21.1.22

बेलदार समाज का इतिहास:Beldar samaj history

  Dr.Dayaram Aalok Donates benches to Hindu temples and Muktidham 





  जाति इतिहासविद डॉ.दयाराम  आलोक के मतानुसार बेलदार (Beldar) समाज  भारत में पाई जाने वाली एक जाति है. ऐतिहासिक रूप से यह एक खानाबदोश जाति है.पारंपरिक रूप से यह उत्तरी भारत के मूल निवासी हैं, लेकिन अब यह देश के विभिन्न भागों में निवास कर रहे हैं. यह ओड समुदायों के समान है, जो पश्चिमी भारत के मूल निवासी हैं. यह केवट समुदाय के साथ एक वंश का अपने का दावा भी करते हैं, इस तरह से खुद खुद को ओड कहते हैं. यह समुदाय पूरी तरह से भूमिहीन है. पारंपरिक रूप से यह राजमिस्त्री का काम करते हैं. जीवन यापन के लिए यह फल और सब्जी बेचने तथा ईट भट्ठों में भी काम करते हैं. उत्तर प्रदेश में यह अभी भी मुख्य रूप से अपने राजमिस्त्री का काम करते हैं और निर्माण उद्योग (Construction Industry) में कार्यरत हैं. महाराष्ट्र में यह राजमिस्त्री के साथ-साथ काफी संख्या में ईट भट्ठों में ईट बनाने का कार्य करते हैं. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. मूल रूप से यह उत्तरी भारत के निवासी हैं. यह उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में निवास करते हैं. यह पूरे उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. 2011 की जनगणना में, उत्तर प्रदेश में इनकी कुल जनसंख्या 1,89,614 दर्ज की गई थी. महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से औरंगाबाद, नासिक, भीड, पुणे, अमरावती, अकोला, वाशिम, यवतमाल, अहमदनगर, सोलापुर, कोल्हापुर, सांगली, सतारा, रत्नागिरी और मुंबई जिलों में पाए जाते हैं. बेलदार समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि लगभग 5 शताब्दी पहले वह राजस्थान से आकर महाराष्ट्र में बस गए. बेलदार समाज अनेक कुलो में विभाजित है, जिनमें प्रमुख हैं-खरोला, गोराला, चपुला, छपावर, जेलवार, जाजुरे, नरौरा, तुसे, दवावर, पन्नेवार, फातारा, महोर, बसनीवार, बहर होरवार और उदयनवार. यह हिंदी, मराठी और बेलदारी भाषा बोलते हैं. आपस में यह बेलदारी भाषा बोलते हैं, जबकि बाहरी लोगों के साथ मराठी और हिंदी भाषा बोलते हैं.
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हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा-

विशिष्ट कवियों की चयनित कविताओं की सूची (लिंक्स)

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास "नीरज"

वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्राकुमारी चौहान

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा-अल्लामा इकबाल

उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक

जब तक धरती पर अंधकार - डॉ॰दयाराम आलोक

जब दीप जले आना जब शाम ढले आना - रविन्द्र जैन

सुमन कैसे सौरभीले: डॉ॰दयाराम आलोक

वह देश कौन सा है - रामनरेश त्रिपाठी

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ -महादेवी वर्मा

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - महादेवी वर्मा

प्रणय-गीत- डॉ॰दयाराम आलोक

गांधी की गीता - शैल चतुर्वेदी

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार -शिवमंगलसिंह सुमन

सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक

जंगल गाथा -अशोक चक्रधर

मेमने ने देखे जब गैया के आंसू - अशोक चक्रधर

सूरदास के पद

रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक

घाघ कवि के दोहे -घाघ

मुझको भी राधा बना ले नंदलाल - बालकवि बैरागी

बादल राग -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

आओ आज करें अभिनंदन.- डॉ॰दयाराम आलोक

17.1.22

कोरी या कोली जाति का इतिहास : Kori or Koli Caste history

koli caste history video 




कोरी या कोली जाति :Kori or Koli Caste


इस जाति के लोग भारत के मूल निवासी हैं तथा ये भारत में ये गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और जम्मू कश्मीर राज्यों में निवास करते हैं। इन्हें भारत के कुछ राज्यों में जनजाति तथा कुछ राज्यों में पिछड़े वर्ग में रखा गया है।
कोली शब्द कोलिय कुल से आता है जिसका वर्णन प्राचीन इतिहास से प्राप्त होता है। भगवान गौतम बुद्ध का जन्म भी कोलिय कुल में हुआ था।
कोरी2संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग] हिंदुओं की एक जाति जो सादे और मोटे कपड़े बुनती है ; जुलाहा। कोरी 1- संज्ञा पुलिंग [संस्कृत कोल=सुअर] [स्त्रीलिंग कोरिन] हिंदुओं की एक जाति जो सादे और मोटे कपड़े बुनती है । हिंदू जुलाहा ।
कोरी एक बुनकर जाति है. जो कि उत्तर भारत के सभी जनपदों में निवास करती है। यह अलग-२ स्थानों पर अलग-२ नामों से जानी जाती है जैसे- भुइयार, कोली, तंतवाय, हिन्दू जुलाहा, कबीर पंथी आदि। गौतम बुद्ध कोरी समाज से हैं.

Kori or Koli Caste:

  जाति इतिहासकार डॉ.दयाराम आलोक के मुताबिक कोली एक समुदाय है जो मूल रूप से भारत के गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और जम्मू कश्मीर राज्यों का निवासी रहा है। कोली गुजरात की एक जमीदार जाती है इनका मुख्य कार्य खेतीबाड़ी है लेकिन जहां पर ये समुंद्री इलाकों में रहते हैं वहां पर खेतीबाड़ी काम करते हैं। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजी हुकूमत ने इनको खूनी जाती घोषित कर दिया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने कोली जाती को एक योद्धा जाती का दर्जा दिया क्योंकि कोली जाती ने प्रथम विश्व युद्ध में अपने वीरता का परिचय दिया।

 Kori or Koli Caste

कोलिय वंश की शुरुआत भगवान मान्धाता से हुई। महाराज मान्धाता ने पूरी पृथ्वी पर राज किया था इसी लिए उन्हें पृथ्वीपति कहा जाता है। राजा दसरथ इस कुल की 25वीं पीढ़ी थे, अर्थात भगवान राम का जन्म इच्छवाकु वंश के कोलिय कुल में हुआ था।
मराठा सेनाओं में अधिकांश सेना कोलिय थे तथा ताना जी राव भी कोलिय वंश से ही थे।
कोलिय कुल की कुलदेवी का नाम मुम्बा देवी है तथा इन्हीं के नाम पर महाराष्ट्र राज्य को मुंबई नाम दिया गया है।
कोली जाति प्राचीन काल मे राजपूत थे ,परंतु समय के साथ उन्होंने राजपाट छोड़ दिया तथा पिछड़े वर्ग में शामिल हो गए। लेकिन अभी भी गुजरात और हिमांचल प्रदेश में कोली जाति राजपूत ही हैं।

 Kori or Koli Caste

सुसान बेबी जो कि लेखिका है इनके अनुसार कोली जाती महारष्ट्र की एक बहुत ही पुरानी क्षत्रिय प्रजाति है। गुजरात और महाराष्ट्र के राजा लोग कोली जाती को बदमाशों की जाती के रूप में देखते थे इसी लिए राजा महाराजा कोली जाती के लोगो को सेना के तौर पर काम लेते थे।
हमारे देश के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी भी कोली जाति से संबंधित हैं। उत्तरप्रदेश राज्य में कोरी जाति के लोग अनुसूचित जाति की श्रेणी में आते हैं।



भारत में कोरी जाति की जनसँख्या ? Kori or Koli Caste

राज्य के आधार पर कोरी जाति की जनसँख्या निम्न है।
1) जम्मू कश्मीर : 2 लाख +
2) पंजाब : 9 लाख
3) हरियाणा : 14 लाख
4) राजस्थान : 78 लाख
5) गुजरात : 1.50 लाख
6) महाराष्ट्र : 45 लाख
7) गोवा : 5 लाख

