17.4.25

कुमावत समाज का गौरव शाली इतिहास /History of Kumawat Caste



कुमावत स्वंयज की उत्पत्ति और इतिहास का विडिओ 


कुमावत एक भारतीय हिन्दू जाति है।
कुमावत कुंभलगढ़(मेवाड़) के निवासी हैं जिनका वर्तमान कार्य स्थापत्य कला के ठेकेदारी से सबंधित हैं। इस जाति(कुमावत) का जाति सूचक शब्द 'राजकुमार' हुआ करता था।दुर्ग, क़िले, मंदिर इत्यादि के निर्माण व मुख्य स्थापत्य कला एवं चित्रकारी की ठेकेदारी का काम कुमावत समाज के लोगों द्वारा किया जाता था । स्थापत्य कला एवं शिल्पकला दोनों अलग-अलग कलाएं हैं। कुछ लोग कुमावत और कुम्हार (प्रजापति) को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग-अलग जातियां है। कुमावत जाति के अधिकांश लोग स्थापत्य कला (वास्तुकला) के ठेकेदारी का काम करने लगें, जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी का अर्थात् हस्तशिल्पकला का काम करते थे।उनमें से अधिकांश मारवाड़ क्षेत्र और भारत के विभिन्न राज्यों में केंद्रित हैं। उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे मारू कुमावत, मेवाड़ी कुमावत, ढूंढाड़ी कुमावत, मारू ठेकेदार आदि। कुमावत को नायक, ठेकेदार, स्थपति और हुनपंच के नाम से भी जाना जाता है। इस समुदाय के लिए नृवंशविज्ञान संबंधी साक्ष्य रानी लक्ष्मी चंदाबत द्वारा लिखित बागोरा बटों की गाथा और जेम्स टॉड द्वारा लिखित एनल्स एंड एंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान में उपलब्ध हैं। यह समाज जयपुर से अपना त्रैमासिक प्रकाशन कुमावत क्षत्रिय हिन्दी में भी निकलता है।
  कुमावत समाज के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए ‘श्री चंडीसा’ ने लिखा है कि जैसलमेर के महान् संत श्री गरवा जी जो कि एक भाटी राजपूत थे, ने जैसलमेर के राजा रावल केहर द्वितीय के काल में विक्रम संवत् 1316 वैशाख सुदी 9 को राजपूत जाति में विधवा विवाह (नाता व्यवस्था) प्रचलित करके एक नई जाति बनायी। जिसमें 9   राजपूती गोत्रें के 62 राजपूत  शामिल हुए। इसी आधार पर इस जाति की 62 गौत्रें बनी | विधवा विवाह चूंकि उस समय राजपूत समाज में प्रचलित नहीं था इसलिए श्री गरवा जी महाराज ने विधवा लड़कियों का विवाह करके उन्हें एक नया सधवा जीवन दिया जिनके पति युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
  यह तथ्य भी दिलचस्प है कि जातियों की उत्पत्ति के इतिहास  मे  भाटों  और  रावों ने अपनी बहियों -पोथियों मे अलग अलग कहानियों के माध्यम से लगभग  सभी  जातियों को राजपूतों  से जोड़ दिया है ताकि उनको  परम दानी   क्षत्रीय राजाओं  के वंशज बताकर अधिक से अधिक दान दक्षिणा प्राप्त कर सकें |
कुमावत जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आती है. ये क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आते हैं, इसलिए इन्हें मारू क्षत्रिय और मारू राजपूत भी कहा जाता है.


स्थापत्य कला बोर्ड

राजस्थान राज्य स्थापत्य कला बोर्ड,जो कुमावत समुदाय को समर्पित है, का गठन किया गया है।

कुमावत उत्पत्ति की पौराणिक कथा 


स्कंदपुराण के नागर खंड में एवं श्री विश्वकर्मा पुराण में शिल्पियों का वर्णन मिलता हैं जो भगवान विश्वकर्मा के पांचों संतानों
 मनु, 
मय,
त्वष्ठा,
शिल्पी और 
देवज्ञ 
में से महर्षि शिल्पी  के वंशज ही शिल्पकार समुदाय अर्थात कुमावत  समाज  के नाम से जाना जाता है| 
कुमावतो को प्राय: गजधर भी कहा जाता है जो दुर्ग के दुर्गपति हुआ करते थे।
कुमावतो को अलग अलग स्थानों  मे  शिल्पी, राजकुमार, राजगीर, संगतरास,राज, मिस्त्री, राजमिस्त्री, पथरछिता(पाषाण से संबंधित शिल्पकार), परचिनिया, पच्चीकार कहा जाता है।
कुमावत जाति के लोग अपने पारंपरिक स्थापत्य कला के अतिरिक्त अभिनय, चित्रकारी, भजन, लोक संगीत इत्यादि से भी संबंधित रहे हैं।

Disclaimer: इस विडियो में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे

|यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*दामोदर दर्जी समाज महासंघ  आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ 

