आस्था और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है, पता ही नहीं चलता कि कब आस्था अंधविश्वास में तब्दील हो गई. विज्ञान, वकील ,डॉक्टर की डिग्री होने के बावजूद ऐसे कई लोग गले मे काला डोरा या ताबीज धारण करते हैं और राशिफल,कुंडली के चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते हैं -Dr.Dayaram Aalok,M.A.,Ayurved Ratna,D.I.Hom(London)
आद्यात्मिक दान-पथ साहित्य मनीषी डॉ.दयाराम जी आलोक राजस्थान और मध्यप्रदेश के मंदसौर,आगर नीमच ,झालावाड़ ,रतलाम और झाबुआ जिलों के मंदिरों ,मुक्ति धाम और गौशालाओं में निर्माण व विकास हेतु नकद और आगंतुकों के बैठने हेतु सीमेंट की बेंचें दान देने का अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं.
डॉ.आलोक जी एक सेवानिवृत्त अध्यापक हैं और वे अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने के संकल्प के साथ आध्यात्मिक दान-पथ पर अग्रसर हैं . 151 से अधिक संस्थानों में बैठक व्यवस्था उन्नत करने हेतु सीमेंट बेंचें और रंग रोगन के लिए नकद दान के अनुष्ठान में आपकी वो राशि भी शामिल है जो google कंपनी से उनके ब्लॉग और You tube चैनल से प्राप्त होती है| समायोजित दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं.
राजस्थान के झालावाड़ जिले मे गंगधार तहसील के अंतर्गत एक छोटा सा ग्राम है उमरिया | यहाँ नव निर्मित भूतेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है| यह मंदिर मुख्य मार्ग के समीप है| हरे भरे वृक्ष इस मंदिर की शोभा बढ़ाते प्रतीत होते हैं| मंदिर का प्रांगण विशाल है|यहाँ आस पास के गांवों के लोग अपने धार्मिक,सामाजिक उत्सव और रीति रस्मों संबंधित आयोजन करते रहते हैं| मंदिर जाने के लिए शामगढ़ ,सुवासरा ,डग से बसें उपलब्ध रहती हैं| निकटतम कस्बा डग यहाँ से 12 किलोमीटर दूर है| सावन के महीने मे यहाँ यात्रियों और दर्शनार्थियों की बड़ी संख्या देखी जा सकती है| इस मंदिर मे दर्शनार्थियों के लिए बैठने की सुविधा के मध्ये नजर साहित्य मनीषी ,समाजसेवी डॉ. दयाराम जी आलोक 9926524852 के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 9826795656 द्वारा 5 सीमेंट बेंच भेंट की गई हैं| मंदिर के विकास हेतु पाँच हजार रुपये नकद विक्रम सिंग जी , मंदिर कोषाध्यक्ष के बेंक अकाउंट मे फोन पे किए गए हैं|
श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर उमरिया राज .
21501/- का दान (5 सीमेंट बैंच+5001/- नकद)
नेम प्लेट मंदिर समिति के प्रमुख विक्रम सिंह जी 98282-75037 के सुपुर्द
भूतेश्वर महादेव मंदिर मे शिलालेख चस्पा किया गया 15/1/2023
भूतेश्वर महादेव मंदिर मे पाँच बेंच भेंट 26/1/2023
भूतेश्वर महादेव मंदिर हेतु दान 5000/-विक्रम सिंग जी के अकाउंट मे फोन पे किए 19/1/2023
सौरभ कुमार जी पँवार वस्त्र व्यवसायी डग 97995-70000 की प्रेरणा
राम गोपाल जी राठौर 94142-30856 उमरिया का सुझाव
मांगीलाल जी पटेल 9783184099 उमरिया की पहल
मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष विक्रम सिंह जी 98282-75037 हैं
मंदिर के मुख्य पुजारी गुरुजी 9602343774 हैं
डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852,दामोदर पथरी अस्पताल98267-95656 शामगढ़ द्वारा भूतेश्वर महादेव मंदिर हेतु दान सम्पन्न 26 /1/2023
शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है| परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है| मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 8 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
साहित्य मनीषी डॉ.दयाराम जी आलोक
के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ.अनिल दामोदर दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ द्वारा
रामदेवजी के मंदिर बरडिया अमरा हेतु
5 सिमेन्ट बेंच भेंट
रामदेवजी के मंदिर बरडिया अमरा मे भेंट की गई बेंच का विडियो
मंदिर परिसर मे 5 बेंच लगाई गई 3/9/2022
मनोज- माणक लाल जी राठौर बर्डिया अमरा 99930-71141 की पहल
रामदेव जी मंदिर समिति के अध्यक्ष राम निवासजी जांगड़े 99260-24258 हैं|
यह मंदिर बर्डिया अमरा के बस स्टेंड के समीप रोड से लगा हुआ प्राईम लोकेशन पर है|
डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक99265-24852,दामोदर पथरी अस्पताल98267-95656 शामगढ़ द्वारा रामदेव मन्दिर बर्डिया अमरा हेतु दान सम्पन्न| 3/9/22
चंद्रवंशी खाती समाज श्री पुत्र सहस्त्रबाहु के पुत्र है । समाज के इष्टदेव भगवान जगदीश है , कुलदेवी महागौरी अष्टमी है , कुलदेव भैरव देव और आराध्या देव भोले शंकर है । खाती समाज भगवान परशुराम जी के आशीर्वाद से उत्त्पन्न जाती है .।इस जाती के लोग सुन्दर और गोर वर्ण अर्थात ‘गोरे ’आते है । क्षत्रिय खाती समाज जम्मू कश्मीर के अभेपुर और नभेपुर के मूल निवासी है आज भी चंद्रवंशी लोग हिमालय क्षेत्र में केसर की खेती करते है । समाज के लिए दोहे प्रसिद्द है ”उत्तर देसी पटक मूलः ,नभर नाभयपुर रे ,चन्द्रवंश सेवा करी ,शंकर सदा सहाय” और ”चंद्रवंशम गोकुलनंदम जयति ”भगवान जगदीश के लिए । समाज १२०० वर्ष पहले से ही कश्मीर से पलायन करने लग गया था और भारत के अन्य राज्यों में बसने लग गया था । समकालीन राजा के आदेश से समाज को राज छोड़ना पड़ा था। खाती समाज के लोग बहुत ही धनि और संपन्न थे , उच्च शिक्षा को महत्व दिया जाता था । जम्मू कश्मीर के अलाउद्दीन ख़िलजी ने १३०५ में मालवा और मध्य भारत में विजय प्राप्त की | चन्द्रवंशी खाती समाज के सैनिक भी सैना का संचालन करते थे विजय से खुश होकर ख़िलजी ने समाज को मालवा पर राज करने को कहा परन्तु समाज के वरिष्ठ लोगो ने सोच विचार कर जमींदारी और खेती करने का निश्चय किया. इस तरह कश्मीर से आने के बाद ३५ वर्ष तक समाज मांडवगढ़ में रहा इसके बाद आगे बढ़कर महेश्वर जिसे महिष्मति पूरी कहते थे वहां आकर रहने लगे महेश्वर चंद्रवंशी खाती समाज के पूर्वज सहस्त्रार्जुन की राजधानी था आज भी महेश्वर में सहस्त्रबाहु का विशाल मंदिर बना है जिसका सञ्चालन कलचुरि समाज करता है। ४५ वर्षो तक रहने के बाद वहाँ से इंदौर, उज्जैन, देवास, धार, रतलाम, सीहोर, भोपाल , सांवेर आदि जिलो में बसते चले गए और खाती पटेल कहलाये । मालवा में खाती समाज के पूर्वजो ने ४४४ गाँव बसाये जिनकी पटेली की दसियाते भी उनके नाम रही। खाती समाज का गौरव पूर्ण इतिहास रहा है । समाज के कुल १०५ गोत्र है जिसमे से ८४ गोत्र मध्यप्रदेश में है और मध्यप्रदेश के १६ जिलो में है और १२५० गाँवों में निवास करते है । मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में चंद्रवंशी खाती समाज के इष्ट देव जगदीश का भव्य प्राचीन मंदिर है जहा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितिय को भगवान की रथयात्रा निकलती है समाज जन और भक्तजन अपने हाथो से रथ खींचकर भगवान को नगर भ्रमण करवाते है | चन्द्रवंश या सोमवंश के राजा कीर्तिवीर्य बहुत ही धर्मात्मा हुआ करते थे । उनके पुत्र का नाम सहस्त्रबाहु या सहस्त्रार्जुन रखा गया, सोमवंश के वंशज थे इसलिए राजवंशी खत्री कहलाए ।