कर्णाटक : 45 लाख
9) केरल : 12 लाख
10) तमिलनाडु : 36 लाख
11) आँध्रप्रदेश : 24 लाख
12) छत्तीसगढ़ : 24 लाख
13) ओद्दिसा : 37 लाख
14) झारखण्ड : 12 लाख
15) बिहार : 90 लाख
16) पश्चिम बंगाल : 18 लाख
17) मध्य प्रदेश : 42 लाख
18) उत्तर प्रदेश : 200 लाख (2 करोड़)
19) उत्तराखंड : 20 लाख
20) हिमाचल : 45 लाख
21) सिक्किम : 1 लाख
22) असाम : 10 लाख
23) मिजोरम : 1.5 लाख
24) अरुणाचल : 1 लाख
25) नागालैंड : 2 लाख
26) मणिपुर : 7 लाख
27) मेघालय : 9 लाख
28) त्रिपुरा : 2 लाख
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पाल/बघेल/गडरिया/गायरी/रेवारी जाती का इतिहास :History of Pal/Baghel/Gadaria/Gayri/Rewari Caste




पाल/बघेल/गडरिया/गाडरी/गायरी/रेवारी/धनगर/नीखर/कुरुबा/हटकर/होल्कर/मराठा/सेंगर/ जाति की प्रारंभिक उत्पत्ति
वास्तव गडरिया कोई जाति नहीं थी यह एक पेशा हुआ करता था किन्तु प्राचीन समय में पेशे से ही जाति की उत्पत्ति होती थी जैसे चमड़े का कार्य करने वाले चर्मकार अथवा चमार बन गए,लकड़ी का कार्य करने वाले बढाई बन गए लोहे का कार्य करने वाले लोहार बन गए इसी प्रकार भेड पालने वाले गडरिया बन गए! गडरिया शब्द गड़र से निकला है जो कि गांधार से लिया गया है क्युकी भेड को सबसे पहले गांधार से ही लाया गया था!गडरिया जाति को एक मूल जाति माना जाता है तथा इसके साथ अन्य उपजातियां इस प्रकार हैं पाल,बघेल,कुरुबा,धनगर ,गायरी,रेवारी,होल्कर,गाडरी,हटकर,सेंगर इत्यादि!
पाल शब्द संस्कृत शब्द पाला से आया है जिसका अर्थ होता है 'पालने वाला' अथवा 'रखने वाला'! उत्तर भारत में जो लोग भेड बकरिया पालते थे उनको पाल कहा जाता था किन्तु पाल सरनेम सबसे पहले बंगाल और बंगाल के पास के क्षेत्र वर्तमान बांग्लादेश में गुप्तोत्तर कालीन कायस्थ राजाओं ने उपयोग किया वहाँ पाल सरनेम कायस्थों द्वारा लगाया जाता है!उसके बाद महाराष्ट्र की एक शिकार करने वाली जाति ने पाल शब्द को सरनेम बनाया तथा बाद में पाल सरनेम को ग्वालियर के राजा ने अपनाया!इसी प्रकार पाल सरनेम को गढ़वाल के परमार राजपूत राजाओं ने अपनाया किन्तु बाद में उन्होंने इसको सिंह के नाम से परिवर्तित कर दिया!इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तर भारत में पाल सरनेम को भेड बकरियां पालने वाले गडरिया लोगो ने लगाया और पाल गडरिया की एक उपजाति बन गयी!
उत्तर प्रदेश एवं आसपास के क्षेत्र में बघेल सरनेम एक नदी के कारण लिया गया है जो बघेल साम्राज्य के सीमा पर बहती थी उस नदी के आसपास जो गडरिया निवास करते थे वो अपने आप को बघेल/बाघेला कहने लगे तथा अपने आप को बघेल वंशज मानने लगे!
गायरी/गाडरी/रेवारी- ये उपजातियां राजस्थान में प्रचलित हैं राजस्थानी भाषा में गायर शब्द का अर्थ भेड से निकाला जाता है इस प्रकार राजस्थान में भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा गायरी/गाडरी सरनेम का उपयोग किया जाता है!रेवारी शब्द रेवड़/रेवर से आया है राजस्थान में भेड़ों/बकरियों के झुण्ड को रेवर कहा जाता है इस प्रकार गायरी/गाडरी/रेवारी भी गडरिया जाति की उपजातियां बनी!


कुरुंबा उपजाति दक्षिण भारत में पायी जाति है तेलुगु भाषा में कुरुबा का मतलब भेड होता है इस प्रकार वहाँ भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा कुरुबा सरनेम को अपनाया गया और कुरुंबा भी गडरिया की एक उपजाति बनी!
जाति इतिहासविद डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार धनगर उपजाति महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में प्रचलित है धनगर शब्द एक संस्कृत शब्द 'धेनुगर' से लिया गया है,जिसका अर्थ चरवाहे से होता है धनगर शब्द एक पहाड़ी 'धनग' के नाम से भी माना जाता है जो महाराष्ट्र में स्थित है एवं वहाँ चरवाहे रहा करते थे!महाराट्र में धनगर की बहुत सी उपजातियां है जैसे- धनगर/मराठा/हटकर/सेंगर/होल्कर महाराट्र में प्रचलित उपजातियां हैं हटकर लोग महाराष्ट्र,गुजरात,कर्नाटक एवं अन्य दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले लोग थे!महाराष्ट्र के हटकर लोग भेड पालने वाले लड़ाकू जनजाति से थे बाद में हटकर लोगों में से ही शिवाजी निकले और मराठा राजवंश की स्थापना की!यहाँ यह बताना जरुरी है कि सभी मराठा हटकर नहीं हैं!मराठा राजवंश से ही होल्कर राजवंश बना इस प्रकार होल्कर भी गडरिया जाति की उपजाति बनी!होल्कर मध्य प्रदेश में इंदौर के प्रशासक बने!सेंगर लोग वो लोग थे जो गडरिया तो थे ही लेकिन वो भेड पालने के साथ उनकी ऊन से कम्बल बना कर बेचा करते थे!हटकर उपजाति में भी अन्य उपजातियां हैं जैसे-बारहट्टी/बारहट्टा/बरगाही/बाराहघर!
भारत देश पर सबसे पहले लोगो को नागवंशी कहा जाते थे आज भी नागवंशी समुदाय के लोग भारत बर मौजूद है। भारत मे सभी जाती के लोग पूर्व नागवंशी लोग थे। इतिहास पढ़ लो इसीलिए भारत देश मे नाग की पूजा की जाती है।नाग की पूजा करना धर्म नही इतिहास है ।
“मध्य भारत” के राज्य “मध्य प्रदेश” जहाँ आज भी “गडरिया” समाज की बहुतायत में जनसंख्या है | मध्य प्रदेश में “गडरियाखेडा” नाम से जगह है जिसका वर्तमान नाम “गदरवाडा”  है “गाडर” शब्द का मध्य भारत की भाषा में अर्थ “भेड़” “बकरी” होती है| मध्य प्रदेश के “विधिशा” - “भोपाल ” मंडल में मोजूद “ग़दरमल” मंदिर जो की 800-900 A.D. के करीब किसी “गडरिया” राजा ने बनवाया था इसी कारण इस मंदिर का नाम“ग़दरमल” पड़ा|
  
