मित्रों,भारत में जाती व्यवस्था प्राचीन काल से वैदिक काल से ही चली आ रही है| जाती इतिहास प्रस्तुति की श्रृंखला में आज हम तेली ,साहू ,राठौर जाती के गौरवशाली इतिहास पर बात कर रहे हैं
तेली समुदाय की उत्पत्ति और इतिहास कई पहलुओं से जुड़ा है। तेली समुदाय को तेल निकालने और बेचने से संबंधित व्यवसाय के कारण यह नाम मिला है। यह समुदाय हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और पारसी सहित विभिन्न धर्मों में पाया जाता है। तेली समुदाय का इतिहास सदियों पुराना है और यह भारत के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है।
साहू समाज की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के प्राचीन ग्रामों में हुई थी, जहां उनके पूर्वज अत्यंत गरीब थे। उन्होंने अपने रोजगार के रूप में उत्पादन और विपणन की व्यवस्था की और इस प्रकार धीरे-धीरे समृद्धि हासिल की। साहू समाज के लोग खेती, पशुपालन, औद्योगिक क्षेत्र में काम करते हुए और अन्य व्यवसायों में अपना जीवन यापन करते हैं।
नहीं, तेली एक वैश्य जाति है, न कि क्षत्रिय। तेली जाति का पारंपरिक व्यवसाय तेल निकालना और व्यापार करना था, और इसे वैश्य वर्ण में शामिल किया गया है. तेली जाति को ओबीसी श्रेणी में शामिल किया गया है, लेकिन तेली के भीतर उच्च उपजातियां, जैसे कि तैलिक वैश्य और तिली, को अगड़ी जातियों के रूप में माना जाता है.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ लोग तेली जाति के कुछ हिस्सों को क्षत्रिय मानते हैं, विशेष रूप से राठौड़ और अन्य उपनामों वाले लोगों को, जो दावा करते हैं कि वे क्षत्रिय थे, लेकिन संघर्ष के समय में तेल निकालने का व्यवसाय करना पड़ा. हालांकि, तेली जाति को व्यापक रूप से वैश्य माना जाता है।
गुजरात के घांची समुदाय को तेलियों के “समकक्ष” के रूप में वर्णित किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घांची समुदाय से आते हैं, जो गुजरात में अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी में सूचीबद्ध हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में, घांची के समकक्ष तेली हैं, जिन्हें ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
साहू कौन सी बिरादरी में आते हैं?
साहू एक उपनाम है जो भारत, खासकर ओडिशा और पड़ोसी राज्यों में पाया जाता है। यह ओडिशा के हलुआ ब्राह्मणों, बनियों और खंडायतों से जुड़ा हुआ है। साहू उपनाम को ओडिशा में साहू के नाम से भी लिखा जाता है। इस उपनाम का उपयोग करने वाले कई लोग हैं जो व्यापारी वर्ग से संबंधित हैं।
साहू किसके वंशज हैं?