*दर्जी समाज मे मोसर (मृत्युभोज) के विडिओ 

पौराणिक कहानियाँ के विडिओ 

मंदिर कल्याण की  प्रेरक कहानियों के विडिओ  भाग 1 

*दर्जी समाज के मार्गदर्शक :जीवन गाथा 

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*दर्जी  वैवाहिक  महिला संगीत के विडिओ 

*मनोरंजन,शिक्षाप्रद ,उपदेश के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मंदिर  कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 3 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 3 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियां के विडिओ भाग 4 

मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 5 

*भजन,कथा कीर्तन के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ  भाग 6 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 7 

*मनोरंजन,शिक्षा ,पर्यटन,उपदेश के विडिओ 

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ 

*जातियों के महापुरुषों की जीवनी के विडिओ 

*धार्मिक ,सामाजिक त्योहार व  जुलूस के विडिओ

14.4.25

द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा में अंगूठा देने वाले एकलव्य की कथा



एकलव्य  कहानी विडिओ 


  जब भी गुरु और एक आदर्श शिष्य की बात आती है तो हमेशा ही एकलव्य को याद किया जाता है। एकलव्य महाभारत के महान चरित्रों में से एक है। महाभारत के इस पात्र का जन्म एक भील जाति के राजा हिरण्यधनु के घर हुआ था। एकलव्य की माँ का नाम रानी सुलेखा था। एकलव्य के पिता हिरण्यधनु श्रृंगबेर राज्य में भील कबीले के राजा थे। एकलव्य का मूल नाम अभिद्युम्न था। भील एक धनुर्धारी और शूरवीर जाति होती है। इसीलिए वह बचपन से ही धुनष-बाण चलाने में काफी माहिर भी था।
  महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एकलव्य धनुर्विद्या में उच्च अभ्यास पाना चाहता था इसीलिए एक दिन द्रोणाचार्य के पास जाता है जो कौरव और पांडवों के भी गुरु थे। एकलव्य उनके पास बहुत निष्ठा और विश्वास लेकर जाता हैं लेकिन छोटे कुल के होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार करने से मना कर देते हैं। उसके बाद एकलव्य भी ठान लेता है कि वह धनुर्विद्या द्रोणाचार्य से ही सीखेंगे इसलिए वह एक वन में आश्रम (कुटिया) बनाकर रहने लगते हैं और वहीं पर पेड़ के नीचे गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा को बिठाकर उन्हीं के सामने प्रत्येक दिन धनुर्विद्या का अभ्यास करता हैं। इसी दौरान एक दिन द्रोणाचार्य अपने शिष्यों और एक कुत्ते के साथ उसी वन में आखेट के लिए जाते हैं। बीच रास्ते में ही कुत्ता वन में भटक जाता है और भटकते भटकते जाकर वह एकलव्य के आश्रम तक पहुंच जाता है। उस समय एकलव्य एकाग्रचित्त होकर अपने धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। लेकिन कुत्ते के भोकने की आवाज़ से एकलव्य के अभ्यास में बाधा आ रही थी। तब एकलव्य ने अपने कौशल से कुत्ते के मुंह में इस तरह बाण चलाएं कि कुत्ते को जरा सी भी चोंट नहीं पहुंची और उसका मुंह भी बंद हो गया। उसके बाद कुत्ता भी असहाय होकर वापस द्रोणाचार्य के पास चला गया। वहां पर द्रोणाचार्य और पांडव कुत्ते के इस हालत को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें जानने की तिव्र इच्छा जागी कि आखिर किस धनुर्धर ने इतने कुशल तरीके से कुत्ते के मुंह में इस तरह बाण चलाएं हैं। उस धनुर्धर को खोजते-खोजते वे एकलव्य के पास पहुंच गए। एकलव्य को एकनिष्ठा से धनुर्विद्या का अभ्यास करते देख द्रोणाचार्य को उनके गुरु के बारे में जानने की इच्छा हुई।
एकलव्य द्रोणाचार्य की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहा कि वही उसके गुरु हैं। द्रोणाचार्य को उस समय की याद आ जाती है जब उन्होंने एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार करने से मना किया था। एकलव्य की एक निष्ठा और कुशाग्र धनु विद्या का कौशल देख द्रोणाचार्य को आशंका हुआ कि कहीं वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर ना बन जाए। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो द्रोणाचार्य ने अर्जुन को महान धनुर्धर बनाने का जो वचन लिया था वह झूठ साबित हो जाएगा। इसलिए वे गुरु दक्षिणा की मांग करते हैं। एकलव्य गुरु दक्षिणा में अपनी प्राण देने की बात करते हैं। लेकिन द्रोणाचार्य उससे अंगूठा मांग लेते हैं और एकलव्य तत्क्षण बिना कुछ सोचे अपना अंगूठा काटकर द्रोणाचार्य के समक्ष प्रस्तुत कर देता है।