जाति इतिहासकार डॉ. दयाराम आलोक के मतानुसार मध्य भारत में “होलकर साम्राज्य” “धनगर” अर्थात गड़रियो का ही राजवंश है | जिसने भारत देश को “महान देवी अहिल्या बाई होलकर” जैसे महान रानी दी जिसने ना केवल हिन्दू समाज को मुगलों से बचाया बल्कि मुगलों  द्वारा तोड़े गए मंदिरों को दुबारा बनवाया| स्वंत्रता सेनानी “यशवंतराव होलकर” व रानी “भीमाबाई होलकर” जैसे वीर स्वंत्रता सेनानी दिए | ग्वालियर जिले के गडरिया “तानसेन” का नाम तो सभी लोग जानते है जिनका गोत्र “बानिया” था इसी जाति से ताल्लुक रखते थे |
दक्षिण भारत में “गडरिया / धनगर” “कुरुबा” नाम से जाना जाता है जिसने भारत को “विजय नगर” साम्राज्य दिया | “कनकदास” “कालीदास” जैसे सन्त दिए | “संगोल्ली रायान्ना” जैसे स्वंत्रता सेनानी दिए जिन्होंने अपने प्राण देश के खातिर निरछावर कर दिए थे |
कहा जाता है की भारत की जादातर जातिया गडरिया समाज से निकली है | जिनमे अहीर , गुजर , कुर्मी, जाट ब्राहमण, बनिया , राजपूत विशेष है |
:-चौधरी अनिल पथरिया (धनगर) (नॉएडा) :- प
भारत वर्ष के तमाम धनगर (शेफर्ड) समाज के नाम सन्देश
यह बात सत्य है की धनगर समाज भारत के तमाम हिस्सों में फैला है परन्तु यह समाज देश के कोने कोने में अलग अलग नाम से जाना जाता है , इस धनगर समाज ने इंडिया स्तर पर अपनी नेशनल आइडेंटिटी (रास्ट्रीय पहचान) नहीं बनाई है | इसके पीछे कई कारण है पहला कारण यह की जिस वक़्त भारत आजाद हुआ था उस समय धनगर समाज का कोई रास्ट्रीय नेता नहीं था, अगर गैर समाज को देखा जाये तो उनका कोई न कोई नेता था उन्हें आजाद भारत ने मंत्री मंडल में किसी न किसी समाज का नेता भी बनाया गया था जैसे
ब्राहमण : जवाहरलाल नेहरु
कायस्थ : लाल बहादुर शास्त्री
कुर्मी व गुर्जर : वल्लभ भाई पटेल
मेहतर(भंगी) तथा सर्व दलित समाज : बाबा भीम राव आंबेडकर
राजपूत : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
जाट : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
सिख : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
अहार(यादव): दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री
मुसलमान : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
परन्तु धनगर समाज का कोई नेता नहीं था जो धनगर समाज को उस समय सही रास्ता देखता , किसी गैर समाज के नेता ने भी धनगर समाज को सही रास्ता नहीं दिखाया | धनगर समाज इसी वजह से पिछड़ते पिछड़ते इतना पिछड़ गया की 1990 तक अपना कोई सांसद , विधायक नहीं बना पाया और इस समय तक गैर समाज अपने सेन्टर में कई नेता बना चुके थे, परन्तु अपना समाज गैर समाज के नेताओ को ही नेतागिरी करने वाला समझ चूका था (वैसे ये स्तिथि आज भी है), कुछ समाज ने तो धनगर समाज को राजनीती में न उठने देने के लिए तरह तरह के श्लोक व कहानी तक तयार कर ली जैसे
अहार(यादव) समाज : “गड़ेरिया अहीर भाई भाई, भाई(गड़ेरिया) भाई(यादव) को ही वोट देगा” , “यादव समाज गड़ेरिया समाज के बेटे के सामान है बाप(गड़ेरिया) को बेटे(यादव) की बात माननी चाहिए”,
जाट : हम ऊँची जात है हम राजनीती में खड़े होंगे गड़ेरिया समाज नहीं, “हमे वोट दे दो हम तुमे कुछ जमीन दे दे देंगे “
मुस्लमान : “मुस्लिम में एकता है मुस्लमान के वोट फलानी पार्टी को नहीं जायंगे अगर हमारी बजाय गड़ेरिया को टिकेट मिला तो”
ब्रहमिन : “अनपद गावर समाज राजनीती में आकार क्या करेगा ?”
ये बाते उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , राजस्थान , हरयाणा उत्तराखंड में आज भी कही जाती है |


आज धनगर समाज को गैर समाज से राजनीती साथ नहीं मिल रहा है, परिणाम यह होता है की जब धनगर समाज राजनीती में खड़ा होता है तो कुछ समाज तो धनगर कैंडिडेट के राजनीती में होने से इतना चिड़ते है की उनको वोट ही नहीं देते वो सोचते है की “अगर धनगर समाज को वोट दे दिया तो धनगर समाज की वैल्यू बढ़ जायगी”, “या धनगर समाज के इस कैंडिडेट की वजह से उसकी बिरादरी को टिकट नहीं मिला”, “हम धनगर समाज को वोट नहीं देंगे”
 इन तमाम कारणों से तंग आकार धनगर समाज ने हुंकार भरी और अपने छोटे छोटे दल का एकत्रित किया या राजनीती में आने के लिए उत्तेजित किया|जिसके पीछे कई कारण है| गैर समाज के विधायको या सांसदों से जब धनगर समाज को मदद की जरुरत पड़ी तो इन हरामखोरो ने तरह तरह के ताने या साफ़ साफ माना कर दिया, और इनके इस जरा से ना ने धनगर समाज को कही भूमि से भूमिहिंन कर दिया(किसी दबंग लोगो के धनगर की जमीन पर कब्ज़ा करने या दबंगों के परेशान करने से, किसी वजह से सरकार ने धनगर की जमीं ले ली अगर कोई नेता उनका साथ देता दो शायद सरकार उनकी जमींन छोड़ देती क्यों की बहुत लोगो की जमीन किसी विधायक या सांसद की मदद से लोग छुड़ा लेते है , या किसी न किसी और अन्य कारण से धनगर समाज को अपनी खुद की जमीन से हाथ धोना पड़ा)
  इन्ही “धनगर समाज के वोटो के भिखारियों” से तंग आकार धनगर समाज ने राजनीती में कदम रखा , और उत्तर प्रदेश में तो जैसे धनगर समाज ने बिगुल ही बजा दिया , यहाँ धनगर समाज के कई विधायक , राज्यसभा , लोकसभा सांसद , ऍम० एल० सी०, राज्य मंत्री , कैबिनेट मंत्री बने, परन्तु समाज का पिछड़ापन दूर न हो सका|
अगर धनगर समाज आज़ादी के टाइम से राजनीती में आता तो शायद गैर समाज की तरह आज हम भी धनगर गवर्नमेंट चलाते , हमारे भी नेता ताकतवर होते , हम कई पार्टियों के वोट बैंक होते |
या जब भारत आजाद हुआ था तो कोई अपना धनगर समाज का नेता होता जो अपने धनगर समाज की स्तिथि को सरकार के सामने रखतातो सायद आज हम अनुसूचित जन जाति में होते क्यों की धनगर समाज एक घुमाकड़ समाज था और आज भी है |
आज गैर समाज के लोग धनगर समाज का वोट लेने के लिए नए नए फंडे अपने रहे है जैसे धनगर समाज के सरनेम का उपयोग कर रहे है जैसे


