नोनिया जातिका इतिहास
कल्पना कीजिए की नमक की खोज नही हुई होती तो क्या होता। नमक ना सिर्फ आपके खाने का स्वाद बढ़ाता है बल्कि वह आपकी जिंदगी में खुशियों को घोलने की शक्ति रखता है।आपको स्वस्थ रखने , आपकी उन्नति और समृद्धि में नमक काफी सहायक होता है। काले नमक का टुकड़ा और पीपल के पेड़ की मिट्टी को लाल कपड़े में बांधकर अपने घर के किसी कोने में रख दें। ऐसा करने से अटके हुए धन की प्राप्ति होगी और धन का मार्ग प्रशस्त होगा , साथ ही घर से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाएगी। नमक के ऐसे कुछ नही अनेक फायदे हैं। बहुत पहले रोमन सोल्जर्स यानि सिपाहियों को वेतन में पैसे नहीं, बल्कि नमक दिया जाता था। सोल्जर शब्द ही रोमन शब्द ‘साल्डेयर’ से आया है, जिसका मतलब है ‘(टू गिव साल्ट) नमक देना’।
भारत में नमक उत्पादन का जिम्मा जिस वर्ग पर था उसका नाम था लोनिया (Loniya) या नोनिया (Noniya)। इस तरह कहा जा सकता है नोनिया समाज ही था जो हमारे जीवन में स्वाद भरते थे। नोनिया समाज की एक उपजाति है नोनिया चौहान या लोनिया चौहान (Loniya chauhan)। यह उपजाति महान राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान के वंशज माने जाते हैं। नोनिया समाज ने 1930 ईस्वी में अंग्रेजो के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ चढ़कर भाग लिया था। अब नोनिया लोग अपना परम्परागत काम (नमक बनाने) छोड़ चुके हैं और अलग-अलग पेशा अपनाकर जीवन यापन कर रहे हैं। आइए जानते हैं नोनिया समाज का इतिहास, नोनिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?
नोनिया या लोनिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?
नून का व्यापार करने वाले नोनिया, पहले के जमाने के कैमिकल इंजीनियर जो नमक, शोरा, तेजाब गंधक आदि बनाने के काम में माहिर थे। लोनिया संस्कृत शब्द ‘लवण’ से आया हैl लवण से लोन /नोन/नून हुआ और लोन से लोनिया , नून से नोनिया हो गया। लवण को हिन्दी में नमक कहते हैं।
(शोरा- पोटैशियम नाइट्रेट (Potassium nitrate) एक रासायनिक यौगिक है। इसका अणसूत्र KNO3 है।)
नोनिया जाति का इतिहास
जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम आलोक के मुताबिक नोनिया जाति नमक, खाड़ी और शोरा के खोजकर्ता और निर्माता जाति है जो किसी काल खंड में नमक बना कर देश ही नहीं दुनिया को अपना नमक खिलाने का काम करती थी। तोप और बंदूक के आविष्कार के शुरूआती दिनों में इनके द्वारा बनाये जानेवाले एक विस्फोटक पदार्थ शोरा के बल पर ही दुनियां में शासन करना संभव था। पहले भारतवर्ष में नमक, खाड़ी और शोरा के कुटिर उद्योग पर नोनिया समाज का ही एकाधिकार था, क्योंकि इसको बनाने की विधि इन्हें ही पता था। रेह (नमकीन मिट्टी) से यह तीनों पदार्थ कैसे बनेगा यह नोनिया लोगों को ही पता था। इसलिए प्राचीन काल में नमक बनाने वाली नोनिया जाति इस देश की आर्थिक तौर पर सबसे सम्पन्न जाति हुआ करती थी।
नोनिया विद्रोह
देश 1947 में क्रूर अंग्रेजी शासन से मुक्त हुआ। यह आजादी कई आंदोलनों और कुर्बानियों के बाद मिला था। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह करने की शुरुआत नोनिया समाज को जाता है जिसे इतिहास ने अनदेखा कर दिया है। यह विद्रोह 1700-1800 ईस्वी के बीच अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हुआ था। बिहार के हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया शोरा उत्पादन का प्रमुख केन्द्र था। शोरे के इकट्ठे करने एवं तैयार करने का काम नोनिया करते थे। अंग्रेजों का नमक और शोरा पर एकाधिकार होते ही अब नमक और शोरा बनाने वाली जाति नोनिया का शोषण प्रारम्भ हो गया। जो शोरा नोनिया लोग पहले डच, पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारीयों को अपनी इच्छा से अच्छी कीमतो पर बेचा किया करते थे उसे अब अंग्रेजों ने अपने शासन और सत्ता के बल पर जबरदस्ती औने पौने दामों में खरीदना/लुटना शुरू कर दिया। नोनिया जाति के लोग अंग्रेजों के शोषण पूर्ण व्यवहार से बहुत दुखी और तंग थे।
नोनिया जाति के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ सर उठाया था और बगावत कर डाला था जो सन् 1770 से 1800 ईo तक लगातार 30 साल तक चला और नोनिया समाज के लोग अंग्रेजों से अकेले अपने दम पर तीस सालों तक लड़ते रहे। बिहार में छपरा में अंग्रेजों ने यही पर एक शोरे की फैक्ट्री खोली थी जिसे सन् 1771 में नोनिया विद्रोहियों ने लूट लिया था और फैक्ट्री में आग लगा दी थी। अगर भारत के कुछ लोग भी उस समय नोनिया विद्रोह में नोनिया जाति के लोगों का साथ दिया होता तो भारत अंग्रेजों का गुलाम होने से बच जाता और नोनिया समाज के लोग अंग्रेजों को भारत से मार भगाये होते।