सहस्त्रार्जुन ने नावों खंडो का राज्य पाने के लिए भगवान रूद्र दत्त का ताप किया और ५०० युगों तक तप किया इस से प्रभावित होकर भगवान शंकर ने उन्हें १ हज़ार भुजा और ५०० मस्तक दिए । उसके बाद उनका सहस्त्रबाहु अर्थात सौ भुजा वाला नाम पड़ा । महेश्वर समाज के पूर्वज सहस्त्रार्जुन की राजधानी रहा जहा ८५००० सालो तक राज्य किया । महेश्वर के निकट सहस्त्रार्जुन ने नर्मदा नदी को अपनी हज़ार भुजाओं के बल से रोकना चाहा परन्तु माँ नर्मदे उसकी हज़ार भुजाओं को चीरती हुई आगे निकल गई इसलिए उस स्थान को सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाने लगा जहा आज भी १००० धाराएं अलग अलग दिखाई देती है । सहस्त्रार्जुन के लिए दोहा प्रसिद्द है ”नानूनम कीर्तिविरस्य गतिम् यास्यन्ति पार्थिवः ! यज्ञेर्दानैस्तपोभिर्वा प्रश्रयेण श्रुतेन च ! अर्थात सहस्त्रबाहु की बराबरी यज्ञ, दान, तप, विनय और विद्या में आज तक कोई राजा नहीं कर सका । एक दिन देवो पर विजय प्राप्त करने के बाद विश्व विजेता रावण ने अर्जुन पर आक्रमण कर दिया परन्तु सहस्त्रार्जुन ने रावण को बंधी बना लिया और रावण द्वारा क्षमा मांगने पर महीनो बाद छोड़ा फिर भगवान नारायण विष्णु के छटवे अंश ने परशुराम जी का अवतार धारण किया और सहस्त्रबाहु का घमंड चूर किया । इस युद्ध स्थल में १०५ पुत्रों को उनकी माता लेकर कुलगुरु की शरण में गई । राजा श्री जनक राय जी ने रक्षा का वचन दिया और १०५ भाइयों को क्षत्रिय से खत्री कहकर अपने पास रख लिया और ब्राह्मण वर्ण अपना कर सत्य सनातन धर्म पर चलने का वादा किया । १०५ भाइयों के नाम से उनका वंश चला और खाती समाज के १०५ गोत्र हुए | चन्द्रवंश की १०५ शाखाये पुरे भारत में राजवंशी खत्री भी कहलाते है । देश में समाज की जनसँख्या २ करोड़ से अधिक मप्र में जनसँख्या ५० लाख भारत के राज्यों में । समाज दिल्ली , हरयाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर, राजस्थान,उत्तर प्रदेश,हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि …. विदेशो में समाज नेपाल, तजफिस्टन, चिली, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा और थाईलैंड में है । चंद्रवंशी क्षत्रिय खाती समाज के इष्टदेव भगवान जगन्नाथ है।जो साधना के देदीप्यमान नक्षत्र है जिनका सत्संग और दर्शन तो दूर नाम मात्र से ही जीवन सफल हो जाता है। हिन्दू धर्म के चारधाम में एक धाम जगन्नाथपुरी उड़ीसा में है और खाती समाज का भव्य पुरातन व बहुत ही सुन्दर मंदिर पतित पावनि माँ क्षिप्रा के तट पर है । भगवान महाकाल की नगरी अवंतिकापुरी उज्जैन देश की केवल एक मात्र नगरी है जहा संस्कार और संस्कृति का प्रवाह सालभर होता रहता है।यहाँ पर डग डग पर धर्म और पग पग पर संस्कृति मौजूद है । खाती समाज का एक महापर्व भगवान जगदीश की रथयात्रा है इस अवसर पर समाज के इष्टदेव भगवान जगन्नाथ पालकी रथ पर विराजते है और नगर भ्रमण करते है ।हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल २ को निकलती है ।