11.2.24

कालेश्वर मंदिर खाईखेडा -गरोठ :डॉ आलोक का आध्यात्मिक दान पथ : 4 सीमेंट बेंच समर्पित

 श्री कालेश्वर  मंदिर खाईखेडा (शामगढ़ के पास)  हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़  द्वारा 

४ सीमेंट  बेंचें दान 

खाईखेड़ा मंदसौर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जो शामगढ़ नगर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। यहाँ का कालेश्वर भगवान का मंदिर विशेष रूप से जहरीले जंतुओं के काटने से पीड़ित लोगों के लिए जीवन रक्षा के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर में यात्रियों के विश्राम के लिए बेंचों की कमी को देखते हुए, डॉ. दयाराम जी आलोक ने अपने आध्यात्मिक दान पथ के तहत चयनित मंदिरों में सिमेन्ट की बेंचें दान करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पुत्र डॉ. अनिल कुमार राठौर के माध्यम से मंदिर को 4 सिमेन्ट की बेंचें दान कीं।
मंदिर समिति और सरपंच श्री शामसिंग जी पड़िहार ने दान दाता का सम्मान करते हुए आभार व्यक्त किया और इस दान को मंदिर के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान बताया। यह दान न केवल मंदिर की सुविधा में सुधार करेगा, बल्कि यात्रियों को भी आराम करने के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित स्थान प्रदान करेगा. 


समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आद्यात्मिक दान-पथ

  साहित्य मनीषी  डॉ.दयाराम जी आलोक  राजस्थान और मध्यप्रदेश के 
मंदसौर,आगर नीमच ,झालावाड़ ,रतलाम और झाबुआ जिलों के  मंदिरों ,मुक्ति धाम और  गौशालाओं में निर्माण व विकास  हेतु नकद और  आगंतुकों के बैठने  हेतु  सीमेंट की बेंचें दान देने का अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं.
 डॉ.आलोक जी  एक  सेवानिवृत्त अध्यापक हैं और वे अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने के संकल्प के साथ  आध्यात्मिक दान-पथ  पर अग्रसर हैं . 151 से अधिक संस्थानों में बैठक व्यवस्था उन्नत करने  हेतु  सीमेंट  बेंचें और रंग रोगन के लिए नकद दान के अनुष्ठान में  आपकी वो राशि भी शामिल है जो  google कंपनी से उनके ब्लॉग  और  You tube पर विडियो से  प्राप्त होती  है| समायोजित दान राशि और सीमेंट बेंचें  पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं.



श्री कालेश्वर मंदिर खाई खेडा हेतु 

4 सीमेंट बेंचें दान

कालेश्वर मंदिर खईखेड़ा का विडियो 


कालेश्वर मंदिर खाई खेडा  के प्रमुख व्यवस्थापक 

शामसिंग जी पडिहार सरपंच  खाईखेडा

चरण सिंग  जी खाई खेडा 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा  कालेश्वर मंदिर खईखेडा  हेतु दान सम्पन्न  १०/२/२०२४ 

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9.2.24

श्री भेसासरी राड़ी वाली माताजी मंदिर माणकी-गरोठ-मंदसौर/डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ द्वारा 3 बेंच समर्पित

समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आद्यात्मिक दान -पथ

  साहित्य मनीषी  डॉ.दयाराम जी आलोक  राजस्थान और मध्यप्रदेश के  
आगर,मंदसौर,नीमच ,झालावाड़ ,कोटा और झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्ति धाम में निर्माण व विकास  हेतु नकद और  आगंतुकों के बैठने  हेतु  सीमेंट की बेंचें दान देने का अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं.
 आलोकजी  एक  सेवानिवृत्त अध्यापक हैं और वे अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने के संकल्प के साथ  आध्यात्मिक दान-पथ  पर अग्रसर हैं . इसमे वो राशि भी शामिल है जो  आपको  google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| आपकी  ६ वेबसाईट पर google  विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% आपको मिलता है|  समायोजित दान राशि और सीमेंट बेंचें  पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं.

राड़ी वाली माताजी  मंदिर माणकी (गरोठ) MP हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल  शामगढ़  द्वारा 

सीमेंट  बेंचें भेंट 


समीक्षा- 

माणकी गाँव की भेसासरी माताजी का मंदिर एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल है, जो मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की गरोठ तहसील में स्थित है। यहाँ की जानकारी निम्नलिखित है:

मंदिर की विशेषताएं:

- महिशासुर मर्दिनी को समर्पित मंदिर
- गोयल वंश की कुल देवी
- हिन्दू धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र

मंदिर की कथा:

- भेसासरी माताजी की उत्पत्ति की कथा पुराणों में वर्णित है
- माताजी ने गाँव माणकी में निवास किया था और लोगों की रक्षा की थी
- माताजी की पूजा से लोगों को सुख और समृद्धि मिलती है


मंदिर का महत्व:

- नव रात्री पर्व के दौरान दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ जाती है
- मंदिर के विशाल प्रांगण में हरे भरे वृक्षों से वातावरण को रमणीय बना दिया है

मंदिर की सुविधाएं:

- दर्शनार्थियों के लिए सुविधाजनक प्रवेश और निकास
- पूजा और दर्शन के लिए विशेष व्यवस्था
- स्वच्छता और सुरक्षा के लिए विशेष ध्यान

दान और सहयोग:

- समाज सेवी डॉ. दयाराम आलोक जी ने मंदिर में 3 सिमेन्ट की बेंचें लगवाईं
- मंदिर की समिति और बालाराम जी पाटीदार ने दान के लिए आभार माना

भेसासरी माताजी की महिमा:

- देवी को महिशासुर मर्दिनी कहा जाता है, जो शक्ति और साहस की प्रतीक है
- गोयल वंश की कुल देवी होने के नाते, मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है
बोलिए माणकी वाली भेसासरी महारानी की जय!


मंदिर में दान पट्टी लगने की जगह बताई जा रही है 


...


राड़ी वाली  माताजी मंदिर माणकी  के लिए 

 3 सीमेंट बैंचें भेंट 


मानकी की वनस्थली  में विराजित भेसासरी माताजी  

में बेंच लगने का विडियो 




माणकी  मंदिर में बेंचें लगी 


राड़ीवाली माताजी मंदिर माणकी के प्रमुख व्यवस्थापक

बालाराम जी पाटीदार दसोरिया 

मदन सिंग जी सिसोदिया  माणकी 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656  द्वारा  राड़ीवाली माताजी  धाम माणकी  हेतु  दान सम्पन्न  १०/२/२०२४
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5.2.24

श्री हनुमान मंदिर कुंडालिया चरणदास -गरोठ हेतु बैंच व्यवस्था :डॉ.अनिल दामोदर शामगढ़ का पावन दान पथ

 श्री हनुमान मंदिर कुंडालिया चरणदास में 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़  द्वारा 

लगेंगी  सीमेंट की बेंचें 

दान पट्टी बनाकर मंदिर के पुजारी  पवन बैरागी को भेजी गई.

 मंदसौर जिले के कुंडालिया चरणदास ग्राम का हनुमान जी का मंदिर गरोठ शहर से भानपुरा की तरफ जाने वाली सड़क पर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
 इस गाँव मे मिश्रित बस्ती है लेकिन पाटीदारों का प्रभुत्व है। मंदिर बहुत छोटा है और गाँव के लोगों मे इसके विकास और निर्माण की लगन नहीं है। मंदिर की लोकेशन बहुत अच्छी है । 
यहाँ के 2-4 लोगों की आदत है कि खुद भी दान नहीं देते और कोई दूसरों दान दे तो उसका विरोध करने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। 
100 से ज्यादा मंदिरों को दान देने वाले समाज सेवी डॉ.दयारामजी  आलोक ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ ने मंदिर के पुजारी पवनजी बैरागी और हनुमान भक्त दीपक जी मेघवाल के अनुरोध पर मंदिर को 4 सिमेन्ट की बेंच दान करने की प्रक्रिया के अंतर्गत मंदिर  का महात्म्य बढ़ाने वाली दान पट्टिका बनवाकर भेज दी  है . मंदिर हितैषी अनुष्ठान मे किसी ने रुकावट नहीं डाली तो सिमेन्ट की 4 बेंचें समर्पित होंगी ।

बोलिए पवन पुत्र हनुमान की जय!

 

समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

आद्यात्मिक दान-पथ

  साहित्य मनीषी  डॉ.दयाराम जी आलोक  राजस्थान और मध्यप्रदेश के 
मंदसौर,आगर नीमच ,झालावाड़ ,रतलाम और झाबुआ जिलों के  मंदिरों ,मुक्ति धाम और  गौशालाओं में निर्माण व विकास  हेतु नकद और  आगंतुकों के बैठने  हेतु  सीमेंट की बेंचें दान देने का अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं.
 डॉ.आलोक जी  एक  सेवानिवृत्त अध्यापक हैं और वे अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने के संकल्प के साथ  आध्यात्मिक दान-पथ  पर अग्रसर हैं . 151 से अधिक संस्थानों में बैठक व्यवस्था उन्नत करने  हेतु  सीमेंट  बेंचें और रंग रोगन के लिए नकद दान के अनुष्ठान में  आपकी वो राशि भी शामिल है जो  google कंपनी से उनके ब्लॉग  और  You tube चैनल  से  प्राप्त होती  है| समायोजित दान राशि और सीमेंट बेंचें  पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं.

                    



श्री हनुमान मंदिर कुंडालिया  चरणदास हेतु 

 4 सीमेंट बेंचें दान (पेंडिंग)

मंदिर शुभचिंतक -

सरपंच:नरेंद्र सिंग जी 99775-92020 

पवन जी बैरागी पुजारी कुंडालिया चरण दास ९९७७८-२९८७९ 

सुरेश जी  शिवाल 99771-19418  

दीपक जी  मेघवाल  कुण्डलिया चरनदास 

नोट- पवन जी बैरागी पुजारी और दीपक जी मेघवाल  के अनुरोध पर दान पट्टी बनवाकर भेज दी गई है .दान पट्टी  निर्धारित स्थान पर लग जाने पर 4 बेंचें भेजी जायेंगी. 

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26.1.24

सनातन धर्म में कितने तरह के होते हैं गोत्र? कैसे ढूंढे अपनी गोत्र




किसी भी सनातनी के शादी-ब्याह, कर्मकांड या पूजा पाठ के समय आप सुनते होंगे कि उनसे उनके गोत्र के बारे में पूछा जाता है. सनातन धर्म में एक गोत्र में शादी पूर्णतः वर्जित है. इसका वैज्ञानिक कारण भी है कि अगर एक ही गोत्र में शादी की जाए तो कई तरह की जेनेटिक परेशानी उनके अगले वंश में आ जाती है. ऐसे में गोत्र का यहां विशेष महत्व है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि गोत्र क्या है और इसे कैसे पता लगाएं कि आपका गोत्र कौन सा है. गोत्र की सही व्याख्या की मानें तो इंद्रिय आघात से रक्षा करनेवाला ही गोत्र है. इस ऋृषि परंपरा से जोड़ा जाता है. मतलब साफ है जो विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि अगर इंद्रिय आघात से रक्षा करना है तो दूसरे गोत्र में शादी-ब्याह जैसे बंधन को स्वीकार करना चाहिए.
ऐसे में ब्राह्मणों के लिए गोत्र का विशेष महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि उनको ऋृषियों की संतान माना गया है. यानी हर ब्राह्मण के गोत्र से पता लग जाएगा कि वह किस ऋृषिकुल से आते हैं. यानी गोत्र सीधे तौर पर आपके पूर्वजों की पहचान को दर्शाता है. पहले चार गोत्र थे अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु फिर बाद में इसमें जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य को भी जोड़ा गया. मतलब ये 8 गोत्र मूल रूप से आपको देखने सुनने को मिलेंगे.
अब जिसको अपने गोत्र का पता नहीं होता उसके लिए कश्यप गोत्र का उच्चारण कराया जाता है. इसके पीछे की मान्यता यह है कि कश्यप ऋृषि की एक से अधिक शादियां हुई थीं. जिससे उनके अनेक पुत्र थे. ऐसे में जिनको अपना गोत्र नहीं पता उन्हें कश्यप गोत्री मान लिया जाता है. साथ ही भगवान श्री हरि नारायण विष्णु का भी गोत्र यही बताया गया है. वैसे समयांतराल के साथ मूल रूप से 7 गोत्र ही रह गए हैं जिसे लोग जानते हैं. इनमें अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र मूल हैं.
वर्तमान में अभी कुल 115 गोत्र प्रचलित हैं. जो आपको यह बताते हैं कि आप इनमें से किस ऋृषि के वंशज हैं. ऐसे में हम आपको 7 शाखाओं सहित कुल 115 गोत्रों के बारे में बताएंगे. जो इस प्रकार हैं. अत्रि गोत्र, भृगुगोत्र, आंगिरस गोत्र, मुद्गल गोत्र,पातंजलि गोत्र, कौशिक गोत्र, मरीच गोत्र, च्यवन गोत्र, पुलह गोत्र, आष्टिषेण गोत्र, उत्पत्ति शाखा, गौतम गोत्र,.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ) पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र, वात्स्यायन गोत्र, बुधायन गोत्र,माध्यन्दिनी गोत्र, अज गोत्र, वामदेव गोत्र, शांकृत्य गोत्र, आप्लवान गोत्र,सौकालीन गोत्र, सोपायन गोत्र,गर्ग गोत्र, सोपर्णि गोत्र, शाखा, मैत्रेय गोत्र,पराशर गोत्र,अंगिरा गोत्र,क्रतु गोत्र, अधमर्षण गोत्र, बुधायन गोत्र, आष्टायन कौशिक गोत्र, अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, कौण्डिन्य गोत्र, मित्रवरुण गोत्र,कपिल गोत्र, शक्ति गोत्र, पौलस्त्य गोत्र, दक्ष गोत्र, सांख्यायन कौशिक गोत्र, जमदग्नि गोत्र, कृष्णात्रेय गोत्र, भार्गव गोत्र, हारीत गोत्र, धनञ्जय गोत्र,पाराशर गोत्र,आत्रेय गोत्र, पुलस्त्य गोत्र, भारद्वाज गोत्र, कुत्स गोत्र, शांडिल्य गोत्र, भरद्वाज गोत्र, कौत्स गोत्र, कर्दम गोत्र, पाणिनि गोत्र, वत्स गोत्र, विश्वामित्र गोत्र, अगस्त्य गोत्र, कुश गोत्र, जमदग्नि कौशिक गोत्र, कुशिक गोत्र, देवराज गोत्र, धृत कौशिक गोत्र, किंडव गोत्र, कर्ण गोत्र, जातुकर्ण गोत्र, काश्यप गोत्र, गोभिल गोत्र, कश्यप गोत्र, सुनक गोत्र, शाखाएं गोत्र, कल्पिष गोत्र, मनु गोत्र, माण्डब्य गोत्र, अम्बरीष गोत्र, उपलभ्य गोत्र, व्याघ्रपाद गोत्र, जावाल गोत्र, धौम्य गोत्र, यागवल्क्य गोत्र, और्व गोत्र, दृढ़ गोत्र, उद्वाह गोत्र, रोहित गोत्र, सुपर्ण गोत्र, गालिब गोत्र, वशिष्ठ गोत्र,मार्कण्डेय गोत्र, अनावृक गोत्र, आपस्तम्ब गोत्र, उत्पत्ति शाखा गोत्र, यास्क गोत्र, वीतहब्य गोत्र, वासुकि गोत्र, दालभ्य गोत्र, आयास्य गोत्र, लौंगाक्षि गोत्र, चित्र गोत्र, विष्णु गोत्र, शौनक गोत्र, पंचशाखा गोत्र,सावर्णि गोत्र, कात्यायन गोत्र, कंचन गोत्र,अलम्पायन गोत्र,अव्यय गोत्र, विल्च गोत्र, शांकल्य गोत्र,उद्दालक गोत्र, जैमिनी गोत्र, उपमन्यु गोत्र, उतथ्य गोत्र, आसुरि गोत्र, अनूप गोत्र और आश्वलायन गोत्र.
ऐसे में पूरी हिंदू जातियां इसी 115 गोत्रों में विभाजित है या कहें कि इन्हीं 115 ऋृषियों के वह वंशज हैं. इसमें से ब्राह्मणों में शाण्डिल्य को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना जाता है. यह तप, वैदिक ज्ञान को धारण करने वाले तीन ब्राह्मणों के उच्च गोत्र गौतम, गर्ग और शाण्डिल्य में से एक है.

मोक्षधाम की बेहतरी के लिए समाज सेवी डॉ. आलोक के दान के विडिओ की लिंक

https://youtube.com/playlist?list=PLGh9mDt-wWQe6dGW8fOnRlYiirBjNIUQ-&si=rr5O_BKvE1qVW5Jl

मंदिरों को दान भारत देश महान || डॉ .आलोक के दान के विडिओ की प्लेलिस्ट

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25.1.24

पिंजारा -मंसूरी समाज का इतिहास और जानकारी -Pinjara caste History


पिंजारा समाज, जिसे मंसूरी (Mansoori) भी कहा जाता है, भारत में एक मुस्लिम समुदाय है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाया जाता है. पिंजारा समुदाय का मुख्य व्यवसाय कपास को धुनना, खोलना और साफ करना है.
पिंजारा समाज का इतिहास और उत्पत्ति:
पिंजारा समाज का इतिहास सदियों पुराना है.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, पिंजारा शब्द संस्कृत शब्द "वान" या "वणिक" से आया है, जिसका अर्थ है "व्यापारी" या "वनवासी".
कुछ अन्य लोगों के अनुसार, यह शब्द फ़ारसी शब्द "विरंजन" से आया है, जिसका अर्थ है "सफ़ाई करने वाला".
कुछ पिंजारा समुदाय के लोग मानते हैं कि वे राजपूतों की एक शाखा हैं जो बाद में मुस्लिम बन गए.
औरंगजेब के शासनकाल में, कुछ पिंजारों ने इस्लाम धर्म अपना लिया और बुनाई और कपड़ा बनाने का काम शुरू कर दिया.
बादशाह शहाबुद्दीन गौरी ने भी कुछ हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया, जिन्हें गोरी पठान कहा जाने लगा, और इनमें से कुछ बाद में पिंजारा समुदाय में शामिल हो गए.
पिंजारा समाज की विशेषताएं:
पिंजारा समुदाय के लोग हिन्दू और मुस्लिम दोनों हो सकते हैं.
पिंजारा महिलाएं पुरुषों के बराबर काम करती हैं और व्यवसाय में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
वे कपास खरीदती हैं, उसे धुनती हैं, और उससे बिस्तर, तकिया, कंबल आदि बनाती हैं.
पिंजारा महिलाएं अपनी कमाई का हिसाब रखती हैं और उसे अपनी मर्जी से खर्च करती हैं.
कुछ पिंजारा महिलाएं अब ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्यों में भी संलग्न हैं.
पिंजारा समुदाय में विवाह:
पिंजारा समुदाय में विवाह, समुदाय के भीतर ही होते हैं.
विवाहों में, लड़के और लड़कियों की सहमति का सम्मान किया जाता है.
विवाहों में, लड़के और लड़कियों के माता-पिता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
पिंजारा समुदाय की वर्तमान स्थिति:
पिंजारा समुदाय के लोग आज भी अपने पारंपरिक व्यवसाय को जारी रखे हुए हैं, लेकिन कुछ लोग अन्य व्यवसायों में भी शामिल हो गए हैं.
पिंजारा समुदाय के लोग शिक्षा और जागरूकता के महत्व को समझ रहे हैं और अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
पिंजारा समुदाय के लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिए संगठित हो रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं.

    
पिंजारा किस धर्म को मानते हैं?

यह इस्लाम धर्म को मानते हैं. यह हिंदी, मारवाड़ी, मराठी, कन्नड़ और उर्दू भाषा बोलते हैं. इस समुदाय के ज्यादातर लोग हाल के दिनों तक किसी सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि, अब इस समुदाय के अधिकांश खान, पठान आदि उपनामों को लगाने लगे हैं. जबकि अन्य मशहूर फारसी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज, जो खुद भी एक बुनकर थे, के नाम पर मंसूरी उपनाम का प्रयोग करते हैं.




 जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम आलोक के मतानुसार बादशाह शाहबुद्दीन गौरी ने कुछ हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया था। ये लोग गौरी पठान कहलाने लगे . पिंजारा जाति के अधिकांश रीति रिवाज हिंदुओंसे मिलते जुलते हैं.इनमे विधवा विवाह प्रचलित है। गांवों मे रहने वाले पिंजारा समाज के लोग खेती का  धंधा कर रहे हैं।  इनका पहनावा हिंदुओं जैसा ही है। अधिकांश लोग सरनेम का प्रयोग नहीं करते हैं लेकिन हाल ही मे ये लोग पठान ,खान उपनामों का प्रयोग करने लगे हैं। कुछ लोग मंसूरी उपनाम लेकर चल रहे हैं। इनकी स्त्रियाँ हिन्दुओ जैसी लगती हैं. पाजामा  बहुत कम पहनती हैं . पुरुष धोती कमीज पहनते हैं.  पिंजारा समाज के लोगों की गोत्र  हिन्दू क्षत्रियों जैसी हैं जैसे  देवड़ा चौहान,भाटी,सोलंकी,पड़िहार,राठौड  आदि . इससे विदित होता है कि  पिंजारा समाज किसी समय हिन्दू  क्षत्रिय समाज  के अंग थे. 

पिंजारा समाज का इतिहास


 पिंजारा समाज मूल रूप से फारस (ईरान) और अफगानिस्तान के रहने वाले थे. यह समुदाय कपास की खेती और उद्योगों के व्यवसाय के उद्देश्य के लिए अफगानिस्तान और फारस से भारत आया था, और यहां आकर बस गया. बता दें कि तब भारत और पाकिस्तान में बंटवारा नहीं हुआ था. इसीलिए यह समुदाय भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में पाया जाता है. इस समुदाय की उत्पत्ति स्थानीय धर्मांतरित लोगों और विदेशियों से हुई है जो मुख्य रूप से फारस अफगानिस्तान और बाहर के अन्य क्षेत्रों से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में बस गए. यहां आकर यह पारंपरिक रूप से कपास की खेती और व्यवसाय में शामिल हो गए. कुछ पिंजारा जो इस्लाम में धर्मांतरित होने से उत्पन्न हुए थे, इस बात का दावा करते हैं कि वह मूल रूप से राजपूत वंश के हैं. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, वह राजा रण सिंह के शासन के दौरान राजस्थान से गुजरात आए थे और यही आकर बस गए. 



आज भी इनमें राजपूतों के समान राव, देवड़ा, चौहान, भाटी वंश पाए जाते हैं. कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह समुदाय का संबंध मूल रूप से अफगानिस्तान से है. इनमें से कुछ राजपूतों से धर्मांतरित मुसलमान हैं. लेकिन उन्हें हिंदू समाज में धूना कहा जाता था. मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे। 


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