झांसी नगर में साहू और राठौर दोनों प्रकार के लोग निवास करते थे। कर्मा के पिता राम साहू ने कर्मा बाई को साहू वंश सौंपा था और इनकी सबसे छोटी बेटी को राठौर वंश सौंपा था। इस कारण राठौर और साहू दोनों समाज को तेली समाज के वंशज कहा गया है।
नाम की उत्पत्ति:
तेली समुदाय का नाम "तेल" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है तेल। यह समुदाय मुख्य रूप से तेल निकालने और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा है।
धर्म:
तेली समुदाय विभिन्न धर्मों में पाया जाता है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और पारसी शामिल हैं।
आर्थिक स्थिति:
तेली समुदाय को व्यापारिक समुदाय के रूप में जाना जाता है। यह समुदाय तेल निकालने, बेचने और अन्य संबंधित व्यवसायों से जुड़ा है।
इतिहास:
तेली समुदाय का इतिहास सदियों पुराना है और यह भारत के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है। यह समुदाय प्राचीन काल से ही तेल निकालने और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा है।
सांस्कृतिक महत्व:
तेली समुदाय की अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं। यह समुदाय विभिन्न त्योहारों और समारोहों को मनाता है।
सामाजिक स्थिति:
तेली समुदाय भारत के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समुदाय विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाए हुए है।
उत्तर भारत में तेली समुदाय और गुप्त वंश:
उत्तर भारत के तेली समुदाय ने अपने को "गुप्त वंश" का मानते हुए अपने भगवा ध्वज में गुप्तों के राज चिन्ह गरूड़ को स्थापित किया है।
अन्य सिद्धांत:
तेली समुदाय की उत्पत्ति के बारे में अन्य सिद्धांत भी मौजूद हैं। कुछ लोग मानते हैं कि तेली समुदाय का संबंध साहू समुदाय से है।
निमाड़ के तेली, जिनमें से कई धनी व्यापारी भी हैं, बताते हैं कि उनके पूर्वज गुजरात के मोढ बनिया थे. उन्हें मुस्लिम शासन के दौरान आजीविका के लिए तेल पेरना पड़ा. 1911 में तेली समुदाय ने राठौर उपनाम अपनाया, और खुद को राठौर तेली कहने लगे. 1931 में उन्होंने खुद को राठौर वैश्य होने का दावा किया
तेली समाज का कुल देवता कौन है?
*तैली वैश्य समाज के कुल देवता हैं बाबा नायक* बाबा नायक को तैली समुदाय का कुल देवता माना जाता है। प्रतिवर्ष यहां झारखंड समेत ओडिशा, बिहार, बंगाल आदि प्रदेशों से तैली वैश्य व वणिक समुदाय के सैकड़ों भक्तगण दर्शन एवं पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।
तेली राठौर है?
1911 में तेली समुदाय ने राठौर उपनाम अपना लिया और खुद को राठौर तेली कहने लगे ; जबकि 1931 में उन्होंने खुद को राठौर-वैश्य बताया था । मान्यता है कि ऐसा हिन्दू जाति व्यवस्था की उच्च सीढ़ी पर चढ़ने के लिए किया गया था।
भारत में साहू जाति की जनसंख्या कितनी है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाई प्रहलाद मोदी का कहना है कि कहा कि भारत में 14 करोड़ से ज्यादा साहू समाज के लोग हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय जनसंख्या के 10% के आसपास है।
तेली जाति का गोत्र क्या है?
तेली समुदाय में गोत्र बरगुजर, तंवर, बोराना, बोडाना, गेहलोत, दहिया, सिकरवार, पंवार आदि हैं
साहू एक उपनाम है जो भारत, खासकर ओडिशा और पड़ोसी राज्यों में पाया जाता है। यह ओडिशा के हलुआ ब्राह्मणों, बनियों और खंडायतों से जुड़ा हुआ है। साहू उपनाम को ओडिशा में साहू के नाम से भी लिखा जाता है। इस उपनाम का उपयोग करने वाले कई लोग हैं जो व्यापारी वर्ग से संबंधित हैं।
तेली किस बिरादरी में आते हैं?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेली जाति से हैं। उन्हें केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी श्रेणी की सूची में शामिल किया गया है लेकिन तेली के भीतर उच्च उपजातियां जैसे तैलिक वैश्य को अगड़ी जातियां माना जाता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेली जाति से हैं। उन्हें केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी श्रेणी की सूची में शामिल किया गया है लेकिन तेली के भीतर उच्च उपजातियां जैसे तैलिक वैश्य को अगड़ी जातियां माना जाता है।
झांसी नगर में साहू और राठौर दोनों प्रकार के लोग निवास करते थे। कर्मा के पिता राम साहू ने कर्मा बाई को साहू वंश सौंपा था और इनकी सबसे छोटी बेटी को राठौर वंश सौंपा था। इस कारण राठौर और साहू दोनों समाज को तेली समाज के वंशज कहा गया है।
साहू ब्राह्मण है?
साहू एक उपनाम है जो भारत, खासकर ओडिशा और पड़ोसी राज्यों में पाया जाता है। यह ओडिशा के हलुआ ब्राह्मणों, बनियों और खंडायतों से जुड़ा हुआ है । साहू उपनाम को ओडिशा में साहू के रूप में भी लिखा जाता है। इस उपनाम का उपयोग करने वाले कई लोग व्यवसायी वर्ग से संबंधित हैं।
साहू एक उपनाम है जो भारत, खासकर ओडिशा और पड़ोसी राज्यों में पाया जाता है। यह ओडिशा के हलुआ ब्राह्मणों, बनियों और खंडायतों से जुड़ा हुआ है । साहू उपनाम को ओडिशा में साहू के रूप में भी लिखा जाता है। इस उपनाम का उपयोग करने वाले कई लोग व्यवसायी वर्ग से संबंधित हैं।
नाम की उत्पत्ति:
तेली समुदाय का नाम "तेल" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है तेल। यह समुदाय मुख्य रूप से तेल निकालने और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा है।
धर्म:
तेली समुदाय विभिन्न धर्मों में पाया जाता है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और पारसी शामिल हैं।
आर्थिक स्थिति:
तेली समुदाय को व्यापारिक समुदाय के रूप में जाना जाता है। यह समुदाय तेल निकालने, बेचने और अन्य संबंधित व्यवसायों से जुड़ा है।
इतिहास:
तेली समुदाय का इतिहास सदियों पुराना है और यह भारत के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है। यह समुदाय प्राचीन काल से ही तेल निकालने और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा है।
सांस्कृतिक महत्व:
तेली समुदाय की अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं। यह समुदाय विभिन्न त्योहारों और समारोहों को मनाता है।
सामाजिक स्थिति:
तेली समुदाय भारत के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समुदाय विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाए हुए है।
उत्तर भारत में तेली समुदाय और गुप्त वंश:
उत्तर भारत के तेली समुदाय ने अपने को "गुप्त वंश" का मानते हुए अपने भगवा ध्वज में गुप्तों के राज चिन्ह गरूड़ को स्थापित किया है।
अन्य सिद्धांत:
तेली समुदाय की उत्पत्ति के बारे में अन्य सिद्धांत भी मौजूद हैं। कुछ लोग मानते हैं कि तेली समुदाय का संबंध साहू समुदाय से है।
निमाड़ के तेली, जिनमें से कई धनी व्यापारी भी हैं, बताते हैं कि उनके पूर्वज गुजरात के मोढ बनिया थे. उन्हें मुस्लिम शासन के दौरान आजीविका के लिए तेल पेरना पड़ा. 1911 में तेली समुदाय ने राठौर उपनाम अपनाया, और खुद को राठौर तेली कहने लगे. 1931 में उन्होंने खुद को राठौर वैश्य होने का दावा किया
*तैली वैश्य समाज के कुल देवता हैं बाबा नायक* बाबा नायक को तैली समुदाय का कुल देवता माना जाता है। प्रतिवर्ष यहां झारखंड समेत ओडिशा, बिहार, बंगाल आदि प्रदेशों से तैली वैश्य व वणिक समुदाय के सैकड़ों भक्तगण दर्शन एवं पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।
तेली राठौर है?
1911 में तेली समुदाय ने राठौर उपनाम अपना लिया और खुद को राठौर तेली कहने लगे ; जबकि 1931 में उन्होंने खुद को राठौर-वैश्य बताया था । मान्यता है कि ऐसा हिन्दू जाति व्यवस्था की उच्च सीढ़ी पर चढ़ने के लिए किया गया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाई प्रहलाद मोदी का कहना है कि कहा कि भारत में 14 करोड़ से ज्यादा साहू समाज के लोग हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय जनसंख्या के 10% के आसपास है।
तेली समुदाय में गोत्र बरगुजर, तंवर, बोराना, बोडाना, गेहलोत, दहिया, सिकरवार, पंवार आदि हैं
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