इस दिन उज्जैन जगन्नाथपुरी सा दिखाई पड़ता है । भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र , बहिन सुभद्रा की मूर्तियों का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है और मंदिर की विद्युत सज्जा की जाती है । लाखो हज़ारो भक्तजन भगवान के रथ को खींचकर धन्य मानते है । इस पर्व को लेकर समाज में बहुत उत्साह रहता है भक्तो का सैलाब धार्मिक राजधानी की और बढ़ता है। इस अवसर पर मंदिर में रातभर विभिन्न मंडलियों द्वारा भजन किये जाते है । रथ के साथ बैंडबाजे ऊंट, हाथी, घोड़े, ढोलक की ताल, अखाड़े,डीजे, झांकिया रथयात्रा की शोभा बढाती है और इस तरह भगवान की शाही यात्रा उज्जैन घूमकर पुनः मंदिर पहुचती है मंदिर में सामूहिक भोज भंडारा भी खाती समाज द्वारा किया जाता है जो भगवान का प्रसाद माना जाता है फिर महा आरती के साथ पुनः भगवान मंदिर में विराजते है कहते है इस दिन भगवान् अपनी प्रजा को देखने के लिए मंदिर से निकलते है जो भी भक्त भगवान् तक नहीं पहुंच सका भगवान खुद उसे दर्शन देने निकलते है । महाभारत का युद्ध के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ रथ में बैठकर द्वारिका पूरी जाते है और गोपिया उनके रथ को खींचती है । जगन्नाथ पूरी में भगवान के रथ को राजा सोने की झाड़ू से रथ को भखरते अर्थात सफाई करते थे उस समय केवल नेपाल के और पूरी के राजा जो की चंद्रवंशी थे वे ही केवल मंदिर की मूर्तियों को छू सकते थे क्योंकि वे चन्द्र कुल अर्थात चन्द्रवंश से थे । जाति इतिहासविद डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार खाती समाज की कुलदेवी महागौरी है जो दुर्गाजी का आठवा रूप है ।इसे समाज की शक्ति उपासना का पर्व माना जाता है ।महिनो पहले से ही गौरी माँ की पूजन की तैयारिया शुरू हो जाती है । देश विदेश से लोग अष्टमी पूजन के लिए घर आ जाते है इस उत्सव को विशेष महत्व दिया जाता है भगवान वेदव्यास जी ने कहा है की ”है माता तू स्मरण मंत्र से ही भयो का विनाश कर देती है। ” माता महागौरी की पूजा गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेध से की जाती है ममता, समता और क्षमता की त्रिवेणी का नाम माँ है | पुत्र कुपुत्र हो सकता है माता कुमाता नहीं पूजा के अंत में क्षमा मांगी जाती है।
Disclaimer: इस content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे.
धोबी शब्द की व्युत्पत्ति धावन या धोने से मानी जाती है। रजक (धोबी) रीषि कश्यप के वंशज है जिन्हे कपडे धोने का कार्य करने को सोपा ग्या था और यही कारण है की धोबी (रजक) का गोत्र कश्यप है। जो मुल रूप से सूर्यवंशी है। अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति में उन्हें सम्मिलित किया गया है। धोबी जाति का इतिहास, धोने से जुड़ा हुआ है. धोबी जाति के लोग कपड़े धोने का काम करते हैं. धोबी जाति के लोगों को रजक भी कहा जाता है. धोबी जाति के लोगों के बारे में कुछ खास बातेंः धोबी जाति के लोगों का गोत्र कश्यप है. धोबी जाति के लोग मूल रूप से सूर्यवंशी हैं. धोबी जाति के लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति में रखा गया है. महाराष्ट्र में धोबी जाति के लोगों को परित के नाम से भी जाना जाता है. दक्षिण भारत में धोबी जाति के लोगों को राजाका या धोबा के नाम से भी जाना जाता है. मुस्लिम धोबी जाति के लोग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं. बिहार में धोबी जाति के लोगों को अनुसूचित जाति में रखा गया है. धोबी जाति के लोग भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, और श्रीलंका में भी पाए जाते हैं.
