17.1.22

पाल/बघेल/गडरिया/गायरी/रेवारी जाती का इतिहास :History of Pal/Baghel/Gadaria/Gayri/Rewari Caste




पाल/बघेल/गडरिया/गाडरी/गायरी/रेवारी/धनगर/नीखर/कुरुबा/हटकर/होल्कर/मराठा/सेंगर/ जाति की प्रारंभिक उत्पत्ति
वास्तव गडरिया कोई जाति नहीं थी यह एक पेशा हुआ करता था किन्तु प्राचीन समय में पेशे से ही जाति की उत्पत्ति होती थी जैसे चमड़े का कार्य करने वाले चर्मकार अथवा चमार बन गए,लकड़ी का कार्य करने वाले बढाई बन गए लोहे का कार्य करने वाले लोहार बन गए इसी प्रकार भेड पालने वाले गडरिया बन गए! गडरिया शब्द गड़र से निकला है जो कि गांधार से लिया गया है क्युकी भेड को सबसे पहले गांधार से ही लाया गया था!गडरिया जाति को एक मूल जाति माना जाता है तथा इसके साथ अन्य उपजातियां इस प्रकार हैं पाल,बघेल,कुरुबा,धनगर ,गायरी,रेवारी,होल्कर,गाडरी,हटकर,सेंगर इत्यादि!
पाल शब्द संस्कृत शब्द पाला से आया है जिसका अर्थ होता है 'पालने वाला' अथवा 'रखने वाला'! उत्तर भारत में जो लोग भेड बकरिया पालते थे उनको पाल कहा जाता था किन्तु पाल सरनेम सबसे पहले बंगाल और बंगाल के पास के क्षेत्र वर्तमान बांग्लादेश में गुप्तोत्तर कालीन कायस्थ राजाओं ने उपयोग किया वहाँ पाल सरनेम कायस्थों द्वारा लगाया जाता है!उसके बाद महाराष्ट्र की एक शिकार करने वाली जाति ने पाल शब्द को सरनेम बनाया तथा बाद में पाल सरनेम को ग्वालियर के राजा ने अपनाया!इसी प्रकार पाल सरनेम को गढ़वाल के परमार राजपूत राजाओं ने अपनाया किन्तु बाद में उन्होंने इसको सिंह के नाम से परिवर्तित कर दिया!इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तर भारत में पाल सरनेम को भेड बकरियां पालने वाले गडरिया लोगो ने लगाया और पाल गडरिया की एक उपजाति बन गयी!
उत्तर प्रदेश एवं आसपास के क्षेत्र में बघेल सरनेम एक नदी के कारण लिया गया है जो बघेल साम्राज्य के सीमा पर बहती थी उस नदी के आसपास जो गडरिया निवास करते थे वो अपने आप को बघेल/बाघेला कहने लगे तथा अपने आप को बघेल वंशज मानने लगे!
गायरी/गाडरी/रेवारी- ये उपजातियां राजस्थान में प्रचलित हैं राजस्थानी भाषा में गायर शब्द का अर्थ भेड से निकाला जाता है इस प्रकार राजस्थान में भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा गायरी/गाडरी सरनेम का उपयोग किया जाता है!रेवारी शब्द रेवड़/रेवर से आया है राजस्थान में भेड़ों/बकरियों के झुण्ड को रेवर कहा जाता है इस प्रकार गायरी/गाडरी/रेवारी भी गडरिया जाति की उपजातियां बनी!


