वीकार किया पर इस्लाम में परिवर्तन नहीं किया |
3 – जजिया –
हिन्दुओं ने मुस्लिम शासकों के द्वारा लगाया गया घ्रणित शरिया टैक्स जजिया स्वीकार किया और पर जनेऊ को नहीं छोड़ा | उच्च कुलीन हिन्दुओं और राजाओं को इस्लाम में परिवर्तन के लिए पैसे / पोस्ट / मुस्लिम महिलाओं ( हरम की ) का भी प्रोत्साहन दिया गया पर शहद ही किसी ने इन प्रस्तावों को स्वीकार किया सभी ने घ्रणित इस्लामी टैक्स को भुगतान किया पर हिन्दू धर्म को नहीं छोड़ा | तलवार को छोड़ कर हुए इन धृष्ट विचारों के युद्ध में भी समाज ने न झुकते हुए पूरी क्षमता से खुद को बचाए रक्खा | अकबर के नवरतन आदि इन्ही चालों का हिस्सा थे हिन्दुओं को आकर्षित करने के लिए |
4 – भक्ति आन्दोलन –
हिंदूइस्म को समेट के रखने में संतो का अविश्वसनीय योगदान रहा धर्मान्तरित हिन्दुओं एवं दुखी हिन्दू समाज को अलग अलग संतों ने श्रेष्टतम हिन्दू धर्म का सन्देश देते हुए उन्हें आपस में जोड़े रक्खा ये भक्ति आन्दोलन का ही असर था की कुछ पीढ़ी पूर्व धर्मान्तरित हुए हिन्दू तो क्या जन्मजात अरबी मुस्लिम भी हिंदूइस्म में खिचे चले आये |
रसखान और औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा बेगम और भतीजी ताज बेगम महान कृष्ण भक्त हुई जिन्होंने हिन्दुइज्म में न आ पाने के बाद भी भक्तिरस से हिन्दू या मुसलमान क्या सम्पूर्ण आर्यावर्त को तृप्त कर दिया |
ये सब संभव हुआ भक्ति आन्दोलन के कारण |
भक्ति आन्दोलन के द्वारा हिन्दू धर्म ने इस्लाम के प्रचार, जोर-जबरजस्ती एवं राजनैतिक हस्तक्षेप का कड़ा मुकाबला किया। इसका बहुत हद तक इस्लामी विचारधाराओं पे असर पड़ा जिसके बचाव के लिए सूफीवाद का जाल फेका गया जिसे हम आज भी पीर फ़कीर कब्र और साईं के रूप में देख रहे हैं |
भक्ति आन्दोलन बहुत कम समय में पूरे दक्षिणी एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप) में फैला तथा लम्बे काल तक चला।
इसमें समाज के सभी वर्गों (निम्न जातियाँ, उच्च जातियाँ, स्त्री-पुरुष, सनातनी, सिख, मुसलमान आदि) का प्रतिनिधित्व रहा।
5 – शुद्धि आन्दोलन –
शुद्धि आन्दोलन का उद्देश्य बलात धर्मान्तरित लोगों को वापस हिन्दू धर्म में लाना था दयांनंद द्वारा चलाये गये ‘शुद्धि आन्दोलन’ के अन्तर्गत उन लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में आने का मौका मिला जिन्होने किसी कारणवश इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। एनी बेसेंट ने कहा था कि स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होने कहा कि
“ ‘भारत भारतीयों के लिए है। “
शुद्धि आन्दोलन ने कुछ ही समय में लाखों बलात धर्मान्तरित मुसलमानों को स्वधर्म में वापसी करवाई |
6 – मुस्लिम शासकों के अरबी शौक –
अधिकतर मुस्लिम शासक अरबी मरदाना बीमारियों से पीड़ित थे | बाबर जहाँ समलैंगिक और नशेडी था वही शाहजहाँ जहाँगीर अकबर आदि अपने हरम भरने में व्यस्त थे | शाहजहाँ शराब में डूबा रहता था |
7 – इस्लाम का नैतिक रूप से आर्य विरुद्ध होना –
इस्लामी आचरण नैतिक रूप से उसकी शिक्षाओ के कारण वेद विरुद्ध था तो किसी भी आर्य के मन में वो कैसे घुसता ? अधिकतर मुसलमान मांसाहारी और कब पूजक हो जाते थे उन्हें नहाने और शरीर की शुद्धता से कोई मतलब नहीं था जबकि हिन्दू सुबह शाम नहाते थे , मॉस , शराब और बहुविवाह आदि प्रथाएं मुस्लिमो में थी तो जो भी मुसलमान था उसका समाज सिर्फ उतना ही था जहाँ वो है अन्य समाज से वो पूर्णतया निष्काषित था इसीलिए उस समय के समाज ने भी मलेक्ष जैसे शब्द का इस्तेमाल मुसलमानों के लिए किया था |
अंत में अरबों को शारीरिक विजय तो अवश्य प्राप्त हुई, परन्तु धार्मिक रूप में हिन्दू धर्म के युक्ति-युक्त सिद्धान्तों के सामने इस्लाम को पराजय प्राप्त हुई। इसी सत्य को मौलाना अल्ताफ हुसैन हालीजी ने इन शब्दों में स्वीकार किया है-
वह दीने हिजाजीका बेबाक बेड़ा।
https://pparihar.com/ से साभार
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- विशिष्ट कवियों की चयनित कविताओं की सूची (लिंक्स)
- स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास "नीरज"
- यात्रा और यात्री - हरिवंशराय बच्चन
- शक्ति और क्षमा - रामधारी सिंह "दिनकर"
- राणा प्रताप की तलवार -श्याम नारायण पाण्डेय
- वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्राकुमारी चौहान
- सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा-अल्लामा इकबाल
- कुछ बातें अधूरी हैं, कहना भी ज़रूरी है-- राहुल प्रसाद (महुलिया पलामू)
- पथहारा वक्तव्य - अशोक वाजपेयी
- कितने दिन और बचे हैं? - अशोक वाजपेयी
- उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक
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- तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार -शिवमंगलसिंह सुमन
- सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक
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- जंगल गाथा -अशोक चक्रधर
- मेमने ने देखे जब गैया के आंसू - अशोक चक्रधर
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- रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक
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- राम की शक्ति पूजा -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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- सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक
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- हम पंछी उन्मुक्त गगन के -- शिवमंगल सिंह सुमन
- उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक
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- रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक
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