धोबी,रजक समाज का इतिहास
रजक समाज के लोग भारत देश के विभिन्न प्रांतो मे आर्यो के आक्रमण से पहले से रहते चले आ रहे हैं . आर्यों के आक्रमण से पहले धोबी ,रजक समाज के लोग अन्य मूलनिवासीयो की तरह खेती और पशु पालन का काम किया करते थे लेकिन आर्यो ने अपने बेहतर हथियारो और घोड़ो के बल पर भारत के मूलनीवासीयो को अपना घर बार खेती बाड़ी छोड़ कर जंगल मे रहने के लिए मजबूर कर दिया. स्वाभिमानी मूलनीवासीयो ने सेकडो सालो तक आर्यो से हार नही मानी और वे अपने पशु धन और खेती के लिए आर्यो से लड़ते रहे. आर्यो ने उन्हे राक्षस, दैत्य, दानव इत्याति नाम दिए और उनकी पराजय की झूठी कहानिया लिखी जो आज ब्राह्मण धर्म के ग्रंथ बन गये है. मूलनीवासीयो और आर्यो की लड़ाई सेकडो सालो तक चलती रही और धीरे धीरे आर्यो को यह समझ आने लगा की लड़ाई कर के मूलनीवासीयो को हराया नही जा सकता इसलिए उन्होने अंधविशवास का सहारा लिया और देवी देवताओ के नाम पर मूलनीवासीयो को डराना शुरू कर दिया. भोले भाले लोग कपटी ब्राह्माणो की चाल को ना समझ सके और धीरे धीरे उनके झाँसे मे आगये .
ब्राह्मणों ने मूलनीवासीयो मे फुट डालने के लिए और हमेशा के लिए उन्हे दबाकर रखने के लिए जाती प्रथा को शुरू किया और अपने हिसाब से अपने हित के लिए सारे काम मूलनिवासियो मे बाँट दिए और उनमे उंच नीच का भाव भर दिया ताकि वे खुद एक दूसरे से उपर नीचे के लिए लड़ते रहे और ब्राह्मण और क्षत्रिय राज करते रहे. यह आज तक चला आ रहा है.
डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, रजक समाज का उद्भव उन मूल निवासियों से हुआ जिन्हें लोगों को पाप मुक्त करने का काम सौंपा गया था। शुरुआत में, यह काम बहुत सम्मानजनक था, और लोग अपनी शुद्धि और मुक्ति के लिए रजक समाज के लोगों के घर जाते थे।उनके मतानुसार, रजक समाज के लोग लोगों को पाप मुक्त करने के लिए घर का पानी छिड़ककर उन्हें पवित्र और पाप मुक्त कर देते थे। लेकिन धीरे-धीरे, रजक समाज की इज्जत बढ़ने लगी, और ब्राह्मणों को लगा कि उनसे गलती हो गई है।इसके परिणामस्वरूप, ब्राह्मणों ने रजक समाज के लोगों का तिरस्कार करना शुरू कर दिया, झूठी कहानियां लिखकर और लोगों को भड़काकर। सदियों बाद, रजक समाज के लोगों को पाप मुक्ति दाता से कपड़े धोने वाला बनाकर रख दिया गया।
यह डॉ. आलोक के शोध और अध्ययन पर आधारित है, जो जाति इतिहास के क्षेत्र में एक प्रमुख विद्वान हैं। उनके अनुसार, रजक समाज के लोगों का तिरस्कार करना एक ऐतिहासिक गलती है जिसे सुधारने की आवश्यकता है
लेकिन आज सभी मूलनीवासीयो की तरह रजक समाज के लोग भी पढ़ लिख गये है और ब्राह्माणों की चाल को समझ गये है . वे ये समझ गये है कि वे किसी से कम नही है और कुछ भी कर सकते है. जो काम उन्हे बेइज़्ज़त करने के लिए उन पर थोपा गया था आज वो काम छोड़कर डाक्टर इंजिनियर कलेक्टर बन रहे है.
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भारतीय पौराणिक कथाओं में सबसे शक्तिशाली ऋषि कौन है?
विश्वामित्र सनातन धर्म के सबसे शक्तिशाली ब्रह्मर्षि थे।
सबसे शक्ति शाली ऋषि वो है
जिन्होंने बिना सांस लिए हजारों वर्षों तक तपस्या की और लगभग पूरे ब्रह्मांड और सभी अमर देवताओं को अपनी सौंदर्य योग्यता से जला दिया:
“वह प्रख्यात संत एक हजार वर्षों तक बिना श्वसन के रहे, और फिर उनकी सांस को नियंत्रित करने वाले ऋषि के सिर से धुंआ निकलना शुरू हो गया, जिससे धुएँ के रूप में दुनिया की त्रयी ऐसी लग रही थी जैसे कि यह जल रहा हो, और इसने सभी दुनिया को चौंका दिया। "
अमर देवता उससे डरते थे और ब्रह्मा से उनकी तपस्या रोकने की भीख माँगते थे
अब तो उसमें एक अगोचर अपूर्णता भी प्रकट नहीं होती, परन्तु यदि उसकी हार्दिक इच्छा पूरी न हुई तो वह अपनी तपस्वी शक्ति से तीनों लोकों का नाश कर देगा।
ब्रह्मर्षि बनने से पहले ही उन्होंने सभी देवताओं के साथ ब्रह्मांड की रचना की और अमरता भी प्रदान की:
इस पर क्रोधित विश्वामित्र सितारों और आकाशगंगाओं के नक्षत्र के साथ ब्रह्मांड को दोहराने लगते हैं, और वह देवताओं को भी क्लोन करने के लिए आगे बढ़ते हैं
विश्वामित्र न केवल त्रिशंकु के प्रकरण में एक और ब्रह्मांड बनाते हैं, वह अपनी तपस्वी शक्ति से नश्वर को दीर्घायु, या यहां तक कि मृत्यु भी प्रदान करते हैं।
विश्वामित्र के पास मानव जाति के लिए अज्ञात सभी अस्त्र और शास्त्र भी थे। उनके पास गायत्री भजनों के साथ अस्त्रों को दोहराने और बनाने की शक्ति भी है।
विश्वामित्र सनातन धर्म के सबसे शक्तिशाली और शक्तिशाली ऋषि हैं।
दर्जी वस्त्र सीने की विशिष्ट योग्यता रखने वाला व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति के शरीर की माप के अनुसार कपड़ा सीकर उसे वस्त्र का रूप देता है।
इतिहास:
हिंदू दर्जी समुदाय का कोई केंद्रीय इतिहास नहीं है। यह उस समुदाय के लोगों पर निर्भर करता है जहां वे रह रहे थे। कुछ लोगों से अपने इतिहास से संबंधित प्राचीन और मध्यकालीन युग , कुछ से संबंधित Tretayuga (चार में से एक युग में वर्णित हिंदू प्राचीन ग्रंथों की तरह, वेद , पुराण , आदि। लेकिन सभी हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई है। क्षत्रिय होने का प्रमाण गोत्र है, इनके गोत्र क्षत्रिय वर्ण से हैं।
मध्यकालीन युग से:
दर्जी जाति मूल रूप से क्षत्रिय लोगों से जुड़ी रही है जो कुछ परिस्थितियों के कारण अहिंसक बन गए जैसे: मुगलों और अन्य राजाओं के बीच लड़े गए हर युद्ध के बाद हमारे लोगों की मौत, मुस्लिम ग्रामीण की क्रूरता, उनकी धर्मांतरण नीतियां। इन घटनाओं को देखकर, कुछ क्षत्रियों ने संत नामदेव , संत कबीरदास , संत रैदास और स्वामी रामानंद के 36 अन्य विद्वानों के साथ भक्ति आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया है ।
त्रेतायुग से:
जब भगवान परशुराम क्षत्रियों को नष्ट कर रहे थे तो क्षत्रीय वर्ण के दो भाई मंदिर में छिप जाते हैं और पुजारी द्वारा संरक्षित होते हैं। पुजारी ने एक भाई को कपड़े सिलने और दूसरे को मूर्ति के लिए रंगने और मुहर लगाने का आदेश दिया।
कर्नाटक में दर्जी समाज को पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है. यह मुख्य रूप से एक भूमिहीन या कम भूमि वाला समुदाय है, जिसका परंपरागत व्यवसाय सिलाई (Tailoring) है. आज भी यह मुख्य रूप से अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए हैं. यह खेती भी करने लगे हैं. साथ ही यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हुए अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत के आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत हिंदू और मुस्लिम दर्जी दोनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
दर्जी जाति के लोग किस धर्म को मानते हैं?