• नारायण पाल खटिक समाज से है ये उत्तराखंड के विधायक रहे है
• राघव लखन पाल ब्राहमण समाज से है ये सहारनपुर से विधायक है
• जगदम्बिका पाल ये राजपूत समाज से है ये डुमरियागंज से सांसद है
• मोहन पाल खटिक समाज से है , उत्तराखंड की भीमताल सीट से थे
• मुनसीराम पाल खटिक समाज से है , बिजनौर से सांसद रह चुके है
हम धनगर समाज को इन गैर समाज व धनगर कौम के साथ खिलवाड़ करने वाले लोगोई से सावधान रहना है
आंबेडकर जी ने धनगर समाज के साथ क्यों इन्साफ नहीं किया ?
आंबेडकर साहब आज दलितों का भगवान् है , परन्तु उन्होंने बस दलितों का भला किया है , धनगर समाज के लिए उनके पास शोध का टाइम न निकल पाया तो उन्हें जैसे तैसे आंख बंद करके किसी भी बोरी में दाल दिया , और ऐसा सिर्फ धनगर समाज के साथ नहीं बल्कि कई अन्य समाज के साथ भी हुआ है , परन्तु आंबेडकर साहब ने अपने समाज को दिन रात एक करके उन पर  अध्ययन करके हर राज्य में अनुसुचित जाति या अनुसूचित जनजाति में डाला परन्तु धनगर समाज को कही एस०सी० तो कही एस०टी० तो कही ओ० बी०सी० में , परन्तु धनगर समाज व अन्य कुछ समाज को दलितों के हाथो का खिलौना बना कर चले गए जैसे की मायावती ये धनगर समाज को एस० सी० में डालने जा झांसा दे कर उनका वोट मांग रही है परन्तु यह बात धनगर समाज अच्छी  तरह जनता है की मायावती धनगर समाज को एस०सी० में नहीं डालेगी, मुलायम सिंह भी यही खेल खेल रहा है| महारासत्रा में भी शरद पवार धनगरो को एस०टी० में डालने जा झांसा देता आया है , परन्तु वह बुढा हो गया अभी तक मामला अटकाया हुआ है राजीव गाँधी जे के कहने पर भी  धनगरो को एस०टी० में नहीं डाला, पंजाब में भी ऐसा मामला आया है |
धनगर समाज का अंग कौन कौन है और किस नाम से जाने जाते है ?
उत्तर प्रदेश के पाल , बघेल, गड़ेरिया, धनगर
मध्य प्रदेश के पाल , बघेल , गड़ेरिया , ग़दर , होलकर
**मध्य प्रदेश में बघेल किस जातिया लगाती है जैसे बघेलखंड(रीवा , सतना , सीधी , शहडोल आदि जिले) के राजपूत , विधिशा के एस०टी० , जबलपुर मंडल के एस०सी०, और कुछ जंगली जातिया
महारास्ट्र के धनगर , हटकर , होलकर
उत्तराखंड के पाल , गड़ेरिया , धनगर
** उत्तराखंड में पाल टाइटल कुछ पहाड़ी जातिया लगाती है जो धनगर समाज का अंग नहीं है , खटिक समाज भी वह पाल टाइटल का उपयोग करता है , उत्तराखंड के कुछ राजपूत भी पाल शब्द का प्रयोग करते है
राजस्थान के पाल , बघेल , होलकर , गड़ेरिया
** राजस्थान में बघेल कुछ राजपूत जातिया भी लगाती है , रायका/रेबारी/मलधारी समाज ने अपने आपको अभी धनगर समाज का अंग नहीं माना है , उनके रीती रिवाज़ गड़ेरिया समाज से अलग है , उनके शादी बियाह भी अलग रीती रिवाज़ से होते है , जोधपुर जिले में धनगर समाज व रेबारी समाज दोनों है परन्तु दोनों समाज अपनी बेटी एक दुसरे समाज में नहीं बिहते इस से पता चलता है दोनों भिन भिन जातिया है , राजस्थान की ओ०बी०सी० लिस्ट में ये दोनों जातिया अलग अलग है , दोनों जातियों का जाति प्रमाण पत्र अलग अलग बनता है
गुजरात में गड़ेरिया , धनगर , होलकर
** गुजरात में बघेल या बाघेला या वाघेला राजपूत लोग लिखते है , भरवाड समाज भी रेबारी समाज की तरह भिन है|
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16.1.22

भारतीय मीडिया आख़िर हिन्दू विरोधी क्यों है ?:Why Indian media anti-Hindu






मीडिया हिन्दू विरोधी क्यों है ? 


इसका जवाब इन रिश्तों में मिलेगा ।

    पहले इन रिश्तेदारियों पर एक नज़र डालिये । तब आप खुद ही समझ जायेंगे कि कैसे और क्यों " मीडिया का अधिकांश हिस्सा " हिन्दुओं और हिन्दुत्व का विरोधी है । किस प्रकार इन लोगों ने एक " नापाक गठजोड़ " तैयार कर लिया है । किस तरह ये सब लोग मिलकर सत्ता संस्थान के शिखरों के करीब रहते हैं । किस तरह से इन प्रभावशाली ? लोगों का सरकारी नीतियों में दखल होता है आदि ।
पेश हैं - रिश्ते ही रिश्ते ( दिल्ली की दीवारों पर लिखा होता है । वैसे वाले नहीं । ये हैं असली रिश्ते )
- सुज़ाना अरुंधती रॉय । प्रणव रॉय ( एनडीटीवी ) की भांजी हैं । ( नेहरु डायनेस्टी टीवी - NDTV )
- अरुंधति एक संस्था के लिए भी काम करती है । उसका नाम है - जस्टिस फॉर अफजल गुरु ।
- इस संस्था के मेम्बर हैं - प्रशांत भूषण । संदीप पांडे । शबनम हाशमी । हर्ष मंदर । अरुणा रॉय आदि ।
- हर्ष मंदार । शबनम हाशमी । अरुणा रॉय एक सरकारी संगठन NAC के सदस्य हैं । जिसने हिन्दू विरोधी सांप्रदायिक हिंसा बिल का निर्माण किया ।
- प्रणव रॉय " काउंसिल आन फ़ारेन रिलेशन्स " के इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं ।
- इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं - मुकेश अम्बानी ।
- प्रणव रॉय की पत्नी है - राधिका राय ।
- राधिका राय । बृन्दा करात की बहन है ।
- बृन्दा करात । प्रकाश करात CPI की पत्नी हैं ।
- प्रकाश करात चेन्नै के " डिबेटिंग क्लब " ग्रुप के सदस्य थे ।
- एन राम । पी चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे ।
- इस ग्रुप ने एक पत्रिका शुरु की थी - रैडिकल रीव्यू ।
- CPI ( M ) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं - सीमा चिश्ती ।
सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की " रेजिडेण्ट एडीटर " हैं ।
- बरखा दत्त NDTV में काम करती हैं ।
- बरखा दत्त की माँ हैं - श्रीमती प्रभा दत्त ।
- प्रभा दत्त हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य रिपोर्टर थीं ।
- राजदीप सरदेसाई पहले NDTV में थे । अब CNN-IBN के हैं ( दोनों ही मुस्लिम+ईसाई supporter चैनल हैं )।
- राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं - सागरिका घोष ।
- सागरिका घोष के पिता हैं । दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक - भास्कर घोष ।
- सागरिका घोष की आंटी - रूमा पॉल हैं।
- रूमा पॉल उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश हैं ।
- सागरिका घोष की दूसरी आंटी - अरुंधती घोष हैं ।
- अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि हैं ।
- CNN-IBN का " ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क " GBN से व्यावसायिक समझौता है ।
- GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है ।
- NDTV भारत का एकमात्र चैनल है को " अधिकृत रूप से " पाकिस्तान में दिखाया जाता है ।
- दिलीप डिसूज़ा PIPFD ( Pakistan-India Peoples’ Forum for Peace and Democracy ) के सदस्य हैं ।
- दिलीप डिसूज़ा के पिता हैं - जोसेफ़ बेन डिसूज़ा ।
- जोसेफ़ बेन डिसूज़ा महाराष्ट्र सरकार के पूर्व सचिव रह चुके हैं ।
- तीस्ता सीतलवाड भी PIPFD की सदस्य हैं ।
- तीस्ता सीतलवाड के पति हैं - जावेद आनन्द ।
- जावेद आनन्द एक कम्पनी सबरंग कम्युनिकेशन और एक संस्था " मुस्लिम फ़ॉर सेकुलर डेमोक्रेसी " चलाते हैं 
- इस संस्था के प्रवक्ता हैं - जावेद अख्तर ।
- जावेद अख्तर की पत्नी हैं - शबाना आज़मी ।

Why is the Indian media anti-Hindu 

- करण थापर ITV के मालिक हैं ।
- ITV बीबीसी के लिये कार्यक्रमों का भी निर्माण करती है ।
- करण थापर के पिता थे - जनरल प्राणनाथ थापर ( 1962 का चीन युद्ध इन्हीं के नेतृत्व में हारा गया था ) ।
- करण थापर बेनज़ीर भुट्टो और ज़रदारी के बहुत अच्छे मित्र हैं ।
- करण थापर के मामा की शादी नयनतारा सहगल से हुई है ।
- नयनतारा सहगल, विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी हैं ।
- विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन हैं ।
- मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मुख्य प्रवक्ता और कार्यकर्ता हैं ।
- नबाआं को मदद मिलती है - पैट्रिक मेकुल्ली से । जो कि " इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क " IRN संगठन में हैं ।
- अंगना चटर्जी IRN की बोर्ड सदस्या हैं ।
- अंगना चटर्जी PROXSA ( Progressive South Asian Exchange Network ) की भी सदस्या हैं ।
- PROXSA संस्था FOIL ( Friends of Indian Leftist ) से पैसा पाती है ।
- अंगना चटर्जी के पति हैं - रिचर्ड शेपायरो ।

Why is the Indian media anti-Hindu 

- FOIL के सह संस्थापक हैं । अमेरिकी वामपंथी - बिजू मैथ्यू ।
- राहुल बोस ( अभिनेता ) खालिद अंसारी के रिश्ते में हैं ।
- खालिद अंसारी " मिड-डे " पब्लिकेशन के अध्यक्ष हैं ।
- खालिद अंसारी एमसी मीडिया लिमिटेड के भी अध्यक्ष हैं ।
- खालिद अंसारी, अब्दुल हमीद अंसारी के पिता हैं ।
- अब्दुल हमीद अंसारी कांग्रेसी हैं ।
- एवेंजेलिस्ट ईसाई और हिन्दुओं के खास आलोचक जॉन दयाल मिड-डे के दिल्ली संस्करण के प्रभारी हैं ।
- नरसिम्हन राम ( यानी एन राम ) दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार " द हिन्दू " के मुख्य सम्पादक हैं ।
- एन राम की पहली पत्नी का नाम है - सूसन ।
- सूसन एक आयरिश हैं । जो भारत में ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिकेशन की इंचार्ज हैं ।
- विद्या राम, एन राम की पुत्री हैं । वे भी एक पत्रकार हैं ।
- एन राम की हालिया पत्नी - मरियम हैं ।
- त्रिचूर में आयोजित कैथोलिक बिशपों की एक मीटिंग में एन राम, जेनिफ़र अरुल और के एम रॉय ने भाग लिया है ।
- जेनिफ़र अरुल, NDTV की दक्षिण भारत की प्रभारी हैं ।
- जबकि के एम रॉय " द हिन्दू " के संवाददाता हैं ।
- के एम रॉय " मंगलम " पब्लिकेशन के सम्पादक मंडल सदस्य भी हैं ।
- मंगलम ग्रुप पब्लिकेशन एम सी वर्गीज़ ने शुरु किया है ।
- के एम रॉय को " ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन लाइफ़ टाइम अवार्ड " से सम्मानित किया गया है ।
- " ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन " के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं - जॉन दयाल ।
- जॉन दयाल " ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल " ( AICC ) के सचिव भी हैं ।
- AICC के अध्यक्ष हैं - डॉ जोसेफ़ डिसूज़ा ।

Why is the Indian media anti-Hindu 

- जोसेफ़ डिसूज़ा ने " दलित फ़्रीडम नेटवर्क " की स्थापना की है ।
- दलित फ़्रीडम नेटवर्क की सहयोगी संस्था है " ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन इंडिया " ( OM India )।
- OM India के दक्षिण भारत प्रभारी हैं - कुमार स्वामी ।
- कुमार स्वामी कर्नाटक राज्य के मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं ।
- OM India के उत्तर भारत प्रभारी हैं - मोजेस परमार ।
- OM India का लक्ष्य दुनिया के उन हिस्सों में चर्च को मजबूत करना है । जहाँ वे अब तक नहीं पहुँचे हैं ।
OMCC दलित फ़्रीडम नेटवर्क DFN के साथ काम करती है ।
- DFN के सलाहकार मण्डल में विलियम आर्मस्ट्रांग शामिल हैं ।
- विलियम आर्मस्ट्रांग, कोलोरेडो ( अमेरिका ) के पूर्व सीनेटर हैं । और वर्तमान में कोलोरेडो क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेण्ट हैं । यह यूनिवर्सिटी विश्व भर में ईसा के प्रचार हेतु मुख्य रणनीतिकारों में शुमार की जाती है ।
- DFN के सलाहकार मंडल में उदित राज भी शामिल हैं ।
- उदित राज के जोसेफ़ पिट्स के अच्छे मित्र भी हैं ।
- जोसेफ़ पिट्स ने ही नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने के लिये कोंडोलीज़ा राइस से कहा था ।
- जोसेफ़ पिट्स " कश्मीर फ़ोरम " के संस्थापक भी हैं ।
- उदित राज भारत सरकार के नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल ( राष्ट्रीय एकता परिषद ) के सदस्य भी हैं ।
- उदित राज कश्मीर पर बनी एक अन्तर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी हैं ।
- सुहासिनी हैदर, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री हैं ।
- सलमान हैदर, भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं । चीन में राजदूत भी रह चुके हैं ।
- रामोजी ग्रुप के मुखिया हैं - रामोजी राव ।
- रामोजी राव " ईनाडु " ( सर्वाधिक खपत वाला तेलुगू अखबार ) के संस्थापक हैं ।
- रामोजी राव ईटीवी के भी मालिक हैं ।
- रामोजी राव चन्द्रबाबू नायडू के परम मित्रों में से हैं ।
- डेक्कन क्रॉनिकल के चेयरमैन हैं - टी वेंकटरमन रेड्डी ।
- रेड्डी साहब कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं ।

Why is the Indian media anti-Hindu 

- एम जे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल और एशि
यन एज के सम्पादक हैं ।
- एम जे अकबर कांग्रेस विधायक भी रह चुके हैं ।
- एम जे अकबर की पत्नी हैं - मल्लिका जोसेफ़ ।
- एम जे अकबर अब प्रभु चावला की जगह सीधी बात में आते है ।
- मल्लिका जोसेफ़, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं ।
- वाय सेमुअल राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं ।
- सेमुअल रेड्डी के पिता राजा रेड्डी ने पुलिवेन्दुला में एक डिग्री कालेज व एक पोलीटेक्नीक कालेज की स्थापना की ।
- सेमुअल रेड्डी ने कहा है कि - आंध्रा लोयोला कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उक्त दोनों कॉलेज लोयोला समूह को दान में दे दिये ।
- सेमुअल रेड्डी की बेटी हैं - शर्मिला ।
- शर्मिला की शादी हुई है - अनिल कुमार से । अनिल कुमार भी एक धर्म परिवर्तित ईसाई हैं । जिन्होंने " अनिल वर्ल्ड एवेंजेलिज़्म " नामक संस्था शुरु की । और वे एक सक्रिय एवेंजेलिस्ट ( कट्टर ईसाई धर्म प्रचारक ) हैं ।
- सेमुअल रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी युवा कांग्रेस नेता हैं ।
- जगन रेड्डी " जगति पब्लिकेशन प्रा. लि. " के चेयरमैन हैं ।
- भूमना करुणाकरा रेड्डी, सेमुअल रेड्डी की करीबी हैं ।
- करुणाकरा रेड्डी, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की चेयरमैन हैं ।
- चन्द्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि " लैंको समूह " को जगति पब्लिकेशन्स में निवेश करने हेतु दबाव डाला गया था ।
- लैंको कम्पनी समूह, एल श्रीधर का है ।
- एल श्रीधर, एल राजगोपाल के भाई हैं ।
- एल राजगोपाल, पी उपेन्द्र के दामाद हैं ।
- पी उपेन्द्र केन्द्र में कांग्रेस के मंत्री रह चुके हैं ।
- सन टीवी चैनल समूह के मालिक हैं - कलानिधि मारन ।
- कलानिधि मारन एक तमिल दैनिक " दिनाकरन " के भी मालिक हैं ।
- कलानिधि के भाई हैं - दयानिधि मारन ।
- दयानिधि मारन केन्द्र में संचार मंत्री थे ।
- कलानिधि मारन के पिता थे - मुरासोली मारन ।

Why is the Indian media anti-Hindu 

- मुरासोली मारन के चाचा हैं - एम करुणानिधि ( तमिलनाडु के मुख्यमंत्री )।
- करुणानिधि ने " कैलाग्नार टीवी " का उदघाटन किया ।
- कैलाग्नार टीवी के मालिक हैं - एम के अझागिरी ।
- एम के अझागिरी, करुणानिधि के पुत्र हैं ।
- करुणानिधि के एक और पुत्र हैं - एम के स्टालिन ।

- स्टालिन का नामकरण रूस के नेता के नाम पर किया गया ।
- कनिमोझि, करुणानिधि की पुत्री हैं । और केन्द्र में राज्यमंत्री हैं ।
- कनिमोझी " द हिन्दू " अखबार में सह सम्पादक भी हैं ।
- कनिमोझी के दूसरे पति जी अरविन्दन सिंगापुर के एक जाने माने व्यक्ति हैं ।
- स्टार विजय एक तमिल चैनल है ।
- विजय टीवी को स्टार टीवी ने खरीद लिया है ।
- स्टार टीवी के मालिक हैं - रूपर्ट मर्डोक ।
- Act Now for Harmony and Democracy ( अनहद ) की संस्थापक और ट्रस्टी हैं - शबनम हाशमी ।
- शबनम हाशमी, गौहर रज़ा की पत्नी हैं ।
- “अनहद” के एक और संस्थापक हैं - के एम पणिक्कर ।
- के एम पणिक्कर एक मार्क्सवादी इतिहासकार हैं । जो कई साल तक ICHR में काबिज रहे ।
- पणिक्कर को पद्मभूषण भी मिला ।
- हर्ष मन्दर भी “अनहद” के संस्थापक हैं । मशहूर हिन्दू विरोधी लेख लिखते हैं । सोनिया गांधी द्वारा गठित nac के मेम्बर हैं । जिसने एक कानून बनाया है । हिंदुओं के खिलाफ - सांप्रदायिक लक्षित हिंसा अधिनियम ।
- हर्ष मन्दर, अजीत जोगी के खास मित्र हैं ।
- अजीत जोगी, सोनिया गाँधी के खास हैं । क्योंकि वे ईसाई हैं । और इन्हीं की अगुआई में छत्तीसगढ़ में जोर शोर से धर्म परिवर्तन करवाया गया । और बाद में दिलीप सिंह जूदेव ने परिवर्तित आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करवाई ।
- कमला भसीन भी “ अनहद ” की संस्थापक सदस्य हैं ।
- फ़िल्मकार सईद अख्तर मिर्ज़ा “ अनहद ” के ट्रस्टी हैं ।
- मलयालम दैनिक “ मातृभूमि ” के मालिक हैं - एम पी वीरेन्द्र कुमार ।
- वीरेन्द्र कुमार जद ( से ) के सांसद हैं । ( केरल से )
- केरल में देवेगौड़ा की पार्टी लेफ़्ट फ़्रण्ट की साझीदार है ।
- शशि थरूर पूर्व राजनैयिक हैं ।
- चन्द्रन थरूर, शशि थरूर के पिता हैं । जो कोलकाता की आनन्द बाज़ार पत्रिका में संवाददाता थे ।
- चन्द्रन थरूर ने 1959 में " द स्टेट्समैन " की अध्यक्षता की ।
- शशि थरूर के दो जुड़वाँ लड़के - ईशान और कनिष्क हैं । ईशान हांगकांग में " टाइम्स " पत्रिका के लिये काम करते हैं ।
- कनिष्क लन्दन में " ओपन डेमोक्रेसी " नामक संस्था के लिये काम करते हैं ।
- शशि थरूर की बहन शोभा थरूर की बेटी रागिनी ( अमेरिकी पत्रिका ) " इंडिया करंट्स " की सम्पादक हैं ।
- परमेश्वर थरूर, शशि थरूर के चाचा हैं । और वे " रीडर्स डाइजेस्ट " के भारत संस्करण के संस्थापक सदस्य हैं
- शोभना भरतिया हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्षा हैं ।
- शोभना भरतिया के के बिरला की पुत्री और जी ड़ी बिरला की पोती हैं ।
- शोभना राज्यसभा की सदस्या भी हैं । जिन्हें सोनिया ने नामांकित किया था ।
- शोभना को 2005 में पद्मश्री भी मिल चुकी है ।
- शोभना भरतिया सिंधिया परिवार की भी नज़दीकी मित्र हैं ।
- करण थापर भी हिन्दुस्तान टाइम्स में कालम लिखते हैं ।
- पत्रकार एन राम की भतीजी की शादी दयानिधि मारन से हुई है ।
यह बात साबित हो चुकी है कि मीडिया का एक खास वर्ग हिन्दुत्व का विरोधी है । इस वर्ग के लिये भाजपा संघ के बारे में नकारात्मक प्रचार करना । हिन्दू धर्म । हिन्दू देवताओं । हिन्दू रीति रिवाजों । हिन्दू साधु सन्तों सभी की आलोचना करना एक " धर्म " के समान है । इसका कारण हैं । कम्युनिस्ट चर्च परस्त । मुस्लिम परस्त तथाकथित सेकुलरिज़्म परस्त लोगों की आपसी रिश्तेदारी । सत्ता और मीडिया पर पकड़ । और उनके द्वारा एक " गैंग " बना लिया जाना । यदि कोई समूह या व्यक्ति इस गैंग के सदस्य बन जायें । प्रिय पात्र बन जायें । तब उनके और उनकी बिरादरी के खिलाफ़ कोई खबर आसानी से नहीं छपती । जबकि हिन्दुत्व पर ये सब लोग मिलजुल कर हमला बोलते हैं ।
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14.1.22

नोनिया जाति का इतिहास :Noniya caste history




नोनिया जातिका इतिहास
कल्पना कीजिए की नमक की खोज नही हुई होती तो क्या होता। नमक ना सिर्फ आपके खाने का स्वाद बढ़ाता है बल्कि वह आपकी जिंदगी में खुशियों को घोलने की शक्ति रखता है।आपको स्वस्थ रखने , आपकी उन्नति और समृद्धि में नमक काफी सहायक होता है। काले नमक का टुकड़ा और पीपल के पेड़ की मिट्टी को लाल कपड़े में बांधकर अपने घर के किसी कोने में रख दें। ऐसा करने से अटके हुए धन की प्राप्ति होगी और धन का मार्ग प्रशस्त होगा , साथ ही घर से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाएगी। नमक के ऐसे कुछ नही अनेक फायदे हैं। बहुत पहले रोमन सोल्जर्स यानि सिपाहियों को वेतन में पैसे नहीं, बल्कि नमक दिया जाता था। सोल्जर शब्द ही रोमन शब्द ‘साल्डेयर’ से आया है, जिसका मतलब है ‘(टू गिव साल्ट) नमक देना’। भारत में नमक उत्पादन का जिम्मा जिस वर्ग पर था उसका नाम था लोनिया (Loniya) या नोनिया (Noniya)। इस तरह कहा जा सकता है नोनिया समाज ही था जो हमारे जीवन में स्वाद भरते थे। नोनिया समाज की एक उपजाति है नोनिया चौहान या लोनिया चौहान (Loniya chauhan)। यह उपजाति महान राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान के वंशज माने जाते हैं। नोनिया समाज ने 1930 ईस्वी में अंग्रेजो के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ चढ़कर भाग लिया था। अब नोनिया लोग अपना परम्परागत काम (नमक बनाने) छोड़ चुके हैं और अलग-अलग पेशा अपनाकर जीवन यापन कर रहे हैं। आइए जानते हैं नोनिया समाज का इतिहास, नोनिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?

नोनिया या लोनिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?

नून का व्यापार करने वाले नोनिया, पहले के जमाने के कैमिकल इंजीनियर जो नमक, शोरा, तेजाब गंधक आदि बनाने के काम में माहिर थे। लोनिया संस्कृत शब्द ‘लवण’ से आया हैl लवण से लोन /नोन/नून हुआ और लोन से लोनिया , नून से नोनिया हो गया। लवण को हिन्दी में नमक कहते हैं।
(शोरा- पोटैशियम नाइट्रेट (Potassium nitrate) एक रासायनिक यौगिक है। इसका अणसूत्र KNO3 है।)

नोनिया जाति का इतिहास

जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम आलोक के मुताबिक नोनिया जाति नमक, खाड़ी और शोरा के खोजकर्ता और निर्माता जाति है जो किसी काल खंड में नमक बना कर देश ही नहीं दुनिया को अपना नमक खिलाने का काम करती थी। तोप और बंदूक के आविष्कार के शुरूआती दिनों में इनके द्वारा बनाये जानेवाले एक विस्फोटक पदार्थ शोरा के बल पर ही दुनियां में शासन करना संभव था। पहले भारतवर्ष में नमक, खाड़ी और शोरा के कुटिर उद्योग पर नोनिया समाज का ही एकाधिकार था, क्योंकि इसको बनाने की विधि इन्हें ही पता था। रेह (नमकीन मिट्टी) से यह तीनों पदार्थ कैसे बनेगा यह नोनिया लोगों को ही पता था। इसलिए प्राचीन काल में नमक बनाने वाली नोनिया जाति इस देश की आर्थिक तौर पर सबसे सम्पन्न जाति हुआ करती थी।


नोनिया विद्रोह

देश 1947 में क्रूर अंग्रेजी शासन से मुक्त हुआ। यह आजादी कई आंदोलनों और कुर्बानियों के बाद मिला था। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह करने की शुरुआत नोनिया समाज को जाता है जिसे इतिहास ने अनदेखा कर दिया है। यह विद्रोह 1700-1800 ईस्वी के बीच अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हुआ था। बिहार के हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया शोरा उत्पादन का प्रमुख केन्द्र था। शोरे के इकट्‍ठे करने एवं तैयार करने का काम नोनिया करते थे। अंग्रेजों का नमक और शोरा पर एकाधिकार होते ही अब नमक और शोरा बनाने वाली जाति नोनिया का शोषण प्रारम्भ हो गया। जो शोरा नोनिया लोग पहले डच, पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारीयों को अपनी इच्छा से अच्छी कीमतो पर बेचा किया करते थे उसे अब अंग्रेजों ने अपने शासन और सत्ता के बल पर जबरदस्ती औने पौने दामों में खरीदना/लुटना शुरू कर दिया। नोनिया जाति के लोग अंग्रेजों के शोषण पूर्ण व्यवहार से बहुत दुखी और तंग थे।
नोनिया जाति के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ सर उठाया था और बगावत कर डाला था जो सन् 1770 से 1800 ईo तक लगातार 30 साल तक चला और नोनिया समाज के लोग अंग्रेजों से अकेले अपने दम पर तीस सालों तक लड़ते रहे। बिहार में छपरा में अंग्रेजों ने यही पर एक शोरे की फैक्ट्री खोली थी जिसे सन् 1771 में नोनिया विद्रोहियों ने लूट लिया था और फैक्ट्री में आग लगा दी थी। अगर भारत के कुछ लोग भी उस समय नोनिया विद्रोह में नोनिया जाति के लोगों का साथ दिया होता तो भारत अंग्रेजों का गुलाम होने से बच जाता और नोनिया समाज के लोग अंग्रेजों को भारत से मार भगाये होते।

1930 नमक सत्याग्रह आंदोलन में नोनिया समाज की भूमिका

नोनिया समाज के लोगों ने वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेकर न केवल लाखों की संख्या में अंग्रेजों के दमन का शिकार बने, बल्कि उनके पैतृक पेशा नमक बनाना भी बर्बाद हो गया। नोनिया समाज ने मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था और एक ऐसा आंदोलन किया था जिस आंदोलन ने संपूर्ण भारत में पहली बार सफलता का परचम लहराया था।

नमक बेचकर जो आमदनी हुआ वो पैसा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोष में जमा कर दिया। इस तरह देश की आजादी के लिए लड़ रहे कांग्रेस की आर्थिक मदद कर नोनिया समाज ने अपना परम एवं पुनीत कर्तव्य कर अहम भूमिका निभाई। आज भी नोनिया समाज प्रत्येक वर्ष देश के विभिन्न स्थानों पर नमक आंदोलन की वर्षगांठ मनाता है।

शहीद “बुद्धु नोनिया”

आजादी के लड़ाई में कुछ ऐसे नाम थे जो गुमनाम हो गए ऐसे ही एक नाम था बुद्धू नोनिया। जब अंग्रेजों ने नमक पर ‘कर’ लगा दिया तब भारतीय के माथे ब्रजपात हुआ । परतंत्रता के वातावरण में इस प्रकार का आर्थिक तंगी के शिकार हुए भारतवासियों के लिए ‘बुद्धु नोनिया’ उम्मीद की किरण बन कर सामने आये । ‘बुद्धु नोनिया’ देशी नमक बनाकर भारतीयों की मदद कर रहे थे। वे नोनिया समाज के प्रथम वीर योद्धा हुए जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नमक कानून तोड़ने का साहस किया । वे इतनी सावधानी से नमक बना कर भारतीय की मदद करते कि किसी को उसकी भनक तक नहीं पड़ती।
अंग्रेज सैनिक बौखला गया और बुद्धु नोनिया को पकड़कर खौलते हुए नमक के कड़ाही में जिन्दा डाल दिया । गरम कड़ाही में वे छटपटाते रहे परन्तु उनके मुंह से “भारत माता की जय” की ध्वनि निरंतर निकलती रही।
‘बुद्धु नोनिया’ का जन्म बेगुसराय (बिहार) के ‘करपूरा’ नामक गांव में एक मध्यवर्गीय नोनिया परिवार में हुआ था । त्याग और बलिदान के लिए देश के जनमानस को तैयार करने और गुलामी के पीड़ा के अहसास को जागृत करने के अथक प्रयासों के लिए ‘बुद्धु नोनिया’ जी ने अपने बलिदान के माध्यम से जो उद्बोधन किया है उसे भुलाया नहीं जा सकता ।

मुकुटधारी प्रसाद चौहान

आजादी के आंदोलन में भाग लेने वाले ऐसे ही एक महत्वपूर्ण नाम है मुकुटधारी प्रसाद चौहान। चंपारण में अंग्रेजों के जुल्म से त्रस्त किसानों की आवाज बनने के लिए जब महात्मा गांधी 1917 में चंपारण पधारे तो मुकुटधारी उनके सहयोगी बन गये। गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह में मुकुटधारी प्रसाद चौहान और राजकुमार शुक्ल ने अहम भूमिका निभाई थी। 1930 के नमक आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे भी इनकी सक्रिय भूमिका रही। आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गये।
नोनिया चौहान का इतिहास

खुद को पृथ्वीराज चौहान के वंशज मानता नोनिया समाज

महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में पूरी दुनिया जानती है, जिन्होंने आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी के खिलाफ वीरता के साथ युद्ध किया था। नोनिया समाज (Noniya caste) के लोग खुद को इसी महान सम्राट का वशंज मानते हैं। इस समाज के लोग मानते हैं कि उन्होंने 800 से 1192 ईस्वी के बीच भारतवर्ष में मुस्लिम आक्रमणकारियों को आने से रोका। लोनिया चौहान राजपूत की बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश में रहती है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, गोरखपुर, महाराजगंज और वाराणसी जिले में सबसे अधिक सघनता पाई जा सकती है।
नोनिया समाज (Noniya caste) के लोग मानते हैं कि ये कभी उत्तर-पश्चिमी भारत के शासक रहे अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान की अजेय सेना का हिस्सा रहे। उस वक्त ये लोग 13-14 राजवंशों के क्षत्रिय सेनाओं में अग्निवंशी, चंन्द्रवंशी, नागवंशी और सूर्यवंशी लड़ाके के नाम से जाने जाते थे। औरंगजेब के शासन के खिलाफ भी नोनिया समाज (Noniya caste) के लंबे समय तक संघर्ष किया।
नोनिया जाति के प्रसिद्ध व्यक्ति

रेणू देवी


रेणु देवी बिहार की पहली महिला डिप्टी सीएम हैं। (कार्यकाल: नवंबर 2020 – अब तक )। उन्हे सरकार में इतना अहम पद दिए जाने से नोनिया समाज (Noniya caste) का काफी नाम बढा है। रेणु देवी का जन्म 11 नवंबर 1959 को कृष्णा प्रसाद के यहां हुआ था, जो एक पिछड़े समाज नोनिया से थे। ये पूर्व बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। ये चार बार बेतिया से बिहार विधान सभा की सदस्य चुनी गई। रेनू देवी लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी और से RSS जुड़ रही हैं।

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कहार जाति का इतिहास :kahaar jati ka itihas