कुरुंबा उपजाति दक्षिण भारत में पायी जाति है तेलुगु भाषा में कुरुबा का मतलब भेड होता है इस प्रकार वहाँ भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा कुरुबा सरनेम को अपनाया गया और कुरुंबा भी गडरिया की एक उपजाति बनी!
जाति इतिहासविद डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार धनगर उपजाति महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में प्रचलित है धनगर शब्द एक संस्कृत शब्द 'धेनुगर' से लिया गया है,जिसका अर्थ चरवाहे से होता है धनगर शब्द एक पहाड़ी 'धनग' के नाम से भी माना जाता है जो महाराष्ट्र में स्थित है एवं वहाँ चरवाहे रहा करते थे!महाराट्र में धनगर की बहुत सी उपजातियां है जैसे- धनगर/मराठा/हटकर/सेंगर/होल्कर महाराट्र में प्रचलित उपजातियां हैं हटकर लोग महाराष्ट्र,गुजरात,कर्नाटक एवं अन्य दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले लोग थे!महाराष्ट्र के हटकर लोग भेड पालने वाले लड़ाकू जनजाति से थे बाद में हटकर लोगों में से ही शिवाजी निकले और मराठा राजवंश की स्थापना की!यहाँ यह बताना जरुरी है कि सभी मराठा हटकर नहीं हैं!मराठा राजवंश से ही होल्कर राजवंश बना इस प्रकार होल्कर भी गडरिया जाति की उपजाति बनी!होल्कर मध्य प्रदेश में इंदौर के प्रशासक बने!सेंगर लोग वो लोग थे जो गडरिया तो थे ही लेकिन वो भेड पालने के साथ उनकी ऊन से कम्बल बना कर बेचा करते थे!हटकर उपजाति में भी अन्य उपजातियां हैं जैसे-बारहट्टी/बारहट्टा/बरगाही/बाराहघर!
भारत देश पर सबसे पहले लोगो को नागवंशी कहा जाते थे आज भी नागवंशी समुदाय के लोग भारत बर मौजूद है। भारत मे सभी जाती के लोग पूर्व नागवंशी लोग थे। इतिहास पढ़ लो इसीलिए भारत देश मे नाग की पूजा की जाती है।नाग की पूजा करना धर्म नही इतिहास है ।
“मध्य भारत” के राज्य “मध्य प्रदेश” जहाँ आज भी “गडरिया” समाज की बहुतायत में जनसंख्या है | मध्य प्रदेश में “गडरियाखेडा” नाम से जगह है जिसका वर्तमान नाम “गदरवाडा”  है “गाडर” शब्द का मध्य भारत की भाषा में अर्थ “भेड़” “बकरी” होती है| मध्य प्रदेश के “विधिशा” - “भोपाल ” मंडल में मोजूद “ग़दरमल” मंदिर जो की 800-900 A.D. के करीब किसी “गडरिया” राजा ने बनवाया था इसी कारण इस मंदिर का नाम“ग़दरमल” पड़ा|
  
जाति इतिहासकार डॉ. दयाराम आलोक के मतानुसार मध्य भारत में “होलकर साम्राज्य” “धनगर” अर्थात गड़रियो का ही राजवंश है | जिसने भारत देश को “महान देवी अहिल्या बाई होलकर” जैसे महान रानी दी जिसने ना केवल हिन्दू समाज को मुगलों से बचाया बल्कि मुगलों  द्वारा तोड़े गए मंदिरों को दुबारा बनवाया| स्वंत्रता सेनानी “यशवंतराव होलकर” व रानी “भीमाबाई होलकर” जैसे वीर स्वंत्रता सेनानी दिए | ग्वालियर जिले के गडरिया “तानसेन” का नाम तो सभी लोग जानते है जिनका गोत्र “बानिया” था इसी जाति से ताल्लुक रखते थे |
दक्षिण भारत में “गडरिया / धनगर” “कुरुबा” नाम से जाना जाता है जिसने भारत को “विजय नगर” साम्राज्य दिया | “कनकदास” “कालीदास” जैसे सन्त दिए | “संगोल्ली रायान्ना” जैसे स्वंत्रता सेनानी दिए जिन्होंने अपने प्राण देश के खातिर निरछावर कर दिए थे |
कहा जाता है की भारत की जादातर जातिया गडरिया समाज से निकली है | जिनमे अहीर , गुजर , कुर्मी, जाट ब्राहमण, बनिया , राजपूत विशेष है |
:-चौधरी अनिल पथरिया (धनगर) (नॉएडा) :- प
भारत वर्ष के तमाम धनगर (शेफर्ड) समाज के नाम सन्देश
यह बात सत्य है की धनगर समाज भारत के तमाम हिस्सों में फैला है परन्तु यह समाज देश के कोने कोने में अलग अलग नाम से जाना जाता है , इस धनगर समाज ने इंडिया स्तर पर अपनी नेशनल आइडेंटिटी (रास्ट्रीय पहचान) नहीं बनाई है | इसके पीछे कई कारण है पहला कारण यह की जिस वक़्त भारत आजाद हुआ था उस समय धनगर समाज का कोई रास्ट्रीय नेता नहीं था, अगर गैर समाज को देखा जाये तो उनका कोई न कोई नेता था उन्हें आजाद भारत ने मंत्री मंडल में किसी न किसी समाज का नेता भी बनाया गया था जैसे
ब्राहमण : जवाहरलाल नेहरु
कायस्थ : लाल बहादुर शास्त्री
कुर्मी व गुर्जर : वल्लभ भाई पटेल
मेहतर(भंगी) तथा सर्व दलित समाज : बाबा भीम राव आंबेडकर
राजपूत : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
जाट : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
सिख : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
अहार(यादव): दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री
मुसलमान : (डाटा उपलब्ध नहीं है)
परन्तु धनगर समाज का कोई नेता नहीं था जो धनगर समाज को उस समय सही रास्ता देखता , किसी गैर समाज के नेता ने भी धनगर समाज को सही रास्ता नहीं दिखाया | धनगर समाज इसी वजह से पिछड़ते पिछड़ते इतना पिछड़ गया की 1990 तक अपना कोई सांसद , विधायक नहीं बना पाया और इस समय तक गैर समाज अपने सेन्टर में कई नेता बना चुके थे, परन्तु अपना समाज गैर समाज के नेताओ को ही नेतागिरी करने वाला समझ चूका था (वैसे ये स्तिथि आज भी है), कुछ समाज ने तो धनगर समाज को राजनीती में न उठने देने के लिए तरह तरह के श्लोक व कहानी तक तयार कर ली जैसे
अहार(यादव) समाज : “गड़ेरिया अहीर भाई भाई, भाई(गड़ेरिया) भाई(यादव) को ही वोट देगा” , “यादव समाज गड़ेरिया समाज के बेटे के सामान है बाप(गड़ेरिया) को बेटे(यादव) की बात माननी चाहिए”,
जाट : हम ऊँची जात है हम राजनीती में खड़े होंगे गड़ेरिया समाज नहीं, “हमे वोट दे दो हम तुमे कुछ जमीन दे दे देंगे “
मुस्लमान : “मुस्लिम में एकता है मुस्लमान के वोट फलानी पार्टी को नहीं जायंगे अगर हमारी बजाय गड़ेरिया को टिकेट मिला तो”
ब्रहमिन : “अनपद गावर समाज राजनीती में आकार क्या करेगा ?”
ये बाते उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , राजस्थान , हरयाणा उत्तराखंड में आज भी कही जाती है |