भारत के गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. धर्म से यह हिंदू या मुसलमान हो सकते हैं. हिंदू समुदाय में इन्हें हिंदू दर्जी या क्षत्रिय दर्जी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ण का गोत्र माना जाता है.
दर्जी समाज का इतिहास
दर्जी समुदाय की उत्पत्ति के बारे में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं. गुजरात मे 14 वीं शताब्दी मे जबरन इस्लामिकरण और तत्कालीन इस्लामिक शासकों द्वारा हिंदुओं के प्रति हिंसक घटनाओं से प्रताड़ित होकर दामोदर वंशीय दर्जी समाज जूनागढ़ तथा अन्य स्थानो को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान मे आ बसे |
काकुस्थ , दामोदर वंशी, टाँक , जूना गुजराती.उड़ीसा में यह महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं.
दामोदर वंशी क्षत्रीय दर्जी समाज
दामोदर दर्जी समाज का इतिहास
जाति इतिहास कार डॉ .आलोक के मतानुसार जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों द्वारा प्रताड़ित होने ,जोर- जुल्म -अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए। पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में गुजरात मे अपने मूल स्थानों को छोड़ने पर विवश हुआ और मध्य प्रदेश व राजस्थान मे आकर रहने लगा|
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जिसने कई हिंदू दर्जी परिवारों को अपने घरों और मूल स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया। उन्हें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एक नए स्थान पर बसना पड़ा, जो उनके लिए एक चुनौतीपूर्ण और दर्दनाक अनुभव था। इन दोनों जत्थों के लोगों के गुजरात से पलायन के बीच 105 साल का अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैं, जो उनकी वंशावली और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इंदौर ,उज्जैन,रतलाम मे दामोदर वंशी जूना गुजराती दर्जी अधिक संख्या मे हैं। नया गुजराती दामोदर वंशी क्षत्रिय दर्जी समाज संख्या के हिसाब से छोटा है और अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों मे बसा हुआ है लेकिन धीरे धीरे यह समुदाय शामगढ़ ,भवानी मंडी ,रामपुरा, डग ,मंदसौर आदि कस्बों का रुख कर रहा है। नया और जूना गुजराती दर्जी समाज मे फिरका परस्ती छोड़कर परस्पर विवाह होने की कई घटनाएं प्रकाश मे आई हैं
उल्लेखनीय है कि दर्जी समाज की सबसे विशाल और सबसे ज्यादा याने पाँच लाख से भी ज्यादा पाठकों वाली वेबसाईट
है जिसमे सभी दर्जी जाति समुदायों की जानकारियाँ और वंशावलियाँ मौजूद हैं|इसके
संपादक डॉ . दयाराम आलोकजी 9926524852 हैं जो अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ केअध्यक्ष हैं|
समीक्षा: आपका आलेख दामोदर वंशी क्षत्रीय दर्जी समाज के इतिहास और उनके संघर्षों के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। यह जानकारी न केवल इस समाज के लोगों के लिए बल्कि समाज के अन्य वर्गों के लिए भी उपयोगी हो सकती है।
इस जानकारी से पता चलता है कि कैसे दामोदर वंशी दर्जी समाज को अपने घरों और मूल स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और वे मध्य प्रदेश और राजस्थान में बस गए। यह जानकारी उनके संघर्षों और उनकी संस्कृति की रक्षा के लिए उनके संघर्षों को दर्शाती है।
इससे यह भी पता चलता है कि कैसे दामोदर वंशी दर्जी समाज के लोगों ने अपनी वंशावली और संस्कृति को बनाए रखा और कैसे वे आज भी अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं।
डॉ. दयाराम आलोक के सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक अनुष्ठानों का इतिवृत्त समझने से यह समाज अपने अभ्युत्थान के लिए प्रेरित हो सकता है और अपनी संस्कृति को और अधिक मजबूती से बनाए रखने में सक्षम हो सकता है। Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।