किसकी सेना में शामिल हुआ एकलव्य?
अंगूठा कटने के बाद भी एकलव्य अंगुलियों से तीर चलाने का अभ्यास करने लगा। इसमें भी पूरी तरह का पारंगत हो गया। युवा होने पर एकलव्य मगध के राजा जरासंध की सेना में शामिल हो गया। जरासंध भगवान श्रीकृष्ण को दुश्मन समझता था। जरासंध ने कईं बार मथुरा पर हमला किये । इन हमलों में एकलव्य भी जरासंध के  साथ था। एकलव्य ने भी द्वारिका की सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया।

कैसे हुई एकलव्य की मृत्यु?
एक बार जब जरासंध ने मथुरा पर हमला किया तो उस समय एकलव्य ने यादव सेना के कईं बड़े योद्धाओं को मार दिया। एकलव्य के पराक्रम को देखकर श्रीकृष्ण को स्वयं उससे युद्ध करने आना पड़ा। श्रीकृष्ण और एकलव्य के बीच युद्ध हुआ, जिसमें एकलव्य मारा गया। एकलव्य के बाद उसका बेटा केतुमान निषाधों का राजा बना। महाभारत युद्ध में केतुमान ने कौरवों का पक्ष लेते हुए युद्ध किया और भीम के हाथों मारा गया।

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*दामोदर दर्जी समाज महासंघ  आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ 

*दर्जी समाज मे मोसर (मृत्युभोज) के विडिओ 

पौराणिक कहानियाँ के विडिओ 

मंदिर कल्याण की  प्रेरक कहानियों के विडिओ  भाग 1 

*दर्जी समाज के मार्गदर्शक :जीवन गाथा 

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*दर्जी  वैवाहिक  महिला संगीत के विडिओ 

*मनोरंजन,शिक्षाप्रद ,उपदेश के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मंदिर  कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 3 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 3 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियां के विडिओ भाग 4 

मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 5 

*भजन,कथा कीर्तन के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ  भाग 6 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 7 

*मनोरंजन,शिक्षा ,पर्यटन,उपदेश के विडिओ 

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ 

*जातियों के महापुरुषों की जीवनी के विडिओ 

*धार्मिक ,सामाजिक त्योहार व  जुलूस के विडिओ

12.4.25

बजरंग बलि के अवतरण की कहानी ||हनुमान जन्म कथा


हनुमान जन्म कथा विडियो 



  वेदों और पुराणों के अनुसार, पवन पुत्र हनुमान जी का जन्म चैत्र मंगलवार के ही दिन पूर्णिमा को नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। इनके पिता का नाम वानरराज राजा केसरी थे। इनकी माता का नाम अंजनी थी। रामचरितमानस में हनुमान जी के जन्म से संबंधित बताया गया है कि हनुमान जी का जन्म ऋषियों द्वारा दिए गए वरदान से हुआ था। मान्यता है कि एक बार वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ के पास पहुंचे। वहां उन्होंने ऋषियों को देखा जो समुद्र के किनारे पूजा कर रहे थे।
तभी वहां एक विशाल हाथी आया और ऋषियों की पूजा में खलल डालने लगा। सभी उस हाथी से बेहद परेशान हो गए थे। वानरराज केसरी यह दृश्य पर्वत के शिखर से देख रहे थे। उन्होंने विशालकाय हांथी के दांत तोड़ दिए और उसे मृत्यु के घाट उतार दिया। ऋषिगण वानरराज से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छानुसार रुप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र का वरदान दिया।

बजरंगबली के जन्म से जुड़ी कथा

धार्मिक कथा के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव का 11वां रुद्र अवतार है। उनके जन्म को लेकर कहा जाता है कि, जब विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए इस धरती पर प्रभु श्री राम के रूप में जन्म लिया, तब भगवान शिव ने उनकी मदद के लिए हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था। दूसरी ओर राजा केसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ तपस्या कर रहे थे। इस तपस्या का दृश्य देख भगवान शिव प्रसन्न हो उठें और उन दोनों से मनचाहा वर मांगने को कहा।
शिव जी की बात से माता अंजना खुश हो गई और उनसे कहा कि मुझे एक ऐसा पुत्र प्राप्त हो, जो बल में रुद्र की तरह बलि, गति में वायु की गतिमान और बुद्धि में गणपति के समान तेजस्वी हो। माता अंजना की ये बात सुनकर शिव जी ने अपनी रौद्र शक्ति के अंश को पवन देव के रूप में यज्ञ कुंड में अर्पित कर दिया। बाद में यही शक्ति माता अंजना के गर्भ में प्रविष्ट हुई। फिर हनुमान जी का जन्म हुआ था।
  एक अन्य कथा के अनुसार, माता अंजनी एक दिन मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर की ओर जा रही थीं। उस समय सूरज डूब रहा था। अंजनी डूबते सूरज की लालीमा को निहारने लगी। इसी समय तेज हवा चलने लगी और उनके वस्त्र उड़ने लगे। हवा इतनी तेज थी वो चारों तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। लेकिन उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया। हवा से पत्ते भी नहीं हिल रहे थे। तब माता अंजनी को लगा कि शायद कोई मायावी राक्षस अदृश्य होकर यह सब कर रहा था। उन्हें क्रोध आया और उन्होंने कहा कि आखिर कौन है ऐसा जो एक पतिपरायण स्त्री का अपमान कर रहा है।
तब पवन देव प्रकट हुए और हाथ जोड़ते हुए अंजनी से माफी मांगने लगे। उन्होंने कहा, "ऋषियों ने आपके पति को मेरे समान पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया है इसलिए मैं विवश हूं और मुझे आपके शरीर को स्पर्श करना पड़ा। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा।" उन्होंने यह भी कहा कि मेरे स्पर्श से भगवान रुद्र आपके पुत्र के रूप में प्रविष्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। इस तरह की वानरराज केसरी और माता अंजनी के यहां भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया।

कलियुग में हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर रहते हैं

कलियुग के आगमन के समय हनुमान जी ने गंधमादन पर्वत पर ही निवास कर लिया। गंधमादन पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है। प्राचीन काल में सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक पर्वत को गंधमादन पर्वत कहा जाता था

11.4.25

राजा भरथरी और पिंगला की पौराणिक कथा



राजा भरथरी और पिंगला की पौराणिक कथा विडियो


   प्रजा हित और अपने जीवन से रुष्ट होने के बाद कई राजाओं के संन्यासी बनने की कथाएं हमने कई बार सुनी है. लेकिन आज हम एक ऐसे राजा के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसने अपने पत्नी प्रेम में धोखा खाने के बाद अपना संपूर्ण जीवन वैराग्य में बिता दिया और अंत में वह एक महान संत बनकर उभरे.
बहुत समय पहले की बात है जब उज्जैनी नगर (वर्तमान में उज्जैन) के राजा गंधर्व सेन हुआ करते थे. राजा गंधर्व सेन की दो पत्नियां थी जिनसे पहली पत्नी से उनके पुत्र का नाम भृर्तहरी और दूसरी पत्नी से उनके पुत्र का नाम विक्रमादित्य था. समय के चक्र में जब राजा गंधर्वसेना वृद्ध हो गए तो उन्होंने अपने बड़े पुत्र भृर्तहरी को राजपाठ सौंप दिया. और स्वयं सुख पूर्वक अपनी वृद्धावस्था व्यतीत करने लगे.
भृर्तहरी के राजा बनने के बाद प्रजा की खुशियों का कोई ठिकाना ना था, प्रजा उनके शासन से बेहद प्रसन्न थी. क्योंकि उनका राजा केवल राजा ना होकर धर्म और नीति शास्त्र का बहुत बड़ा ज्ञानी था इसलिए वह अपना शासन भी धर्म के अनुसार ही चला रहा था. इसी कड़ी में राजा भृर्तहरी ने दो विवाह किए.

दो विवाह होने के पश्चात राजा ने “पिंगला” नामक एक युवती से तीसरा विवाह रचाया. पिंगला अत्यंत सुंदर थी और राजा भृर्तहरी उसके प्रेम में पागल हो चुके थे. विवाह के पश्चात उनका ज्यादातर समय पिंगला के पास ही गुजरता था, तीनों रानियों में उन्हें पिंगला ज्यादा प्रिय थी. राजा के अपार स्नेह और प्रेम के बावजूद भी पिंगला उनसे प्रेम नहीं करती थी, वह तो उसी नगर के एक कोतवाल के प्रेम में पागल थी.
एक बार उस राज दरबार में गुरु गोरखनाथ पधारे. अपने महल में गुरु के आगमन के पश्चात राजा ने उनका खूब आदर सत्कार किया और उनकी सेवा की. कई दिनों तक गुरु गोरखनाथ राज दरबार में ही रहे आखिर में भृर्तहरी की सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे एक आदित्य फल भेंट किया. गुरु गोरखनाथ में कहां कि यह फल अद्भुत है यदि तुम इसका सेवन करोगे तो हमेशा तुम जवान बने रहोगे और कभी बुढ़ापा तुम्हारे निकट भी नहीं आयेगा.
राजा ने सोचा की मैं तो राजा हूं मुझे इस फल की क्या आवश्यकता! लेकिन यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदा इसी प्रकार सुंदर बनी रहेगी. इसलिए राजा ने वह फल अपनी रानी पिंगला को दे दिया, उसे यह भी बताया कि यदि वह इस फल का सेवन करेगी तो सदैव सुंदर बनी रहेगी.