आज धनगर समाज को गैर समाज से राजनीती साथ नहीं मिल रहा है, परिणाम यह होता है की जब धनगर समाज राजनीती में खड़ा होता है तो कुछ समाज तो धनगर कैंडिडेट के राजनीती में होने से इतना चिड़ते है की उनको वोट ही नहीं देते वो सोचते है की “अगर धनगर समाज को वोट दे दिया तो धनगर समाज की वैल्यू बढ़ जायगी”, “या धनगर समाज के इस कैंडिडेट की वजह से उसकी बिरादरी को टिकट नहीं मिला”, “हम धनगर समाज को वोट नहीं देंगे”
 इन तमाम कारणों से तंग आकार धनगर समाज ने हुंकार भरी और अपने छोटे छोटे दल का एकत्रित किया या राजनीती में आने के लिए उत्तेजित किया|जिसके पीछे कई कारण है| गैर समाज के विधायको या सांसदों से जब धनगर समाज को मदद की जरुरत पड़ी तो इन हरामखोरो ने तरह तरह के ताने या साफ़ साफ माना कर दिया, और इनके इस जरा से ना ने धनगर समाज को कही भूमि से भूमिहिंन कर दिया(किसी दबंग लोगो के धनगर की जमीन पर कब्ज़ा करने या दबंगों के परेशान करने से, किसी वजह से सरकार ने धनगर की जमीं ले ली अगर कोई नेता उनका साथ देता दो शायद सरकार उनकी जमींन छोड़ देती क्यों की बहुत लोगो की जमीन किसी विधायक या सांसद की मदद से लोग छुड़ा लेते है , या किसी न किसी और अन्य कारण से धनगर समाज को अपनी खुद की जमीन से हाथ धोना पड़ा)
  इन्ही “धनगर समाज के वोटो के भिखारियों” से तंग आकार धनगर समाज ने राजनीती में कदम रखा , और उत्तर प्रदेश में तो जैसे धनगर समाज ने बिगुल ही बजा दिया , यहाँ धनगर समाज के कई विधायक , राज्यसभा , लोकसभा सांसद , ऍम० एल० सी०, राज्य मंत्री , कैबिनेट मंत्री बने, परन्तु समाज का पिछड़ापन दूर न हो सका|
अगर धनगर समाज आज़ादी के टाइम से राजनीती में आता तो शायद गैर समाज की तरह आज हम भी धनगर गवर्नमेंट चलाते , हमारे भी नेता ताकतवर होते , हम कई पार्टियों के वोट बैंक होते |
या जब भारत आजाद हुआ था तो कोई अपना धनगर समाज का नेता होता जो अपने धनगर समाज की स्तिथि को सरकार के सामने रखतातो सायद आज हम अनुसूचित जन जाति में होते क्यों की धनगर समाज एक घुमाकड़ समाज था और आज भी है |
आज गैर समाज के लोग धनगर समाज का वोट लेने के लिए नए नए फंडे अपने रहे है जैसे धनगर समाज के सरनेम का उपयोग कर रहे है जैसे