कहार भारत में पाई जाने वाली एक हिंदू जाति है. इनका इतिहास प्राचीन और गौरवशाली है. यह खुद को कश्यप ऋषि और सप्तऋषियों का वंशज होने का दावा करते हैं. कश्यप ऋषि मरीचि के पुत्र थे. ऐसी मान्यता है कि मरीचि से ही सारे देवताओं और असुरों की उत्पत्ति हुई है. कहार एक बहादुर और साहसी जाति है. पारंपरिक रूप से यह जाति अपने जीवन यापन के लिए प्राचीन काल से ही डोली या पालकी उठाने और उसकी रक्षा करने का कार्य करती आई है. इन्हें गोंड, गौड़, धुरिया कहार, मेहरा, भोई, चंद्रवंशी क्षत्रिय कहार आदि नामों से भी जाना जाता है. कहार जाति के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि पुराने समय में जब डाकुओं का प्रचलन जोरों पर था. ये डाकू रास्ते में दुल्हन की डोली और गहने जेवर लूट लिया करते थे. डोली की रक्षा के लिए कहर दल का गठन किया गया था जो दुल्हन की डोली को सुरक्षित अपने गंतव्य पर पहुंचाते थे. इनके पूर्वज विकट परिस्थितियों में जान पर खेलकर राज परिवार के बहू- बेटियों को डोली में बिठाकर, जंगलों और बीहड़ों से होते हुए, उन्हें दुश्मनों और डाकुओं से बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाते थे. लेकिन राजे रजवाड़ों के शासन समाप्त हो जाने के साथ डोली उठाने का कार्य खत्म हो गया. इसके बाद इन्होंने जीवन निर्वाह के लिए खेती, मत्स्य पालन, टोकरी बनाने और उसे स्थानीय बाजारों में बेचने और अन्य नौकरी-व्यवसाय करने लगे. बदलते हुए समय के साथ वर्तमान में उपलब्ध शिक्षा और रोजगार के नए अवसरों का लाभ उठाते हुए यह विभिन्न प्रकार के आधुनिक पेशा को अपनाने लगे हैं. आज यह के सभी क्षेत्रों में उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं और अपनी सफलता की कहानी लिख रहे हैं. आइए जानते है कहार जाति का इतिहास, कहार शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

शान की प्रतीक डोली

पुराने समय में जब सड़कें नहीं थी और यातायात के साधन उपलब्ध नहीं थे, कहार डोली या पालकी में बिठाकर लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाते थे. इससे मिलने वाले पारिश्रमिक पर उनका जीवन यापन चलता था. उस जमाने में डोली शान का प्रतीक हुआ करती थी. पालकी राजे-रजवाड़ों, जमींदारों और संपन्न लोगों के लिए यातायात का साधन था. बाद में डोली को शादी के अवसर पर दूल्हा-दुल्हन की सवारी के रूप में उपयोग किया जाने लगा. इसके लिए कहारों को मेहनताने के साथ-साथ वर और वधू पक्ष से दान और पुरस्कार

कहार किस कैटेगरी में आते हैं?

कहार जाति को बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है.

कहार कहां पाए जाते हैं?

कहार जाति के लोग मुख्य रूप से बिहार, पंजाब, हरियाणा, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में निवास करते हैं. राजस्थान में यह सीकर, नागौर, झुंझुनू, जयपुर, गंगानगर, अजमेर, टोंक आदि जिलों में इनकी अच्छी आबादी है.
 चंद्रवंशी क्षत्रिय कहारों का एक समुदाय है जिनकी उत्पत्ति गंगा के मैदानी इलाकों में हुई थी. यह धार्मिक और पवित्र अवसरों पर पालकी ढोने का कार्य करते थे. चंद्रवंशी क्षत्रिय कहार भारत के अधिकांश भागों में पाए जाते हैं, लेकिन विशेष रूप से यह उत्तर भारत में केंद्रित हैं. यह मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, सहारनपुर, फर्रुखाबाद, कानपुर, मुजफ्फरनगर, शाहजहांपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, श्रावस्ती, सुल्तानपुर, जौनपुर और अंबेडकरनगर जिलों में पाए जाते हैं. यह बिहार और पश्चिम बंगाल के अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं.

कहार किस धर्म को मानते हैं?

जाति  इतिहासविद डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार अधिकांश  कहार धर्म से हिंदू हैं. यह हिंदू देवी-देवताओं जैसे शाकंभरी देवी, बालाजी, भगवान शिव आदि की पूजा करते हैं और हिंदू त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं. थोड़ी बहुत संख्या में मुस्लिम और सिख कहार भी पाए जाते हैं. मुस्लिम कहार का कहारों का एक समुदाय है जो उत्तर-पूर्व भारत और बांग्लादेश में पाए जाते हैं. यह पालकी ढोने के साथ-साथ कृषि का कार्य करते हैैं। सिख कहार भारत में पंजाब में पाए जाते हैं. मुस्लिम और सिख कहार बहुत पहले हिंदू थे जो धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम और सिख बन गए.

कहार उपजातियां

राजस्थान में चंद्रवंशी छत्रिय कहारों का तीन उप विभाजन है-रवानी राजपूत, चंदेल राजपूत और कुरुवंशी. इन उप विवाह जनों में कुल शामिल हैं जिनमें प्रमुख हैं-चंदेल, रवानी, सोमवंशी, चंद्रवंशी, क्षेत्रीय ओतसानिया.

कहार शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

कहार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “स्कंधहार” से हुई है, जिसका अर्थ है- कंधे की सहायता से भार उठाना. कहार को मेहरा भी कहा जाता है. मेहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द मिहिर से हुई है, जिसका अर्थ है-सूर्य.

कहार जाति का इतिहास

कहार जाति की उत्पत्ति के बारे में कई मान्यताएं हैं. इनमें से प्रमुख मान्यताओं का उल्लेख हम यहां कर रहे हैं.
1. यह मानते हैं कि कहार समुदाय की उत्पत्ति एक कश्यप ऋषि से हुई है. इसीलिए यह कश्यप राजपूत होने का दावा भी करते हैं. कश्यप ऋषि का उल्लेख ऋग्वेद और अन्य हिंदू ग्रंथों में किया गया है. कश्यप ऋषि मरीचि के पुत्र थे. मरीचि से ही सारे देवताओं और असुरों की उत्पत्ति हुई है.
2. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृत्रासुर नामक असुर के वध के दौरान इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लग गया. ब्रह्महत्या के महादोष का प्रायश्चित करने हेतु उन्हें स्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान पर 1000 वर्ष तक तपस्या करना पड़ा. इंद्रासन रिक्त ना रहे इसीलिए देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के प्रसिद्ध चंद्रवंशी धर्मात्मा राजा निहुष को इंद्र के स्थान पर स्वर्ग का राजा बना दिया. निहुष का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है.स्वर्ग का राज्य पाकर निहुष भोग-विलास में लिप्त हो गए. एक दिन अचानक उनकी दृष्टि इंद्र की साध्वी पत्नी शची पर पड़ी. शची को देखकर वह कामान्ध हो उठे और उसे प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करने लगे.
ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त हो जाने के बाद इंद्र फिर से शक्ति संपन्न गए, परंतु इंद्रासन पर निहुष के विराजमान होने के कारण उनकी पूर्ण शक्ति वापस नहीं मिल पाई. उन्होंने अपनी पत्नी शची से कहा कि तुम निहुष को रात्रि में मिलने का संकेत दे दो. लेकिन उनसे यह कहना कि तुमसे मिलने सप्तर्षियों की पालकी में बैठ कर आए. शची का संकेत मिलने के बाद निहुष रात में सप्तर्षियों की पालकी में बैठकर शची से मिलने जाने लगे. सप्तर्षियों को धीरे-धीरे चलता देख उन्होंने ‘सर्प-सर्प’ अर्थात शीघ्र चलो कहते हुए अगस्त ऋषि को लात मार दिया. इस पर अगस्त ऋषि ने क्रोधित होकर निहुष को श्राप दे दिया और कहा- “मूर्ख! तुम्हारा धर्म नष्ट हो और तुम 10,000 वर्षों तक सर्प योनि में पड़ा रहे”. अगस्त ऋषि के श्राप से निहुष तत्क्षण सर्प बनकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और इस तरह से इंद्र को पुनः इंद्रासन प्राप्त हो गया. इस मान्यता के अनुसार, कहार उन सप्तर्षियों के वंशज है जिन्होंने चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा निहुष की डोली उठाई थी.
हम भारतीय जातियों के गौरवशाली इतिहास को (खासकर दलित और पिछड़ी जातियों का) ऊपर लाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा मकसद जातिवाद को बढ़ाना नहीं बल्कि जातिवाद को जड़ से खत्म करने का है। एक बार हमें यह समझना होगा कि सारे जातियों का इतिहास गौरवशाली रहा है तभी यह जाति प्रथा और भेदभाव खत्म हो पाएगा।
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