31.7.17

महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय




महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रैता युग में अस्सू पूर्णमाशी को एक श्रेष्ठ घराने में हुआ| आप अपने आरम्भिक जीवन में बड़ी तपस्वी एवं भजनीक थे| लेकिन एक राजघराने में पैदा होने के कारण आप शस्त्र विद्या में भी काफी निपुण थे|
आप जी के नाम के बारे ग्रंथों में लिखा है कि आप जंगल में जाकर कई साल तपस्या करते रहे| इस तरह तप करते हुए कई वर्ष बीत गए| आपके शरीर पर मिट्टी दीमक के घर की तरह उमड़ आई थी| संस्कृत भाषा में दीमक के घरों को 'वाल्मीकि' कहा जाता है| जब आप तपस्या करते हुए मिट्टी के ढेर में से उठे तो सारे लोग आपको वाल्मीकि कहने लगे| आपका बचपन का नाम कुछ और था, जिस बारे कोई जानकारी पता नहीं लगी|
में संस्कृत के आप पहले उच्चकोटि के विद्वान हुए हैं| आप जी को ब्रह्मा का पहला अवतार माना जाता है| प्रभु की भक्ति एवं यशगान से आपको दिव्यदृष्टि प्राप्त हुई थी और आप वर्तमान, भूतकाल तथा भविष्यकाल बारे सब कुछ जानते थे| श्री राम चन्द्र जी के जीवन के बारे आप जी को पहले ही ज्ञान हो गया था| इसलिए आप जी ने श्री राम चन्द्र जी के जीवन के बारे पहले 'रामायण' नामक एक महा ग्रंथ संस्कृत में लिख दिया था| बाद में जितनी भी रामायण अन्य कवियों तथा ऋषियों द्वारा लिखी गई है, वह सब इसी 'रामायण' को आधार मानकर लिखी गई

महर्षि वाल्मीकि अयोध्या के समीप तमसा नदी के किनारे तपस्या करते थे. वह प्रतिदिन प्रातः स्नान के लिए नदी में जाया करते थे. एक दिन जब वह सुबह स्नान करके वापस लौट रहे थे, तो उन्होंने एक क्रौच पक्षी के जोड़े को खेलते हुए देखा.


महर्षि वाल्मीकि अयोध्या के समीप तमसा नदी के किनारे तपस्या करते थे. वह प्रतिदिन प्रातः स्नान के लिए नदी में जाया करते थे. एक दिन जब वह सुबह स्नान करके वापस लौट रहे थे, तो उन्होंने एक क्रौच पक्षी के जोड़े को खेलते हुए देखा.
संस्कृत श्लोक-:
मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम: शाश्वती: समा: ।
यात्क्रौचंमिथुनादेकं अवधी: काम मोहितं ।।
हिन्दी अनुवाद-: हे शिकारी ! तुमने काम में मोहित क्रौच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया है, इसलिए तुम कभी भी प्रतिष्ठा और शांति को प्राप्त नहीं कर सकोगे.
महर्षि वाल्मीकि अयोध्या के समीप तमसा नदी के किनारे तपस्या करते थे. वह प्रतिदिन प्रातः स्नान के लिए नदी में जाया करते थे. एक दिन जब वह सुबह स्नान करके वापस लौट रहे थे, तो उन्होंने एक क्रौच पक्षी के जोड़े को खेलते हुए देखा.
वाल्मीकि उन्हें देखकर आनंद ले रहे थे, तभी अचानक एक शिकारी ने तीर चलाकर क्रौच पक्षी के जोड़े में से एक पक्षी को मार दिया तब दूसरा पक्षी पास के पेड़ में बैठकर अपने मरे हुए साथी को देखकर विलाप करने लगा.इस करुण दृश्य को देखकर वाल्मीकि के मुख से अपने आप एक कविता निकल गयी.
संस्कृत श्लोक-:
मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम: शाश्वती: समा: ।
यात्क्रौचंमिथुनादेकं अवधी: काम मोहितं ।।

हिन्दी अनुवाद-: हे शिकारी ! तुमने काम में मोहित क्रौच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया है, इसलिए तुम कभी भी प्रतिष्ठा और शांति को प्राप्त नहीं कर सकोगे.
इन्ही वाल्मीकि ने आगे चलकर विश्वप्रसिद्ध “रामायण” की रचना की. महर्षि वाल्मीकि का जन्म हजारो वर्ष पूर्व भारत में हुआ था.वह कब और कहाँ जन्मे इस बारे में कुछ भी निश्चत नहीं कहा जा सकता.
बचपन में महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था. ईश्वरीय प्रेरणा से वह सांसारिक जीवन (मोह) को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में लग गये.उन्होंने कठोर तपस्या की.
तपस्या में वे इतने लीन हो गए की उनके पूरे शरीर में दीमक ने अपनी वल्मीक बना लिया. इसी कारण इनका नाम वाल्मीकि पड़ा.
तमसा नदी के किनारे अपने आश्रम में रहकर उन्होंने कई रचनाये की जिसमे प्रसिद्ध ग्रन्थ रामायण भी शामिल है. रामायण में वर्णित कथा जैसा सुन्दर,स्पष्ट और भक्ति-भावपूर्ण वर्णन दुसरे कवि के काव्य में नहीं मिलता है.वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का आदि कवि माना जाता है.
वाल्मीकि रामायण में सात खंड है. उन्होंने अपनी इस रचना में सिर्फ भगवान राम का ही नहीं बल्कि उस समय के समाज की दशा,सभ्यता,शासन-व्यवस्था तथा लोगो के रहन-सहन का भी वर्णन किया है. रामायण को त्रेता युग का इतिहास-ग्रन्थ भी माना जाता है.
महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पुरुषोतम श्री राम के पुत्रो लव-कुश का जन्म हुआ था.उनकी शिक्षा-दीक्षा महर्षि वाल्मीकि की ही देख-रेख में हुई थी.उन्होंने अपने ज्ञान और शिक्षा-कौशल से लव-कुश को छोटी उम्र में ही ज्ञानी और युद्ध-कला में निपुण बना दिया था.
श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का घोडा जब महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पहुंचा तो लव-कुश ने उसे बाँध लिया और जब घोडा छुड़ाने के लिया अयोध्या से सेना आई तो उन्होंने लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न की सेना को पराजीत कर अपनी असीम प्रतिभा और शक्ति का परिचय दिया.
उन दोनों ने श्री राम को भी अपनी वीरता और बुद्धि से आश्चर्यचकित कर दिया. उनका यह पूरा पराक्रम महर्षि वाल्मीकि की शिक्षा का ही परिणाम था.
महर्षि वाल्मीकि कवि,शिक्षक और ज्ञानी ऋषि थे.उनके ग्रन्थ रामायण में इसकी स्पष्ट छाप दिखती है.रामायण ग्रन्थ भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व की एक बहुमूल्य कृति है.यह भारतीय साहित्य का एक श्रेष्ठ महाकाव्य है. महर्षि वाल्मीकि त्रिकालदर्शी ऋषि थे.
उनकी इस रचना, नीति, शिक्षा और दूरदर्शिता के कारण ही उन्हें आज भी बड़े आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है.







30.7.17

महर्षि वेदव्यास के जन्म की कथा ,The story of the birth of Maharishi Vedavyas




प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया।
दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। गर्भा पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को जाल में फंसा लिया |निषाद ने जब मछली को चीरा तो पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली।

निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"
आने पर सत्यवती गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।


27.7.17

बालक ध्रुव के ध्रुव तारा बनने की कथा /The story of the boy becoming the pole star of Dhruv




स्वयंभुव मनु और शतरुपा के दो पुत्र थे-प्रियवत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद को सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। यद्पि सुनीति बड़ी रानी थी परन्तु उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। एक बार सुनीति का पुत्र ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठा खेल रहा था। इतने में सुरुचि वहां आ पहुंची।
ध्रुव को उत्तानपाद की गोद में खेलते देख उसका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। सौतन के पुत्र को अपने पति की गोद में वह बर्दाश्त न कर सकी। उसका मन ईष्र्या से जल उठा। उसने झपट कर बालक ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उसकी गोद में बिठा दिया तथा बालक ध्रुव से बोली, अरे मूर्ख! राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ हो।
तू मेरी कोख से उत्पन्न नहीं हुआ है। इसलिए तुझे इनकी गोद में या राजसिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है। पांच वर्ष के ध्रुव को अपनी सौतेली मां के व्यवहार पर क्रोध आया। वह भागते हुए अपनी मां सुनीति के पास आए तथा सारी बात बताई। सुनीति बोली, बेटा! तेरी सौतेली माता सुरुचि से अधिक प्रेम के कारण तुम्हारे पिता हम लोगों से दूर हो गए हैं।

तुम भगवान को अपना सहारा बनाओ। माता के वचन सुनकर ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वह भगवान की भक्ति करने के लिए पिता के घर को छोड़ कर चल पड़े। मार्ग में उनकी भेंट देवार्षि नारद से हुई। देवार्षि ने बालक ध्रुव को समझाया, किन्तु ध्रुव नहीं माना। नारद ने उसके दृढ़ संकल्प को देखते हुए ध्रुव को मंत्र की दीक्षा दी। इसके बाद देवार्षि राजा उत्तानपाद के पास गए।
राजा उत्तानपाद को ध्रुव के चले जाने से बड़ा पछतावा हो रहा था। देवार्षि नारद को वहां पाकर उन्होंने उनका सत्कार किया। देवॢष ने राजा को ढांढस बंधाया कि भगवान उनके रक्षक हैं। भविष्य में वह अपने यश को सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैलाएंगे। उनके प्रभाव से आपकी कीर्ति इस संसार में फैलेगी। नारद जी के इन शब्दों से राजा उत्तानपाद को कुछ तसल्ली हुई।
उधर बालक ध्रुव यमुना के तट पर जा पहुंचे तथा महॢष नारद से मिले मंत्र से भगवान नारायण की तपस्या आरम्भ कर दी। तपस्या करते हुए ध्रुव को अनेक प्रकार की समस्याएं आईं परन्तु वह अपने संकल्प पर अडिग रहे। उनका मनोबल विचलित नहीं हुआ। उनके तप का तेज तीनों लोकों में फैलने लगा। ओम नमो भगवते वासुदेवाय की ध्वनि वैकुंठ में भी गूंज उठी।
तब भगवान नारायण भी योग निद्रा से उठ बैठे। ध्रुव को इस अवस्था में तप करते देख नारायण प्रसन्न हो गए तथा उन्हें दर्शन देने के लिए प्रकट हुए। नारायण बोले, हे राजकुमार! तुम्हारी समस्त इच्छाएं पूर्ण होंगी। तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वह लोक प्रदान कर रहा हूं, जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्र घूमता है तथा जिसके आधार पर सब ग्रह नक्षत्र घूमते हैं।
प्रलयकाल में भी जिसका कभी नाश नहीं होता। सप्तऋषि भी नक्षत्रों के साथ जिस की प्रदक्षिणा करते हैं। तुम्हारे नाम पर वह लोक ध्रुव लोक कहलाएगा। इस लोक में छत्तीस सहस्र वर्ष तक तुम पृथ्वी पर शासन करोगे। समस्त प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोग कर अंत समय में तुम मेरे लोक को प्राप्त करोगे। बालक ध्रुव को ऐसा वरदान देकर नारायण अपने लोक लौट गए। नारायण के वरदान स्वरूप ध्रुव समय पाकर ध्रुव तारा बन गए।

  • श्याम मने चाकर राखोजी
  • बारंबार प्रणाम मैया
  • कुछ अनोखा वो मेरे नन्द का लाल निकला
  • मनवा मेरा कब से प्यासा दर्शन देदो राम
  • घनश्याम जिसे तेरा जलवा नजर आता है
  • जाऊँ कहाँ ताजी चरण तुम्हारे
  • कुछ अनोखा वो मेरे नन्द का लाल निकाला
  • घनश्याम जिसे तेरा जलवा नजर आता है
  • राम बिराजो हृदय भुवन मे
  • राम राम काहे न बोले
  • गुरू आज्ञा मे निशि दिन रहिए
  • रघुवर तुमको मेरी लाज
  • गुरु चरनन मे शीष झुकाले
  • राधे मेरी स्वामिनी मैं राधे का दास
  • यदि नाथ का नाम है दयानिधि तो दया भी करेंगे कभी न ल्कभी
  • जग आसार मे रसना हरी हरी बोल
  • जय जय अविनाशी सब घाट वासी
  • यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेंगे
  • मैं जब भी अकेली होती हूँ
  • दीवाना पूछ लेगा तेरा नाम पता
  • दीवाना मुझको लोग कहें
  • दिल क्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाए
  • मेरे रश्के कमर ,राहत फ़तेह अली खान,
  • रिमझिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाये मन
  • एक दो तीन चार ,भूमिका सोलंकी ,विडियो दामोदर महिला संगीत
  • दामोदर महिला संगीत मे ऋचा कुमारी राठौर विडियो
  • गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर,Alpana and Vinod Chouhan In Damodar Mahila Sangeet
  • विडियो हां मेरे सुन्ने सुन्ने पैर --Aishwarya chouhan in Damodar mahila sangeet
  • Video-बिंदिया चमकेगी चूड़ी खनकेगी-छाया एंड सिस्टर्स इन दामोदर महिला संगीत
  • Video-तूने पायल जो छनकाई -साधना परमार की दामोदर महिला संगीत मे प्रस्तुति
  • video-दीये जल उठते है,-Apurva Rathore in Damodar Mahila Sangeet
  • Video-साँवरिया आओ आओ -Dilip DEshbhakt in Damodar mahila sangeet
  • Video-बिजली गिराने मैं हूँ आई,Arpita Rathore ,Damodar Mahila Sangeet , मिस्टर इंडिया
  • Video-तेरे कारण, तेरे कारण,छाया पँवार की प्रस्तुति
  • Video-नैनों वाले ने// सोमा परमार की प्रस्तुति
  • Video-तेरे बिन नइ लगदा दिल मेरा ढोलना-नेहा दीपेश गोहील भावनगर की दामोदर महिला संगीत मे प्रस्तुति
  • Video-हमरी अटरिया पे -सुनीता पँवार दामोदर महिला संगीत मे
  • मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं
  • मन की प्यास मेरे मन से ना निकली//jal bin macchli-Lata mangeshkar
  • किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया
  • बेक़रार दिल, तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने
  • रसिक बलमा, हाय दिल क्यों लगाया
  • ज़िन्दगी प्यार का गीत है इसे हर दिल को गाना पड़ेगा
  • मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले
  • दो घड़ी वो जो पास आ बैठे हम ज़माने से दूर जा बैठे

  • 21.7.17

    हिन्दू धर्म में हवन पूजा का उद्धेश्य और महत्व //The importance and significance of havan puja in Hinduism


    हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं).हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आस पास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।

    स्वास्थ्य के लिए हवन का महत्त्व:-
    प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।
    हवन एक ऐसी विधा है जिसके नियमित करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है तथा अपने विरोधी का नुकसान व अपनी शक्ति ज्यादा बढ़ा देता है इसलिए तामसी प्रवृत्ति वाले तांत्रिक भी इसका भरपुर उपयोग करते है। गायत्री परिवार वाले भी विधि-विधान से हवन करते है जिससे वाणी में सत्यता तथा विश्व बन्धुत्व की भावना बढ़ती है। नियमित हवन करने वालो पर किसी भी प्रकार के बुरी तरंगो का कुप्रभाव नही पड़ता हैं। जानकार की निगरानी में हवन करने से मनवांछित फल प्राप्त होता हैं।

    हवन करने की विधी: हवन कुण्ड षुदध होना चाहिए तथा आहुति देने वाला व्यक्ति सन कर ढंग से बैठकर आहूति दें
    हवन का उद्देश्य:-
    हवन शुभ ऊर्जा के जागरण में निर्देशित प्रक्रिया है और हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाती है हवन के दौरान बोले जाने वाले पवित्र मंत्र एक विशेष कंपन पैदा करते है जो बुरी ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवार्तित करते है।
    । सिर पर पगडी तथा धोती व सफेद कपडे पहने हुए होने चाहिऐ। नीले रंग का कोई भी कपडा पहना हुआं नहीं
    होना चाहीए। फिर षुध्द सात्विक भावसे श्रध्दापुर्वक ओ3म स्वाहा के साथ आहुति देनी चाहिए। पहले वैदिक मंत्र फिर गोत्राचार बोलकर भी जम्भेष्वर भगवान के षब्दो से हन करें । तो विषेष फलदायक हैं।
    जानिए हवन के विभिन्न प्रकार:-
    मृत्युंजय हवन जो लंबे जीवन और जीवन की विकट स्थिति के लिए होता है,
    दुर्गा हवन नकारात्मक ताकतों के लिए,
    चंडी हवन सभी क्षेत्रों में जीत के लिए,
    गायत्री हवन सकारात्मक सोच की सुविधा के लिए।
    गणपति हवन बाधाओं को दूर करने के लिए
    लक्ष्मी हवन धन और समृद्धि के लिए
    कृत्या परिहरना हवन काला जादू के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए।
    रुद्र हवन नकारात्मक प्रभावों से छुटकारा पाने के लिए।
    वास्तु हवन इमारतों और घरों में अच्छी ऊर्जा के लिए
    विद्या हवन सीखने की सुविधा के लिएजानिए, अलग-अलग रोग और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए कौन-सीहवन सामग्रियां बहुत प्रभावी होती हैं-
    1. दूध में डूबे आम के पत्ते - बुखार
    2. शहद और घी - मधुमेह
    3. ढाक के पत्ते - आंखों की बीमारी
    4. खड़ी मसूर, घी, शहद, शक्कर - मुख रोग
    5. कन्दमूल या कोई भी फल - गर्भाशय या गर्भ शिशु दोष
    6. भाँग,धतुरा - मनोरोग
    7. गूलर, आँवला - शरीर में दर्द
    8. घी लगी दूब या दूर्वा - कोई भयंकर रोग या असाध्य बीमारी
    9. बेल या कोई फल - उदर यानी पेट की बीमारियां
    10. बेलगिरि, आँवला, सरसों, तिल - किसी भी तरह का रोग शांति
    11. घी - लंबी आयु के लिए
    12. घी लगी आक की लकडी और पत्ते - शरीर की रक्षा और
    स्वास्थ्य के लिए।

    हिन्दू धर्म के १० रोचक तथ्य10 :Interesting Facts About Hinduism




    हिन्दू धर्म विश्व के सबसे प्राचीनतम धर्मों में से एक है इसमें कोई दो राय नहीं, पर इस धर्म में कई ऐसी चीज़ें है जो इसे बाकी धर्मों की तुलना से भिन्न तो बनाती ही हैं साथ में
    एक ऐसा आधार भी देती हैं जो इसे मानने वालों को गर्व भी प्रदान करती हैं.

    इस धर्म के संथापक का ही पता नहीं

    हिन्दू धर्म का संस्थापक कौन हैं इसके बारे में कोई साक्ष्य ही नहीं है, पर इसके प्रचार-प्रसार में काफ़ी सारे ऋषि-मुनियों और लोगों ने भूमिका निभाई है जिनका जिक्र हिन्दू धर्म की कई पुस्तकों में मिलता हैं.ऐसा आधार भी देती हैं जो इसे मानने वालों को गर्व भी प्रदान करती है|

    कोई एक धर्म शास्त्र नहीं

    हिन्दू धर्म का कोई एक धर्मशास्त्र नहीं है बल्कि बहुत सारी किताबें मिलाकर इसे एक धार्मिक आधार  प्रदान करती है|

    .विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म

    क्रिश्चियनिटी और इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है और 90% हिन्दू, हिंदुस्तान में ही रहते है|

    ऋग्वेद का प्रसार कई वर्षो तक केवल मौखिक रूप में ही होता रहा था

    ऋग्वेद का इतिहास लगभग 3800 साल पुराना है जबकि 3500 साल तक इसे केवल मौखिक रूप में ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया जाता रहा था.
     
    मंदिर जाने के लिए कोई एक समय निर्धारित नहीं है

    हिन्दू धर्म की एक खास बात यह है कि यहां पर ऊपर वाले को याद करने के लिए कोई एक खास दिन या समय नहीं होता. जब भी आपका दिल करे आप प्राथना के लिए मंदिर जा सकते हैं.

    .108 एक पवित्र नंबर है

    हिन्दू धर्म में 108 को पवित्र माना जाता है, तभी तो मालाओं में 108 मोती होते हैं 

    सभी त्यौहार ख़ास होते हैं

    हिन्दू धर्म में सभी त्यौहारों को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यहां शोक के लिए कोई स्थान नहीं |

    नास्तिकता को भी स्वीकार करता है

    यह इकलौता ऐसा धर्म है जो नास्तिकों को भी स्वीकृति देता है.

    औरत और मर्द दोनों समान है

    हिन्दू धर्म शायद इकलौता ऐसा धर्म है जिसमें देवी-देवताओं की संख्या समान है और दोनों को एक ही श्रद्धा के साथ पूजा जाता हैं.

    Juggernaut शब्द जगन्नाथ से लिया गया है

    Juggernaut जिसका मतलब विशाल रथ से होता है, देवता जगन्नाथ से ही लिया गया है.









    आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध // Spirit and God Relationship




     

    आत्मा - परमात्मा का ही अंश है। जिस प्रकार जल की धारा किसी पत्थर से टकराकर छोटे छींटों के रूप में बदल जाती है, उसी प्रकार परमात्मा की महान सत्ता अपने क्रीड़ा विनोद के लिए अनेक भागों में विभक्त होकर अगणित जीवों के रूप में दृष्टिगोचर होती हैं। सृष्टि सञ्चालन का क्रीड़ा कौतुक करने के लिए परमात्मा ने इस संसार की रचना की। वह अकेला था। अकेला रहना उसे अच्छा न लगा, सोचा एक से बहुत हो जाऊँ। उसकी यह इच्छा ही फलवती होकर प्रकृति के रूप में परिणित हो गई। इच्छा की शक्ति - महान है। आकाँक्षा अपने अनुरूप परिस्थितियाँ तथा वस्तुयें एकत्रित कर ही लेती है। विचार ही कार्य रूप में परिणित होते हैं और उन कार्यों की साक्षी देने के लिए पदार्थ सामने आ खड़े होते हैं। परमात्मा की एक से बहुत होने की इच्छा ने ही अपना विस्तार किया तो यह सारी वसुधा बन कर तैयार हो गई।



    वीर्य की मात्रा बढ़ाने और गाढ़ा करने के उपाय

    परमात्मा ने अपने आपको बखेरने का झंझट भरा कार्य इसलिए किया कि बिखरे हुए कणों को फिर एकत्रित होते समय असाधारण आनन्द प्राप्त होता रहे। बिछुड़ने में जो कष्ट है उसकी पूर्ति मिलन के आनन्द से हो जाती है। परमात्मा ने अपने टुकड़ों को - अंश, जीवों को बिखेरने का विछोह कार्य इसलिए किया कि वे जीव परस्पर एकता, प्रेम, सद्भाव, संगठन, सहयोग का जितना - जितना प्रयत्न करें उतने आनन्दमग्न होते रहें। प्रेम और आत्मीयता से बढ़कर उल्लास शक्ति का स्रोत और कहीं नहीं है। अनेक प्रकार के बल इस संसार में मौजूद हैं पर प्राणियों की एकता के द्वारा जो शक्ति उत्पन्न होती है उसकी तुलना और किसी से भी नहीं की जा सकती। पति-पत्नी, भाई - भाई, मित्र - मित्र, गुरु- शिष्य, आदि की आत्मीयता जब उच्च स्तर तक पहुंचती है तो उस मिलन का आनन्द और उत्साहवर्धक प्रतिफल इतना सुन्दर होता है कि प्राणी अपने को कृत्य - कृत्य मानता है।
    कबीर का एक दोहा प्रसिद्ध है --


    भक्त के वश में भगवान को बताया गया है। इन मान्यताओं का कारण एक ही है कि प्रेम की हिलोरें जिस अन्तरात्मा में उठ रही होंगी उसका स्तर साधारण न रहेगा। जिसमें दिव्य गुण, दिव्य स्वभाव का आविर्भाव होगा, वह दिव्य कर्म ही कर सकेगा। ऐसे ही व्यक्तियों को देवता कहकर पुकारा जाता है। जहाँ देवता रहेंगे वहाँ स्वर्ग तो अपने आप ही होगा।







    पुनर्जन्म सम्बंधित प्रश्नों के समाधान // Solutions for rebirth related questions




    पुनर्जन्म क्या है, और क्यों होता है?