पिंगला ने सोचा की यदि यह फल मैं अपने प्रेमी कोतवाल को दे दूं तो वह सदैव मुझे इसी प्रकार से प्रेम करेगा. इसलिए पिंगला ने वह फल ले जाकर कोतवाल को दे दिया. लेकिन कोतवाल पिंगला से प्रेम नहीं करता था वह तो नगर की एक वेश्या के प्रेम में पागल था. पिंगला ने वह फल कोतवाल को तो दे दिया, लेकिन कोतवाल ने वह ले जाकर उस वेश्या को यह फल दे दिया.
वेश्या ने सोचा कि यदि मैं इस फल का सेवन करूंगी और मैं सदैव जवान बनी रहूंगी तो आज ही भर मुझे इस नर्क भरे काम में शरीक रहना पड़ेगा. मैं कभी भी अपने जीवन में मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाऊंगी. लेकिन यदि यह फल मैं राजा को ले जा कर दे दूं और राजा इसका सेवन कर ले तो शायद में प्रजा हित में कुछ आवश्यक काम करेंगे. उसने ऐसा ही किया और वह फल उसने राजा को ले जाकर भेंट कर दिया. राजा ने जब उस फल को देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया. उन्होंने पूछा तुम्हें यह फल किसने दिया है? तब उसने बताया कि यह फल तो मुझे नगर के कोतवाल ने दिया है. राजा ने सोचा कि शायद किसी ने पिंगला से यह फल चोरी करके कोतवाल को दे दिया.
राजा ने कोतवाल को बुलवाया और पूछा कि तुम्हें यह फल किस प्रकार प्राप्त हुआ? कोतवाल ने बताया कि यह फल मुझे रानी पिंगला ने ला कर दिया है, वह मुझसे प्रेम करती है लेकिन मुझे उनसे कोई प्रेम नहीं है. यह सुनकर राजा के पैरों तले जमीन खिसक गई. उन्हें मानो कोई जोर का झटका लगा हो उन्होंने सोचा जिस स्त्री से मैंने इस संसार में सबसे ज्यादा प्रेम किया वही स्त्री मुझसे प्रेम नहीं करती! इस घटना ने राजा भर्तृहरि के जीवन को पूरी तरह से पलट कर रख दिया.
अब राजा की इस संसार में कोई रुचि नहीं रह गई थी. अपने साथ हुए इस धोखे के बाद राजा को महल में कोई आसक्ति नहीं थी. उन्होंने राजमहल त्याग कर वैराग्य ग्रहण करने का निश्चय किया. कुछ ही समय में उन्होंने अपना सारा राजपाठ अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंप दिया और स्वयं तपस्या की ओर चल दिए.
वह गुफा में पहुंचे और उन्होंने वहां तपस्या शुरू की. एक बार भगवान इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने हेतु उन पर एक पत्थर गिरा दिया, लेकिन भृर्तहरी ने वह पत्थर अपने हाथ में धारण कर लिया. लंबे समय तक वह पत्थर उनके हाथ में ही रहा और जब अपनी तपस्या पूर्ण करके उन्होंने वह पत्थर नीचे रखा उस पर उनके हाथ का निशान बन गया. यह पत्थर आज भी उनके गुफा में उनकी मूर्ति के नीचे रखा हुआ है. समय के साथ उन्होंने कठिन से कठिन तपस्या की और गुरु गोरखनाथ को अपना गुरु बनाया.

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*दामोदर दर्जी समाज महासंघ  आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ 

*दर्जी समाज मे मोसर (मृत्युभोज) के विडिओ 

पौराणिक कहानियाँ के विडिओ 

मंदिर कल्याण की  प्रेरक कहानियों के विडिओ  भाग 1 

*दर्जी समाज के मार्गदर्शक :जीवन गाथा 

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*दर्जी  वैवाहिक  महिला संगीत के विडिओ 

*मनोरंजन,शिक्षाप्रद ,उपदेश के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मंदिर  कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 3 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 3 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियां के विडिओ भाग 4 

मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 5 

*भजन,कथा कीर्तन के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ  भाग 6 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 7 

*मनोरंजन,शिक्षा ,पर्यटन,उपदेश के विडिओ 

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ 

*जातियों के महापुरुषों की जीवनी के विडिओ 

*धार्मिक ,सामाजिक त्योहार व  जुलूस के विडिओ






8.4.25

गुरु घासीदास का इतिहास और जीवन परिचय


बाबा घासीदास के जीवन परिचय का विडिओ -


 


  गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को गिरौदपुरी (छत्तीसगढ़) स्थित एक गरीब परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम महंगू दास एवं माता का नाम अमरौतिन था. उनकी पत्नी का नाम सफुरा था. बचपन से ही सत्य के प्रति अटूट आस्था एवं निष्ठा के कारण बालक घासीदास को कुछ दिव्य शक्तियां हासिल हो गईं, जिसका अहसास बालक घासी को भी नहीं था, उन्होंने जाने-अनजाने कई चमत्कारिक प्रदर्शन किये, जिसकी वजह से उनके प्रति लोगों की आस्था एवं निष्ठा बढ़ी. ऐसे ही समय में बाबा ने भाईचारे एवं समरसता का संदेश दिया. उन्होंने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी. उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता के लिए किया. उन्होंने छत्तीसगढ़ सतनाम पंथ की स्थापना की

गुरू घासीदास की शिक्षा और उपदेश

बाबा घासीदास को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के सारंगढ़ (बिलासपुर) स्थित एक वृक्ष के नीचे तपस्या करते समय ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. उन्होंने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को ही नहीं बल्कि ब्राह्मणों के प्रभुत्व को भी नकारा और विभिन्न वर्गों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध भी किया. उनके अनुसार समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और महत्व दिया जाना चाहिए. घासीदास ने मूर्ति-पूजा का विरोध किया. उनके अनुसार उच्च वर्गों एवं मूर्ति पूजकों में गहरा संबंध है. घासीदास जी पशुओं से भी प्रेम करने की शिक्षा देते थे. वे पशुओं पर क्रूर रवैये के खिलाफ थे. सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. घासीदास के उपदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा

क्या हैं गुरु घासीदास के सप्त सिद्धांत?

गुरु घासीदास के सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिसमें सतनाम पर विश्वास, मूर्ति पूजा का निषेध, वर्ण भेद एवं हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, परस्त्रीगमन का निषेध और दोपहर में खेत न जोतना आदि हैं. बाबा गुरु घासीदास द्वारा दिये गये उपदेशों से समाज के असहाय लोगों में आत्मविश्वास, व्यक्तित्व की पहचान और अन्याय से जूझने की शक्ति प्राप्त हुई
महान् सन्त एवं समाजसुधारक बाबा गुरुघासीदास का जीवन छत्तीसगढ़ की धरती के लिए ही नहीं, अपितु समूची मानव-जाति के लिए कल्याण का प्रेरक सन्देश देता है । सतनामी धर्म के प्रवर्तक छत्तीसगढ़ के यह महान् पुरुष एक सिद्धपुरुष होने के साथ-साथ अपनी अलौकिक शक्तियों एवं महामानवीय गुणों के कारण श्रद्धा से पूजे जाते है ।
छत्तीसगढ़ की जनता को नया जीवन-दर्शन, आध्यात्मिक ज्ञान का प्रकाश देने वाले बाबा गुरुघासीदास धार्मिक सन्त और समाजसुधारक थे । उन्होंने सत्य को ही आत्मा माना है । सत्य ही आदिपुराण है, प्रकृति का तत्त्व है । अत: सतनाम (सत्यनाम) को ही पूजने पर ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है ।

सत्य से धरणी खड़ी, सत्य से खडा आकाश है ।

सत्य से उपजी पृथ्वी, कह गये घासीदास ।।




यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*दामोदर दर्जी समाज महासंघ  आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ 

*दर्जी समाज मे मोसर (मृत्युभोज) के विडिओ 

पौराणिक कहानियाँ के विडिओ 

मंदिर कल्याण की  प्रेरक कहानियों के विडिओ  भाग 1 

*दर्जी समाज के मार्गदर्शक :जीवन गाथा 

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*दर्जी  वैवाहिक  महिला संगीत के विडिओ 

*मनोरंजन,शिक्षाप्रद ,उपदेश के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मंदिर  कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 3 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 3 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियां के विडिओ भाग 4 

मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 5 

*भजन,कथा कीर्तन के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ  भाग 6 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 7 

*मनोरंजन,शिक्षा ,पर्यटन,उपदेश के विडिओ 

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ 

*जातियों के महापुरुषों की जीवनी के विडिओ 

*धार्मिक ,सामाजिक त्योहार व  जुलूस के विडिओ

मेघवंश समाज के कर्णधार स्वामी गोकुल दास जी महाराज ?Story oj sant Gokuldas ji Majharaj





हिन्दू समाज के सभी वर्गों ने हिन्दू संस्कृति के उन्नयन हेतु अपना अपना योगदान दिया है , सभी वर्गों में संत , सती और सूरमा हुए हैं जिन का गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरणा देता है । आज हम मेघवंश में जन्मे तपस्वी , महान भक्त , संत साहित्य के रचयिता , वेद - पुराण , दर्शन इत्यादि शास्त्रों के मर्मज्ञ , समाज सुधारक , सामाजिक समरसता के पुरोधा सनातन धर्म संस्कृति के ध्वजवाहक संत स्वामी श्री गोकुलदास जी महाराज के बारे में  जानकारी प्रस्तुत  कर रहे हैं 
स्वामी जी का जन्म अजमेर के निकट डूमाड़ा ग्राम की पवित्र धरा पर जमींदार श्री नन्दराम रामाजी सिंहमार मेघवंशी के घर मातुश्री छोटा देवी की पावन कोख से विक्रम संवत १९४८ फाल्गुन वदी चतुर्दशी ( शिवरात्रि ) शनिवार को हुआ .( सिंहमार मेघवंश चन्द्रवंशी भाटी राजपूतों से निकला है , जैसा कि पूर्व के लेखों में वर्णन किया जा चुका है कि भाटी राजपूत यदुवंशी हैं , यदुवंश चन्द्रवंशी क्षत्रियों की ही एक शाखा है , यदुवंश को पूर्णकलावतार भगवान श्रीकृष्ण का वंश होने का गौरव प्राप्त है अतः हम यह भी कह सकते हैं कि स्वामी गोकुलदास जी भी भगवान श्रीकृष्ण की पावन वंश परम्परा में ही जन्मे थे . ) निश्चित समय पर पवित्र मुहूर्त में आप का नामकरण हुआ शिशु के दिव्य भाल को देख कर गोकुल नाम रखा गया . माता पिता ने गोकुल को घर से छः किलोमीटर दूर सोमलपुर के जोधाजी सूबेदार पण्डित की पाठशाला में प्रारम्भिक शिक्षा हेतु भर्ती करवा दिया , गोकुल अपनी शिक्षा पूरी भी नहीं कर पाया कि तब की प्रचलित परम्परा के अनुसार मात्र छः वर्ष की आयु में ही पालरां वाला गाँव के देवाजी देवगांवा की सुपुत्री बनड़ी से विवाह कर दिया गया . चूँकि आप जन्म से ही वीतराग थे अतः आप को गृहस्थी में कोई रूचि नहीं थी , गोकुल सदैव संत महात्माओं के सानिध्य में रहना , ध्यान समाधि धारण करना और हरिभजन करना पसन्द करते थे , एक तो स्वयं का विरक्त स्वभाव और तिस पर साधु संतों का सानिध्य मानो सोने में सुहागा हो गया । विक्रम संवत् १९६० की फाल्गुन सुदी द्वितीया के दिन आप ने वृहद् सत्संग सभा का आयोजन कर स्वामी रामहंस जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की . आप ने हरिभजन को ही अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य निर्धारित कर लिया , महावीर स्वामी , गौतम बुद्ध , भर्तृहरी जैसे कई महान व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने विवाह के पश्चात गृहस्थी का त्याग कर मोक्ष मार्ग का वरण किया था , गोकुल भी उसी परम्परा के वाहक बने |अब आप स्वच्छन्द रूप से साधु महात्माओं के सत्संग तथा वेद पुराणादि शास्त्रों के अध्ययन , योगादि के अभ्यास में अधिक से अधिक समय व्यतीत करने लगे | दूर दूर से लोग जाति , समाज के बन्धन तोड़ कर आप के दर्शन करने , दिव्य उपदेशों को सुनने और सानिध्य प्राप्त करने के उद्देश्य से आने लगे , अपने भक्तों तथा अनुयायियों के आग्रह पर आप ने अनेक स्थानों पर चातुर्मास किए तथा समाज को अपने उपदेशों से लाभान्वित किया . स्वामी जी मन वचन और कर्म से वीतराग थे किन्तु समाज के प्रति अपने दायित्व को भी भलीभांति जानते थे अतः आप ने समाज को संगठित , शिक्षित , संस्कारित तथा सदाचारी बनाने के उद्देश्य से विक्रम संवत् १९७७ में अजमेर राज्य के दो सौ दस गाँवों की एक सभा दौराई गाँव में आयोजित की तत्पश्चात आप ने तीर्थराज पुष्कर में मेघवंश महासभा की स्थापना कर उस का पंजीयन करवाया , इस महासभा के माध्यम से स्वामी जी ने समाज के सैंकड़ों युवाओं को समाज सेवा के लिए कटिबद्ध कर दिया , . स्वामी गोकुलदास जी के भगीरथ प्रयत्न से समाज में नूतन चेतना का संचार हुआ , समाज शिक्षित और सदाचारी होने लगा , युवक नशे से दूर होने लगे , संगठित होने लगे , समाज के पुराने मन्दिरों , देवस्थानों , धार्मिक और सामाजिक स्थानों का जीर्णोद्धार होने लगा , जहाँ आवश्यकता थी वहाँ नए मन्दिरों का निर्माण होने लगा , कुँए खुदवाए जाने लगे , सार्वजनिक महत्व के भवन बनाए जाने लगे और यह सब उस समाज के पुरुषार्थ से होने लगा जिस की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं कही जा सकती थी , समाज ने सदाचारी जीवन अपनाना प्रारम्भ किया तो निश्चित था कि समाज में लक्ष्मी की स्थिरता के साथ साथ सरस्वती का भी वास होने लगा . स्वामी जी ने ही समाज को मेघरिख , रिखिया , मेघ , मेघवाल , बलाई , भांबी , चान्दौर , जुलाहा , सालवी , चोपदार , कोटवाल , छड़ीदार , बुनकर , कोष्टी आदि विभिन्न उपनामों तथा वशिष्ट , जाटा , मारू , वसीका , म्हेर , देशी बारिया तथा मेवाड़ा इत्यादि भेदों से मुक्त कर आदर सूचक मेघवंशी नामकरण करते हुए  एकसूत्र में पिरो कर सुन्दर माला का निर्माण किया .