• नारायण पाल खटिक समाज से है ये उत्तराखंड के विधायक रहे है
• राघव लखन पाल ब्राहमण समाज से है ये सहारनपुर से विधायक है
• जगदम्बिका पाल ये राजपूत समाज से है ये डुमरियागंज से सांसद है
• मोहन पाल खटिक समाज से है , उत्तराखंड की भीमताल सीट से थे
• मुनसीराम पाल खटिक समाज से है , बिजनौर से सांसद रह चुके है
हम धनगर समाज को इन गैर समाज व धनगर कौम के साथ खिलवाड़ करने वाले लोगोई से सावधान रहना है
आंबेडकर जी ने धनगर समाज के साथ क्यों इन्साफ नहीं किया ?
आंबेडकर साहब आज दलितों का भगवान् है , परन्तु उन्होंने बस दलितों का भला किया है , धनगर समाज के लिए उनके पास शोध का टाइम न निकल पाया तो उन्हें जैसे तैसे आंख बंद करके किसी भी बोरी में दाल दिया , और ऐसा सिर्फ धनगर समाज के साथ नहीं बल्कि कई अन्य समाज के साथ भी हुआ है , परन्तु आंबेडकर साहब ने अपने समाज को दिन रात एक करके उन पर  अध्ययन करके हर राज्य में अनुसुचित जाति या अनुसूचित जनजाति में डाला परन्तु धनगर समाज को कही एस०सी० तो कही एस०टी० तो कही ओ० बी०सी० में , परन्तु धनगर समाज व अन्य कुछ समाज को दलितों के हाथो का खिलौना बना कर चले गए जैसे की मायावती ये धनगर समाज को एस० सी० में डालने जा झांसा दे कर उनका वोट मांग रही है परन्तु यह बात धनगर समाज अच्छी  तरह जनता है की मायावती धनगर समाज को एस०सी० में नहीं डालेगी, मुलायम सिंह भी यही खेल खेल रहा है| महारासत्रा में भी शरद पवार धनगरो को एस०टी० में डालने जा झांसा देता आया है , परन्तु वह बुढा हो गया अभी तक मामला अटकाया हुआ है राजीव गाँधी जे के कहने पर भी  धनगरो को एस०टी० में नहीं डाला, पंजाब में भी ऐसा मामला आया है |
धनगर समाज का अंग कौन कौन है और किस नाम से जाने जाते है ?
उत्तर प्रदेश के पाल , बघेल, गड़ेरिया, धनगर
मध्य प्रदेश के पाल , बघेल , गड़ेरिया , ग़दर , होलकर
**मध्य प्रदेश में बघेल किस जातिया लगाती है जैसे बघेलखंड(रीवा , सतना , सीधी , शहडोल आदि जिले) के राजपूत , विधिशा के एस०टी० , जबलपुर मंडल के एस०सी०, और कुछ जंगली जातिया
महारास्ट्र के धनगर , हटकर , होलकर
उत्तराखंड के पाल , गड़ेरिया , धनगर
** उत्तराखंड में पाल टाइटल कुछ पहाड़ी जातिया लगाती है जो धनगर समाज का अंग नहीं है , खटिक समाज भी वह पाल टाइटल का उपयोग करता है , उत्तराखंड के कुछ राजपूत भी पाल शब्द का प्रयोग करते है
राजस्थान के पाल , बघेल , होलकर , गड़ेरिया
** राजस्थान में बघेल कुछ राजपूत जातिया भी लगाती है , रायका/रेबारी/मलधारी समाज ने अपने आपको अभी धनगर समाज का अंग नहीं माना है , उनके रीती रिवाज़ गड़ेरिया समाज से अलग है , उनके शादी बियाह भी अलग रीती रिवाज़ से होते है , जोधपुर जिले में धनगर समाज व रेबारी समाज दोनों है परन्तु दोनों समाज अपनी बेटी एक दुसरे समाज में नहीं बिहते इस से पता चलता है दोनों भिन भिन जातिया है , राजस्थान की ओ०बी०सी० लिस्ट में ये दोनों जातिया अलग अलग है , दोनों जातियों का जाति प्रमाण पत्र अलग अलग बनता है
गुजरात में गड़ेरिया , धनगर , होलकर
** गुजरात में बघेल या बाघेला या वाघेला राजपूत लोग लिखते है , भरवाड समाज भी रेबारी समाज की तरह भिन है|
Disclaimer: Is content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे


कोई टिप्पणी नहीं: