प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया।
दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। गर्भा पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को जाल में फंसा लिया |निषाद ने जब मछली को चीरा तो पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली।
निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"
आने पर सत्यवती गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।
- मैं जब भी अकेली होती हूँ
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- Video-हमरी अटरिया पे -सुनीता पँवार दामोदर महिला संगीत मे
- मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं
- मन की प्यास मेरे मन से ना निकली//jal bin macchli-Lata mangeshkar
- किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया
- बेक़रार दिल, तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने
- रसिक बलमा, हाय दिल क्यों लगाया
- ज़िन्दगी प्यार का गीत है इसे हर दिल को गाना पड़ेगा
- मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले
- दो घड़ी वो जो पास आ बैठे हम ज़माने से दूर जा बैठे
- चलना है दूर मुसाफिर
- मीठे रस से भरी राधा रानी
- वो है कितना दीन दयाल
- बाँके बिहारी से
- प्रीत की लत मोहे
- आए भी अकेला जाए भी अकेला
- वृन्दावन के बाँके बिहारी
- ऋषि मुनियो की धरती को
- ऐसा डमरू बजईया भोलेनाथ ने
- अम्बे तू है जगदम्बे काली
- राम दो निज चरणो मे स्थान
- दीवाना तेरा आया
- बड़ा नटखट हे रे कृष्ण कन्हैया
- भज मन मेरे राम नाम तू
- न थी किस्मत तूने इतना दिया
- आओगे जब तुम सांवरे
- गौरी के लाडले तेरी माया बड़ी अपार
- साँवली सूरत पे मोहन
- शिव-स्तुति
- दुख: हरो द्वारिका नाथ
- भए प्रगट कृपाला दीन दयाला
- तेरा सहारा अम्बे माँ
- दर्शन की प्यासी नजरिया
- बाँके बिहारी कृष्ण मुरारी
- कौन काटता राम के बंधन
- बिगड़ी मेरी बनादे
- अंगना पधारो महारानी
- तेरी मुरली की मैं हूँ गुलाम
- ये हे मेहंदीपुर वाला
- चलो मन गंगा जमुना तीर
- ज्योत से ज्योत जगाते चलो
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