    प्रश्न: पुनर्जन्म किसको कहते हैं?
    उत्तर: जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।
    प्रश्न: पुनर्जन्म क्यों होता है?
    उत्तर: जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं ।
    प्रश्न: अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो?
    उत्तर: नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं ।
    प्रश्न: पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है?
    उत्तर: पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।
    प्रश्न: शरीर के बारे में समझाएँ?
    उत्तर: हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
    जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
    बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
    अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
    पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।
    शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।
    प्रश्न: सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं?
    उत्तर: सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ । ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।
    प्रश्न: स्थूल शरीर किसको कहते हैं?
    उत्तर: पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।
    प्रश्न: जन्म क्या होता है?
    उत्तर: जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।
    प्रश्न: मृत्यु क्या होती है?
    उत्तर: जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।
    : मृत्यु होती ही क्यों है?
    उत्तर: जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है ।
    प्रश्न: मृत्यु न होती तो क्या होता?
    उत्तर: तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।
    प्रश्न: क्या मृत्यु होना बुरी बात है?
    उत्तर: नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।
    प्रश्न: यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं?
    उत्तर: क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।
    प्रश्न: तो मृत्यु के समय कैसा लगता है? थोड़ा सा तो बतायें?
    उत्तर: जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो । तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।
    प्रश्न: मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें?
    उत्तर: जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था । महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।
    प्रश्न: किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है?
    उत्तर: आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।
    प्रश्न: पुनर्जन्म कब कब नहीं होता?
    उत्तर: जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।
    प्रश्न: मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता?
    उत्तर: क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।
    प्रश्न: मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता?
    उत्तर: मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।
    प्रश्न: लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है?

    उत्तर: सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।
    प्रश्न: मोक्ष की अवधि कब तक होती है?
    उत्तर: मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।
    प्रश्न: मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं?
    उत्तर: नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।
    प्रश्न: मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है?
    उत्तर: सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है । जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।
    प्रश्न: मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का?
    उत्तर: मनुष्य शरीर ही मिलता है ।
    प्रश्न: क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है? जानवर का क्यों नहीं?
    उत्तर: क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।
    प्रश्न: मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है?
    उत्तर: क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा??
    प्रश्न: पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है?
    उत्तर: पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।
    प्रश्न: पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है?
    उत्तर: जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।
    प्रश्न: कर्म कितने प्रकार के होते हैं?
    उत्तर: मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है: सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।
    (१) सात्विक कर्म: सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।
    (२) राजसिक कर्म: मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।
    (३) तामसिक कर्म: चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।
    और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।
    प्रश्न: किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है?
    उत्तर: सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।
    प्रश्न: किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है?
    उत्तर: तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।
    प्रश्न: तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे? या आगे क्या होंगे?
    उत्तर: नहीं कभी नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि यह केवल ईश्वर का ही अधिकार है कि हमें हमारे कर्मों के आधार पर शरीर दे । वही सब जानता है ।
    प्रश्न: तो फिर यह किसको पता चल सकता है?
    उत्तर: केवल एक सिद्ध योगी ही यह जान सकता है , योगाभ्यास से उसकी बुद्धि । अत्यन्त तीव्र हो चुकी होती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी योगज शक्ति से जान सकता है । उस योगी को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
    वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।
    प्रश्न: यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है?
    उत्तर: अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं? कैसे प्राप्त होती हैं? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें ।
    प्रश्न: क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं?
    उत्तर: हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है ।

    प्रश्न: क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं?
    उत्तर: हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा ।
    प्रश्न: लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का?
    उत्तर: आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं ।
    प्रश्न: तो सिद्ध कीजीए ?
    उत्तर: जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं ।
    इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था । लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !! और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया । जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि " मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । "
    तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो ।
    प्रश्न: तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?
    उत्तर: ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसको Multiple Personality Syndrome का नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं ।
    प्रश्न: क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?
    उत्तर: ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, किसने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है ।
    प्रश्न: परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी ?
    उत्तर: यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मछली हो, चाहे वो एक कीड़ी हो ।