1930 नमक सत्याग्रह आंदोलन में नोनिया समाज की भूमिका
नोनिया समाज के लोगों ने वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेकर न केवल लाखों की संख्या में अंग्रेजों के दमन का शिकार बने, बल्कि उनके पैतृक पेशा नमक बनाना भी बर्बाद हो गया। नोनिया समाज ने मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था और एक ऐसा आंदोलन किया था जिस आंदोलन ने संपूर्ण भारत में पहली बार सफलता का परचम लहराया था।
नमक बेचकर जो आमदनी हुआ वो पैसा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोष में जमा कर दिया। इस तरह देश की आजादी के लिए लड़ रहे कांग्रेस की आर्थिक मदद कर नोनिया समाज ने अपना परम एवं पुनीत कर्तव्य कर अहम भूमिका निभाई। आज भी नोनिया समाज प्रत्येक वर्ष देश के विभिन्न स्थानों पर नमक आंदोलन की वर्षगांठ मनाता है।
शहीद “बुद्धु नोनिया”
आजादी के लड़ाई में कुछ ऐसे नाम थे जो गुमनाम हो गए ऐसे ही एक नाम था बुद्धू नोनिया। जब अंग्रेजों ने नमक पर ‘कर’ लगा दिया तब भारतीय के माथे ब्रजपात हुआ । परतंत्रता के वातावरण में इस प्रकार का आर्थिक तंगी के शिकार हुए भारतवासियों के लिए ‘बुद्धु नोनिया’ उम्मीद की किरण बन कर सामने आये । ‘बुद्धु नोनिया’ देशी नमक बनाकर भारतीयों की मदद कर रहे थे। वे नोनिया समाज के प्रथम वीर योद्धा हुए जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नमक कानून तोड़ने का साहस किया । वे इतनी सावधानी से नमक बना कर भारतीय की मदद करते कि किसी को उसकी भनक तक नहीं पड़ती।
अंग्रेज सैनिक बौखला गया और बुद्धु नोनिया को पकड़कर खौलते हुए नमक के कड़ाही में जिन्दा डाल दिया । गरम कड़ाही में वे छटपटाते रहे परन्तु उनके मुंह से “भारत माता की जय” की ध्वनि निरंतर निकलती रही।
‘बुद्धु नोनिया’ का जन्म बेगुसराय (बिहार) के ‘करपूरा’ नामक गांव में एक मध्यवर्गीय नोनिया परिवार में हुआ था । त्याग और बलिदान के लिए देश के जनमानस को तैयार करने और गुलामी के पीड़ा के अहसास को जागृत करने के अथक प्रयासों के लिए ‘बुद्धु नोनिया’ जी ने अपने बलिदान के माध्यम से जो उद्बोधन किया है उसे भुलाया नहीं जा सकता ।
मुकुटधारी प्रसाद चौहान
आजादी के आंदोलन में भाग लेने वाले ऐसे ही एक महत्वपूर्ण नाम है मुकुटधारी प्रसाद चौहान। चंपारण में अंग्रेजों के जुल्म से त्रस्त किसानों की आवाज बनने के लिए जब महात्मा गांधी 1917 में चंपारण पधारे तो मुकुटधारी उनके सहयोगी बन गये। गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह में मुकुटधारी प्रसाद चौहान और राजकुमार शुक्ल ने अहम भूमिका निभाई थी। 1930 के नमक आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे भी इनकी सक्रिय भूमिका रही। आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गये।
नोनिया चौहान का इतिहास
खुद को पृथ्वीराज चौहान के वंशज मानता नोनिया समाज
महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में पूरी दुनिया जानती है, जिन्होंने आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी के खिलाफ वीरता के साथ युद्ध किया था। नोनिया समाज (Noniya caste) के लोग खुद को इसी महान सम्राट का वशंज मानते हैं। इस समाज के लोग मानते हैं कि उन्होंने 800 से 1192 ईस्वी के बीच भारतवर्ष में मुस्लिम आक्रमणकारियों को आने से रोका। लोनिया चौहान राजपूत की बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश में रहती है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, गोरखपुर, महाराजगंज और वाराणसी जिले में सबसे अधिक सघनता पाई जा सकती है।
नोनिया समाज (Noniya caste) के लोग मानते हैं कि ये कभी उत्तर-पश्चिमी भारत के शासक रहे अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान की अजेय सेना का हिस्सा रहे। उस वक्त ये लोग 13-14 राजवंशों के क्षत्रिय सेनाओं में अग्निवंशी, चंन्द्रवंशी, नागवंशी और सूर्यवंशी लड़ाके के नाम से जाने जाते थे। औरंगजेब के शासन के खिलाफ भी नोनिया समाज (Noniya caste) के लंबे समय तक संघर्ष किया।
नोनिया जाति के प्रसिद्ध व्यक्ति
रेणू देवी
रेणु देवी बिहार की पहली महिला डिप्टी सीएम हैं। (कार्यकाल: नवंबर 2020 – अब तक )। उन्हे सरकार में इतना अहम पद दिए जाने से नोनिया समाज (Noniya caste) का काफी नाम बढा है। रेणु देवी का जन्म 11 नवंबर 1959 को कृष्णा प्रसाद के यहां हुआ था, जो एक पिछड़े समाज नोनिया से थे। ये पूर्व बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। ये चार बार बेतिया से बिहार विधान सभा की सदस्य चुनी गई। रेनू देवी लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी और से RSS जुड़ रही हैं।
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