स्वामी जी ने अपना निजी सुख पूर्णतः त्याग दिया समाज सुधार के कार्यों के साथ आप ने अपना स्वाध्याय भी बरकरार रखा . आप स्नान ध्यान , भजन संध्योपासना , योगाभ्यास की नियमितता के प्रबल पक्षधर और अभ्यासी थे साथ ही घण्टों वेद , पुराण , उपनिषद , दर्शन , स्मृति , ज्योतिष , व्याकरण , वैद्यक , इतिहास तथा सत्साहित्य के स्वाध्याय में व्यतीत करते थे , आप में जन्मजात कवि और लेखक के गुण भरे हुए थे अतः आप ने कई ग्रथों की रचना की जिस में से प्रमुख ग्रन्थ निम्न हैं –
1. गोकुलदास भजनमाला 2. मेघवंश इतिहास ऋषि पुराण 3. अलख उपासना 4. बनजारा भास्कर 5. पड़दा प्रमाण
6. रामदेव जी महाराज चौबीस प्रमाण 7. भजन विलास आरोधि भजन 8. श्री रामदेव जी महाराज जमा जागरण विधि
9. धारुमाल रूपादे की बड़ी बेल 10. रामदेव जी का ब्यावला 11. रामदेव चालीसा 12. रामदेव भजन आराधना
विक्रम संवत् २०३४ की आश्विन कृष्ण एकादशी को स्वामी जी ने समाधिपूर्वक अपनी पावन आत्मा को परमात्मा में विलीन कर दिया , उन के समाधि स्थल पर इक्कावन फीट ऊँचा धवल संगमरमर से बना शिखरबन्द मन्दिर बना हुआ है साथ ही भव्य सत्संग भवन , साधुओं के लिए आश्रम , तीर्थयात्रियों के लिए सर्वसुविधाओं से युक्त आवास तथा निर्मल जलयुक्त कूप बना हुआ है ,स्वामी ने समाज के मूल में छुपी श्रेष्ठताओं को पहचाना और समाज को भी उन्हीं श्रेष्ठताओं से परिचित करवाया . स्वामी जी ने नकारात्मक संघर्ष के बजाय सदाचारी प्रयत्न का उपदेश दिया , 
.
गुरु गोकुलदास महाराज का जन्म 6 जनवरी 1907 को उत्तरप्रदेश के बेलाताल गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम करणदास तथा इनकी माता का नाम श्रीमती हर्बी था।  गुरु गोकुलदास महाराज समाज में परिवर्तन की मुख्य भूमिका निभाने वाले मेघवंश, डोम, डुमार, बसोर, धानुक, नगारची, हेला आदि समाज के महान पुरोधा  ,संत और वे एक तपस्वी, बाल ब्रह्मचारी संत थे। अपने अनुयायियों के साथ सत्संग में रत रहने वाले गोकुलदासजी ने पूरे भारत देश का भ्रमण किया था। सन् 1964 में भारत के आक्रमण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से भेंट कर उन्होंने चित्रकूट की पहाड़ियों में भारत की विजय होने तक घोर तपस्या की थी। गुरु गोकुलदासजी के भीतर राष्ट्रभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे एक सच्चे देशभक्त रहे। स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने वालों का वे बहुत सम्मान करते थे। वे सदा यही कहा करते थे कि संकट की घड़ी में हर भारतीय को धर्म, जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर देश की सेवा करना ही चाहिए। समाज के सजग प्रहरी और देशभक्त गोकुलदासजी महाराज समाज की पूजा-पद्धति, सामाजिक रीति-रिवाज, वैवाहिक पद्धति आदि को समान रूप से मानते थे। वे एक महान संत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर उसे पहचान बनाई।गोकुल दस जी शांत स्वरूपा थे। उन्हें एकान्तवास बहुत प्रिय था। कहीं भी जाते थे तो शहर से बाहर, शोरगुल से दूर, एकांत स्थान पर रहते थे। उन्होंने बहुत तपस्या की थी और अधिकतर मौन रहा करते थे। महाराज जी का समस्त जीवन यज्ञमय था। उनका सम्पूर्ण जीवन लोगों के हित करने में ही बीता। ऐसे महान संत को नमन!



यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*दामोदर दर्जी समाज महासंघ  आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ 

*दर्जी समाज मे मोसर (मृत्युभोज) के विडिओ 

पौराणिक कहानियाँ के विडिओ 

मंदिर कल्याण की  प्रेरक कहानियों के विडिओ  भाग 1 

*दर्जी समाज के मार्गदर्शक :जीवन गाथा 

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*दर्जी  वैवाहिक  महिला संगीत के विडिओ 

*मनोरंजन,शिक्षाप्रद ,उपदेश के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मंदिर  कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 3 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 3 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियां के विडिओ भाग 4 

मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 5 

*भजन,कथा कीर्तन के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ  भाग 6 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 7 

*मनोरंजन,शिक्षा ,पर्यटन,उपदेश के विडिओ 

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ 

*जातियों के महापुरुषों की जीवनी के विडिओ 

*धार्मिक ,सामाजिक त्योहार व  जुलूस के विडिओ